प्राकृतिक आवास से बहुत दूर फ्रांस की सैन नदी में फंसी बेलुगा व्हेल की मौत हो गई है. नदी से समंदर की तरफ ले जाने की कोशिश के दौरान व्हेल को सांस लेने में परेशानी होने लगी. डॉक्टरों ने उसकी पीड़ा हमेशा के लिए खत्म कर दी.
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चार मीटर लंबी और 800 किलोग्राम वजनी बेलुगा व्हेल अगस्त की शुरूआत में फ्रांस की सैन नदी में दिखी. ज्यादातर समय वह एक ही जगह पर पानी में उलटी तैरती दिखी. महासागर में रहने वाले इस विशाल स्तनधारी जीव के नदी में आने पर वैज्ञानिकों को बड़ी हैरानी हुई. वयस्क होने के बावजूद यह बेलुगा व्हेल बहुत कमजोर हो चुकी थी. आम तौर पर स्वस्थ्य व्यस्क बेलुगा का वजन कम से कम 1200 किलो होता है.
कुछ दिनों की निगरानी के बाद 9 अगस्त को फ्रांस के अधिकारियों ने बेलुगा को रेस्क्यू कर उत्तरी महासागर तक पहुंचाने का फैसला किया. मंगलवार देर शाम से बुधवार सुबह चार बजे तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान व्हेल को एक नेट में लपेटा गया. फिर नेट में लिपटी व्हेल को क्रेन की मदद से नदी से बाहर निकाला गया. इसके बाद डॉक्टरों की निगरानी में उसे एक रेफ्रिजेरेटेड ट्रक में रखकर हौले हौले उत्तरी सागर की तरफ ले जाया रहा था. समंदर से कुछ किलोमीटर पहले बेलुगा व्हेल को कमजोरी के कारण सांस लेने में परेशानी होने लगी.
इसके बाद पशु चिकित्सकों ने बेलुगा को मारने का फैसला किया. रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल एक स्थानीय अधिकारी ने कहा, "अभूतपूर्व बचाव अभियान के बावजूद, हमें बड़े दुख के साथ हमें इस समुद्री स्तनधारी की मौत का एलान करना पड़ रहा है."
पहले योजना थी कि कमजोर हो चुकी व्हेल को रिकवरी के लिए कुछ समय दिया और उसके बाद समंदर तक पहुंचाया जाए. लेकिन इस प्लान में बहुत जोखिम था. बेलुगा व्हेल आम तौर पर आर्कटिक और सब आर्कटिक के बर्फीले पानी में रहती है. नदी के गुनगुने और मीठे पानी ने खारे पानी की व्हेल की हालत बहुत खराब कर दी थी.
मरीन कंर्जवेशन ग्रुप, सी शेपर्ड फ्रांस रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल था. ग्रुप का का कहना है कि सैन नदी में छोड़ने पर भी उसकी मौत तय थी. अगर ऐसा होता तो ज्यादा अफसोस होता. सी शेपर्ड फ्रांस ने अपने बयान में कहा, "यह ऑपरेशन जोखिम भरा था, लेकिन भारी संकट में फंसे जीव को एक मौका देने के लिए जरूरी था."
हाल के बरसों में ब्रिटेन और फ्रांस की नदियों में दो तीन बार बड़े समुद्री जीव दिखाई पड़े हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, इसका जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है.
ओएसजे7एनआर (एएफपी, डीपीए)
क्यों मर रही हैं व्हेलें
भारत में तमिलनाडु के तट पर इसी महीने दर्जनों व्हेल मछलियां मरी हुई मिलीं. भारत से हजारों किलोमीटर दूर जर्मनी और हॉलैंड के तटों पर भी 12 व्हेल मछलियां मृत पाई गईं. आखिर क्यों मर रही हैं ये विशाल मछलियां?
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जांच शुरू
जर्मनी और हॉलैंड के उत्तरी सागर के तटों पर भी जनवरी में 12 स्पर्म व्हेलों के शव मिले. अब 10 मीटर लंबी मछलियों के शव की जांच की जा रही है ताकि मौत का कारण पता चले.
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मुश्किल चुनौती
शव की जांच के लिए भारी भरकम व्हेलों को तट से उठाकर लाया गया है. एक मादा स्पर्म व्हेल का वजन 16.5 टन तक होता है. नर का वजन 60 टन तक. तटों पर मिली व्हेलें भले ही ज्यादा बड़ी न हों, लेकिन फिर भी उन्हें उठाने के लिए क्रेन लगानी पड़ी.
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निरीक्षण की प्रक्रिया
शव की जांच के लिए सबसे पहले कुछ व्हेलों के अलग अलग टुकड़े किए गए. मांसपेशियों, ऊतकों और भीतरी अंगों को निकाला जा रहा है. इन सब की जांच की जाएगी. जांच टीम से जुड़े एक सदस्य ने इसे बेहद निराशाजनक लम्हा बताते हुए कहा, "इतने खूबसूरत जानवरों की खाल को अलग करना और उनके टुकड़े टुकड़े करना, मेरा दिल यह देखकर मायूस हो गया."
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अंत में म्यूजियम
व्हेल के एक कंकाल को गिसेन यूनिवर्सिटी में रखा जाएगा. तस्वीर में व्हेल का जबड़ा दिख रहा है. एक और कंकाल को जर्मनी के उत्तर में स्थित श्ट्रालसुंड शहर के मरीन म्यूजियम में रखा जाएगा.
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भूख भी जिम्मेदार
जांच में पता चला है कि कुछ व्हेलों की मौत कुपोषण से हुई. स्पर्म व्हेल बड़े स्क्विड्स खाती हैं. उत्तरी सागर में स्क्विड्स नहीं होते हैं. जांचकर्ता अल्मुट कोटवित्स के मुताबिक कई व्हेलों का पेट एकदम खाली था.
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भारी वजन से मौत
पशु चिकित्सक उर्सुला जाइबर्ट के मुताबिक कुछ व्हेलों ने बहुत ज्यादा खाना खाया था. बहाव के साथ जब वो बीच की रेत तक पहुंची तो उनका अपना ही वजन घातक साबित हुआ. भारी भरकम वजन के चलते उनकी रक्त नलिकाएं और फेफड़े दब गए.
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तट पर कैसे आईं
जनवरी में तमिलनाडु के तट पर भी 100 से ज्यादा शॉर्ट फिन पायलट व्हेलें फंस गईं. इनमें से कई को वापस समुद्र में पहुंचा दिया गया, लेकिन करीब 73 की मौत हो गई. भारत में भी इतनी बड़ी संख्या में व्हेलों के तट पर फंसने की जांच हो रही है.
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व्हेलों का समाज
पर्यावरण संरक्षक फाबियान रिटर के मुताबिक व्हेलों का अपना परिवार और समाज से बेहद गहरा रिश्ता होता है. रिटर कहते हैं, "जब कोई मुखिया बीमार हो जाता है और खुद को अलग करता हुए बीच की ओर जाता है तो उसके ग्रुप के कई और सदस्य समर्पण की वजह से भी उसके पीछे लग जाते हैं."
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बहुत ज्यादा शोर
संरक्षक चेतावनी दे चुके हैं कि इंसानी गतिविधियां पानी के भीतर बहुत ज्यादा शोर फैला रही हैं और इसका समुद्री स्तनधारियों पर खतरनाक असर पड़ रहा है. रिटर कहते हैं, "व्हेलें ध्वनि के प्रति बहुत ही ज्यादा संवेदनशील होती हैं. वे आवाज के जरिए ही एक दूसरे से संपर्क करती हैं. सैन्य अभ्यास के दौरान होने वाली तेज आवाज उन्हें भ्रमित कर देती है."