ट्रंप के कार्यकाल के आखिरी दिनों में अरबों डॉलर के हथियारों की बिक्री को लेकर करार हुए थे. सऊदी अरब और यूएई को हथियारों की बिक्री पर अस्थायी रोक के बाद नए प्रशासन का कहना है कि इसका उद्देश्य सौदे की समीक्षा करना है.
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बाइडेन प्रशासन ने बुधवार को घोषणा की कि वह संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ अरबों डॉलर के हथियारों के सौदे को अस्थायी रूप से निलंबित कर रहा है. विदेश विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक यह एक "सामान्य प्रशासनिक कदम" है क्योंकि हर नया प्रशासन निवर्तमान प्रशासन द्वारा किए गए बड़े हथियारों के सौदों की समीक्षा करता है. विदेश विभाग ने कहा है कि हथियारों की बिक्री पर अस्थायी रोक से बाइडेन प्रशासन को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि "अमेरिकी हथियारों की बिक्री एक मजबूत, सक्षम और प्रतिभाशाली सुरक्षा साझेदार के निर्माण के हमारे रणनीतिक लक्ष्यों को पूरा करती है."
अमेरिका ने जो रोक लगाई उसमें यूएई को एफ-35 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति करने के लिए एक समझौता भी शामिल है. नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव के बाद ट्रंप ने यूएई के साथ स्टील्थ लड़ाकू विमान एफ-35 के लिए 23 अरब डॉलर का सौदा किया था. अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि और कौने से सौदे इस अस्थायी रोक से प्रभावित होंगे. पिछले साल 29 दिसंबर को विदेश विभाग ने सऊदी अरब को 29 करोड़ डॉलर की अत्याधुनिक तीन हजार मिसाइलों की बिक्री को भी मंजूरी दी थी.
बाइडेन ने अपने चुनाव अभियान के दौरान वादा किया था कि वे यमन में ईरान समर्थित विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी के नेतृत्व वाले युद्ध को रोकने के लिए सऊदी अरब को हथियारों की आपूर्ति में कटौती करेंगे. ट्रंप प्रशासन खाड़ी देशों को हथियारों की बिक्री को लेकर अधिक उदार था. ट्रंप खाड़ी देशों को अमेरिकी हथियारों की बिक्री की जमकर तारीफ भी कर चुके हैं.
अमेरिकी संसद ने कुछ हथियारों के सौदों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था, जिससे ट्रंप प्रशासन नाराज हो गया था, उसके बाद उसने सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया और जिसे संसद की समीक्षा प्रक्रिया के बिना लागू किया जा सकता था. उस वक्त डेमोक्रेट सीनेटर क्रिस मर्फी ने कहा था, "ट्रंप कानून में एक कमी का फायदा उठा रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि कांग्रेस उनके फैसले को पलट देगी...यमन में गिराने के लिए सउदी को बम बेचने का कोई नया आपातकालीन कारण नहीं है."
डेमोक्रेट्स के अलावा वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटरनैशनल पॉलिसी समेत अन्य पर्यवेक्षकों ने हथियारों की बिक्री की आलोचना करते हुए कहा था इससे क्षेत्र में संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा. बाइडेन प्रशासन ने इस बात की विस्तृत जानकारी नहीं दी कि वह किन अन्य सौदों की समीक्षा कर रहा है. बाइडेन ने सत्ता संभालने के साथ ही ट्रंप के कई फैसलों को या तो पलट दिया है या उनकी समीक्षा कर रहे हैं.
दुनिया में हथियारों की खरीद बिक्री पर नजर रखने वाले इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया है कि 2013-17 के बीच हथियारों की बिक्री 10 फीसदी बढ़ गई है. देखिए दुनिया में हथियारों के बड़े दुकानदार और खरीदार देशों को.
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संयुक्त राज्य अमेरिका
हथियारों के सौदागर के रूप में सबसे आगे चलने वाले अमेरिका ने अपनी बढ़त और ज्यादा कर ली है. बीते पांच सालों में दुनिया में बेचे गए कुल हथियारों का करीब एक तिहाई हिस्सा यानी करीब 34 फीसदी अकेले अमेरिका ने बेचे. अमेरिकी हथियार कम से कम 98 देशों को बेचे जाते हैं. इनमें बड़ा हिस्सा युद्धक और परिवहन विमानों का है.
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सऊदी अरब
अमेरिका अपने हथियारों का करीब आधा हिस्सा मध्यपूर्व के देशों को बेचता है और करीब एक तिहाई एशिया के देशों को. सऊदी अरब मध्य पूर्व में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है. दुनिया में बेचे जाने वाले कुल हथियार का करीब दसवां हिस्सा सऊदी अरब को जाता है. सऊदी अरब हथियारों की दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा खरीदार देश है. अमेरिका के 18 फीसदी हथियार सऊदी अरब खरीदता है.
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रूस
अमेरिका के बाद हथियार बेचने वालों में दूसरे नंबर पर है रूस. बेचे गए कुल हथियारों में 20 फीसदी रूस से निकलते हैं. रूस दुनिया के 47 देशों को अपने हथियार बेचता है साथ ही यूक्रेन के विद्रोहियों को भी. रूस के आधे से ज्यादा हथियार भारत, चीन और विएतनाम को जातें हैं. रूस के हथियार की बिक्री में 7.1 फीसदी की कमी आई है.
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फ्रांस
हथियारों बेचने वाले देशों में तीसरे नंबर पर है फ्रांस. कुल हथियारों की बिक्री में उसकी हिस्सेदारी 6.7 फीसदी की है. फ्रांस ने हथियारों की बिक्री में करीब 27 फीसदी का इजाफा किया है और वह दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बन गया है.
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जर्मनी
फ्रांस के बाद जर्मनी का नंबर आता है. बीते पांच सालों में जर्मनी की हथियार बिक्री में कमी आई है बावजूद इसके वह चौथे नंबर पर काबिज है. जर्मनी ने मध्य पूर्व के देशों को बेचे जाने वाले हथियारों में करीब 109 फीसदी का इजाफा किया है.
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चीन
अमेरिका और यूरोप के बाद हथियार नियातकों में नंबर आता है चीन का. बीते पांच सालों में उसके हथियारों की बिक्री करीब 38 फीसदी बढ़ी है. चीन के हथियारों का मुख्य खरीदार पाकिस्तान है. हालांकि इसी दौर में अल्जीरिया और बांग्लादेश भी चीन के हथियारों के बड़े खरीदार बन कर उभरे हैं. चीन ने म्यांमार को भी भारी मात्रा में हथियार बेचे हैं.
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इस्राएल
हथियारों की एक बड़ी दुकान इस्राएल में है. बीचे पांच सालों में उसने अपने हथियारों की बिक्री करीब 55 फीसदी बढ़ाई है. इस्राएल भारत को बड़ी मात्रा में हथियार बेच रहा है.
तस्वीर: Reuters
दक्षिण कोरिया
हथियारों के कारोबार में अब दक्षिण कोरिया का भी नाम लिया जाने लगा है. उसने अपने हथियारों की बिक्री बीते पांच सालों में करीब 65 फीसदी बढ़ाई है.
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तुर्की
इस दौर में जिन देशों के हथियारों की बिक्री ज्यादा बढ़ी है उनमें तुर्की भी शामिल है. उसने हथियारों का निर्यात 2013-17 के बीच करीब 165 फीसदी तक बढ़ा दिया है.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
भारत
हथियारों के खरीदार देश में भारत इस वक्त सबसे ऊपर है. दुनिया में बेच जाने वाले कुल हथियारों का 12 फीसदी भारत ने खरीदे हैं. इनमें करीब आधे हथियार रूस से खरीदे गए हैं. भारत ने अमेरिका से हथियारों की खरीदारी भी बढ़ा दी है इसके अलवा फ्रांस और इस्राएल से भी भारी मात्रा में हथियार खरीदे जा रहे हैं.
तस्वीर: REUTERS/A. Abidi
पाकिस्तान
पाकिस्तान के हथियारों की खरीदारी में कमी आई है. फिलहाल दुनिया में बेचे जाने वाले कुल हथियारों का 2.8 फीसदी पाकिस्तान में जाता है. पाकिस्तान ने अमेरिका से हथियारों की खरीदारी काफी कम कर दी है.