गुरुवार को वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से मुलाकात की, जो पद पर रहते हुए दोनों नेताओं की संभवतया अंतिम मुलाकात थी.
विज्ञापन
बतौर चांसलर अपनी अंतिम अमेरिका यात्रा पर मैर्केल वॉशिंगटन में हैं. गुरुवार को दोनों नेताओं ने रूस के साथ एक पाइपलाइन योजना पर अपनी-अपनी असहमतियों के बावजूद कई मुद्दों पर सहमत होने की बात कही.
अमेरिका रूस के पाइपलाइन प्रोजेक्ट का विरोध करता है जबकि जर्मनी समर्थन. हालांकि दोनों नेताओं ने कहा कि वे रूस के आक्रामक और चीन के लोकतंत्र विरोधी रवैये के विरोध में साथ खड़े होंगे.
राजनीति से संन्यास लेने से पहल अपने आखिरी दौरे पर व्हाइट हाउस पहुंचीं मैर्केल की बाइडेन ने जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि मैर्केल की जिंदगी जर्मनी की और दुनियाभर की अभूतपूर्व सेवा की एक मिसाल है.
अमेरिका की पिछली सरकार में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते दोनों देशो के संबंधों में काफी खटास आ गई थी. लेकिन इस जनवरी में बाइडेन के पद संभालने के बाद से दोनों नेताओं ने पुरानी खाइयों को पाटने की कोशिश की है.
तस्वीरों मेंः चीन कैसे बना महाशक्ति
कैसे अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति बन गया चीन
सोवियत संघ के विघटन के बाद से अमेरिका अब तक दुनिया की अकेली महाशक्ति बना रहा. लेकिन अब चीन इस दबदबे को चुनौती दे रहा है. एक नजर बीते 20 साल में चीन के इस सफर पर.
तस्वीर: Colourbox
मील का पत्थर, 2008
2008 में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी से खस्ताहाल हो रही थी, तभी चीन अपने यहां भव्य तरीके ओलंपिक खेलों का आयोजन कर रहा था. ओलंपिक के जरिए बीजिंग ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपने बलबूते क्या क्या कर सकता है.
तस्वीर: AP
मंदी के बाद की दुनिया
आर्थिक मंदी के बाद चीन और भारत जैसे देशों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद की जाने लगी. चीन ने इस मौके को बखूबी भुनाया. उसके आर्थिक विकास और सरकारी बैंकों ने मंदी को संभाल लिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
ग्लोबल ब्रांड “मेड इन चाइना”
लोकतांत्रिक अधिकारों से चिढ़ने वाले चीन ने कई दशकों तक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में खूब संसाधन झोंके. इन योजनाओं की बदौलत बीजिंग ने खुद को दुनिया का प्रोडक्शन हाउस साबित कर दिया. प्रोडक्शन स्टैंडर्ड के नाम पर वह पश्चिमी उत्पादों को टक्कर देने लगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मध्य वर्ग की ताकत
बीते दशकों में जहां, दुनिया के समृद्ध देशों में अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ती गई, वहीं चीन अपने मध्य वर्ग को लगातार बढ़ाता गया. अमीर होते नागरिकों ने चीन को ऐसा बाजार बना दिया जिसकी जरूरत दुनिया के हर देश को पड़ने लगी.
चीन के आर्थिक विकास का फायदा उठाने के लिए सारे देशों में होड़ सी छिड़ गई. अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन समेत तमाम अमीर देशों को चीन में अपने लिए संभावनाएं दिखने लगीं. वहीं चीन के लिए यह अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को विश्वव्यापी बनाने का अच्छा मौका था.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com/Tang Ke
पश्चिम के दोहरे मापदंड
एक अरसे तक पश्चिमी देश मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चीन की आलोचना करते रहे. लेकिन चीनी बाजार में उनकी कंपनियों के निवेश, चीन से आने वाली मांग और बीजिंग के दबाव ने इन आलोचनाओं को दबा दिया.
तस्वीर: picture-alliance/Imagechina
शी का चाइनीज ड्रीम
आर्थिक रूप से बेहद ताकतवर हो चुके चीन से बाकी दुनिया को कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन 2013 में शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद नजारा बिल्कुल बदल गया. शी जिनपिंग ने पहली बार चीनी स्वप्न को साकार करने का आह्वान किया.
तस्वीर: Getty Images/Feng Li
शुरू हुई चीन से चुभन
आर्थिक विकास के कारण बेहद मजबूत हुई चीनी सेना अब तक अपनी सीमा के बाहर विवादों में उलझने से बचती थी. लेकिन शी के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ने सेना के जरिए अपने पड़ोसी देशों को आँखें दिखाना शुरू कर दिया. इसकी शुरुआत दक्षिण चीन सागर विवाद से हुई.
तस्वीर: picture alliance/Photoshot/L. Xiao
लुक्का छिप्पी की रणनीति
एक तरफ शी और दूसरी तरफ अमेरिका में बराक ओबामा. इस दौरान प्रभुत्व को लेकर दोनों के विवाद खुलकर सामने नहीं आए. दक्षिण चीन सागर में सैन्य अड्डे को लेकर अमेरिकी नौसेना और चीन एक दूसरे चेतावनी देते रहे. लेकिन व्यापारिक सहयोग के कारण विवाद ज्यादा नहीं भड़के.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Guan
कमजोर पड़ता अमेरिका
इराक और अफगानिस्तान युद्ध और फिर आर्थिक मंदी, अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर पड़ चुका था. चीन पर आर्थिक निर्भरता ने ओबामा प्रशासन के पैरों में बेड़ियों का काम किया. चीन के बढ़ते आक्रामक रुख के बावजूद वॉशिंगटन कई बार पैर पीछे खींचता दिखा.
तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Marai
संघर्ष में पश्चिम और एकाग्र चीन
एक तरफ जहां चीन दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा था, वहीं यूरोप में रूस और यूरोपीय संघ बार बार टकरा रहे थे. 2014 में रूस ने क्रीमिया को अलग कर दिया. इसके बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय साझेदार रूस के साथ उलझ गए. चीन इस दौरान अफ्रीका में अपना विस्तार करता गया.
तस्वीर: imago stock&people
इस्लामिक स्टेट का उदय
2011-12 के अरब वसंत के कुछ साल बाद अरब देशों में इस्लामिक स्टेट नाम के नए आतंकवादी गुट का उदय हुआ. अरब जगत के राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष ने पश्चिम को सैन्य और मानवीय मोर्चे पर उलझा दिया. पश्चिम को आईएस और रिफ्यूजी संकट से दो चार होना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/
वन बेल्ट, वन रोड
2016 चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना शुरू की. जिन गरीब देशों को अपने आर्थिक विकास के लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कड़ी शर्तों के साथ कर्ज लेना पड़ता था, चीन ने उन्हें रिझाया. चीन ने लीज के बदले उन्हें अरबों डॉलर दिए और अपने विशेषज्ञ भी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Chhin Sothy
हर जगह चीन ही चीन
चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट सहारे अफ्रीका, दक्षिण अमेरका, पूर्वी एशिया और खाड़ी के देशों तक पहुचना चाहता है. इससे उसकी सीधी पहुंच पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक भी होगी और अफ्रीका में हिंद और अटलांटिक महासागर के तटों पर भी.
तस्वीर: Reuters/T. Mukoya
सीन में ट्रंप की एंट्री
जनवरी 2017 में अरबपति कारोबारी डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति का पद संभाला. दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया. ट्रंप ने लुक्का छिप्पी की रणनीति छोड़ते हुए सीधे चीन टकराने की नीति अपनाई. ट्रंप ने आते ही चीन के साथ कारोबारी युद्ध छेड़ दिया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Young-joon
पड़ोसी मुश्किल में
जिन जिन पड़ोसी देशों या स्वायत्त इलाकों से चीन का विवाद है, चीन ने वहाँ तक तेजी से सेना पहुंचाने के लिए पूरा ढांचा बैठा दिया. विएतनाम, ताइवान और जापान देशों के लिए वह दक्षिण चीन सागर में है. और भारत के लिए नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सहयोगियों में खट पट
चीन की बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए ट्रंप को अपने यूरोपीय सहयोगियों से मदद की उम्मीद थी, लेकिन रक्षा के नाम पर अमेरिका पर निर्भर यूरोप से ट्रंप को निराशा हाथ लगी. नाटो के फंड और कारोबारियों नीतियों को लेकर मतभेद बढ़ने लगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Nicholls
दूर बसे साझेदार
अब वॉशिंगटन के पास चीन के खिलाफ भारत, ब्रेक्जिट के बाद का ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे साझेदार हैं. अब अमेरिका और चीन इन देशों को लेकर एक दूसरे से टकराव की राह पर हैं.
तस्वीर: Colourbox
कोरोना का असर
चीन के वुहान शहर ने निकले कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया. कोरोना ने अर्थव्यवस्थाओं को भी चौपट कर दिया है. अब इसकी जिम्मेदारी को लेकर विवाद हो रहा है. यह विवाद जल्द थमने वाला नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/Ritzau Scanpix/I. M. Odgaard
चीन पर निर्भरता कम करने की शुरुआत
अमेरिका समेत कई देश यह जान चुके हैं कि चीन को शक्ति अपनी अर्थव्यवस्था से मिल रही है. इसके साथ ही कोरोना वायरस ने दिखा दिया है कि चीन ऐसी निर्भरता के क्या परिणाम हो सकते हैं. अब कई देश प्रोडक्शन के मामले में दूसरे पर निर्भरता कम करने की राह पर हैं.
बाइडेन के पद संभालने के बाद व्हाइट हाउस का दौरा करने वालीं मैर्केल पहली यूरोपीय नेता हैं. उन्होंने कहा, "मैं मित्रता का सम्मान करती हूं."
असहमतियां
भले ही अमेरिका और जर्मनी पुराने सहयोगी हैं, लेकिन बदले भू-राजनीतिक हालात में दोनों पक्षों की असहमतियां स्पष्ट दिखाई दीं. खासकर नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को लेकर. रूस की यह पाइपलाइन बाल्टिक सागर के नीचे से रूस से जर्मनी तक बनाई जा रही है.
अमेरिका इस योजना को लेकर उत्साहित नहीं है क्योंकि उसे डर है कि रूस इसे यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. 11 अरब अमेरिकी डॉलर की यह योजना सितंबर में पूरी होने की संभावना है. हालांकि यह यूक्रेन के कुछ दूर से निकलेगी, जिस कारण उसे शुल्क नहीं मिलेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने दोहराया कि उन्होंने जर्मनी के खिलाफ प्रतिबंध लगाने से इसलिए परहेज किया क्योंकि योजना अब पूरी होने ही वाली है. बाइडेन के इस फैसले की विपक्षी रिपब्लिकन के अलावा उनकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने भी आलोचना की थी.
बाइडेन ने कहा कि वह और मैर्केल इस बात पर एकमत हैं कि रूस को ऊर्जा का इस्तेमाल एक भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा, "अच्छे दोस्त असहमत भी हो सकते हैं. पूर्वी यूरोप में नाटो सहयोगियों के खिलाफ रूस के आक्रामक रवैये के खिलाफ हम साथ खड़े हैं और खड़े रहेंगे."
देखिएः अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ मैर्केल के रिश्ते
अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ ऐसे रहे हैं मैर्केल के रिश्ते
जर्मनी की चांसलर बनने के बाद अंगेला मैर्केल ने अपने 15 साल के कार्यकाल में अमेरिका के तीन राष्ट्रपतियों के साथ काम किया है. जानिए किसके साथ उनके संबंध कैसे रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
आंखें मिलाना भी मुश्किल
ईरान को लेकर नीति हो या नाटो को, मैर्केल और ट्रंप के विचार कभी नहीं मिले. राजनीतिक तौर पर इनके बीच मतभेद तो हमेशा रहा है, साथ ही निजी स्तर पर भी यह साफ दिखता था. ऐसी भी खबरें आईं कि ट्रंप ने मैर्केल को "स्टुपिड" कहा था. यह तस्वीर 2019 की है जहां ट्रंप मैर्केल से नजरें चुराते दिखे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler
कौन किसकी सुने?
इस तस्वीर ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी. यह 2018 में कनाडा में हुए जी7 शिखर सम्मलेन की तस्वीर है. आपको क्या लगता है, इसमें कौन किस पर हावी है? मैर्केल - जो ट्रंप के सामने खड़ी रह कर अपनी ताकत दिखा रही हैं? या फिर ट्रंप - जो तस्वीर में मौजूद एकमात्र नेता हैं जो बाकियों की परवाह ना करते हुए कुर्सी पर बैठे हैं.
तस्वीर: Reuters/Bundesregierung/J. Denzel
हाथ नहीं मिलाउंगा
मार्च 2017 में जब मैर्केल पहली बार राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने व्हाइट हाउस पहुंचीं, तो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने उनसे हाथ मिलाने से ही इनकार कर दिया. तब ही समझ आ गया था कि अगर पहली मुलाकात ही ऐसी है, तो अगले चार साल आसान नहीं होने वाले हैं.
तस्वीर: Reuters/J. Ernst
आंखों में दिखता था प्यार
ट्रंप से अलग बराक ओबामा के साथ मैर्केल का रिश्ता खास था. ओबामा आठ साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे और इस दौरान दोनों की दोस्ती गहरी हो गई. यह तस्वीर नवंबर 2016 की है, जब ट्रंप की चुनाव में जीत के बाद ओबामा मैर्केल से मिलने बर्लिन आए थे.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
इतनी अच्छी दोस्ती
मैर्केल और ओबामा के हावभाव से साफ दिखता था कि दोनों एक दूसरे के साथ कितने सहज हैं. यह तस्वीर 2015 की है जब जी7 शिखर सम्मलेन जर्मनी की आल्प वादियों में आयोजित हुआ था. मैर्केल को जलवायु परिवर्तन और अन्य कई मुद्दों पर ओबामा का साथ मिला.
तस्वीर: Reuters/M. Kappeler
ऐसी मुस्कुराहट
जून 2011 में अंगेला मैर्केल को अमेरिका के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार "प्रेजिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम" से नवाजा गया. ओबामा ने यूरोप को एकजुट रखने के मैर्केल के प्रयासों की जम कर तारीफ की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हाथों में हाथ
ओबामा से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश के भी मैर्केल के साथ अच्छे संबंध थे. 2006 में जब रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में जी8 सम्मलेन हुआ तब बुश का मैर्केल के कंधे दबाने वाला वीडियो खूब वायरल हुआ.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Nemenov
मिलजुल कर खाना
यह तस्वीर जुलाई 2006 की है. मैर्केल ने बुश को जर्मनी में आमंत्रित किया था. औपचारिक बैठकों के बाद मैर्केल ने बारबीक्यू रखा था जिसे इस आयोजन की हाइलाइट बताया गया था. बुश मेहमान थे लेकिन मैर्केल को खाना उन्होंने ही परोसा था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/BPA/G. Bergmann
कभी मेहमान, कभी मेजबान
2007 में बुश ने मैर्केल और उनके पति योआखिम साउअर को अमेरिका में आमंत्रित किया. इस दौरान बुश खुद गाड़ी चलाते नजर आए. अमेरिकी अंदाज में उन्होंने "पिक अप ट्रक" एसयूवी में मैर्केल को घुमाया.
तस्वीर: Matthew Cavanaugh/dpa/picture-alliance
क्लिंटन के साथ भी
मैर्केल ने बतौर चांसलर राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ काम नहीं किया है लेकिन उनके साथ भी मैर्केल के संबंध अच्छे हैं. यह तस्वीर 2017 की है जब पूर्व जर्मन चांसलर हेल्मुट कोल के देहांत के बाद क्लिंटन ने भाषण दिया. स्पीच के बाद जब वे वापस अपनी कुर्सी पर आ कर बैठे, तो बगल में बैठी मैर्केल का हाथ थाम लिया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/M. Murat
और बाइडेन के साथ भी
यह तस्वीर नवंबर 2009 की है. जो बाइडेन तब अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे. मैर्केल ने वॉशिंगटन में अमेरिकी संसद में एक स्पीच दी थी. जिस दौरान संसद तालियों की आवाज से गूंज रही थी, बाइडेन मैर्केल को हंसाने में लगे थे. बतौर राष्ट्रपति बाइडेन मैर्केल के साथ कुछ ही महीने काम कर पाएंगे.
तस्वीर: Reynolds/dpa/picture alliance
11 तस्वीरें1 | 11
जर्मनी और अमेरिका चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर भी अलग-अलग मत रखते हैं. जर्मनी चीन के साथ व्यापार को लेकर उत्सुक है जबकि अमेरिका ने कई प्रतिबंध लगाकर चीन के खिलाफ कड़ा रुख जाहिर किया है.
मैर्केल ने भी असहमतियों का जिक्र किया लेकिन दोनों देशों के बीच सहमति और एकता पर जोर दिया. उन्होंन कहा, "हम सबके मूल्य समान हैं, अपने वक्त की चुनौतियों के प्रति हम सबकी प्रतिबद्धता समान है."
विज्ञापन
रिश्तों की गहराई
78 वर्षीय बाइडेन और 66 वर्षीय मैर्केल के पास दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने के लिए ज्यादा साझा वक्त नहीं है. 2005 से चांसलर मैर्केल इस सितंबर में पद छोड़ रही हैं और राजनीति से संन्यास ले रही हैं.
सितंबर में जर्मनी में आम चुनाव होंगे. सर्वेक्षण कहते हैं कि मैर्केल की पार्टी क्रिश्चन डेमोक्रैट्स को बढ़त मिलनी तय है लेकिन सरकार बनाने के लिए गठबंधन में वह किसे शामिल करेगी, यह अभी तय नहीं है. बाइडेन की डेमोक्रैटिक पार्टी के पास अमेरिकी कांग्रेस में कमजोर बहुमत है जिसे वह अगले साल होने वाले चुनावों में खो भी सकती है.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की सरकार में जर्मनी में राजदूत रहे जॉन एमरसन कहते हैं कि अमेरिका के लिए जर्मनी एक बहुत जरूरी सहयोगी है क्योंकि वह न सिर्फ नाटो सहयोगी और यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है बल्कि रूस, मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका के साथ संपर्कों और संबंधों में एक अहम पुल का काम भी करता है. जर्मनी में अमेरिका का सैन्य अड्डा भी है जहां 36 हजार सैनिक हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स)
तस्वीरों मेंः राजनीति का अखाड़ा बनी पाइपलाइन
यूरोप में राजनीति का अखाड़ा बनी एक पाइपलाइन
रूस के साथ जब भी पश्चिमी देशों का विवाद बढ़ता है तो नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन सबके निशाने पर आ जाती है. इसके जरिए बाल्टिक सागर से होते हुए रूसी गैस सीधे जर्मनी आएगी. लेकिन अमेरिका समेत कई देश इस पाइपलाइन के खिलाफ है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Shipenkov
रूसी गैस की जरूरत
रूस की गिनती दुनिया में तेल और प्राकृतिक गैस से सबसे ज्यादा मालामाल देशों में होती है. खासकर यूरोप के लिए रूसी गैस के बिना सर्दियां काटना बहुत मुश्किल होगा.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
पारंपरिक गैस रूट
अभी रूसी गैस यूक्रेन होकर यूरोप तक पहुंचती है. 2019 में रूसी कंपनी गाजप्रोम के साथ हुई डील के मुताबिक यूक्रेन को 2024 तक 7 अरब डॉलर गैस ट्रांजिट फीस के तौर पर मिलेंगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Shipenkov
यूक्रेन का डर
रूस यूरोपीय बाजार के लिए अपनी 40 प्रतिशत गैस यूक्रेन के रास्ते ही भेजता है. लेकिन यूक्रेन को डर है कि नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन चालू होने के बाद उसकी ज्यादा पूछ नहीं होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Shipenkov
नॉर्ड स्ट्रीम 2
नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन रूसी गैस को सीधे जर्मनी तक पहुंचाने के लिए बनाई जा रही है. यह बाल्टिक सागर से गुजरेगी और इस पर 10 अरब यूरो की लागत आएगी.
तस्वीर: Odd Andersen/AFP
क्या है फायदा
माना जाता है कि नॉर्ड स्ट्रीम 2 के जरिए यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को होने वाली रूसी गैस की आपूर्ति दोगुनी हो जाएगी. जर्मनी रूस गैस का सबसे बड़ी खरीददार है.
जर्मनी उत्साहित
इस पाइपलाइन से हर साल रूस से जर्मनी को 55 अरब क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति होगी. जर्मनी में चांसलर अंगेला मैर्केल की सरकार इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत उत्साहित है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Sauer
दबाव
नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन का 90 फीसदी काम पूरा हो गया है. लेकिन इसके खिलाफ आवाजें लगातार तेज हो रही हैं. यूरोप के कई देशों के साथ-साथ अमेरिका भी इसे बंद करने के लिए दबाव डाल रहा है.
तस्वीर: Stefan Sauer/dpa/picture alliance
बुरी डील?
अमेरिका भी इसे जर्मन की लिए बुरी डील बताता है. नए अमेरिकी राष्ट्रपति भी बाइडेन भी इसके खिलाफ हैं. वैसे कई जानकार कहते हैं कि अमेरिका दरअसल यूरोप को अपनी गैस बेचना चाहता है.
तस्वीर: DW
रूस पर निर्भरता
फ्रांस और पोलैंड समेत कई यूरोपीय देशों का कहना है कि इस पाइपलाइन से रूस पर यूरोपीय संघ की निर्भरता बढ़ेगी और गैस का पारंपरिक ट्रांजिट रूट कमजोर होगा.
रूसी विपक्षी नेता एलेक्सी नावाल्नी को हुई सजा के बाद नॉर्ड स्ट्रीम 2 के खिलाफ फिर आवाजें तेज हो गई हैं. लेकिन जर्मन सरकार का कहना है कि उसने पाइपलाइन को लेकर अपना रुख नहीं बदला है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
घरेलू राजनीति
जर्मनी में विपक्षी ग्रीन पार्टी और कारोबार समर्थक एफडीपी पार्टी भी इस प्रोजेक्ट को खत्म करने या रोकने की मांग कर रही हैं. मैर्केल के सत्ताधारी गठबंधन में भी इस पाइपलाइन के खिलाफ स्वर उभरने लगे हैं.