लोकतंत्र पर अमेरिकी सम्मेलन में मोदी को न्योते पर आपत्ति
८ नवम्बर २०२१
अमेरिका में लोकतंत्र पर अपनी तरह का पहला वैश्विक सम्मेलन हो रहा है. लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भारत के नरेंद्र मोदी सहित ऐसे नेताओं को बुलाने पर आपत्ति जताई है जिनका रिकॉर्ड संदिग्ध है.
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अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन समिट फॉर डेमोक्रेसी के नाम से आयोजित सम्मेलन में भाषण देने के लिए तैयारी कर रहे हैं. सौ से ज्यादा देशों का यह अपनी तरह का पहला सम्मेलन है जिसमें दुनियाभर में लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के हनन पर बात होनी है. लेकिन बहुत से मानवाधिकार कार्यकर्ता इस सम्मेलन को इसलिए शक की निगाह से देख रहे हैं कि कुछ ऐसे नेताओं को इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए बुलाया गया है जिनका अपना रिकॉर्ड संदिग्ध है.
मानवाधिकारों और लोकतंत्र के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था फ्रीडम हाउस में वाइस प्रेजीडेंट ऐनी बोयाजियान कहती हैं कि बिना लोकतांत्रिक प्रतिबद्धताओं को इस तरह का सम्मेलन अर्थहीन है. उन्होंने कहा, "अगर इस सम्मेलन को एक और बैठक से ज्यादा कुछ होना है तो फिर अमेरिका समेत सारे प्रतिभागियों को आने वाले साल में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को लेकर अर्थपूर्ण प्रतिबद्धताएं निभानी होंगी.”
तस्वीरेंः खंडहरों पर पेंटिंग
खंडहरों पर पेंटिंग
इदलिब के कलाकार अजीज ऐज्मार सीरिया में युद्ध में बर्बाद हो चुकी इमारतों पर चित्र बनाते हैं. टूटी फूटी दीवारें उनके कैनवास हैं, जिन पर वह दर्दमंद लोगों की कहानियां उकेरते हैं. देखिए ऐसी ही कुछ कहानियां...
तस्वीर: Moawia Atrash/Zumapress/picture alliance
ब्लैक लाइव्स मैटर
अजीज ने जब जॉर्ज फ्लॉयड को पुलिसकर्मी के घुटने के नीचे दम तोड़ते देखा तो उन्हें अपने देशवासियों का ख्याल आया, जो जहरीली गैस के हमले में दम घुटकर मरे थे. उन्होंने खंडहर हो चुकी एक रसोई की दीवार पर जॉर्ज फ्लॉयड को उकेरा.
तस्वीर: Izzeddin Idilbi/AA/picture alliance
कहां है आजादी?
विश्व प्रेस फ्रीडम डे के मौके पर अजीज ने युद्ध के दौरान मारे गए और गिरफ्तार कर लिए गए सीरिया के पत्रकारों को याद किया.
तस्वीर: Moawia Atrash/Zumapress/picture alliance
गजा के समर्थन में
गजा पट्टी में इस्राएली हमलों में मारे गए लोगों की याद में बनी यह पेंटिंग हर युद्ध पीड़ित का दर्द कहती है.
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कोरोना वायरस
जब बाकी इस्लामिक जगत कोरोना वायरस के कारण रमजान में लगी पाबंदियों से परेशान था तब अजीज एज्मार ने उन्हें याद दिलाया कि वे बरसों से पाबंदियों में जी रहे हैं.
तस्वीर: Moawia Atrash/Zumapress/picture alliance
स्वस्थ रहें मैर्केल
पिछले साल मार्च में जब जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल को कोविड हो गया था तो एज्मार ने उन्हें शुभकामनाएं देती यह पेंटिंग रची थी.
तस्वीर: Anas Alkharboutli/dpa/picture alliance
इदलिब में रमजान
बर्बादी के बीच भी त्योहार मनते हैं. अजीज एज्मार ने अपनी पेंटिंग में तो यही कोशिश की है.
तस्वीर: Moawia Atrash/Zumapress/picture alliance
बेरूत के पीड़ितों के नाम
बेरूत में पोर्ट पर हुए धमाके में मारे गए लोगों की याद में यह तस्वीर बनाई गई, जो कहती है कि हम दर्द में हैं तो भी बाकियों के दर्द में उनका साथ दिया जा सकता है.
तस्वीर: Moawia Atrash/Zumapress/picture alliance
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‘समिट फॉर डेमोक्रेसी' दिसंबर के दूसरे हफ्ते में होनी है. अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि यह सम्मेलन लोकतंत्र पर एक लंबी चर्चा की शुरुआत मात्र है और आगामी सम्मेलनों में शामिल होना चाहने वाले देशों को सुधारों के वादे निभाने होंगे.
चुन चुन कर बुलाए गए मेहमान
यह सम्मेलन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के उस दावे की भी परीक्षा है जो उन्होंने विदेश नीति के पहले ऐलान के वक्त किए थे. इसी साल फरवरी में दिए इस भाषण में बाइडेन ने कहा था कि अमेरिका वैश्विक नेतृत्व की अपनी भूमिका में लौटेगा और चीन और रूस जैसी ताकतों को जवाब देगा.
अमेरिकी पत्रिका पोलिटिको ने इस सम्मेलन में आने वाले संभावित मेहमानों की एक सूची छापी है. इसमें फ्रांस और स्वीडन जैसे परिपक्व लोकतांत्रिक देश होंगे तो फिलीपींस और पोलैंड भी होंगे जिनके बारे में मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि वहां लोकतंत्र खतरे में है. एशिया से अमेरिका के सहयोगी देश जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश आमंत्रित हैं लेकिन थाईलैंड और वियतनाम को नहीं बुलाया गया है.
मध्य पूर्व से बहुत कम मेहमान हैं. मसलन, इस्राएल और इराक तो सूची में हैं लेकिन अमेरिका के साथी माने जाने वाले मिस्र और नाटो सदस्य तुर्की का नाम गायब है.
देखेंः बचाए गए लोग
भयावहः भूमध्य सागर में बचाए गए सैकड़ों लोग
एक ही नाव पर सवार 394 लोगों को बीच समुद्र में डूबने से कैसे बचाया गया, देखिए ये दिल दहलाने वाली तस्वीरें.
तस्वीर: Darrin Zammit Lupi/REUTERS
इस पार या उस पार
एक ही नाव पर सवार ये 394 लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में भूमध्य सागर पार करने की कोशिश में थे.
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बीच समुद्र में बचाया गया
जर्मनी और फ्रांस की सामाजिक संस्थाओं के दो जहाजों ने इन लोगों को ट्यूनिशिया के समुद्र में उत्तर अफ्रीकी तट से 68 किलोमीटर दूर बीच समुद्र में बचाया.
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छिलते बदन, पिसते बच्चे
आप्रवासियों की नौका ठसाठस भरी थी और लोगों के बदन एक दूसरे से छिलकर घायल हो रहे थे. इनमें बच्चे भी थे.
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डूबने का डर
नौका के इंजन ने काम करना बंद कर दिया था जिस कारण हालात गंभीर हो गए थे. उसमें पानी भरने लगा था.
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कहां कहां के लोग
इस नौका पर सवार ज्यादातर लोग मोरक्को, बांग्लादेश, मिस्र और सीरिया के थे.
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डूबते को दिखा तिनका
जब लोगों ने बचाने वाले जहाज देखे तो उन तक पहुंचने के लिए कुछ लोगों ने पानी में छलांग भी लगा दी.
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घायलों को मिला इलाज
कम से कम छह लोगों को इटली के कोस्टगार्ड ने इलाज के लिए अपने सरंक्षण में ले लिया है क्योंकि उनकी हालत गंभीर है.
तस्वीर: Darrin Zammit Lupi/REUTERS
बढ़ रहे हैं भागने वाले
हाल के महीनों में लीबिया और ट्यूनिशिया से यूरोप की ओर जाने वालीं ऐसी नौकाओं की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई है.
तस्वीर: Darrin Zammit Lupi/REUTERS
बढ़ रहे हैं भागने वाले
संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन का कहना है कि इस साल अफ्रीका और मध्य पूर्व से भागते 1,100 से ज्यादा लोग समुद्र में डूबकर मर चुके हैं.
तस्वीर: Darrin Zammit Lupi/REUTERS
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वैसे, मानवाधिकार संगठन इस बात को लेकर बाइडेन की तारीफ कर रहे हैं लोकतांत्रिक अधिकारों को उन्होंने अपनी विदेश नीति की प्राथमिकता बनाया है. खासतौर पर उनके पूर्ववर्ती डॉनल्ड ट्रंप की इस मामले में कम दिलचस्पी और विवादित बयानों के बाद बाइडेन का यह कदम अहमियत रखता है. ट्रंप ने तो मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी और रूस के व्लादीमीर पुतिन की जमकर तारीफ की थी.
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भारत पर भी आपत्ति
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस बात को लेकर संदेह है कि खराब रिकॉर्ड वाले नेताओं को बुलाए जाने से इस सम्मेलन की विश्वसनीयता प्रभावित होती है. लेकिन साथ ही यह बात भी कही जा रही है कि यह सम्मलेन चीन और अन्य प्रतिद्वन्द्वियों के खिलाफ एक नया मोर्चा है.
‘प्रोजेक्ट ऑन मिडल ईस्ट डेमोक्रेसी' की शोध निदेशक एमी हॉथोर्न कहती हैं, "साफ है कि चीन को टक्कर देने की रणनीति के चलते ही भारत और फिलीपींस जैसे उसके पड़ोसियों को आमंत्रित किया गया है जिनके यहां लोकतांत्रिक मूल्य लगातार क्षरण की ओर हैं. ऐसा ही इराक को लेकर भी कहा जा सकता है जहां का लोकतंत्र घालमेल का शिकार है लेकिन जो ईरान का पड़ोसी है.”
फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रीगो डुटेर्टे कह चुके हैं कि वह "मानवाधिकारों की परवाह नहीं करते.” भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में मानवाधिकार संगठन फ्रीडम हाउस का कहना है कि वह भारत को निरंकुशता की ओर ले जा रहे हैं. दोनों नेताओं को सम्मेलन में बुलाया गया है.
जानेंः भारत में दंगे 14 फीसदी घटे
भारत में सांप्रदायिक दंगे 14 फीसदी घटे
भारत में 2019 में सांप्रदायिक दंगों के 440 मामले दर्ज किए गए, 10 मार्च को राज्य सभा में सरकार की ओर से दिए बयान के मुताबिक दंगों में 14 फीसदी की कमी आई है. दंगों में संपत्ति के साथ-साथ लोगों का भविष्य भी उजड़ता है.
तस्वीर: AFP/M. Kiran
सबसे ज्यादा दंगे
गृह मंत्रालय ने राज्य सभा में बताया कि 2019 में 440 दंगों के मामले दर्ज किए गए जो कि इसके पूर्व के साल से 14 प्रतिशत कम है. 2018 में 512 सांप्रदायिक दंगे हुए थे. गृह मंत्रालय ने नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को पेश करते हुए जानकारी दी. बिहार में सबसे अधिक 135 मामले दर्ज किए गए.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
यूपी में नहीं हुए दंगे
गृह मंत्रालय का कहना है कि उत्तर प्रदेश में 2019 में सांप्रदायिक दंगे के मामले नहीं हुए. लेकिन उत्तर प्रदेश में कथित लव जिहाद जैसे मामलों को लेकर तनाव की खबरें सामने आती रहती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Khan
झारखंड में भी दंगे
छोटे से राज्य झारखंड में सांप्रदायिक या धार्मिक हिंसा के 54 मामले साल 2019 में दर्ज किए गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain
हरियाणा में कितने दंगे
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का हवाला देते हुए गृह मंत्रालय ने बताया कि हरियाणा में 50 मामले दंगों के दर्ज किए गए.
तस्वीर: IANS
बाकी राज्यों का हाल
गृह मंत्रालय के मुताबिक महाराष्ट्र में 47, मध्य प्रदेश में 32, गुजरात में 22 और केरल में 21 सांप्रदायिक या धार्मिक दंगों के मामले दर्ज किए गए.
तस्वीर: Reuters
समाज को जख्म देते दंगे
धार्मिक दंगों के कारण समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है. दंगों के दौरान जान और माल का नुकसान तो होता ही है साथ ही राज्य और देश की छवि भी खराब होती है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
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सम्मेलन की योजना में शामिल रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दुनिया के अलग अलग हिस्सों से ऐसे नेताओं को बुलाया गया है जिनके लोकतंत्र को लेकर अलग-अलग तरह के अनुभव रहे हैं. इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "यह किसी को समर्थन नहीं है. आप लोकतंत्र हैं, आप नहीं हैं. इस प्रक्रिया से हम नहीं गुजरे हैं.” उन्होंने कहा कि हमें इस आधार पर चुनाव करना था कि क्षेत्रीय विविधता हो.