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नवाजुद्दीन सिद्दीकी: फिल्म हिट करवाना मेरा काम नहीं है

स्वाति बक्शी
२३ फ़रवरी २०२४

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने 2012 में पहली बार फिल्म 'पतंग-द काइट' के साथ बर्लिन फिल्म फेस्टिवल, यानी बर्लिनाले में हिस्सा लिया था. इस बार बर्लिनाले में वह बिना किसी फिल्म के आए और डीडब्ल्यू हिंदी ने उनसे बातचीत की.

बर्लिन में नवाजुद्दीन सिद्दीकी
डीडब्ल्यू के साथ बर्लिन में हुई एक खास बातचीत के दौरान अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकीतस्वीर: DW

नवाजुद्दीन सिद्दीकी हिंदी सिनेमा में 25 साल बिता चुके हैं. आम तौर पर नवाज कहलाने वाले इस अभिनेता ने अपनी अदाकारी का लोहा इस कदर मनवाया है कि उनका नाम देखते ही पर्दे पर कुछ कलात्मक देखने की इच्छा जोर मारने लगती है.

1999 में सरफरोश के एक सीन के साथ जो सफर शुरु हुआ, उसमें इतने रंग भर चुके हैं कि खुद उन्हें खबर नहीं है कि फिल्म इतिहास में आगे उनकी फिल्मों को किस तरह से देखा और समझा जाएगा. लेकिन अभिनय, कामयाबी, पैसे और ख्वाहिशों पर उनके फलसफे साफ हैं.

2012 ने बदल दी किस्मत

1999 से 2012 तक नवाज छोटे-छोटे रोल करते रहे, जिनमें रामगोपाल वर्मा की शूल (1999), जंगल (2000), राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई एमबीबीएस (2003) और अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी ब्लैक फ्राइडे (2007) शामिल हैं.

2012 के साल को नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने लिए खास मानते हैं. इसी साल कहानी, तलाश और गैंग्स ऑफ वासेपुर रिलीज हुई थीं. तस्वीर: ©Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

साल 2012 मानो नवाजुद्दीन का तूफान लेकर आया. इसी साल रिलीज हुईं कहानी, तलाश, गैंग्स ऑफ वासेपुर और मिस लवली. 'कहानी' के डिप्टी इंस्पेक्टर ए. खान का चेहरा आंखों से उतरा नहीं था कि फैजल के काले चश्मे ने दर्शकों को अपने रंग में सराबोर कर दिया. 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' तो अपनी रिलीज के कुछ ही सालों में कल्ट फिल्म मानी जाने लगी.

नवाजुद्दीन भी कहते हैं, ''बेशक वो साल खास था. मेरी तीन फिल्में बहुत खास रहीं. अमेरिकी क्रिटिक रोजर एबर्ट ने पतंग को थंब्स अप ट्रॉफी दी थी. मैं शिकागो के पास उनके घर में रुका था. बेहद अच्छा अनुभव था.''

कामयाबी की यह जो कहानी शुरु हुई, तो अगले साल उनकी झोली में थी 'लंचबॉक्स.' इसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनकी छवि में चार चांद लगाए. इरफान जैसे दमदार अभिनेता के साथ पर्दे पर नजर आना, नवाज के जेहन में कई यादें छोड़ गया.

इरफान के साथ काम के अनुभव पर उन्होंने बताया, ''हम दोनों नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकले, लेकिन ऐक्टिंग को लेकर हमारी अप्रोच अलग है. हर एक्टर की अलग होती है. कई बार ऐसा होता था कि हम सीन के लिए कोई रिहर्सल नहीं करते थे और सीधे सेट पर पहुंच कर काम शुरु करते थे. इससे ऐसी चीजें निकलकर आती थीं, जिनका हमें भी पहले से अंदाजा नहीं होता था.''

मेरा काम सिर्फ अभिनय है

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पहचान भले ही फेस्टिवल फिल्में कही जाने वाली खास तरह की फिल्मों से हो, लेकिन मुख्यधारा के बॉलीवुड सिनेमा में भी उन्होंने किरदार निभाना जारी रखा है. इनमें कुछ चर्चित फिल्में हैं साल 2014 में आई फिल्म किक, जिसमें नवाज सलमान खान के साथ दिखे. 'किक' में उन्होंने शिव गजरा का किरदार निभाया. इसके अलावा 'बजरंगी भाईजान' में उनका चांद नवाब का किरदार भी बहुत लोकप्रिय हुआ. साल 2016 में आई 'बदलापुर' में भी उनका काम सराहा गया. 2017 में आई 'मुन्ना माइकल' और साल 2022 में आई 'हीरोपंती2' भी पॉपुलर सिनेमा में शामिल थीं. 

उनकी अब तक की सबसे यादगार भूमिकाओं में साल 2015 में आई केतन मेहता निर्देशित 'मांझी-दी माउंटेन मैन' का भी काफी जिक्र होता है. हालांकि हर किरदार को चांद नवाब या मांझी जैसी चर्चा नहीं मिली. कई बार फिल्में ना चलने की वजह से भी उनके निभाए किरदारों की तरफ ध्यान नहीं गया. 

नवाज इस आपा-धापी से खुद को बिल्कुल अलग करते हुए कहते हैं,''मेरा फोकस सिर्फ अभिनय है, मैं सिर्फ वही करूंगा. फिल्म चलती है या नहीं, यह देखना मेरा काम नहीं है. अगर डिस्ट्रीब्यूटर एक फिल्म 5,000 स्क्रीन पर रिलीज करेंगे, तो जाहिर है कि उसकी सफलता की संभावना ज्यादा होगी. लेकिन यह सब देखने के लिए टीम है. टेक्निकल टीम अपना काम करती है, मैं अपना काम करता हूं.''

इसी मसले पर नंदिता दास निर्देशित मंटो का जिक्र करते हुए नवाज ने कहा, ''मुझे हमेशा से पता था कि मंटो सिनेमाघर में नहीं चल पाएगी. लेकिन उसका असर मैं अपने काम पर तो पड़ने नहीं दे सकता.''

नवाजुद्दीन कहते हैं कि पैसों के पीछे भागने से पैसे हाथ नहीं आते. तस्वीर: JOHN ANGELILLO/picture alliance

ना ख्वाहिशों की बंदिश, ना पैसों का मोह

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव बुधाना से निकल कर मुंबई में अपनी पहचान बनाने का उनका एक दशक लंबा संघर्ष उन कहानियों पर वास्तविकता की मुहर लगाता है, जो मुंबई के बारे में सुनने को मिलती हैं. लेकिन 10 साल का वो अरसा नवाजुद्दीन के लिए जीत-हार जैसा नहीं था.

उन्होंने कहा, "मुझे जितना काम मिल रहा था, उससे मैं खुश था. मेरी कभी कोई अपेक्षा रही ही नहीं है. अगर मुझे फिल्मों में काम नहीं मिलता तो टीवी कर लेता, टीवी नहीं मिलता तो मैं नुक्कड़ नाटक कर लेता. मुझे बस एक्टिंग करनी थी."

मुंबई में अपना एक शानदार घर बनाने वाले नवाजुद्दी कहते हैं कि उन्हें पैसों की भी कोई ख्वाहिश कभी नहीं रही. वह बताते हैं, ''मुझे पैसे का भी कभी मोह नहीं था. पैसे के पीछे आप जितना भागेंगे, वो उतना दूर भागेगा आपसे. बस खुद को इस लायक बनाना था कि पैसे वाले लोग आपके बगल में खड़े रहें.''

जिंदगी और करियर से उम्मीदें ना बांधने वाले नवाज अपने पूरे सफर का आधार सिर्फ अभिनय करने की कभी ना खत्म होने वाली इच्छा को मानते हैं. उसमें किसी समझौते के बिना खुद को पूरी तरह झोंक देने की ताकत ही उनके अभिनय की जान है. 

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