भारतीय और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का संगम
२५ सितम्बर २०१८Percussion at Campus Concert
बीथोफेन महोत्सव में भारतीय और यूरोपीय लय और ताल
बीथोफेन महोत्सव में भारतीय और यूरोपीय लय और ताल
बॉन में होने वाले सालाना बीथोफेन महोत्सव में कैंपस कंसर्ट का जिम्मा डॉयचे वेले का है. हर साल एक नया देश पार्टनर होता है. इस साल भारत की बारी थी. कंसर्ट में भारतीय और यूरोपीय लय और ताल का समां बंधा.
आंखों से बातें
मंच पर जर्मन यूथ ऑर्केस्ट्रा के कलाकारों और भारतीय मेहमानों ने संवाद के लिए आंखों और मुस्कुराहट का सहारा लिया जबकि वे ऑर्केस्ट्रा के विभिन्न वाद्य यंत्र और तबला तथा बांसुरी बजाते रहे.
परीक्षण
भारतीय लय और ताल को यूरोपीय संगीत की धुनों से जोड़ने का विचार कोई नया तो नहीं था, लेकिन एक दूसरे से अपरिचित कलाकारों के साथ इसके करने का परीक्षण नया जरूर था.
कामयाब प्रयास
जब कैंपस कंसर्ट का प्रदर्शन हुआ तो यूरोपीय क्लासिकल संगीत की परंपरा में रचे बसे बॉन के दर्शकों और श्रोताओं के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा. लगातार तालियों ने कलाकारों का उत्साह बढ़ाया.
खास रचना
जर्मन यूथ ऑर्केस्ट्रा को निर्देशन देकर उन्हें भारतीय लय और ताल में बांध देने वालों में कंडक्टर लेस्ली सुगंधराजा के अलावा प्रसिद्ध बांसुरीवादक राकेश चौरसिया और भारतीय परंपरा में रचे बसे यूरोपीय पर्कशनिस्ट बैर्नहार्ड शिंपेल्सबर्गर थे.
लंबी परंपरा
बीथोफेन महोत्सव और डॉयचे वेले 2001 से साथ मिलकर कैंपस प्रोजेक्ट चला रहे हैं. यह जर्मन कलाकारों को हर साल दुनिया के किसी एक हिस्से के कलाकारों के साथ आने और संगीतमय संवाद का मौका देता है.
मिशन इंपॉसिबल
प्रोजेक्ट की शुरुआत पर भारत और यूरोपीय क्लासिकल संगीत को रचनात्मक संवाद में लाने की इस चुनौती को असंभव सा समझा गया था. जर्मनी में विशेषज्ञों ने कहा था कि नाकामी एकमात्र नतीजा है.
युवा कलाकारों की मेहनत
युवा कलाकारों ने विशेषज्ञों की राय को झुठलाते हुए साबित कर दिया कि भारतीय और यूरोपीय संगीत देखने में एक दूसरे से अलग भले हों लेकिन सौंदर्य, परंपरा और अनुशासन में वे एक जैसे हैं.