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बिहारः जातिगत सर्वे से झांकती आर्थिक बदहाली की तस्वीर

मनीष कुमार
८ नवम्बर २०२३

सरकारी सर्वे में जाति पर आधारित सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक डाटा मुहैया कराया गया है जो राज्य का हाल बयान करता है.

पंचायत चुनाव बिहार
रिपोर्ट बताती है कि सामान्य श्रेणी में भूमिहार जाति सबसे अधिक गरीब हैतस्वीर: Manish Kumar/DW

जातिगत आर्थिक सर्वे रिपोर्ट बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन, मंगलवार को पेश की गई. इससे पहले बीते दो अक्टूबर को जातीय गणना की रिपोर्टजारी की गई थी. मंगलवार को पेश आंकड़े दिखाते हैं कि बिहार में सामान्य श्रेणी के 25.09 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के 33.16 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के 33.58 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के 42.93 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 42.7 प्रतिशत परिवार गरीब हैं.  
राज्य में कुल 2.76 करोड़ परिवारों की गणना हुई, जिनमें 94.42 लाख यानि 34.13 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आमदनी प्रतिमाह छह हजार रुपये या इससे से कम है. राज्य सरकारने इन्हें गरीबों की श्रेणी में डाला है. वहीं, 29.61 प्रतिशत परिवार की आय छह से दस हजार रुपये के बीच है, जबकि दस से बीस हजार तथा बीस से 50 हजार तक की आय क्रमश: 18.06 तथा 9.83 प्रतिशत परिवारों की है. महज 3.90 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं, जिनकी मासिक आमदनी 50 हजार रुपये से ज्यादा है. ऐसे परिवार 4.47 फीसद हैं, जिन्होंने अपनी आय की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ी एक विवादास्पद टिप्पणी कीतस्वीर: Shilpa Thakur/Pacific Press/picture alliance

 एक चौथाई से कम आबादी पांचवीं तक शिक्षित

आंकड़ों के अनुसार, बिहार की 22.67 फीसद आबादी ने ही कक्षा एक से पांच तक की शिक्षा हासिल की है. वहीं, कक्षा छह से आठवीं तक की शिक्षा मात्र 14.33 प्रतिशत आबादी के पास है. इसी तरह वर्ग नौ से 10 तक 14.71 फीसद आबादी शिक्षित है, जबकि कक्षा 11 से 12 तक की शिक्षा 9.19 फीसदी लोगों ने ही प्राप्त किया है. राज्य में 32.1 प्रतिशत लोगों ने स्कूल का मुंह ही नहीं देखा है. स्नातक की शिक्षा राज्य की मात्र सात प्रतिशत आबादी को ही नसीब हो सकी है.

आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल साक्षरता दर  79.7 प्रतिशत है. पुरुषों की तुलना मेंं महिलाओं में साक्षरता दरअधिक है. वहीं, बिहार में प्रति 1000 पुरुष पर 953 महिलाएं हैं. प्रदेश की 13.07 करोड़ की कुल जनसंख्या में केवल 1.15 प्रतिशत आबादी ही कंप्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल इंटरनेट के साथ कर रही है। संख्या के हिसाब से यह आंकड़ा महज 15,08,085 है, अर्थात करीब 98.63 फीसद लोग डिजिटल दुनिया से परिचित ही नहीं है। वहीं, बिहार में 36.76 फीसद अर्थात 1,01,72,126 परिवारों के पास ही दो या उससे अधिक कमरों का अपना पक्का मकान है। जबकि, खपरैल या टीन की छत वाले गृहस्वामी 26.54 तथा झोपड़ी वाले 14.09 प्रतिशत हैं, वहीं 0.24 फीसद परिवार आवास विहीन हैं.

सर्वे के मुताबिक बिहार में केवल 7 फीसदी लोग ग्रैजुएट हैंतस्वीर: Manish Kumar/DW

कौन हैं सबसे गरीब

गरीबी को देखा जाए तो सामान्य श्रेणी में भूमिहार जाति सबसे अधिक गरीब है. इस जाति के 27.58 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. इसके बाद गरीबी में दूसरे नंबर पर ब्राह्मण (25.32 प्रतिशत) तथा तीसरे नंबर पर राजपूत (24.89 फीसद) समाज के परिवार हैं. सबसे अमीर कायस्थ हैैं, जिनकी महज 13.83 फीसद आबादी ही गरीब है. मुसलमानों की सामान्य श्रेणी में सबसे ज्यादा शेख समाज के 25.84 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. इनके बाद पठान (22.20 प्रतिशत) तथा सैयद (17.61 प्रतिशत) का नंबर आता है. सवर्णों की श्रेणी में हिंदू के चार तथा मुसलमानों की सात जातियां शामिल हैं. प्रदेश में सामान्य वर्ग के परिवारों की संख्या 42,28,282 है जिनमें से एक चौथाई यानी 10,85,913 (25.09 फीसद) परिवार गरीब हैं. 

पिछड़ा वर्गमें सबसे ज्यादा गरीब यादव जाति का परिवार है, इनकी संख्या 13,83,962 यानि 35.87 फीसद है. इसके बाद कुशवाहा (कोइरी) परिवार है, जिनकी संख्या 4,06,207 (34.32 प्रतिशत) है. कुर्मी जाति के 29.90 फीसद परिवार गरीब हैं. आंकड़े बता रहे कि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 42.93 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 10 हजार रुपये तक है. वहीं, 25 फीसद लोगों की आय छह से 10 हजार रुपये के बीच है. 16 फीसद लोगों की आय 10 से 20 हजार रुपये है.अर्थशास्त्री एस के दास कहते हैं, ‘‘बिहार का आर्थिक-सामाजिक आंकड़ा यह बताने को काफी है कि राज्य अभी भी गरीब है. इससे यह भी साबित होता है कि गरीबी उन्मूलन की सरकार की योजनाएं धरातल से अभी भी दूर हैं. हालांकि, बढ़ती जनसंख्या एक बड़ा कारण है. इसके लिए एक व्यापक रणनीति के तहत योजना बनाने की जरूरत है.’’ इस रिपोर्ट का विरोध करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है, ‘‘कोई क्षेत्र में नहीं गया, टेबल पर ही काम हो गया. इसी वजह से मुसहर या भुईयां जाति में 45-46 प्रतिशत लोग अमीर हो गए.’’

सरकारी नौकरी में जाति

नौकरी की बात करें तो सामान्य वर्ग के छह लाख 41 हजार 281 लोगों को नौकरी मिली है. इस श्रेणी के 3.19 फीसदी लोग नौकरी में हैं. भूमिहार जाति के पास सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी एक लाख 87 हजार 256 यानी 4.99 प्रतिशत है. ब्राह्मण जाति की सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.60 प्रतिशत है. अगर संख्या में देखें तो यह आंकड़ा 1 लाख 72 हजार 259 होता है. इसी तरह राजपूत जाति के एक लाख 71 हजार 933 अर्थात 3.81 प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी में हैं.

सबसे अमीर कायस्थ जाति की सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 6.68 प्रतिशत है. वहीं, शेख जाति के 39 हजार 595 लोग (0.79 फीसद)  तथा पठान जाति के 10 हजार 517 लोग (1.07 फीसद) एवं सैयद जाति के सात हजार 231 लोग (2.42 फीसद) सरकारी नौकरी में हैं. पिछड़ा वर्ग की बात करें तो भाट/ भट की सरकारी नौकरी में सर्वाधिक हिस्सेदारी 4.21 प्रतिशत है. इसके बाद कुर्मी जाति के 3.11 फीसद तथा कुशवाहा जाति के 2.04 प्रतिशत लोग सरकारी सेवा में हैं. जबकि, महज 1.55 फीसद यादव जाति की हिस्सेदारी है. वहीं, अनुसूचित जाति (एससी) में सबसे अधिक 3.14 फीसद हिस्सेदारी धोबी जाति के लोगों की है. प्रदेश में सबसे अधिक 67.54 फीसद आबादी गृहणियों व विद्यार्थियों की है. इसके बाद मजदूर-मिस्त्री की संख्या 16.73 प्रतिशत है. किसान-काश्तकार 7.70 फीसद हैं, जबकि महज 1.57 प्रतिशत आबादी ही सरकारी नौकरी में है.

सरकारी नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का प्रस्ताव दिया और फिर देर शाम कैबिनेट की बैठक बुलाकर इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी.  कैबिनेट के निर्णय के अनुसार बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग को 18 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 25 फीसद, अनुसूचित जाति को 20 और अनुसूचित जनजाति को दो प्रतिशत और आर्थिक रूप से पिछड़े यानी ईडब्लूएस को 10 फीसद आरक्षण मिलेगा. इस प्रकार राज्य में कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाएगा.

बेगूसराय निवासी लघु उद्यमी शिव कुमार कहते हैं, ‘‘सबका अपना-अपना एजेंडा है. यहां सब कुछ वोट के लिए किया जाता है. गरीबी दूर करने के लिए कोई दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं है. उद्योग-धंधे व पलायन की स्थिति पहले जैसी ही है, अन्यथा ट्रेनों में भर-भर कर लोग रोजी-रोटी की तलाश में बाहर नहीं जाते. आज भी करीब 50 लाख बिहारी आजीविका के लिए बाहर रह रहे हैं.’’ जानकार बता रहे कि नौ नवंबर को सरकार इसे सदन के पटल पर रखेगी. राजनीतिक विश्लेषक श्याम किशोर दास कहते हैं, ‘‘बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाने की तैयारी के बहुआयामी प्रभाव होंगे. पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर इसका असर तो पड़ेगा ही, पहले से चल रहे जाटों, पटेल व मराठों का आंदोलन भी और भड़केगा. नीतीश के इस दांव से निपटना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा.’’

जनसंख्या नियंत्रण पर विवादास्पद टिप्पणी

जनसंख्या नियंत्रण में महिलाओं के योगदान की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ ऐसी बातें कही जिनसे विवाद हो गया है. रिपोर्ट पेश करते वक्त अपने भाषण में उन्होंने कहा कि किस तरह महिला व पुरुष यौन संबंध का आनंद लेकर भी जनसंख्या नियंत्रण में योगदान कर सकते हैं. मुख्यमंत्री की बातों पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की.

मुख्यमंत्री के भाषण के दौरान विधान परिषद में मौजूद एमएलसी निवेदिता सिंह ने इसे विधानमंडल के इतिहास का काला दिन बताते हुए कहा कि कुछ बातें पर्दे के पीछे की होती हैं, उसे पर्दे के पीछे ही रहने दिया जाता है. हालांकि, मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में यह भी कहा कि आबादी बढ़ने की रफ्तार में कमी, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने की वजह से आई है. कहा, जब पहली बार उनकी सरकार बनी थी तब राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर 4.3 फीसद थी जो लड़कियों की शिक्षा में सुधार के कारण घटकर अब 2.9 प्रतिशत हो गई है. 

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