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समाज

देशव्यापी हड़ताल से क्या पूरी होंगी ट्रेड यूनियनों की मांगें

आमिर अंसारी
८ जनवरी २०२०

भारत में ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान कुछ राज्यों में ट्रेनें रोकी गईं, बड़ताल से बैंकिंग सेवा भी प्रभावित हुईं हैं. ट्रे़ड यूनियनें हड़ताल कर सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध कर रही हैं.

Indien Streik in Kalkutta
तस्वीर: DW/D. Choubey

भारत में ट्रे़ड यूनियनों द्वारा बुलाए गए भारत बंद का असर देश के कुछ हिस्सों में देखने को मिला. कोलकाता, मुंबई और दिल्ली के औद्योगिक इलाकों में हड़ताल का ज्यादा असर दिखा. ट्रे़ड यूनियनों का आरोप है कि सरकार मजदूर और जनता विरोधी फैसले ले रही है और उनके हितों पर ध्यान नहीं दे रही है. श्रम सुधारों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, निजीकरण, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर भारत सरकार के रवैये खिलाफ 10 केंद्रीय ट्रे़ड यूनियनों ने बुधवार को भारत बंद का आह्वान किया है.

ट्रेड यूनियनों का दावा है कि इस हड़ताल में करीब 25 करोड़ लोग शामिल हुए हैं. हड़ताल का असर ओडिशा और पश्चिम बंगाल में खास तौर पर दिखा. पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में बंद के दौरान हिंसा की खबरें हैं. पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना में प्रदर्शनकारियों ने रेलवे ट्रैक जाम कर दिया. इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने हावड़ा में रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर दिया था.

क्या हैं ट्रेड यूनियनों की मांगें

12 मांगों को लेकर भारत बंद का आयोजन किया गया है और इसमें बैंकिंग, कोयला, तेल, रक्षा, पब्लिक सेक्टर और ट्रांसपोर्ट क्षेत्र के कर्मचारियों के शामिल होने की रिपोर्ट हैं. इस हड़ताल का एलान करने वालों में इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिन्द मजदूर सभा (एचएमएस), कंफेडरेशन ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) समेत दस केंद्रीय संघ और स्वतंत्र यूनियन शामिल हैं. पिछले साल सितंबर में ही ट्रेड यूनियनों ने 8 जनवरी को हड़ताल पर जाने की घोषणा कर दी थी.

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि केंद्र सरकार की आर्थिक और जन विरोधी नीतियों के विरोध में हड़ताल हो रही है. इसके अलावा उन्होंने श्रम कानून का भी विरोध करने की बात कही है. ट्रेड यूनियनों का कहना है कि असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए 21 हजार रुपये न्यूनतम वेतन होना चाहिए. उनकी दूसरी मांग है कि निजीकरण, वैश्वीकरण और उदारीकरण को रोका जाना चाहिए. इसी के साथ वे पुराना पेंशन बहाल करने की मांग कर रहे हैं और बैंकिंग, इंश्योरेंस और रेलवे क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश पर रोक की मांग की जा रही है.

तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

न्यूनतम वेतन

कंफेडरेशन ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस के नेता अनुराग सक्सेना ने डीडब्ल्यू से बताया, "हमारी प्राथमिक मांग है कि महंगाई के अनुसार अकुशल श्रमिकों का वेतन 21 हजार रुपये होना चाहिए और मजदूरों को कम से कम 10 हजार रुपये पेंशन मिलनी चाहिए. स्थायी कामों के लिए ठेका प्रथा बंद होना चाहिए, जिसका कॉन्ट्रैक्ट लेबर कानून में पहले से ही प्रावधान है." सक्सेना ने कहा कि श्रम कानून में बदलाव करके मजदूरों का शोषण हो रहा है, जिसके वे खिलाफ हैं. सीटू के नेता ने यह भी कहा कि आंगनबाड़ी, आशा और मिड डे मील की कार्यकर्ताओं से काम तो पूरा लिया जाता है लेकिन केंद्र सरकार उनको कर्मचारी का दर्जा नहीं देती है, जो कि मिलना चाहिए.

विपक्ष हमलावर

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए भारत बंद का समर्थन किया, उन्होंने कहा कि केंद्र की जन विरोधी और मजदूर विरोधी नीतियों ने भयावह बेरोजगारी पैदा की है. राहुल ने अपने ट्वीट में लिखा है, "मोदी-शाह की सरकार की जनविरोधी और श्रम विरोधी नीतियों ने विनाशकारी बेरोजगारी पैदा कर दी है और मोदी अपने धनी पूंजीवादी दोस्तों को बिक्री को सही ठहराने के लिए हमारे सार्वजनिक उपक्रमों को कमजोर कर रहे हैं." 

पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने भी ट्वीट कर हड़ताल का समर्थन करते हुए लिखा है,  "यह वक्त की जरूरत है क्योंकि सरकार संविधान विरोधी, दलित विरोधी, पिछड़ा विरोधी, गरीब और अल्पसंख्यक विरोधी और आम जनता के खिलाफ कार्यों में व्यस्त है."

आर्थिक नुकसान

ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयीज एसोसिएशन का दावा है कि हड़ताल के कारण 22,000 से 25,000 करोड़ के करीब कैश और चेक लेनदेन प्रभावित होंगे. साथ ही उसका कहना है कि हड़ताल की वजह से कई शहरों में एटीएम से नकद निकालना मुश्किल हो रहा है. एसोसिएशन का दावा है कि इस हड़ताल के कारण 28 लाख के करीब चेक अटक गए हैं.

कंफेडरेशन ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस की बंगाल समिति के सदस्य दिबाश चौबे के मुताबिक, "इस हड़ताल में आम लोग शामिल हैं. मजदूर ही नहीं किसान भी सरकार से नाराज हैं. आप देखिए देश में किसान आत्महत्याएं कितनी बढ़ गई हैं. खाद से लेकर डीजल तक के दाम बढ़ गए हैं. ऐसे में एक गरीब किसान किस तरह से अपनी लागत निकाल पाएगा. सरकार किसानों को उचित मूल्य भी नहीं दे पा रही है." चौबे ने कहा कि केंद्र सरकार मुनाफे वाली कंपनियों को बेचने की योजना बना रही है और हर सेक्टर में बेरोजगारी बढ़ी है.

सन 1991 के बाद यह 19वीं देशव्यापी हड़ताल है. 2015 के बाद यह चौथा भारत बंद है. इससे पहले भी 2 सितंबर 2015, 2 सितंबर 2016, 8 जनवरी 2019 और 8 जनवरी 2020 को देशभर में हड़ताल हुई.

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