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क्या चीन के विंटर ओलंपिक्स से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं

११ फ़रवरी २०२२

पिछले कुछ दशकों से ओलिंपिक आयोजन इतने भव्य और बड़े होने लगे हैं कि पर्यावरण को संकट लाजिमी है. बीजिंग ओलिंपिक को सस्टेनेबल बनाने के दावे यही विरोधाभास दिखाते हैं.

बीजिंग में हो रहे विंटर ओलंपिक्स के आयोजकों का दावा है कि वे ओलंपिक्स इतिहास के सबसे सस्टेनेबल ओलंपिक्स आयोजित कर रहे हैं, लेकिन जमीनी तैयारियों और उनके दावे में कई विरोधाभास हैं.
आयोजकों का दावा है कि पर्यावरण का ध्यान रखते हुए वे 2008 के बीजिंग समर ओलंपिक्स के खेल के कुछ मैदानों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.तस्वीर: kyodo/dpa/picture alliance

चीन की राजधानी बीजिंग में विंटर ओलिंपिक का आयोजन हो रहा है. इसके लिए आयोजकों ने बहुत बड़े पैमाने पर निर्माण किया है. खेल की कई नई जगहें बनाई गईं. स्की प्रतियोगिताओं के लिए आसपास के पर्वतों पर नकली बर्फ बनाने के लिए लाखों गैलन पानी छोड़ा गया.

साथ में आयोजकों का यह दावा भी है कि वे ओलिंपिक इतिहास का सबसे सस्टेनेबल आयोजन कर रहे हैं. सस्टेनेबल का सीधा अर्थ तो टिकाऊ होता है. यहां इनका आशय यह है कि ओलिंपिक के लिए जो भी निर्माण कार्य किया गया है, वह पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाला है. पर यह दोनों चीजें एक साथ मुमकिन कैसे हैं?

देश और कंपनियां पर्यावरण के मामले में अपनी साख चमकाना चाहती हैं. ऐसे में यह विरोधाभास दिखाता है कि असली उपलब्धियों से भटकाने में कैसी दिक्कतें आती हैं. जैसे ओलिंपिक के आयोजक निर्णाम कार्यों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को घटाने में काफी हद तक सफल रहे. हालांकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके सस्टेनेबल यानी टिकाऊ होने का दावा करना लंबी-चौड़ी हांकने और समस्याएं छिपाने जैसा है.

चीन में पारदर्शिता की बहुत कमी है. ऐसे में दावों की पड़ताल करना बहुत मुश्किल होता है. आइए, समझते हैं कि चीन में किए जा रहे सस्टेनेबिलिटी के दावों से हमें क्या पता चल रहा है और क्या नहीं पता चल रहा है.

बर्फ पर होने वाले खेल आयोजित करने के लिए कृत्रिम बर्फ बनाई गई है, जिसमें बहुत पानी लगता है.तस्वीर: BEN STANSALL/AFP

सस्टेनेबिलिटी को कैसे मापेंगे?

सस्टेनेबिलिटी एक बड़ा यानी व्यापक शब्द है. इसके तहत एक साथ कई चीजों पर बात की जाती है. आमतौर पर इसे किसी काम के पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों की बात करने में इस्तेमाल किया जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि इसका कोई स्पष्ट और एकरूप पैमाना नहीं हैं, जिसकी वजह से सस्टेनेबिलिटी को लेकर किए जाने वाले दावों पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है.

पिछले साल जारी हुई एक स्टडी के मुताबिक 2000 के दशक की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (IOC) मूल्यांकन का एक ऐसा तरीका तलाश रही थी, जिससे पता लगाया जा सके कि आयोजक सस्टेनेबिलिटी के लक्ष्य हासिल करने की दिशा में कैसी प्रगति कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक एक वक्त के बाद ओलिंपिक की मेजबानी करनेवाले देशों ने इस ओर ध्यान देना बंद कर दिया, क्योंकि इससे जुड़ी सारी जरूरी जानकारियां जुटाना बहुत ही बोझिल होता था.

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फिर शोधकर्ताओं ने अपना ही एक तरीका ईजाद कर लिया. जो भी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होती थी, वे उसी के आधार पर खेलों की सस्टेनेबिलिटी को मापने लगे. अब चूंकि सभी जानकारियां लगातार तो मिलती नहीं हैं. ऐसे में इन आंकड़ों की तुलना करना और इनसे किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल होता है. हालांकि, उन्होंने पाया कि बीते कुछ वक्त से ओलिंपिक आयोजन ज्यादा भव्य और बड़े होने लगे हैं, जिससे सस्टेनेबिलिटी कहीं पीछे छूट गई है.

और कार्बन फुटप्रिंट का क्या?

सस्टेनेबिलिटी के तहत ग्लोबल वॉर्मिंग पर खूब पर चर्चा होती है. ओलिंपिक आयोजकों पर कार्बन उत्सर्जन घटाने का दबाव होता है, क्योंकि यह ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ावा देता है. साथ ही, सस्टेनेबिलिटी के तहत एक और अहम पैमाने पर बात की जाती है और वह है कार्बन फुटप्रिंट.

IOC का कहना है कि बीजिंग ओलिंपिक का आयोजन कार्बन न्यूट्रल होगा और भविष्य में आयोजित होने वाले खेल कार्बन पॉजिटिव होंगे. वहीं अगर हम देखें कि ये खेल कितने बड़े पैमाने पर आयोजित होते हैं, तो IOC का बात तर्क से परे नजर आती है. हालांकि, आयोजक समूह उत्सर्जित होने वाले कार्बन के बदले पेड़ लगाकर कार्बन न्यूट्रलिटी का दावा कर सकता है.

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विशेषज्ञ मानते हैं कार्बन उत्सर्जन के बदले पेड़ लगाने का तरीका समस्याजनक हो सकता है, क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे उत्सर्जन घटाने की दिशा में काम करेंगे. पेड़ जंगली आग या बेहाल करनेवाले मौसम के सामने खत्म भी हो सकते हैं.

IOC का कहना है कि बीजिंग ओलंपिक्स का आयोजन कार्बन न्यूट्रल होगा और भविष्य में आयोजित होने वाले खेल कार्बन पॉजिटिव होंगे.तस्वीर: FLORENCE LO/REUTERS

चीन क्या कर रहा है?

बीजिंग ओलिंपिक के आयोजकों का कहना है कि उन्होंने आयोजन से होने वाले नुकसान कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं. इस महीने होने वाले खेलों के लिए बीजिंग में ही 2008 में आयोजित हुए समर ओलिंपिक के कई मैदानों को इस्तेमाल किया गया है. साथ ही, खेल की जगहों पर बिजली का इंतजाम अक्षय ऊर्जा से किया जा रहा है. खिलाड़ियों को एक से दूसरी जगह ले जाने वाले ज्यादातर वाहन भी ईंधन बचाने वाले होंगे.

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लेकिन, कार्बन न्यूट्रलिटी हासिल करने के लिए आयोजक अब भी उत्सर्जन के बदले पेड़ लगाने के लिए भुगतान करने के तरीके पर आश्रित हैं. IOC में सस्टेनेबिलिटी की निदेशक मरी सलोई ने उत्सर्जन घटाने में आ रही दिक्कतों को समझा है और पाया है कि आयोजक हालात बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं.

आयोजकों का दावा है कि खेल की जगहों पर बिजली का इंतजाम अक्षय ऊर्जा से किया जा रहा है. खिलाड़ियों को एक से दूसरी जगह ले जाने वाले ज्यादातर वाहन भी ईंधन बचाने वाले होंगे.तस्वीर: BEN STANSALL/AFP

अन्य प्रभावों का क्या?

हालिया वर्षों में कार्बन फुटप्रिंट पर ध्यान देने से पर्यावरण और समाज के कुछ अन्य मुद्दे धुंधला सकते हैं. जैसे प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल और निर्माण के लिए स्थानीय निवासियों का विस्थापन. पिछले महीने पेश की गई एक सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट में चीन के आयोजकों ने खेलों से होने वाले कुछ अन्य प्रभावों पर बात की थी. जैसे हिबेई प्रांत में ओलंपिक गांव और स्की जंप खेल की जगह बनाने के लिए करीब डेढ़ हजार गांववालों को विस्थापित करना पड़ा. इसके बदले उन्हें पैसे या नए अपार्टमेंट की पेशकश की गई थी.

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रिपोर्ट कहती है कि नकली बर्फ बनाने की प्रक्रिया में स्थानीय स्तर पर पानी की आपूर्ति बाधित ना हो जाए, इसके लिए गंदे पानी को रिसाइकल किया गया. बारिश और पिघली बर्फ के पानी को इकट्ठा किया गया. आयोजकों का यह भी कहना है कि अब स्की रिजॉर्ट्स में नकली बर्फ आम हो गई है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से विंटर स्पोर्ट्स पर खतरा पैदा रहा है, ऐसे में यह तरीका और भी ज्यादा प्रचलन में आ सकता है.

वीएस/एनआर (एपी)

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