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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

क्या अभिव्यक्ति की आजादी तो नहीं छीन रही बिहार सरकार

मनीष कुमार, पटना
५ फ़रवरी २०२१

बिहार की सरकार ऐसे आदेश जारी कर रही है जिससे यह लग रहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की आजादी छीनने की कोशिश की जा रही है. विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने से नौकरी पाने पर आ सकती हैं आंच.

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फाइल फोटोतस्वीर: Manish Kumar/DW

किसान आंदोलन को लेकर देशभर में जहां धरना-प्रदर्शन और इसकी प्रासंगिकता पर बहस चल रही है वहीं बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने चरित्र प्रमाण पत्र संबंधी एक आदेश जारी किया है जो आंदोलनों के दौरान बोलने की आजादी पर सवाल उठाती है. बिहार के पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान यदि हंगामा हुआ और इससे विधि व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हुई तो प्रदर्शन में शामिल लोगों को सरकारी नौकरी या ठेका से वंचित होना पड़ेगा. उन्होंने पत्र लिखकर अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों को चरित्र प्रमाण निर्गत करने के संबंध में बकायदा दिशा-निर्देश जारी किया है. इससे पहले भी सरकार ने सोशल मीडिया पर मंत्रियों-विधायकों, सांसदों या सरकारी अफसरों के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश जारी किया था जिसे लेकर काफी हाय-तौबा मची थी. अब यह पत्र जारी किया गया है, जिसके जरिए बिहार सरकार ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है कि प्रदर्शनकारियों को बाद में भी गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. बात-बात में लोगों के सड़क पर उतर जाने की बढ़ती प्रवृति भी सरकार के लिए चुनौती साबित हो रही थी.
कुछ दिनों पहले 25 जनवरी को गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी द्वारा जारी एक पत्र में कहा गया था कि बिहार में सरकारी ठेके उन्हीं लोगों को दिए जाएं जिनके चरित्र बेदाग हों. चरित्र प्रमाण पत्र पुलिस द्वारा जारी किया जाएगा. इसी पत्र के बाद पुलिस महानिदेशक एसके सिंघल ने यह दिशा-निर्देश जारी किया है जिसमें मोटे अक्षरों में लिखा गया है कि यदि कोई व्यक्ति विधि व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम इत्यादि मामलों में हिस्सा लेकर किसी आपराधिक कृत्य में शामिल होता है और उसपर इसके लिए पुलिस द्वारा आरोप दाखिल किए जाते हैं तो उनके चरित्र प्रमाणपत्र में इसे स्पष्ट रूप से प्रविष्ट किया जाए. ऐसे व्यक्तियों को गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि उन्हें सरकारी नौकरी/सरकारी ठेके नहीं मिल पाएंगे.

पुलिस पर दबाव को रोकने की दलील (फाइल फोटो)तस्वीर: IANS

पुलिस वेरिफिकेशन का इस्तेमाल

इस निर्देश में यह भी कहा गया है कि पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट में मात्र संज्ञेय अपराध में संलिप्तता एवं उस क्रम में पुलिस व न्यायालय द्वारा की गई कार्रवाई की प्रविष्टि की जाएगी. संज्ञेय अपराधों के संबंध में यह अंकित होगा कि किसी संज्ञेय अपराध में प्राथमिक या अप्राथमिक अभियुक्त हैं, आरोप पत्रित (चार्जशीटेड) या न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध हैं. इसके साथ ही आवेदक को परेशान किए बिना पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट देने का भी निर्देश दिया गया है. इस रिपोर्ट को तैयार करने व समय पर उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी थाना प्रभारियों को दी गई है. अबतक के प्रावधान के अनुसार बिहार में सरकारी सेवा में स्थाई या अनुबंध (कांट्रैक्ट) पर नौकरी, सरकारी विभागों या निगमों में ठेकेदारी, पासपोर्ट व शस्त्र लाइसेंस, पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी एवं बैंक या सरकारी संस्थाओं से ऋण पाने के लिए पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट (चरित्र प्रमाण पत्र) की आवश्यकता पड़ती है.

डीजीपी के इसी पत्र को लेकर बिहार में सियासत तेज हो गई है. एक ओर सत्ता पक्ष जहां इस फैसले को सही ठहरा रहा है वहीं दूसरी ओर विरोधी इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर कुठाराघात बता रहे हैं. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने इस निर्देश पर ट्वीट कर कहा है, मुसोलिनी और हिटलर को चुनौती दे रहे नीतीश कुमार कहते हैं कि अगर किसी ने सत्ता-व्यवस्था के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन कर अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग किया तो उसे नौकरी नहीं मिलेगी. मतलब नौकरी भी नहीं देंगे और विरोध भी नहीं प्रकट करने देंगे. बेचारे 40 सीट के मुख्यमंत्री कितने डर रहे हैं. वहीं वरिष्ठ राजद नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं, "अप्रत्यक्ष रुप से यह कहा जा रहा है कि सड़क पर उतर कर आप सरकार का विरोध करते हैं तो आपको नौकरी नहीं मिलेगी. चुनी हुईं सरकारें इस तरह का आदेश पारित करती है, यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक प्रवृति है. यह लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन भी है."

प्रदर्शनों के बाद अक्सर हिंसक घटनाएं (फाइल फोटो)तस्वीर: IANS

विरोधियों के प्रत्युत्तर में जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है, "शांतिपूर्ण तरीके से लोकतंत्र में अपनी बात कही जा सकती है. इसके लिए बलात दबाव बनाना, धाराओं का तोड़ा जाना, निषेधाज्ञा का उल्लंघन करना आवश्यक कार्य नहीं है. इसलिए इसको उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए." जबकि वरीय भाजपा नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव कहते हैं, "लोकतंत्र में हक है लोगों को अपनी बात कहने का, धरना-प्रदर्शन करने का अधिकार है उन्हें. परंतु इसके लिए जानबूझकर आमजन को परेशानी में डालना, लोगों का जीवन असहज करना जायज नहीं है. मैं समझता हूं, सरकार ने जो निर्णय लिया है वह उचित है."

मकसद है विरोध का नियंत्रण

राजनीतिज्ञों के इन आरोपों-प्रत्यारोपों से इतर बिहार पुलिस एसोसिएशन के पूर्व महासचिव केके झा कहते हैं, "स्थापित कानून के विपरीत कार्यालय के आदेश पर अगर इस तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है तो यह भारतीय दंड संहिता से परे है." आईपीसी में अपहरण, हत्या, बलात्कार, आग्नेयास्त्र अधिनियम का उल्लंघन व संपत्ति से जुड़ा अपराध आदि ही संज्ञेय अपराध है." इन अपराधों में थाने में रखे रिकार्ड देखने के बाद चरित्र प्रमाण पत्र लिखे जाने का प्रावधान है. अवकाश प्राप्त एक वरीय पुलिस अधिकारी कहना है, "अन्य कानूनों की तरह अगर इसका दुरुपयोग न हो तो विधि व्यवस्था बनाए रखने में यह काफी कारगर साबित होगा. व्यक्तिगत स्वार्थ या भावावेश में देखते ही देखते कोई भी प्रदर्शन कब हिंसक हो जाता है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है और अधिकतर मामलों में इसके शिकार पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी ही होते हैं."
संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर भारतीय नागरिक को विचार व अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है. राइट टू फ्रीडम के तहत कानून के दायरे में शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन की इजाजत मिली हुई है. लोकतांत्रिक पुलिस का काम इन अधिकारों को सुनिश्चित करना है. पत्रकार रविरंजन कहते हैं, "अधिकार अपनी जगह पर तो है ही किंतु कोई भी विरोध-प्रदर्शन कब उग्र हो उठेगा, इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन है. किसान आंदोलन को ही देखिए. आंदोलन की आड़ में हिंसा की इजाजत तो नहीं ही दी जा सकती." पक्ष-विपक्ष में जितने भी तर्क गढ़े जाएं, किंतु इतना तो तय है कि ऐसे ही आदेश-निर्देश कालांतर में अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट का सबब बनते हैं.

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