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राजनीतिइस्राएल

नेतन्याहू पर आरोप, केस निपटाने के लिए कर रहे कानून में बदलाव

१५ फ़रवरी २०२३

पीएम नेतन्याहू इस्राएल की कानूनी व्यवस्था में बड़े बदलाव करना चाहते हैं. इससे न्यायिक प्रक्रिया में सरकार का दखल और नियंत्रण काफी बढ़ जाएगा. आरोप है कि नेतन्याहू की योजना का संबंध उनपर चल रहे आपराधिक मुकदमों से है.

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार इस्राएल की कानूनी व्यवस्था में बड़े बदलाव की योजना लाई है. इसका देश में खूब विरोध हो रहा है. कई हफ्तों से पूरे देश में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार इस्राएल की कानूनी व्यवस्था में बड़े बदलाव की योजना लाई है. इसका देश में खूब विरोध हो रहा है. कई हफ्तों से पूरे देश में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.तस्वीर: Ohad Zwigenberg/AP Photo/picture alliance

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार इस्राएल की कानूनी व्यवस्था में बड़े बदलाव की योजना लाई है. इसका देश में खूब विरोध हो रहा है. कई हफ्तों से पूरे देश में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इस्राएली समाज के बड़े धड़े ने इस योजना की निंदा की है. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी चिंता जताई है. इसी क्रम में 13 फरवरी को इस्राएली संसद के बाहर हुए विशाल प्रदर्शन की तस्वीरें और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.

नेतन्याहू और उनके सहयोगियों का कहना है कि देश में अनिर्वाचित जजों के पास बहुत ज्यादा ताकत है और इसपर काबू करना जरूरी है. वहीं विपक्षियों और आलोचकों का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया से नेतन्याहू के गहरे निजी हित जुड़े हैं. नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चल रहा है. ऐसे में कानूनी प्रक्रिया में बदलाव की उनकी योजना देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नष्ट करेगी. सरकार और संस्थाओं के कामकाज की निगरानी करने के लोकतांत्रिक "चेक्स एंड बैलेंसेज" बर्बाद हो जाएंगे. विपक्षियों का आरोप है कि इस योजना की आड़ में नेतन्याहू खुद पर चल रहे आपराधिक मुकदमे को खत्म करना चाहते हैं.

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देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन

13 फरवरी को प्रस्तावित बदलाव के खिलाफ संसद के बाहर हुआ प्रदर्शन, हालिया सालों में येरुशलेम में हुआ सबसे बड़ा प्रोटेस्ट था. विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए देशभर से लोग पहुंचे थे. ट्रेनों में खचाखच भीड़ देखी गई. आयोजकों के मुताबिक, 13 फरवरी को हुई रैली में एक लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए. इनमें अरब, महिला अधिकार और एलजीबीटीक्यू अधिकार कार्यकर्ताओं के अलावा विपक्षी दल के कार्यकर्ता भी शामिल थे.

साथ ही, कई अकादमिक, छात्र, कर्मचारी, रिटायर हो चुके लोग और परिवार भी रैली का हिस्सा बने. लोग हाथ में झंडा लिए "डेमोक्रेसी," "शेम शेम" और "इस्राएल तानाशाही नहीं बनेगा" जैसे नारे लगा रहे थे. विपक्षी नेता याइर लापिड ने संसद की ओर इशारा करते हुए प्रदर्शनकारियों की भीड़ से कहा, "वो हमें सुन रहे हैं. वो हमारी एकजुटता और समर्पण को सुन पा रहे हैं. वो ना सुनने का दिखावा करते हैं. वो ना डरने का दिखावा करते हैं. लेकिन उन्हें सुनाई देता है और वो डरे हुए हैं."

नेतन्याहू सरकार द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में बदलाव के विवादित प्रस्ताव पर 13 फरवरी को विपक्षी नेताओं ने भी संसद के भीतर खूब विरोध किया. विरोध के बीच ही लॉ कमिटी ने इन प्रस्तावों के पहले चरण को मंजूरी दे दी. तस्वीर: Israeli Parliament Knesset/AA/picture alliance

क्या प्रस्ताव हैं सरकार के?

येरुशलेम के अलावा देश के कई और शहरों में भी बड़े प्रदर्शन हुए हैं. हालांकि विरोध के बावजूद नेतन्याहू के नियंत्रण वाली संसदीय समिति ने योजना से जुड़े कानून के शुरुआती हिस्सों को पास कर दिया. इनमें नेतन्याहू के बहुमत वाली विधायिका को न्यायिक नियुक्तियों का नियंत्रण देने से जुड़ा प्रस्ताव भी शामिल है. अभी एक स्वतंत्र समिति जजों की नियुक्ति करती है. इस समिति में वकील, नेता और जज शामिल हैं. एक और प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट से बड़े कानूनों की कानूनी वैधता की समीक्षा का अधिकार ले लेगा.

इनके अलावा एक और प्रस्ताव लाने की योजना है, जो संसद को यह अधिकार देगी कि पसंद ना आने पर वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पलट सकती है. विपक्षियों का कहना है कि ये प्रस्ताव इस्राएल को हंगरी और पोलैंड जैसी व्यवस्था बना देंगे, जिनमें लीडर के पास सारे अहम अधिकार होते हैं. उसपर निगरानी रखने और फैसला सुनाने के लिए कोई संस्था प्रभावी नहीं रह जाती. संसद की कमिटी में वोटिंग के दौरान खूब हल्ला हुआ. विपक्षी सदस्य कॉन्फ्रेंस टेबल पर चढ़कर नारे लगाने लगे. कई विपक्षी नेताओं को बाहर निकाल दिया गया. कुछ को तो सुरक्षाकर्मी घसीटकर बाहर ले गए.

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खुद को पीड़ित बताते हैं नेतन्याहू

अब यह प्रस्ताव संसद में जाएगा. तीन अलग-अलग वोटिंग में इन्हें पास किया जाना होगा. 20 फरवरी को पहली वोटिंग होने की उम्मीद है. संसद में नेतन्याहू का बहुमत है. ऐसे में उन्हें आगे बढ़ने से रोका जाना मुमकिन नहीं लग रहा है. हालांकि बड़े स्तर पर हो रहे विरोध प्रदर्शन ध्यान खींच रहे हैं. नेतन्याहू ने आरोप लगाया है कि विपक्ष जान-बूझकर देश को अराजकता की ओर धकेल रहा है. साथ ही, उन्होंने विरोधियों से बातचीत का भी संकेत दिया.

कानून मंत्री यारिव लेविन और कमिटी के अध्यक्ष रोथमान ने एक साझा बयान जारी कर विपक्ष को बातचीत का आमंत्रण दिया, जिसे विपक्ष ने नामंजूर कर दिया. विपक्ष की मांग है कि बातचीत शुरू करने के लिए जरूरी है कि सरकार प्रक्रिया को रोके. नेतन्याहू ने दिसंबर 2022 में सत्ता में वापसी की थी. पुलिस, प्रॉसिक्यूटर और जजों की तीखी आलोचना करते हुए वह खुद को गहरी साजिश का शिकार बताते आए हैं. हालांकि आलोचक इन दावों को खारिज करते हैं.

एसएम/एमजे (एपी)

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