कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच पूरे बिहार में वायरल फीवर से बड़ी संख्या में बच्चे बीमार हो रहे हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हो या जिलों के सदर अस्पताल मरीजों में सर्वाधिक संख्या बच्चों की है.
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पिछले एक माह में राज्य में वायरल फीवर की चपेट में आकर 25 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है, वहीं कई गंभीर अवस्था में इलाजरत हैं. राजधानी पटना के सभी बड़े अस्पतालों में पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीकू) तथा नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (नीकू) में बेड भर चुके हैं, जबकि मौसमी बीमारी या वायरल फीवर से पीड़ित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
उत्तर बिहार के जिले खासकर मुजफ्फरपुर, पूर्वी व पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीवान, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी व सारण के अलावा गया, भागलपुर व खगड़िया में स्थिति ज्यादा खराब है. आंकड़ों के अनुसार मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) तथा केजरीवाल अस्पताल में बीते एक पखवाड़े में 2500 से अधिक बच्चे इलाज के लिए पहुंचे. दोनों अस्पतालों में दो सौ से अधिक बच्चे भर्ती हैं और करीब सौ बच्चे रोजाना यहां पहुंच रहे हैं.
तस्वीरों मेंः बिहार को खास बनाने वाली बातें
बिहार को खास बनाने वाली बातें
बिहार पर अक्सर ध्यान राजनीति और विकास के मामले में पिछड़ेपन की खबरों को लेकर जाता है. लेकिन बिहार का एक गौरवशाली इतिहास है.
तस्वीर: Manish Kumar/DW
शिक्षा का केंद्र
प्राचीन काल में बिहार दुनिया भर के सीखने वालों के लिए शिक्षा का केंद्र था. पाटलिपुत्र भारतीय सभ्यता का गढ़ था तो नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी. नालंदा लाइब्रेरी ईरान, कोरिया, जापान, चीन, फारस से लेकर ग्रीस तक के पढ़ने वालों को आकर्षित करती थी. बख्तियार खिलजी की सेना ने इसमें आग लगा दी थी, जिसे बुझने में तीन महीने लगे थे.
तस्वीर: AP
कला की खान
सैंकड़ों साल पुरानी मिथिला पेंटिग आज देश और विदेश में प्रसिद्ध है. इसकी जन्मस्थली भी बिहार ही है. भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चार सिंहों के सिर वाला अशोक चक्र कभी बिहार में स्थित अशोक स्तंभ से ही लिया गया गया.
तस्वीर: picture alliance/DINODIA PHOTO LIBRARY
धर्मों की जन्मस्थली
बौद्ध और जैन धर्मों का उदय बिहार में हुआ, गौतम बुद्ध और महावीर के फैलाए अहिंसा के सिद्धांत की शुरुआत भी यहीं हुई मानी जाती है. इसके अलावा सिख धर्म की जड़ें भी बिहार से जुड़ी हैं. सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह पटना में जन्मे थे.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/N. Ut
भाषाएं और बोलियां
सबसे ज्यादा लोग हिन्दी बोलते समझते हैं. इसके अलावा भोजपुरी, मगही और मैथिली बोलियां भी खूब प्रचलित हैं. ऑफिसों, बैंकों, शिक्षा संस्थानों और कई प्राइवेट कंपनियों में अंग्रेजी भी बोली समझी जाती है. मैथिली में अच्छी खासी साहित्य रचनाएं हुई हैं. मैथिल कवि कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति मैथिली के कवि और संस्कृत के बड़े विद्वान थे.
बिहार प्राचीन काल में मगध कहलाता था और इसकी राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र था. मान्यता है कि बिहार शब्द की उत्पत्ति बौद्ध विहारों के विहार शब्द से हुई जो बाद में बिहार हो गया. आधुनिक समय में 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है.
तस्वीर: imago/epd
राज का इतिहास
बिहार में मौर्य, गुप्त जैसे राजवंशों और मुगल शासकों ने राज किया. 1912 में बंगाल के विभाजन के समय बिहार अस्तित्व में आया. फिर 1935 में उड़ीसा और 2000 में झारखण्ड बिहार से अलग होकर स्वतंत्र राज्य बने. दुनिया का सबसे पहला गणराज्य बिहार में वैशाली को माना जाता है. भारत के चार महानतम सम्राट समुद्रगुप्त, अशोक, विक्रमादित्य और चंद्रगुप्त मौर्य बिहार में ही हुए.
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मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल में औसतन करीब आठ सौ मरीज आ रहे हैं जिनमें लगभग तीन सौ मरीज वायरल बुखार के हैं. दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (डीएमसीएच) में इसी अवधि में लगभग 2,300 बच्चों का इलाज किया गया जबकि 15 बच्चों की वायरल फीवर से मौत हो गई. यहां करीब सवा सौ से अधिक बच्चे प्रतिदिन आ रहे हैं.
बीते पंद्रह दिनों में शिवहर में 300, पश्चिम चंपारण में 750, समस्तीपुर में 1,100, मधुबनी में 550 तथा पूर्वी चंपारण में 2,000 से अधिक बच्चे विभिन्न अस्पतालों की ओपीडी में आ चुके हैं. ऐसे बीमार बच्चों की संख्या हरेक दिन बढ़ती ही जा रही है.
कोरोना या चमकी बुखार नहीं
सारण जिले के अमनौर प्रखंड के सिरसा खेमकरण गांव में बुखार से पीड़ित दो बच्चों की मौत हो चुकी है. इनमें रामचंद्र राम की साढ़े तीन साल की पुत्री लक्ष्मी कुमारी तथा बहाल राम आठ वर्षीय बच्ची नंदिनी शामिल है. 18 बच्चों की हालत स्थिर बनी हुई है.
गांव वालों का कहना है कि अभी करीब 60 बच्चे तेज बुखार से पीडि़त हैं. इस महादलित बस्ती में बीते चार-पांच दिनों में करीब दो दर्जन बच्चे तेज बुखार की चपेट में आए हैं. सारण के सिविल सर्जन सुकुमार प्रसाद ने कहा है कि किसी में चमकी बुखार की पुष्टि नहीं हुई है, बच्चों को वायरल फीवर ही है जिसका इलाज चल रहा है.
खगड़िया जिले के बेलदौर प्रखंड के वोबिल पंचायत में छह बच्चे काल के गाल में समा चुके हैं. इन बच्चों की बीमार होने के महज तीन दिनों के अंदर मौत हो गई, इन्हें बार-बार मूत्र भी आ रहा था. स्थानीय चिकित्सकों ने इन्हें चमकी बुखार या एईएस होने से इनकार किया है.
देखिएः मलेरिया, मौत के लिए एक डंक ही काफी
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
तस्वीर: AP
शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Klett GmbH
मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
तस्वीर: Edlena Barros
दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.
तस्वीर: AP
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भागलपुर के अस्पताल में 50 बच्चे भर्ती हैं जबकि गोपालगंज में एक बच्चे की मौत के बाद स्वास्थ्यकर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गईं हैं. गया के मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल की ओपीडी में भी निमोनिया पीड़ित बच्चे काफी संख्या में आ रहे हैं. यहां औरंगाबाद तथा नवादा जिले से भी बीमार बच्चे पहुंच रहे हैं. सिविल सर्जन डॉ. के. के. राय के अनुसार, ‘‘जिले के विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी निमोनिया पीड़ित बच्चों के आने की संख्या तेजी से बढ़ी है. करीब एक से तीन वर्ष के बच्चे ज्यादा पीड़ित हैं.''
एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी ने भी कोरोना की तीसरी लहर से साफ इन्कार करते हुए कहा, ‘‘यह वायरल बुखार है, जिसके अलग-अलग रूप होते हैं. जलजमाव व गर्मी इसकी मुख्य वजह है. यह हर साल होता है, यह कोरोना नहीं है. जब बुखार अधिक होता है तो सांस लेने में तकलीफ होती है और ऑक्सीजन लेवल थोड़ा नीचे आ जाता है. इसलिए ऑक्सीजन लगाना पड़ता है.''
एनएमसीएच के अधीक्षक डॉ. बिनोद कुमार सिंह के अनुसार, ‘‘मानसून से संबंधित बीमारियों की वजह से अस्पताल आने वाले बीमार बच्चों की संख्या काफी बढ़ गई है. शिशु वॉर्ड में 84 बेड उपलब्ध हैं पर अभी 87 बच्चों का इलाज किया जा रहा है. सुकून की बात है कि कोविड का कोई केस नहीं हैं.''
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आरएस वायरस से बीमारी की आशंका
राज्य में बीमार पड़ रहे बच्चों की रोजाना बढ़ती संख्या देख स्वास्थ्य विभाग भी चौकन्ना है. इन मामलों की जांच के लिए टीम का गठन किया गया है, जो प्रभावित जिलों में जाकर स्थिति की समीक्षा के साथ-साथ बुखार के कारणों को जानने का भी प्रयास करेगी. राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह ने कहा है कि बच्चों को सामान्य अधिक आ रहे बुखार पर विभाग की नजर है.
इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) के स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर डॉ. रंजीत कुमार के अनुसार, ‘‘पहली नजर में आरएस वायरस से ही बच्चों के बीमार होने की बात सामने आ रही है.'' इधर, मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच पहुंची टीम किसी खास निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी. हालांकि, निपाह वायरस के कारण बीमारी की आशंका पर जांच का निर्णय लिया गया.
तस्वीरेंः डेंगू की कुछ जरूरी बातें
डेंगू की कुछ जरूरी बातें
डेंगू एक रक्तस्रावी बुखार है. सबसे पहले 1950 के दशक में फिलीपींस और थाईलैंड में डेंगू संक्रमण दर्ज किया गया, अब भारत सहित कई एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में डेंगू के मामले दर्ज किए जा रहे हैं.
तस्वीर: Sanofi Pasteur/Institut Pasteur
मच्छरों से
एइडेस एगिप्टी मच्छरों से फैलने वाली यह बीमारी अक्सर शहरों में पलने वाले मच्छरों से होती है. दूसरे मच्छरों से अलग एइडेस एगिप्टी मच्छर दिन में काटते हैं और इनके हमले का समय सुबह तड़के और गोधूली बेला का होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
प्रकार
डेंगू के एक दूसरे से जुड़े हुए चार प्रकार होते हैं. एक बार एक तरह का डेंगू होने से उसके लिए शरीर में प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो जाती है. लेकिन दूसरे तरह के डेंगू से बचने की संभावना कम और अस्थाई होती है. अलग तरह के डेंगू एक के बाद एक होने से इसके अति गंभीर होने की आशंका बढ़ जाती है.
तस्वीर: Fiocruz/Peter Ilicciev
लक्षण
तीव्र सरदर्द, जोड़ों में दर्द, जी घबराना, उल्टी के साथ 40 डिग्री सेंटीग्रेड वाला बुखार डेंगू का संकेत हो सकता है. संक्रमित मच्छर के काटे जाने के चार से दस दिन के भीतर ये लक्षण पैदा हो सकते हैं.
तस्वीर: DW/A.Bacha
जानलेवा
वैसे तो डेंगू जानलेवा नहीं होता, लेकिन अगर समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो प्लाज्मा लीक, शरीर में पानी जमने, सांस लेने में परेशानी सहित आंतरिक रक्तस्राव का कारण बन सकता है. और इसके कारण मौत भी हो सकती है.
तस्वीर: Adnan Gran
तेजी से बढ़ोतरी
डेंगू के मामले हाल के दशक में तेजी से बढ़े हैं. ढाई अरब लोगों को डेंगू का खतरा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन को आशंका है कि हर साल इस बीमारी के मामले पांच से दस करोड़ के बीच पहुंच सकते हैं.
तस्वीर: DW
2014 में ज्यादा
मलेशिया के कुक द्वीप, फिजी और वानुआतु में डेंगू टाइप3 के मामले बढ़ें हैं. फिलहाल दुनिया में करीब पांच लाख लोग गंभीर डेंगू के कारण अस्पताल में भर्ती होते हैं जिनमें से अधिकतर बच्चे हैं और ढाई फीसदी संक्रमित लोगों की मौत हो जाती है.
तस्वीर: DW/A.Bacha
टीके पर शोध जारी
डेंगू के टीके पर शोध चल रहा है. शोध के दूसरे चरण में कहा गया कि टीका 60.8 फीसदी असरकारक है.