बिहार: आसान नहीं नीतीश सरकार की राह
२० नवम्बर २०२५
नीतीश कुमार ने 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. उनके साथ बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (आर), हम और आरएलएम के 26 नेता भी मंत्री बने हैं. नई सरकार में भी सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा उपमुख्यमंत्री (डिप्टी सीएम) बनाए गए हैं. 89 सीटों के साथ बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ गई है. आंकड़ों में भले ही विपक्ष साफ हो गया दिखता है, लेकिन जो मुद्दे तैर रहे, वे निश्चित तौर पर नई सरकार के लिए चुनौती बनेंगे. एनडीए के संकल्प पत्र में की गई घोषणाओं पर उन्हें खरा उतरना होगा. क्योंकि, इन्हीं वादों के आधार पर जनता ने एनडीए को प्रचंड बहुमत दिया है. जब इतना अपार जनसमर्थन मिला हो तो जाहिर है अपेक्षाएं भी काफी होंगी.
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रोजगार, नौकरी और पलायन यूं तो 2020 के विधानसभा चुनाव का भी मुद्दा था, किंतु इस बार यह काफी अहम हो गया. राजनीतिक रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज तो इन्हीं मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरी. महागठबंधन ने भी इसे लेकर हर घर में एक सरकारी नौकरी की घोषणा की. शायद, यही वजह रही कि इस बार इसकी गूंज पूरे देश में सुनी गई और सभी पार्टियों ने इसे लेकर भरपूर वादे किए. हालांकि, यह भी सच है कि नीतीश कुमार की सरकार ने पिछले दिनों नौकरी और रोजी-रोजगार को लेकर प्रदेश में काफी काम किया है. लेकिन, इसके साथ यह भी सच है कि पलायन अभी भी बिहार की बड़ी आबादी की विवशता है.
सृजित करने होंगे रोजगार के अवसर
यह सर्वविदित है कि 1970 के बाद से बिहार में एक-एक कर उद्योग-धंधे बंद हो गए, जो बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दे रहे थे. धीरे-धीरे बिहार बीमारू राज्यों की सूची में शामिल हो गया. अर्थशास्त्र के रिटायर्ड लेक्चरर अविनाश के. पांडेय कहते हैं, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं 2005 के बाद से स्थितियां बदलीं. नीतीश सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, रोजगार सहित सामाजिक व आर्थिक स्तर पर कई काम किए. साथ ही निवेशकों को आकर्षित करने के भरसक प्रयास बीते 20 सालों में किए गए. इसका ही प्रतिफल है कि पिछले कुछ वर्षों में गारमेंट व आईटी सेक्टर सहित सीमेंट, लेदर व फूड प्रोसेसिंग के हजारों करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिले और गाड़ी कुछ आगे बढ़ी भी.''
इस दिशा में स्टेट इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड को काफी कुछ करने की जरूरत है. उन्हें यह देखना होगा कि निवेश का प्रस्ताव सफल हो सका या नहीं. अगर नहीं तो इसकी पड़ताल कर अपनी कार्यप्रणाली में अपेक्षित सुधार करना होगा. तभी शहरी तथा अर्ध शहरी क्षेत्रों में नौकरी व संबंधित रोजगार के नीतीश के साथ फिर से क्यों गईं महिला वोटर?अवसर सृजित होंगे.
राज्य में एग्रीकल्चर और फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होगी, क्योंकि 11 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत की बजाय केवल पांच फीसद लोगों को इस सेक्टर में रोजगार मिला हुआ है. राज्य की जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान महज पांच फीसद के आसपास है. वे कहते हैं, ‘‘हर जिले में दस औद्योगिक पार्क और फैक्ट्री लगाने की जो घोषणा की गई है, उस दिशा में केवल आधारभूत संरचना खड़े करने से काम नहीं चलेगा. यह सुनिश्चित करना होगा कि वहां काम भी शुरू हो. तभी कामकाजी लोगों का पलायन रोका जा सकेगा.''
स्पीडी ट्रायल पर करना होगा अमल
2025 के चुनाव में जंगलराज का खूब शोर मचा. प्रधानमंत्री से लेकर सभी नेताओं ने वोटरों को लालू-राबड़ी के शासनकाल की याद दिलाने की भरपूर कोशिश की. इसका फायदा भी मिला. जनसुराज पार्टी का तो साफ कहना है कि जंगलराज कहीं लौट न आए, इसके डर से उनके वोटरों ने भी एनडीए को वोट दे दिया. राजनीतिक समीक्षक एसके सिंह कहते हैं, ‘‘इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीते कुछ दिनों में पुलिस का इकबाल कमजोर हुआ है. चुनाव के पहले जिस तरह से दिनदहाड़े पटना के एक प्रसिद्ध हॉस्पिटल में अपराधियों ने घुसकर हत्या की घटना को अंजाम दिया या फिर बलात्कार की कई घटनाएं हुई इससे कानून व्यवस्था पर कहीं न कहीं सवाल खड़े होने लगे.''
पिछले कुछ दिनों में पुलिस पर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं. 2023 में पुलिस और सरकारी कर्मियों पर हमलों के 371 मामले दर्ज हुए. खासकर, बालू माफिया और शराब के धंधेबाज पकड़-धकड़ पर जान लेने से भी नहीं हिचक रहे. इन्हें सजा दिलाने के लिए स्पीडी ट्रायल पर जोर-शोर से अमल करना होगा, ताकि दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिल सके और असामाजिक तत्वों का हौसला पस्त हो सके.
बढ़ानी होगी प्रति व्यक्ति आय
पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, ‘‘नीतीश सरकार को आम लोगों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में भी गंभीर प्रयास करना होगा. बिहार की प्रति व्यक्ति आय करीब 60 हजार रुपये सालाना है, जबकि राष्ट्रीय औसत इससे तीन गुणा अधिक है. स्किल डेवलपमेंट और स्टार्ट अप तथा औद्योगिक निवेश से ही इस अंतर को पाटा जा सकता है.'' खेती के पारंपरिक तरीकों को बदल कर आधुनिक तकनीक पर आधारित करना होगा. किसानों की आय बढ़ेगी, तभी औसत आय भी बढ़ेगी.
इसके साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर बनाई गई नीतियों पर पूरा ध्यान देना होगा. पर्यटन, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में जो काम किए जा रहे हैं, उनकी निरंतरता बनाए रखनी होगी. इसके लिए नीति और क्रियान्वयन के सामंजस्य पर नई सरकार को अमल करना होगा. वे कहती हैं, ‘‘यह सच है कि नीतीश कुमार की सरकार ने काफी काम किया है, लेकिन यह भी सच है कि तमाम प्रयासों के बावजूद भ्रष्टाचार नासूर बनता जा रहा है. विकास संबंधित योजनाओं का पारदर्शी क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बाधा बन रही है.'' जनसुराज के प्रशांत किशोर तो साफ कहते रहे हैं कि भूमि सुधार व राजस्व विभाग सबसे भ्रष्ट विभाग है और यह सच भी है. आर्थिक अपराध इकाई और निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को और क्रियाशील करना होगा.
वित्तीय प्रबंधन भी अहम
राजनीतिक समीक्षक समीर सौरभ कहते हैं, ‘‘एनडीए ने प्रदेश के विकास का खाका देते हुए यों तो कई वादे किए, लेकिन बिहार जैसे राज्य के लिए एक करोड़ से अधिक लोगों को नौकरी और रोजगार तथा महिलाओं को रोजगार के लिए दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता को पूरा करना शायद इतना आसान नहीं होगा. लगभग डेढ़ करोड़ महिलाओं को उनके व्यवसाय की स्थिति के आकलन के साथ ही, सही एक लाख 90 हजार रुपये तो देने होंगे.''
125 यूनिट मुफ्त बिजली, गरीबों को मुफ्त राशन, 50 लाख नये पक्के मकान, किसान सम्मान राशि में वृद्धि, चार शहरों में मेट्रो चलाने सहित शहरीकरण की कई योजनाएं, मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना, सामाजिक पेंशन सहित कई तरह के कर्मियों के मानदेय में वृद्धि का बोझ भी तो उठाना ही होगा. फिर, पहले से भी तो साइकिल, पोशाक व स्कूली तथा उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति एवं बेरोजगारों को भत्ता जैसी अनेकों योजनाएं चल रही हैं. सरकारी खजाना इसे कैसे पूरा करेगा, यह तो आने वाले समय में ही पता चल सकेगा.