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बिहार में शिक्षकों की भर्ती के लिए डोमिसाइल नीति की घोषणा

मनीष कुमार
५ अगस्त २०२५

बिहार में इन दिनों नीतीश सरकार ताबड़तोड़ घोषणाएं कर रही है. इन लोक-लुभावन घोषणाओं के केंद्र में आधी आबादी तो है ही, युवाओं का भी विशेष ख्याल रखा जा रहा है. बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा का चुनाव होना है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
बिहार में डोमिसाइल नीति नीतीश सरकार ने ही 2020 का चुनाव जीतने के बाद लागू की थी, लेकिन कुछ तर्क देते हुए 2023 में इसे हटा दिया गया थातस्वीर: Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance

हाल के दिनों में राज्य सरकार ने आमजन के जीवन पर असर डालने वाली करीब 17 घोषणाएं की हैं. इनमें एक अगस्त से 125 यूनिट तक फ्री बिजली देने की घोषणा भी है, जिसे जानकार नीतीश कुमार के राजनीतिक सिद्धांतों के उलट मान रहे. इससे पहले वे मुफ्त की जगह सब्सिडी देने की बात कहते रहे हैं. राजनीतिक समीक्षक सौरव सेनगुप्ता कहते हैं, "चुनाव में फायदे की उम्मीद के साथ कोई भी सरकार सामाजिक न्याय, विकास और जनहित को केंद्र में रख कर फैसला लेती है. लेकिन फ्री-बिज का विरोध करने वाले नीतीश कुमार मुफ्त बिजली दे रहे, यह चौंकाने वाला है."

विपक्ष में बैठा महागठबंधन भी वादों की झड़ी लगाने से नहीं चूक रहा. आरोप भी लगा रहा कि सरकार उनकी घोषणाओं को डर के मारे कॉपी-पेस्ट कर रही है. खास बात यह कि इस बार मुख्यमंत्री बड़ी घोषणाओं की जानकारी अपने एक्स हैंडल अकाउंट पर दे रहे. फिर इन घोषणाओं को कैबिनेट की बैठक में पारित कर लागू भी कर दिया जा रहा है.

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पांच साल में एक करोड़ नौकरियां, सरकारी स्कूलों के शारीरिक शिक्षकों व स्वास्थ्य अनुदेशकों तथा रसोइयों व नाइट गार्ड का मानदेय में दोगुनी वृद्धि, दिव्यांगों के लिए सिविल सेवा प्रोत्साहन आठ हजार पंचायतों में मैरिज हॉल तथा पत्रकारों के सम्मान पेंशन में बढ़ोतरी राज्य सरकार की एक पखवाड़े की हालिया प्रमुख घोषणाओं में शामिल हैं.

हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं कि यह फैसला गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बड़ी राहत साबित होगा. उनके मासिक खर्च में कमी आएगी. इसके अलावा एक और ऐसी घोषणा की गई, जिससे विपक्ष को करारा झटका पहुंचा. सरकार ने एक करोड़ से अधिक बुजुर्गों, विधवाओं तथा दिव्यांगों का भरोसा जीतने के ख्याल से सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि चार सौ रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 1,100 रुपये कर दी. एक जुलाई से इसे लागू भी कर दिया.

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दूसरे राज्यों के लोगों को नौकरी नहीं

5 अगस्त को भी नीतीश मंत्रिमंडल ने युवाओं के लिए अहम और विपक्ष की प्रमुख मांगों से एक डोमिसाइल नीति पर मुहर लगा दी. अब शिक्षकों की नियुक्ति में 85 प्रतिशत पद बिहार के लोगों के लिए आरक्षित हो जाएंगे. इस आधार पर नियम में बदलाव होने से राज्य के बाहर के लोग आवेदन नहीं कर सकेंगे. फिलहाल राज्य में सरकारी स्कूलों के करीब 5.65 लाख शिक्षकों में 80 हजार से अधिक दूसरे राज्यों के निवासी हैं. कैबिनेट की बैठक में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों के लिए डिजिटल लाइब्रेरी खोलने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई. उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कहते हैं, "डोमिसाइल नीति लागू होने से बिहार के युवाओं को अधिक अवसर मिलेगा. मुख्यमंत्री ने यह निर्णय बिहार के युवाओं के लिए लिया है."

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव का कहना है, "20 सालों की थकी-हारी सरकार हमारी हर योजना, दृष्टि और मांग की नकल कर रही है. आनन-फानन में नकल की जा रही है. वे बताएं कॉपी करने में कितना मजा आ रहा है. आने वाले दिनों में वे माई-बहिन योजना की भी कॉपी करेंगे. उनके पास अपना कोई विजन या रोडमैप नहीं है."

उल्लेखनीय है कि बिहार में डोमिसाइल नीति नीतीश सरकार ने ही 2020 का चुनाव जीतने के बाद लागू की थी, किंतु सरकारी स्कूलों के लिए गणित और विज्ञान के लिए अच्छे शिक्षक नहीं मिलने का तर्क देते हुए 2023 में इसे हटा दिया गया था. इसे लागू करने को लेकर छात्रों ने काफी आंदोलन भी किया. उनका नारा ही था- वोट दे बिहारी और नौकरी ले बाहरी, अब यह नहीं चलेगा.

महिलाओं की समस्याएं तथा उनकी उन्नति उनकी प्राथमिकता में रही हैं. उनकी हालिया घोषणाओं में एक बार फिर महिलाएं केंद्र में हैं.तस्वीर: Manish Kumar

फिर महिलाओं का भरोसा जीतने की कोशिश

2010 के विधानसभा चुनाव में पहली बार महिलाएं वोट डालने में पुरुषों से आगे रहीं. महिलाओं का टर्न आउट 1.5 प्रतिशत अधिक रहा. 2015 में यह फासला काफी अधिक हो गया. 51.1 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 60.4 फीसद महिलाओं ने वोटिंग की. हालांकि, 2020 में यह अंतर घट कर 5.1 प्रतिशत पर आ गया, किंतु महिलाएं गेम चेंजर साबित हुईं. राज्य में महिलाओं की आबादी करीब छह करोड़ है, जिनके भरोसे एक बार नीतीश कुमार जीत का सेहरा बांधना चाह रहे हैं. वे महिलाओं को एक जाति मानकर ही लाभ दिलाने की कोशिश करते रहे हैं.

आशा (एक्रिडेटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट) और ममता कार्यकर्ताओं को सरकार ने बड़ा तोहफा दिया है. आशा को अब एक की तीन हजार का मासिक मानदेय मिलेगा, वहीं ममता कार्यकर्ता को प्रति प्रसव छह सौ रुपये दिए जाएंगे. आशा को स्मार्ट फोन के लिए मिलने वाली राशि को भी 13,180 रुपये कर दिया गया. इनके चलते ही गृह प्रसव दर में कमी आई तथा संस्थागत प्रसव दर बढ़ा और मातृ व शिशु मृत्यु दर भी घटकर राष्ट्रीय औसत के बराबर आ गया.

इसके साथ ही स्वयं सहायता समूह से जुड़ी जीविका दीदियों को मिलने वाले तीन लाख की राशि से अधिक के कर्ज पर ब्याज में तीन प्रतिशत की कमी कर दी गई, जबकि जीविका कर्मचारियों का मानदेय दोगुना कर दिया गया. सेनगुप्ता कहते हैं, "जीविका से आमतौर पर गरीब महिलाएं जुड़ी हैं और आशा-ममता कार्यकर्ताओं की घर-घर तक पहुंच है. जाहिर है, ये नीतीश सरकार के लिए एक तरह से ब्रांड एंबेसडर का काम करती हैं. इन फैसलों से इनका हौसला निश्चय ही बढ़ेगा और वे दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत तो बनेंगी ही, सरकार के फैसलों को भी घर-घर पहुंचाएंगी." महिलाओं की स्थिति जानने और उन्हें भरोसा दिलाने के उद्देश्य से ही तो नीतीश कुमार ने पिछले साल दिसंबर में संवाद यात्रा के दौरान महिलाओं से फीडबैक लिया था. शराबबंदी का निर्णय भी उन्होंने महिलाओं की सलाह पर ही लिया था. वैसे भी पंचायत चुनाव में आरक्षण तथा शराबबंदी उनके लिए ट्रंप कार्ड साबित हुए हैं, जिन पर जातीय रंग कतई नहीं चढ़ सका.

महिलाओं की छोटी-बड़ी जरूरतों पर नजर

सरकार ने इस साल के बजट में भी महिलाओं को साधने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाओं की हर छोटी-बड़ी जरूरतों का विशेष ख्याल रखा, ताकि उनके बीच यह संदेश जाए कि नीतीश सरकार ही उनके लिए बेहतर है. इस कड़ी में नौकरीपेशा महिलाओं के लिए हॉस्टल तथा महिला सिपाहियों के लिए किराये पर कमरे का प्रावधान या फिर गर्ल्स हॉस्टल, पिंक टायलेट, पिंक बस, महिला हाट की बात बजट में कही गई.

सरकारी नौकरियों में बिहार की महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण किया गया, आशय यह कि दूसरे राज्य की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं रहा. उन्हें सामान्य श्रेणी में ही आवेदन करना होगा. जाहिर है, बड़ी संख्या में पढ़ी-लिखी महिलाओं को इसका फायदा होगा. इन दिनों राज्य में बड़ी संख्या में कई विभागों में नियुक्ति की जा रही है. महिलाओं के लिए ग्रेजुएशन तथा पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पहले से ही फ्री है. अगर वे रोजगार करना चाह रहीं तो बिना ब्याज उन्हें पांच लाख तक का ऋण देने का भी प्रावधान किया गया है.

राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, "इससे पहले भी नीतीश कुमार ने महिला वोट बैंक को साधने के लिए शराबबंदी, पंचायती राज में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण, साइकिल-पोशाक योजना तथा कन्या उत्थान योजना लागू की थी. इसका फायदा भी उन्हें मिला. लेकिन, इधर परिस्थितियां बदली हैं. वैसे भी राजनीति में स्थाई कुछ भी नहीं होता. वोट में कितना फायदा होगा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा."

सरकार तो शायद यह सोच रही कि अगर महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक स्थिति में सुधार होगा तो उनकी राजनीतिक सोच भी अवश्य ही बदलेगी. पत्रकार नम्रता झा कहती हैं, "यों तो नीतीश सरकार अपनी घोषणाओं को जनहित की दिशा में उठाया गया कदम करार दे रही, किंतु इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि कहीं न कहीं यह उनकी बेचैनी भी दर्शा रही. ऐसे फैसले भी हो रहे, जिसे पहले नकारा जाता रहा है."

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