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बिहार चुनाव में जारी है जाति और परिवारवाद का पुराना खेल

मनीष कुमार
४ नवम्बर २०२५

बिहार में किसी भी पार्टी के उम्मीदवारों पर नजर डाली जाए तो यह साफ दिख रहा कि जातिवाद, परिवारवाद और दागियों से किसी भी राजनीतिक दल का मोहभंग नहीं हो रहा.

लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव मुजफ्फरपुर में चुनाव प्रचार अभियान के दौरान
लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव और बड़े बेटे तेज प्रताप दोनों ही अलग अलग पार्टियों से इस विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार हैंतस्वीर: ANI

बिहार विधानसभा चुनाव में सभी प्रत्याशी चुनाव  मैदान में जोर आजमाइश करने उतर गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सभी दलों के दिग्गज नेताओं का दौरा लगातार जारी है. कोई कोर वोटरों को साधने की कोशिश कर रहा तो कोई दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत में है. यूं तो सभी पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशियों को पाक-साफ बता कर उन्हें विजयी बनाने की अपील कर रहीं, लेकिन किसी भी पार्टी के उम्मीदवारों पर नजर डाली जाए तो यह साफ दिख रहा कि जातिवाद, परिवारवाद और दागियों से किसी भी राजनीतिक दल का मोहभंग नहीं हो रहा. यहां तक कि येन-केन-प्रकारेण जीत हासिल करने के चक्कर में यह बढ़ता ही जा रहा है.

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मंगलवार की शाम पांच बजे बिहार के 18 जिलों के 121 विधानसभा क्षेत्रों में छह नवंबर को होने वाले पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार का शोर थम गया. इस चरण में करीब 3,75,13,302 वोटर 45324 पोलिंग बूथ पर 1314 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. प्रत्याशियों में 1,192 पुरुष और 122 महिलाएं हैं. वोटरों की संख्या के हिसाब से सबसे अधिक 45,7867 मतदाता पटना जिले के दीघा विधानसभा क्षेत्र में हैं, वहीं सबसे कम 2,31,998 मतदाता शेखपुरा जिले के बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में हैं. सबसे अधिक 20-20 उम्मीदवार कुढ़नी तथा मुजफ्फरपुर, जबकि सबसे कम पांच-पांच प्रत्याशी गोपालगंज जिले के भोरे तथा खगड़िया जिले के अलौली एवं परबत्ता विधानसभा क्षेत्र में हैं.

जीते कोई भी, जाति होगी एक

राजनीतिक दल दावे भले ही जो भी कर लें, किंतु जीत सुनिश्चित करने को सभी ने प्रत्याशियों के चयन में जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखा है. एनडीए और महागठबंधन दोनों ने ही कई सीटों पर एक ही जाति के उम्मीदवार उतारे हैं. करीब 36 से अधिक विधानसभा क्षेत्र में ऐसी स्थिति है कि दोनों गठबंधनों में से जीत किसी की भी हो, विधायक एक ही जाति का चुना जाएगा. इनमें सबसे अधिक संख्या यादवों की है. दोनों गठबंधनों ने पांच सीटों पर ब्राह्मण, छह सीटों पर राजपूत, आठ पर भूमिहार तथा सात सीटों पर कुर्मी-कुशवाहा प्रत्याशी दिए हैं.

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आरजेडी ने एम-वाई समीकरण का ख्याल रखते हुए इस तबके से सबसे अधिक प्रत्याशी उतारा है तो जेडीयू ने पिछड़ा-अति पिछड़ा को केंद्र में रख कर टिकट दिया है. आरजेडी की 143 सीटों में से सबसे अधिक 51 सीटों पर यादव, 19 पर मुस्लिम, 11 पर कुशवाहा तथा 14 सीट पर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार उतारे हैं. इसी तरह जेडीयू ने अपने 101 में से पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 37 तथा अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को 22 तथा सामान्य श्रेणी को 22 एवं मुस्लिम को चार सीटें दी हैं.

अगर महिलाओं की बात करें तो सभी जातियों से 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं. बीजेपी ने सबसे अधिक सीट सामान्य वर्ग को दिया है. इस वर्ग से 49 प्रत्याशी हैं, जिनमें 16 भूमिहार, 21 राजपूत, 11 ब्राह्मण और एक कायस्थ हैं. वहीं, पिछड़ा वर्ग की बात करें तो इस समाज 24 और अति पिछड़ा वर्ग से 16 को मौका दिया गया है. इसी तरह कांग्रेस, वाम दलों ने टिकटों के बंटवारे में जातीय और सामाजिक समीकरणों का पूरा ख्याल रखा है. महागठबंधन तथा एनडीए के 23-23 प्रत्याशी कुशवाहा जाति से हैं. अगर कुर्मी जाति के प्रत्याशियों की संख्या जोड़ दी जाए तो यह आंकड़ा 50-55 के आसपास पहुंच जाता है. इनमें कम से कम 30 ऐसी सीट हैं, जहां कुशवाहा उम्मीदवारों की जीत संभावित है.

राजनीतिक समीक्षक आर.के. शुक्ला कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि जाति पर चुनाव केवल बिहार में ही होता है, दक्षिण के राज्यों में भी यही स्थिति है. यहां इसका शोर ज्यादा है और जकड़न कुछ अधिक है. इसे ऐसे समझिए कि नवादा जिले की एक सीट है हिसुआ, यहां विधानसभा बनने के बाद से अब तक भूमिहार जाति के ही प्रत्याशी जीतते रहे हैं. कई बार दूसरी जाति के प्रत्याशियों ने कड़ी टक्कर दी, लेकिन जीत भूमिहार उम्मीदवार की हुई. ज्यादातर चुनाव यहां भूमिहार बनाम भूमिहार ही रहा.''

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इस बार भूमिहारों पर एनडीए और महागठबंधन का थोड़ा ज्यादा ही भरोसा दिख रहा. एनडीए ने इस जाति से 32 तो महागठबंधन ने 15 उम्मीदवार खड़े किए हैं. इसलिए कई सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार की स्थिति है. इनमें सर्वाधिक चर्चित पटना जिले की मोकामा सीट है, जहां से बाहुबली अनंत सिंह और बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी आमने-सामने हैं.  इसी विधानसभा क्षेत्र में नीतीश और लालू दोनों के करीबी रहे और अब जनसुराज पार्टी के समर्थक व हिस्ट्रीशीटर दुलारचंद यादव की हत्या हुई है. जिसके आरोप में अनंत सिंह को जेल भेज दिया गया है. लखीसराय से डिप्टी चीफ मिनिस्टर व बीजेपी नेता विजय कुमार सिन्हा का मुकाबला भी भूमिहार जाति के कांग्रेस प्रत्याशी अमरेश अनीश से ही है.

बिहार में 203 हैं जातियां, सर्वाधिक अति पिछड़ी

2023 में गांधी जयंती के अवसर पर बिहार सरकार द्वारा जारी जातीय सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 203 नोटिफाइड जातियां हैं. इनमें हिन्दुओं में ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ और भूमिहार तथा मुसलमानों में शेख, पठान और सैय्यद को सामान्य श्रेणी में रखा गया है. जबकि 112 को अति पिछड़ी, 30 को पिछड़ी, 22 को अनुसूचित जाति और 32 को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है. वहीं आबादी के लिहाज से देखें तो अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की सर्वाधिक 36.01 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) की 27.12 फीसद, अनुसूचित जाति (एससी) की 19.65 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (एसटी) की 1.68 फीसद तथा सामान्य श्रेणी की करीब 15.52 प्रतिशत है.

राजनीतिक समीक्षक शुक्ला कहते हैं, "कोई भी चुनाव हो, पार्टी भी जाति देख प्रत्याशी देती रही है और ठीक इसी तरह मतदाता भी जाति देख वोट देते रहे हैं. ऐसे इस बार के चुनाव में सवर्णों को हर पार्टी ने थोड़ी ज्यादा तवज्जो दी है. 14 प्रतिशत से अधिक यादवों की आबादी है और 17 फीसद से अधिक मुस्लिम हैं, दोनों को जोड़ दें तो यह 31 प्रतिशत से अधिक हो जाता है. इन्हीं आंकड़ों को समझ लालू प्रसाद ने एमवाई समीकरण बनाया था, जो आज भी उतनी ही मजबूती से आरजेडी के साथ इन्टैक्ट है.'' यादव, मुस्लिम, कुर्मी-कोइरी, सवर्ण हिंदू, वैश्य, रविदास, और पासवान यहां की प्रमुख जातियां हैं, जो चुनाव जीत-हार तय करती हैं.

परिवारवाद में कोई पीछे नहीं

बिहार में इस बार के चुनाव में भी परिवारवाद का बोलबाला है. करीब 40 से अधिक ऐसे प्रत्याशी हैं, जिनके रिश्तेदार सांसद या विधायक रहे हैं. एनडीए हो या महागठबंधन, दोनों ही इसमें पीछे नहीं हैं. एनडीए के घटक दल हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा, जिसके संरक्षक व केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी हैं, उन्हें छह सीट मिली है. इनमें तीन जगहों पर इनके घर वाले चुनाव लड़ रहे. मांझी की बहू दीपा कुमारी को इमामगंज, समधन ज्योति देवी को बाराचट्टी और दामाद प्रफुल्ल मांझी को सिकंदरा सीट से प्रत्याशी बनाया गया है. वहीं, दो अन्य राजनीतिक घराने से हैं. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा जिसे छह सीट मिली है, इसके मुखिया व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने तो अपनी पत्नी स्नेहलता को सासाराम सीट से प्रत्याशी बनाया है. एनडीए में परिवारवादी उम्मीदवारों की कुल संख्या करीब 30 हो जाती है.

बीजेपी की बात करें तो वहां कम से कम 11 और जेडीयू में आठ उम्मीदवार ऐसे हैं. वहीं, आरजेडी से लालू प्रसाद के दोनों पुत्र तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव तो हैं ही. इसके अतिरिक्त 10 ऐसे प्रत्याशी हैं, जो राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखते हैं. इस बार आरजेडी ने पूर्व सांसद व बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब को सिवान जिले की रघुनाथपुर सीट से मैदान में उतारा है. नई-नवेली जनसुराज पार्टी भी परिवारवाद से अछूती नहीं रही है. उसने पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह को अस्थावां से तथा जननायक कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर को समस्तीपुर जिले की मोरवा सीट से टिकट दिया है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार विधानसभा के 66 और विधान परिषद के 16 सदस्य परिवारवादी हैं.

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बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता यह पूछे जाने पर कि पीएम मोदी तो परिवारवाद का विरोध करते हैं तो फिर कथनी-करनी में इतना अंतर क्यों, कहते हैं, "राजनीति में यह परंपरा के तौर पर स्थापित हो चुकी है और इसमें गलत क्या है. यह जीविका का भी सवाल है. पहले तो नौकर-चाकर तक सदन में भेज दिए जाते थे, अब तो बाल-बच्चा या रिश्तेदार को भेज रहे ना.'' वहीं, राजनीतिक समीक्षक समीर सौरभ कहते हैं, "आज राजनीति तो सर्वाधिक ल्यूकेरेटिव बन चुकी है. स्टेटस के साथ इसके आर्थिक फायदे क्या कम हैं. इनके पेंशन की गणना ही देख लीजिए. फिर, अपनी विरासत बचाने का अधिकार तो सबको है.'' अब बीजेपी जैसी पार्टी वंशवाद को बढ़ावा देने से नहीं हिचक रही तो ऐसे में यह आने वाले दिनों में और बढ़ेगा.

सबको अच्छे लगते दागी

जनता को साफ छवि वाले लोगों की सरकार देने का वादा तो सभी पार्टियां करती रही हैं, लेकिन जीत का चक्कर कुछ ऐसा है कि मोहभंग नहीं होता. इस बार भी करीब दो दर्जन चेहरे ऐसे हैं, जो खुद चुनाव लड़ रहे या उनके नाते-रिश्तेदार चुनाव मैदान में हैं. बिहार विधानसभा चुनाव-2025 को लेकर एडीआर की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 32 प्रतिशत प्रत्याशियों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे पर एडीआर और बिहार इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के अनुसार पहले चरण के चुनाव में 1314 उम्मीदवारों में से 423 ने अपने ऊपर दर्ज क्रिमिनल केस का जिक्र किया है, जिनमें 354 पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इनमें 33 हत्या, 86 हत्या की कोशिश, 42 महिला अपराध और दो रेप के मामलों में आरोपित हैं.

पार्टियों के अनुसार देखें तो सीपीआई-एम के तीन में तीन, सीपीआई के पांच में पांच अर्थात सौ फीसद तो सीपीआई-एमएल के 14 में 13 यानी 93 प्रतिशत प्रत्याशी दागी हैं. वहीं बड़ी पार्टियों की बात करें तो इसमें सबसे आगे है राजद. जिसके 70 में से 53 यानी 76 प्रतिशत उम्मीदवार दागी हैं. वहीं, बीजेपी के 31, जेडीयू के 22, कांग्रेस के 15, एलजेपी (आर) के सात तथा जनसुराज के 50 प्रत्याशियों का दामन दागदार है. वहीं, ऐसे 117 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव में किस्मत आजमा रहे. इन सभी दागियों को मंगलवार की शाम यानी मतदान से दो दिन पहले अपने ऊपर दर्ज सभी आपराधिक ब्योरे को सार्वजनिक करना है. आरजेडी, बीजेपी, जेडीयू और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों का ब्योरा वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है.

कानून की छात्रा स्मिता तिवारी कहती हैं, "लालू प्रसाद यादव द्वारा पटना के दानापुर में आरजेडी प्रत्याशी रीतलाल यादव के पक्ष में रोड शो करना और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह द्वारा मोकामा में अनंत सिंह के पक्ष में प्रचार करना क्या बतलाता है. रीतलाल और अनंत सिंह दूध के तो धुले नहीं है. मतलब साफ है ये सबको अच्छे लगते हैं. गेंद तो अब पब्लिक के पाले में है.'' शायद, इसलिए सौरभ कहते हैं, "जाति, परिवारवाद और दागी उम्मीदवार धीरे-धीरे राजनीति के पर्याय बनते जा रहे हैं. दागियों में सभी गंभीर अपराध के आरोपी नहीं हैं. कई ऐसे भी हैं, जो साजिशन इस दायरे में आ गए हैं. अब यह तो जनता को तय करना है, वैसे इनकी स्वीकार्यता हमेशा बनी रहेगी.''

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