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समाजभारत

बिहार: घर लौटने की परेशानी भी बता रही पलायन के दर्द की कहानी

मनीष कुमार, पटना
१७ नवम्बर २०२३

देशभर के भिन्न-भिन्न शहरों में स्टेशन व बस अड्डों पर भीड़ उमड़ रही है. ये वे लोग हैं जो 17 नवंबर से शुरू होने वाले चार दिवसीय छठ महापर्व के मौके पर किसी भी तरह बिहार पहुंचना चाह रहे हैं.

छठ पूजा करती महिलाएं
छठ पूजा करती महिलाएं तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार से रोजी-रोटी कमाने बाहर गए लोगों का त्योहार के इस मौसम में घर लौटने का क्रम दशहरा व दिवाली से ही जारी है. चार दिवसीय छठ महापर्व के समीप आते-आते यह चरम पर पहुंच जाता है. इस बार भी लाखों की संख्या में देश के कोने-कोने से लोग बिहार के विभिन्न जिलों में अपने-अपने घर लौट रहे हैं. लेकिन ट्रेन हो या बस या फिर विमान, मारामारी इतनी होती है कि उनके लिए घर पहुंच पाना जंग जीतने से कम नहीं होता. ऐसे कई वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहे हैं.

देशभर के भिन्न-भिन्न शहरों में स्टेशन व बस अड्डों पर भीड़ उमड़ रही है. ट्रेनों में जगह नहीं है, घुसने भर के लिए मारामारी हो रही है. छठ पूजा में घर आने के लिए सूरत में ताप्ती एक्सप्रेस पकड़ने के लिए उमड़ी भीड़ से अफरातफरी मच गई. कुछ लोग बेहोश हो गए, कुछ भीड़ में फंस गए जिनमें एक व्यक्ति की मौत हो गई.

ट्रेन में किसी तरह से लटकर बिहार पहुंचना चाहते हैं लोगतस्वीर: Manish Kumar/DW

पूजा के लिए कैसे पहुंचे घर

इसी तरह बीते बुधवार को हावड़ा से काठगोदाम जाने वाली काठगोदाम एक्सप्रेस की जनरल बोगी में इतनी भीड़ थी कि सारण जिले के एक व्यक्ति की जान चली गई. ट्रेन के अंदर की स्थिति भी भेड़िया धसान की तरह रहती है. एसी और जनरल बोगी का फर्क नहीं रह जाता है. जो भी ट्रेन महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, असम या राजस्थान से बिहार पहुंच रही, वह खचाखच भरी रहती है. ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से भीड़ को देखते हुए रेलगाड़ियों की व्यवस्था नहीं की गई है. कई पूजा स्पेशल ट्रेन चलाए गए हैं.

पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र कुमार के अनुसार, ‘‘इस साल 82 स्पेशल ट्रेन चलाई गई है. पिछले वर्ष ऐसी 56 ट्रेन चलाई गई थी. ये सभी 1400 फेरे लगाएंगी. रेगुलर डेढ़ लाख बर्थ के अतिरिक्त एक लाख 75 हजार बर्थ की व्यवस्था की गई है. कोविड के बाद दूसरी बार छठ मनाया जा रहा है, इसलिए भीड़ काफी है.'' हर साल रेलवे स्थिति से निपटने के लिए पुरजोर व्यवस्था करती है, लेकिन इतनी अधिक संख्या में लोग बिहार का रुख करते हैं कि सारी व्यवस्था तहस-नहस हो जाती है, चाहे मामला ट्रेन का हो या स्टेशन का और यह संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है.

पीएमओ तक पहुंचा ट्रेन की लेटलतीफी का मामला

इससे इतर यात्रियों की दुर्दशा यह बताती है कि रेलवे की तमाम व्यवस्थाओं के बाद ट्रेनों में भीड़ बेकाबू है. स्पेशल ट्रेन के बारे में यात्री कहते हैं कि इन ट्रेनों का कोई "माई-बाप" नहीं होता. बीते 13 तारीख को हैदराबाद से चलकर पटना पहुंचे तनव राज कहते हैं, "हमारी स्पेशल ट्रेन को 14 तारीख की शाम साढ़े पांच बजे पटना पहुंचना था, लेकिन यह नौ घंटे 43 मिनट की देरी से पहुंची." कई तो 24-24 घंटे विलंब से चल रहीं. किसी में पानी नहीं होता, तो किसी का एसी काम नहीं कर रहा होता तो किसी बोगी में लाइट तक नहीं होती. तभी तो बुधवार को पंजाब के सरहिंद से बिहार के सहरसा जाने वाली ट्रेन के 16 घंटे से ज्यादा लेट होने का मामला पीएमओ तक पहुंच गया और रेल मंत्री अश्विन वैष्णव को रेलवे बोर्ड के चार अधिकारियों को तलब करना पड़ गया.

रैक को लेकर भी यात्रियों का आरोप है कि स्पेशल के नाम पर पैसे ले लिए जाते हैं पर देखने-सुनने वाला कोई नहीं होता. लोगों का कहना है कि यात्रियों की सुरक्षा की भी अनदेखी की जाती है. नई दिल्ली-दरभंगा क्लोन एक्सप्रेस में उत्तर प्रदेश के इटावा में स्लीपर बोगी में लगी आग और दिल्ली से सहरसा जा रही वैशाली एक्सप्रेस की स्लीपर कोच में लगी आग का कारण लोग रिजेक्टेड रैक का इस्तेमाल किया जाना बता रहे हैं. वैशाली एक्सप्रेस में 19 लोगों के झुलसने की सूचना है.

हर साल पर्व के लिए बिहार लौटने वाले लोगों को यात्रा के दौरान बहुत परेशाानी होती हैतस्वीर: Manish Kumar/DW

दिल्ली-दुबई से अधिक पटना- दिल्ली का विमान किराया

बिहार आने वाले विमानों का किराया भी चरम पर है. 17 नवंबर के लिए दिल्ली से पटना का किराया 18555 रुपये तक व मुंबई से पटना का किराया 20777 रुपये तक पहुंच गया. इस दिन जितने पैसे में कोई व्यक्ति दिल्ली से पटना पहुंचेगा, उससे तीन हजार कम यानी 15077 में वह दुबई से दिल्ली चला आएगा. साफ है, दुबई से दिल्ली का सफर चार घंटे का है जबकि दिल्ली से पटना का सफर महज डेढ़ घंटे का. दरअसल, ट्रेनों के फुल होने का फायदा विमानन कंपनियां उठा रही हैं.

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आम दिनों की तुलना में यह किराया तीन गुणा है. ममता ट्रैवल्स के प्रबंधक कुमुद रंजन इसकी वजह फ्लाइंग आवर पर विमान के न्यूनतम तथा अधिकतम किराये में कैपिंग खत्म होना बताते हैं. सहरसा के अजय कुमार कहते हैं, "मेरे छोटे भाई को दिल्ली से आना था. लेकिन उसे न तो ट्रेन में जगह मिली और न ही बस में, फ्लाइट का किराया हम दे नहीं सकते. मैंने मां से झूठ बोल दिया कि उसे कंपनी के काम से बाहर जाना पड़ गया है. इस बार वह नहीं आ पाएगा."

भीड़ बता रही पलायन की कहानी

वाकई, हर राज्य का अपना विशेष पर्व होता है, लेकिन कभी वहां से ऐसा कुछ देखने या सुनने में नहीं आता है. लेकिन किसी भी पर्व के मौके पर बिहार आने वाली ट्रेनों में जगह मिलनी मुश्किल होती है. इसकी वजह बिहारी प्रवासियों की संख्या अधिक होना ही है. दरअसल, रोजी-रोटी की तलाश में लाखों लोग देश के अन्य हिस्सों का रुख करते हैं और विशेष दिवस पर अपने-अपने घर लौटना चाहते हैं. इससे ही यह स्थिति पैदा होती है. सामाजिक कार्यकर्ता व आरटीआई एक्टिविस्ट प्रशांत पुष्पम कहते हैं, "यह स्थिति बिहार सरकार के इस दावे को झुठलाने के लिए पर्याप्त है कि राज्य से पलायन की दर में कमी आई है. बेरोजगारी का दंश झेल रहे बिहार के संबंध में यह सब कुछ केवल पलायन की वजह से ही है."

दिल्ली से आने वाली बसें भी खचाखच भरी आ रहीं हैं. एक-एक बस से 80-100 यात्री आ रहे. एक-एक सीट पर तीन यात्रियों को बैठना पड़ रहा है. गोपालगंज जिले के बलथरी चेकपोस्ट पर तो कई ट्रकों में लोग बैठे दिखे. इनमें महिलाएं व बच्चे भी थे. जब ट्रेन या बस में जगह नहीं मिल रही तो लोग ट्रक का सहारा ले रहे हैं.

पुष्पम कहते हैं, "1990 के दशक से बिहार से पलायन का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार जारी है. सामाजिक न्याय के नाम पर बनी सरकारों ने रोजगार के लिए कुछ भी नहीं किया. आज भी उद्योग धंधों की स्थिति चौपट है. खेतों की जोत छोटी है, परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक. इसलिए खेती से पेट भर नहीं रहा. लोग नौकरी के लिए मजबूर हैं. स्किल्ड या अनस्किल्ड, काम या नौकरी दोनों यहां मिल नहीं रही तो लाचारी में वे बाहर जा रहे हैं. कोविड के दौरान बातें तो बड़ी-बड़ी की गईं, लेकिन उसकी तुलना में काम कुछ भी नहीं हुआ."

भयानक बेरोजगारी में फंसा बिहार

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बेरोजगारी की दर 19 फीसदी से अधिक है. जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स के अनुसार बिहार से 55 प्रतिशत पलायन रोजगार उपलब्ध नहीं होने के कारण ही होता है. बाहर जाने वालों में अधिकतर अनआर्गेनाइज्ड सेक्टर में काम करने वाले हैं.

त्योहारों के मौके पर वापस बिहार आना ये भी दिखाता है कि लोग दूसरी जगहों पर पूरी तरह बस नहीं रहे हैं. वैसे यह बिहार के लोगों की उत्सवधर्मिता भी है कि वे तमाम संकट झेल होली, दशहरा-दीपावली या छठ पर्व के मौके पर अपने घर पहुंच रहे हैं. इसके बावजूद लोगों की इस जरूरत को ट्रांसपोर्ट उद्योग पूरा नहीं कर पा रहा है. रेलगाड़ियों, बसों या फिर विमानों की यह भीड़, त्योहारों के समय की समस्या भले लगे, वह उससे कहीं विकराल व बहुआयामी साबित होने जा रही है.

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