बिहार चुनाव: बागियों से कैसे निपट रही हैं पार्टियां
२४ अक्टूबर २०२५
बिहार विधानसभा के दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीट पर चुनाव के लिए नाम वापस लेने का समय गुरुवार, 23 अक्टूबर को समाप्त हो गया. इस चरण में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों की संख्या 1,302 रह गई है.
बिहार चुनाव: महागठबंधन में सीटों का मसला क्यों नहीं सुलझ पा रहा है?
6 नवंबर पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान है. इसमें 1,314 उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें विभिन्न पार्टियों के कई बागी भी हैं. खेल बिगाड़ने में जुटे ऐसे उम्मीदवारों की संख्या महागठबंधन के मुकाबले एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) में ज्यादा है. कहीं बीजेपी के सामने जेडीयू, तो कहीं जेडीयू के सामने बीजेपी के बागी प्रत्याशी हैं.
बागी उम्मीदवारों का राजनीतिक समीकरण पर असर
दोनों ही गठबंधन, एनडीए और महागठबंधन में बागी नेताओं को संतुष्ट करने की कवायद तेज हो गई है. क्योंकि, कई मामलों में तो विश्लेषकों का अनुमान है कि बागी प्रत्याशी ही निर्णायक साबित होंगे. पार्टियों को आशंका है कि ये वोट तो काटेंगे ही, बल्कि हार-जीत की दशा-दिशा भी तय कर सकते हैं.
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कम-से-कम 11 सीटों पर 1,000 से भी कम वोट के अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ था. वहीं, कई सीटों पर 40 से 50 हजार वोट लाकर बागी उम्मीदवारों ने पूरा गणित ही पलट दिया था.
बिहार चुनाव में भी जेन-जी निभा सकते हैं अहम भूमिका
पिछले चुनाव में बागी उम्मीदवारों के कारण एनडीए के 19 और महागठबंधन के 10 प्रत्याशी तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे. इस बार भी दोनों ही प्रमुख गठबंधनों में ऐसे बागी प्रत्याशियों की संख्या तीन दर्जन से अधिक है. एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (आर), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा शामिल हैं. दूसरी तरफ महागठबंधन में कांग्रेस, आरजेडी, सीपीआई, सीपीएम, भाकपा-माले हैं. इसके अलावा जन सुराज, बीएसपी तथा एआईएमआईएम समेत निर्दलीय भी चुनाव लड़ रहे हैं.
एनडीए और महागठबंधन में बागियों को मनाने की कवायद
एनडीए और महागठबंधन, दोनों में ही एक-एक सीट की स्क्रीनिंग कर बागियों को वापस करने की पहल तेज हो गई है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले दिनों बिहार के तीन दिवसीय दौरे पर पहुंचे. उन्होंने पटना में देर रात तक बैठकें कीं तथा अपने कई प्रमुख नेताओं को बागी उम्मीदवारों को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी.
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इसका असर भी हुआ. करीब छह सीटों पर जन सुराज और बीजेपी से बागी हुए प्रत्याशियों ने नाम वापस ले लिया. हायाघाट से बीजेपी के बागी रमेश कुमार चौधरी तथा राजनगर (मधुबनी) के डा. रामप्रीत पासवान जैसे कई अन्य नेता हैं, जो अमित शाह के समझाने के बाद चुनाव मैदान से हट गए.
खबरों के मुताबिक, ऐसे कुछ विधायक जिनका टिकट काटा गया था, उनके चुनाव लड़ने जैसी चर्चा को खत्म करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में खुद उन्होंने ही इलेक्शन ना लड़ने की घोषणा कर दी. इनमें नंदकिशोर यादव, अरुण सिन्हा, सुरेश वर्मा और अमरेंद्र प्रताप सिंह का नाम शामिल है.
राजनीतिक समीक्षक समीर सौरभ कहते हैं, "बागियों से बातचीत में साम-दाम, दंड-भेद भी चला. किसी को आश्वासन दिया गया, यानी जो जैसे मान सकता था, उसी रास्ते उसे मनाया गया. यही वजह रही कि अमित शाह के शुक्रवार के दौरे के पहले भी नरकटियागंज विधानसभा सीट से रश्मि वर्मा और बेतिया से प्रकाश राय ने नाम वापस ले लिया."
कई टिप्पणीकार दावा कर रहे हैं कि कानूनी शिकंजा कसने के डर से इन दोनों ने कदम पीछे खींचे. बहरहाल, इन कवायदों से मुंगेर जिले की तारापुर सीट से बीजेपी प्रत्याशी और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को भी मदद मिलती दिख रही है. इस सीट पर आरजेडी से वैश्य समुदाय से आने वाले अरुण कुमार और निषाद समाज से आने वाले सकलदेव बिंद बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में थे.
नाम वापसी के अंतिम दिन, बीते 20 अक्टूबर को सकलदेव सिंह ने नाम वापस ले लिया और सम्राट को समर्थन की घोषणा कर दी. सकलदेव सिंह रेत के बड़े कारोबारी हैं. कई विश्लेषकों का अनुमान है कि जातिगत समीकरण के तहत सकलदेव सिंह के हटने से, ईबीसी के बिंद समाज के करीब 15,000 वोट का फायदा बीजेपी को हो सकता है.
अमित शाह की भूमिका और जन सुराज के आरोप
जन सुराज को तीन सीटों का झटका लगा है. गोपालगंज से डॉ. शशि शेखर सिन्हा और बक्सर जिले के ब्रह्मपुर से जन सुराज प्रत्याशी डॉ. सत्यप्रकाश तिवारी ने अचानक ही नाम वापस ले लिया. राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, बीजेपी को गोपालगंज में वैश्य वोटरों के जन- सुराज के पक्ष में खिसकने का खतरा था, क्योंकि यह समाज एनडीए और महागठबंधन दोनों से ही नाराज चल रहा है.
खबरों के मुताबिक, ब्रह्मपुर में डॉ. सत्यप्रकाश पहले बीजेपी से चुनाव लड़ना चाहते थे. जब उन्हें लगा कि टिकट नहीं मिल सकेगा, तो वे जन सुराज में चले गए. बीजेपी को डर था कि अगर यहां सीधा मुकाबला नहीं हुआ, तो जीत की गुंजाइश कम हो जाएगी.
इसके अलावा पटना जिले की दानापुर सीट के जन सुराज प्रत्याशी अखिलेश कुमार ने तो सिंबल लेने के बाद नॉमिनेशन ही नहीं किया. अखिलेश काफी समय समय तक बीजेपी के मंडल अध्यक्ष रह चुके थे. टिकट नहीं मिलने पर वे जन सुराज में चले गए थे.
इन प्रकरणों से नाराज जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि दबाव बनाकर जन सुराज के प्रत्याशियों को नामांकन वापसी के लिए मजबूर किया गया. दानापुर से जन सुराज उम्मीदवार के तो अपहरण की अफवाह भी उड़ी. बाद में प्रशांत किशोर ने अमित शाह के साथ अखिलेश की तस्वीर भी सार्वजनिक की.
"सीट मैनेजमेंट" और जीन सुनिश्चित करने की रणनीति
एनडीए और महागठबंधन, दोनों ने ही कथित सीट मैनेजमेंट के तहत बागी उम्मीदवारों को मनाने में जोर लगा दिया है. पटना साहिब सीट से बीजेपी ने विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव का टिकट काटकर युवा नेता रत्नेश कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया.
पटना मेयर सीता साहू के पुत्र शिशिर कुमार यहां से टिकट मिलने की आस में थे. नाराज होकर उन्होंने बतौर निर्दलीय नामांकन कर दिया था, लेकिन अमित शाह ने उन्हें बुलाया, समझाया और फिर उन्होंने नाम वापस ले लिया.
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इसी तरह भागलपुर सीट से टिकट ना मिलने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत चौबे ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. वे नामांकन करने अपने समर्थकों के साथ निकल भी गए, लेकिन एसडीओ कार्यालय पहुंचने से पहले फैसला बदल लिया.
अर्जित शाश्वत ने कहा कि पिता का फोन आया और उन्होंने कहा कि तुम बीजेपी में हो और बीजेपी में ही रहोगे. अर्जित के मुताबिक, पिता की बातों का सम्मान करते हुए उन्होंने नामांकन का फैसला बदल लिया.
बक्सर सीट के लिए बीजेपी से लंबे समय से जुड़े अमरेंद्र पांडेय दावेदार माने जा रहे थे. लेकिन, पार्टी ने जन सुराज से आए पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा को टिकट दिया. इससे नाराज अमरेंद्र ने निर्दलीय ही पर्चा दाखिल कर दिया. भितरघात की आशंका भांपकर उन्हें मनाया गया और वे मैदान से हट गए.
महागठबंधन की नौ सीट पर "फ्रेंडली फाइट"
महागठबंधन ने 23 अक्टूबर को एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में तेजस्वी प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की घोषणा की. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी का नाम उपमुख्यमंत्री के रूप में पेश किया गया.
कई राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, वीआईपी के साथ चल रहे गतिरोध को समाप्त करने के लिए यह एलान किया गया. मुकेश सहनी लगातार खुद को डिप्टी सीएम प्रोजेक्ट कर रहे थे. हालांकि, मान-मनौवल के बावजूद महागठबंधन के घटक दलों के बीच नौ सीटों पर "फ्रेंडली फाइट" होना तय है.
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कांग्रेस में भी कई नेता नाराज हैं. 23 अक्टूबर को रिसर्च विभाग के पूर्व अध्यक्ष आनंद माधव के नेतृत्व में विधायक छत्रपति यादव सहित कई नेताओं ने टिकट बंटवारे में बाहरी लोगों को टिकट दिए जाने के विरोध में प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम में धरना दिया.
दूसरे चरण के नामांकन के अंतिम दिन चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे भागलपुर नगर निगम के डिप्टी मेयर सलाहुद्दीन अहसन को मनाया गया. आरजेडी के झंडे के साथ इनका नामांकन जुलूस भी निकल गया था. इससे भागलपुर से कांग्रेस प्रत्याशी अजीत शर्मा की राह आसान हो गई.
वारिसलीगंज से कांग्रेस के सतीश कुमार ने नाम वापस ले लिया. अब यहां से अनीता देवी महागठबंधन की प्रत्याशी हैं. इसी तरह प्राणपुर से कांग्रेस प्रत्याशी तौकीर आलम ने, तो बाबूबरही विधानसभा क्षेत्र से वीआईपी उम्मीदवार बिंदू गुलाब यादव ने नामांकन वापस लिया.