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यूक्रेन के रास्ते यूरोप को रूसी गैस की सप्लाई बंद

१ जनवरी २०२५

1 जनवरी 2025 से यूक्रेन के जरिए यूरोप को रूसी गैस की सप्लाई पूरी तरह बंद हो गई है. 2019 में हुआ पांच साल का ट्रांजिट समझौता बुधवार को खत्म हो गया है.

यूक्रेन में गैस सप्लाई का संयंत्र
1 जनवरी से यूक्रेन के रास्ते यूरोप को कोई गैस सप्लई नहीं हुईतस्वीर: Sergey Bobok/Design Pics/IMAGO

बुधवार, 1 जनवरी 2025 से यूरोप को यूक्रेन के रास्ते होने वाली गैस सप्लाई बंद हो गई. यह ऐसे समय में हुआ है, जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. दशकों तक यह पाइपलाइन ऊर्जा के लिए आपसी निर्भरता का प्रतीक थी. अब इसका बंद होना रूस, यूक्रेन और यूरोपीय संघ (ईयू) के रिश्तों और ऊर्जा नीतियों में बड़े बदलाव की कहानी कहता है.

इतिहास पर एक नजर

कई दशकों तक यूरोप रूसी गैस पर निर्भर रहा, जो यूक्रेन के जरिए सप्लाई होती थी. अपने चरम पर, इस रूट ने यूरोप की गैस जरूरतों का करीब 35 फीसदी हिस्सा पूरा किया. इससे रूस को अरबों डॉलर की कमाई हुई और यूक्रेन को ट्रांजिट फीस का लाभ मिला. 

हालांकि 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद रिश्तों में खटास आ गई. 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद ईयू ने रूसी ऊर्जा पर निर्भरता कम करने का फैसला किया. 

2019 में हुए पांच साल के समझौते की मियाद खत्म हो चुकी है. यूक्रेन ने इसे आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया है. 31 दिसंबर 2024 को यूक्रेनी गैस ट्रांजिट ऑपरेटर ने बताया कि 1 जनवरी 2025 के लिए कोई गैस फ्लो का अनुरोध नहीं किया गया. इसका मतलब साफ है कि पाइपलाइन कनेक्शन बंद हो गया है. 

यूरोप ने कैसे तैयारी की?

युद्ध शुरू होने के बाद भी यूरोप ने रूस से गैस खरीदना जारी रखा, जिसकी काफी आलोचना हुई. 2022 के बाद से ईयू ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कई वैकल्पिक उपाय किए. यूरोपीय कमीशन ने ऊर्जा दक्षता बढ़ाने, अक्षय ऊर्जा का विस्तार करने और गैस इंफ्रास्ट्रक्चर को लचीला बनाने पर जोर दिया. 

लिक्विफाइड नेचुरल गैस के लिए उसने कतर और अमेरिका से आयात बढ़ाया जबकि पाइप्ड गैस की नॉर्वे से सप्लाई बढ़ाई गई. साथ ही, यूरोपीय देशों ने गैस स्टोरेज भरकर सप्लाई सुनिश्चित की. 

यूरोपीय कमीशन की प्रवक्ता आना-कैसा इतकोनेन ने कहा, "यूरोपीय गैस इंफ्रास्ट्रक्चर इतना मजबूत है कि मध्य और पूर्वी यूरोप को गैर-रूसी गैस सप्लाई कर सकता है. 2022 के बाद से एलएनजी आयात क्षमता को भी काफी बढ़ाया गया है.

ऑस्ट्रिया और स्लोवाकिया जैसे देश, जो पहले रूसी गैस पर निर्भर थे, इस बदलाव के लिए लंबे समय से तैयारी कर रहे थे. ऑस्ट्रिया ने इटली और जर्मनी के जरिए सप्लाई का इंतजाम किया है. स्लोवाकिया को अब अतिरिक्त लागत तो उठानी पड़ेगी, लेकिन गैस की कमी नहीं होगी.

बाजार की प्रतिक्रिया

पाइपलाइन बंद होने का बाजार पर तुरंत असर नहीं दिखा. विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन के जरिए जो गैस सप्लाई हो रही थी, उसकी मात्रा काफी कम थी. 2023 में सिर्फ 15 अरब क्यूबिक मीटर गैस आयात की गई. यही वजह है कि यूरोपीय गैस की कीमतों में ज्यादा उछाल नहीं आया. 31 दिसंबर को यूरोपीय गैस की कीमत मामूली बढ़त के साथ 48.50 यूरो प्रति मेगावाट घंटे पर बंद हुई. 

लंबे समय में इस बदलाव का असर सामने आ सकता है. यूरोप ने भले ही खुद को तैयार कर लिया हो, लेकिन आर्थिक दबाव बरकरार है. ऊंची ऊर्जा लागत ने यूरोपीय उद्योगों को झटका दिया है, खासकर अमेरिका और चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देशों के मुकाबले यूरोपीय उद्योगों पर ज्यादा असर हुआ है. रूसी गैस की सप्लाई घटने से जर्मनी को 60 अरब यूरो का नुकसान हुआ.

रूस और यूक्रेन दोनों को इस बदलाव का नुकसान होगा. यूक्रेन को हर साल ट्रांजिट फीस में 80 करोड़ डॉलर का नुकसान होगा. रूस की गैस कंपनी गजप्रोम को 5 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ेगा. 

भूराजनीतिक असर

पाइपलाइन बंद होने से ऊर्जा पर भू-राजनीतिक खींचतान तेज हो गई है. सबसे ज्यादा असर मोल्दोवा पर पड़ा है. यह छोटा देश, जो यूक्रेन से सटा हुआ है, पहले से ही रूस समर्थित अलगाववादियों से जूझ रहा है.

मोल्दोवा ने ऊर्जा संकट से निपटने के लिए 60 दिनों का आपातकाल घोषित कर दिया है. देश ने बिजली बचाने और रोमानिया से बिजली खरीदने जैसे कदम उठाए हैं.

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स्लोवाकिया ने यूक्रेन के इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने इसे "गैर-तर्कसंगत और गलत" बताया है. उन्होंने ईयू को चिट्ठी लिखकर इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की और जवाबी कदम उठाने की चेतावनी दी. 

यूक्रेन रूट के बंद होने के बाद अब सिर्फ तुर्कस्ट्रीम पाइपलाइन बची है. यह पाइपलाइन काला सागर के जरिए तुर्की और वहां से हंगरी और सर्बिया को गैस सप्लाई करती है. हालांकि, यह रूट पुरानी पाइपलाइनों की सप्लाई की जगह नहीं ले सकता. 

भविष्य की राह

यूक्रेन के जरिए रूसी गैस सप्लाई बंद होना यूरोप की ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव है. ईयू ने वैकल्पिक सप्लाई और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के जरिए खुद को इस झटके से बचाने की कोशिश की है. लेकिन कुछ चुनौतियां बरकरार हैं.

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ऊंची ऊर्जा लागत का असर उद्योगों और आम लोगों पर जारी है. स्लोवाकिया और मोल्दोवा जैसे देश सप्लाई घटने के झटके और राजनीतिक खींचतान के शिकार हैं. अब अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना और ऊर्जा भंडारण की क्षमता बढ़ाना यूरोपीय देशों की जरूरत बन गई है.

यूक्रेन के लिए, यह कदम रूस की आर्थिक ताकत को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा है. दोनों देशों को इसके वित्तीय नुकसान झेलने पड़ेंगे. जैसे-जैसे यूरोप ऊर्जा स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा है, यूक्रेनी ट्रांजिट रूट का बंद होना चुनौतियों के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है.

वीके/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)

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