अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हांग कांग के लोगों को अपने यहां अस्थायी तौर पर पनाह देने की पेशकश की है. यह कदम चीन के हांग कांग में दमन के बाद उठाया गया है.
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राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गुरुवार को अमेरिका में रह रहे हांग कांग के लोगों को अस्थायी तौर पर पनाह देने की पेशकश की. इसका अर्थ है कि हजारों लोग अमेरिका में अपने निवास की अवधि बढ़ा सकेंगे. चीन के हांग कांग में लोकतंत्र समर्थकों पर जारी दमन के चलते यह कदम उठाया गया है.
बाइडेन ने "जरूरी विदेश नीति” को कारण बताते हुए गृह सुरक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया कि हांग कांग के लोगों को 18 महीने तक देश से न निकाला जाए.
किसे मिलेगी पनाह?
एक आदेश में उन्होंने कहा, "पिछले साल भर से पीआरसी (पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) का हांग कांग की स्वायत्तता पर हमला जारी है, जो वहां के लोकतांत्रिक संस्थानों और प्रक्रियाओं का अपमान है. यह आकदमिक आजादी और प्रेस की आजादी का हनन है.”
देखिएः कितने विवादों में है चीन
एक साथ कई कूटनीतिक विवादों में फंसा है चीन
भारत के साथ सीमा-विवाद हो, हॉन्ग कॉन्ग को लेकर आलोचना हो या महामारी के फैलने के पीछे उसकी भूमिका को लेकर जांच की मांग, चीन इन दिनों कई मोर्चों पर कूटनीतिक विवादों में फंसा हुआ है. आइए एक नजर डालते हैं इन विवादों पर.
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कोरोनावायरस
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने मांग की है कि चीन जिस तरह से कोरोनावायरस को रोकने में असफल रहा उसके लिए उसकी जवाबदेही सिद्ध की जानी चाहिए. कोरोनावायरस चीन के शहर वुहान से ही निकला था. चीन पर कुछ देशों ने तानाशाह जैसी "वायरस डिप्लोमैसी" का भी आरोप लगाया है.
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अमेरिका
विश्व की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आपसी रिश्ते पिछले कई दशकों में इतना नीचे नहीं गिरे जितने आज गिर गए हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार और तकनीक को लेकर विवाद तो चल ही रहे हैं, साथ ही अमेरिका के बार बार कोरोनावायरस के फैलने के लिए चीन को ही जिम्मेदार ठहराने से भी दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. चीन भी अमेरिका पर हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनों को समर्थन देने का आरोप लगाता आया है.
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हॉन्ग कॉन्ग
हॉन्ग कॉन्ग अपने आप में चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक समस्या है. चीन ने वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करना चाहा लेकिन अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने इसका विरोध किया. हॉन्ग कॉन्ग कभी ब्रिटेन की कॉलोनी था और चीन के नए कदमों के बाद ब्रिटेन ने कहा है कि हॉन्ग कॉन्ग के ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज पासपोर्ट धारकों को विस्तृत वीजा अधिकार देगा.
चीन ने लोकतांत्रिक-शासन वाले देश ताइवान पर हमेशा से अपने आधिपत्य का दावा किया है. अब चीन ने ताइवान पर उसका स्वामित्व स्वीकार कर लेने के लिए कूटनीतिक और सैन्य दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. लेकिन भारी मतों से दोबारा चुनी गई ताइवान की राष्ट्रपति ने चीन के दावों को ठुकराते हुए कह दिया है कि सिर्फ ताइवान के लोग उसके भविष्य का फैसला कर सकते हैं.
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भारत
भारत और चीन के बीच उनकी विवादित सीमा पर गंभीर गतिरोध चल रहा है. सुदूर लद्दाख में दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे पर अतिक्रमण का आरोप लगा रहे हैं. दोनों में हाथापाई भी हुई थी.
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शिंकियांग
चीन की उसके अपने पश्चिमी प्रांत में उइगुर मुसलमानों के प्रति बर्ताव पर अमेरिका और कई देशों ने आलोचना की है. मई में ही अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने उइगुरों के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने वाले एक विधेयक को बहुमत से पारित किया.
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हुआवेई
अमेरिका ने चीन की बड़ी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त की थीं. उसने अपने मित्र देशों को चेतावनी दी थी कि अगर वो अपने मोबाइल नेटवर्क में उसका इस्तेमाल करेंगे तो उनके इंटेलिजेंस प्राप्त की जाने वाली संपर्क प्रणालियों से कट जाने का जोखिम रहेगा. हुआवेई ने इन आरोपों से इंकार किया है.
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कनाडा
चीन और कनाडा के रिश्ते तब से खराब हो गए हैं जब 2018 में कनाडा ने हुआवेई के संस्थापक की बेटी मेंग वानझाऊ को हिरासत में ले लिया था. उसके तुरंत बाद चीन ने कनाडा के दो नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था और केनोला बीज के आयात को ब्लॉक कर दिया था. मई 2020 में मेंग अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ दायर किया गया एक केस हार गईं.
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यूरोपीय संघ
पिछले साल यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों ने आपस में तय किया कि वो चीन के प्रति अपनी रण-नीति और मजबूत करेंगे. संघ हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर चीन की दबाव वाली कूटनीति को ले कर चिंतित है. संघ उसकी कंपनियों के चीन के बाजार तक पहुंचने में पेश आने वाली मुश्किलों को लेकर भी परेशान रहा है. बताया जा रहा है कि संघ की एक रिपोर्ट में चीन पर आरोप थे कि वो कोरोनावायरस के बारे में गलत जानकारी फैला रहा था.
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ऑस्ट्रेलिया
मई 2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया से जौ (बार्ली) के आयत पर शुल्क लगा दिया था. दोनों देशों के बीच लंबे समय से झगड़ा चल रहा है. दोनों देशों के रिश्तों में खटास 2018 में आई थी जब ऑस्ट्रेलिया ने अपने 5जी ब्रॉडबैंड नेटवर्क से हुआवेई को बैन कर दिया था. चीन ऑस्ट्रेलिया की कोरोनावायरस की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर भी नाराज है.
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दक्षिण चीन सागर
दक्षिण चीन सागर ऊर्जा के स्त्रोतों से समृद्ध इलाका है और चीन के इस इलाके में कई विवादित दावे हैं जो फिलीपींस, ब्रूनेई, विएतनाम, मलेशिया और ताइवान के दावों से टकराते हैं. ये इलाका एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग भी है. अमेरिका ने आरोप लगाया है कि चीन इस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कोरोनावायरस के डिस्ट्रैक्शन का फाय उठा रहा है.
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उन्होंने कहा कि हांग कांग के लोगों को पनाह देना "इलाके में अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाना है और अमेरिका हांग कांग के लोगों का साथ देने से कभी पीछे नहीं हटेगा.” यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है कि इस आदेश का असर कितने लोगों पर होगा लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अमेरिका में रह रहे ज्यादातर हांग कांग वासी इस पनाह के लिए योग्य होंगे.
गृह सुरक्षा मंत्री आलेहान्द्रो मायोर्कास ने कहा कि जो लोग पनाह के योग्य होंगे वे रोजगार के अधिकार के लिए भी अर्जी दे सकते हैं.
व्हाइट हाउस का कहना है कि इस आदेश ने स्पष्ट कर दिया है कि "चीन के हांग कांग और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को किए गए वादों को तोड़ते हुए अमेरिका चुपचाप देखता नहीं रहेगा.”
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चीन की प्रतिक्रिया
वॉशिंगटन स्थित चीनी दूतावास के प्रवक्ता लियु पेंगयू ने कहा है कि अमेरिका हांग कांग की स्थिति को काले-सफेद में बांट कर देख रहा है. उन्होंने कहा कि नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून ने एक सुरक्षित माहौल बनाया है और स्वतंत्रता की सुरक्षा की है.
अमेरिका के पनाह देने के कदम के बारे में उन्होंने कहा, "ऐसे कदम तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते हैं और उनका अपमान करते हैं. और, चीन के अंदरूनी मामलों में गंभीर दखलअंदाजी हैं.”
चीन की ताकत का प्रतीक है यह पुल
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जो बाइडेन का यह आदेश चीन पर हाल के दिनों में अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की ही अगली कड़ी है. जुलाई में अमेरिका ने हांग कांग स्थित चीनी अधिकारियों पर नए प्रतिबंध लगाए और कंपनियों को चीन के नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के बारे में चेतावनी दी.
चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका के अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिए थे. इनमें पूर्व अमेरिकी वाणिज्य मंत्री विलबर रॉस भी शामिल हैं.
हांग कांग में दमन
हांग कांग को ब्रिटेन ने 1997 में चीन को सौंपा था लेकिन उस समझौते में इस इलाके को 50 साल तक स्वायत्त रखने की शर्त रखी गई थी. पिछले लगभग एक साल से हांग कांग में चीन ने ऐसे कई कदम उठाए हैं, जिन्हें वहां का बड़ा तबका उस शर्त का उल्लंघन मानता है.
जून में लोकतंत्र समर्थक अखबार ऐपल डेली के दफ्तर पर छापे मारे गए और उसके संपादकों व पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया. उसके बाद अखबार बंद हो गया था.
तस्वीरों मेंः 100 साल की हुई चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी
100 साल की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कहानी
चीन पर शासन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी सौ साल की हो गई है. 28 जून 2021 को पार्टी की सौवीं वर्षगांठ मनाई गई. देखिए, समारोह की तस्वीरें और जानिए सीसीपी के बारे में कुछ दिलचस्प बातें.
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आधुनिक चीन की संस्थापक
चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) आधुनिक चीन की संस्थापक है. 1949 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में पार्टी ने राष्ट्रवादियों को हराकर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की थी.
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सीसीपी की स्थापना
सीसीपी की स्थापना 1921 में रूसी क्रांति से प्रभावित होकर की गई थी. 1949 में पार्टी के सदस्यों की संख्या 45 लाख थी.
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सदस्यों की संख्या
पिछले साल के आखिर में सीसीपी के सदस्यों की संख्या नौ करोड़ 19 लाख से कुछ ज्यादा थी. 2019 के मुकाबले इसमें 1.46 प्रतिशत की बढ़त हुई थी. चीन की कुल आबादी का लगभग साढ़े छह फीसदी लोग ही पार्टी के सदस्य हैं. आंकड़े स्टैटिस्टा वेबसाइट ने प्रकाशित किए थे.
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सदस्यता
पार्टी की सदस्यता हासिल करना आसान नहीं है. इसकी एक सख्त चयन प्रक्रिया है और हर आठ आवेदकों में से एक को ही सफलता मिलती है. यह प्रक्रिया लगभग डेढ़ साल चलती है.
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कैसे हैं इसके सदस्य
सीसीपी के सदस्यों में साढ़े चार करोड़ से ज्यादा के पास जूनियर कॉलेज डिग्री है. करीब एक करोड़ 87 लाख सदस्य सेवानिवृत्त हो चुके नागरिक हैं. 2019 के आंकड़े देखें तो सदस्यों में 28 प्रतिशत किसान, मजदूर और मछुआरे थे.
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महिलाओं की संख्या
पिछले कुछ सालों में सीसीपी में महिलाओं की संख्या बढ़ी है. 2010 में पार्टी की 22.5 फीसदी सदस्य महिलाएं थीं जो 2019 में बढ़कर 28 फीसदी हो गईं. 2019 में सदस्यता लेने वालों में 42 फीसदी संख्या महिलाओं की थी.
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पार्टी पर दाग
पिछले साल के आंकड़ों के मुताबिक पार्टी में 18 प्रतिशत सदस्यों का सरकार पर भरोसा नहीं था. 2020 में छह लाख 19 हजार सीसीपी सदस्यों पर भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज थे. 2010 में एक रिपोर्ट आई थी जिसके मुताबिक उस साल 32 हजार लोगों ने पार्टी छोड़ दी थी.
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सम्मेलन
हर पांच साल में सीसीपी का एक सम्मेलन होता है जिसमें नेतृत्व का चुनाव होता है. इसी दौरान सदस्य सेंट्रल कमेटी चुनते हैं, जिसमें लगभग 370 सदस्य होते हैं. इसके अलावा, मंत्री और अन्य वरिष्ठ पदों पर भी लोगों का चुनाव होता है.
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सात के हाथ में ताकत
सेंट्रल कमेटी के सदस्य पोलित ब्यूरो का चुनाव करते हैं, जिसमें 25 सदस्य होते हैं. ये 25 लोग मिलकर एक स्थायी समिति का चुनाव करते हैं. फिलहाल इस समिति में सात लोग हैं, जिन्हें सत्ता का केंद्र माना जाता है. इसमें पांच से नौ लोग तक रहे हैं.
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महासचिव
सबसे ऊपर महासचिव होता है जो राष्ट्रपति बनता है. 2012 में हू जिन ताओ से यह पद शी जिन पिंग ने लिया था. बाद में संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति पद की समयसीमा ही खत्म कर दी गई और अब शी जिन पिंग जब तक चाहें, इस पद पर रह सकते हैं.
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चीन ने पिछले साल ही राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किया था, जो विदेशी ताकतों का साथ देने को अपराध करार देता है. आलोचकों का कहन है कि यह कानून लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र मीडिया पर हमला है.
इस कानून के विरोध में देश में लगातार विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. खासकर युवा इन प्रदर्शनों में बढ़ चढ़कर शामिल हुए, जिनमें से कई जेल में हैं.