एक नयी महामारी सामने आई है जिसकी चपेट में पक्षी आ रहे हैं. अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी और उसके आसपास के इलाकों में इस अज्ञात बीमारी से संक्रमित पक्षी मर रहे हैं. बीमारी ने विशेषज्ञों को भी चकरा दिया है.
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एक ओर इंसान और जानवर कोविड-19 से जूझ रहे हैं, दूसरी ओर एक नयी महामारी ने उत्तरी अमेरिका में बहुत सी पक्षी प्रजातियों को जकड़ लिया है. पूरे अमेरिका में जगह जगह लोगों को मरे हुए परिंदे दिख रहे हैं. अप्रैल से ये रहस्मयी बीमारी पक्षियों पर कहर बरपा रही है. पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि मरे हुए या बीमार परिन्दों की आंखे सूज जाती हैं और उनमें स्नायुगत समस्याएं भी आ जाती हैं जिससे लगता है कि उनका संतुलन बिगड़ जाता है.
बीमारी के कारणों की तलाश
वॉशिंगटन डीसी में पशु बचाव केंद्र सिटी वाइल्डलाइफ के संस्थापक-निदेशक जिम मोन्स्मा कहते हैं, "पक्षियों में आंख की परेशानी असामान्य बात नहीं है.” मोन्स्मा शहरी इलाकों में जानवरों की हिफाजत और पुनर्वास के लिए 25 साल काम कर चुके हैं, खासकर राजधानी क्षेत्र में. वह कहते हैं, "हम शुरू में नहीं जानते थे कि हमारा सामना एक महामारी से है.”
उन्हें अब लगता है कि बहुत सारी पक्षी प्रजातियां करीब दो महीनों से एक अजीब सी बीमारी की चपेट में आई हैं. यह बीमारी राजधानी से 965 किलोमीटर के दायरे में फैल चुकी है. अमेरिका के मिडवेस्ट इलाकों से इंडियाना राज्य तक. द यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) ने शुरुआती जून में पक्षियों की रहस्यमयी मौत पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके ब्यौरे तो अस्पष्ट हैं लेकिन जानकार महामारी का स्रोत ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.
देखिएः अमेरिका में निकले अरबों झींगुर
17 साल बाद जमीं से निकले खरबों झींगुर
अमेरिका के कई शहरों में खरबों झींगुर जमीन से निकल आए हैं. गलियों, सड़कों, दीवारों, पेड़ों पर हर जगह झींगुर नजर आ रहे हैं. क्या है माजरा, देखिए और समझिए...
तस्वीर: Amira Karaoud/REUTERS
खरबों झींगुर
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड के कीटविज्ञानियों का कहना है कि हर एक एकड़ में 10 से 15 लाख झींगुर हो गए हैं. लाल आंखों वाले से काले जीव करोड़ों की संख्या में हर जगह मौजूद हैं.
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ब्रूड एक्स
ब्रूड एक्स नस्ल के ये झींगुर 17 साल तक भूमिगत रहने के बाद अमेरिका के कम से कम 15 राज्यों में निकल आए हैं. इंडियाना से लेकर जॉर्जिया तक और न्यूयॉर्क से लेकर टेनेसी और नॉर्थ कैरोलाइना तक.
तस्वीर: Amira Karaoud/REUTERS
झींगुरों की चादरें
कई जगह तो लोगों के आंगनों में झींगुर की चादरें बिछ गई हैं और इनका शोर किसी घास काटने वाली मशीन से भी ज्यादा होता है.
तस्वीर: Joseph Ax/REUTERS
मरने से पहले
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एक अद्भुत घटना है. 17 साल जमीन के नीचे एकांतवास में बिताकर ये जीव बच्चे पैदा करने और फिर मर जाने के लिए बाहर निकलते हैं.
तस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS
रात भाती है
आमतौर पर ये झींगुर दिन ढल जाने के बाद निकलते हैं. फिर से पेड़ों पर चढ़ने की कोशिश करते हैं. इस दौरान ये अपनी पुरानी त्वचा को उतार देते हैं.
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छोटा सा जीवन
वैज्ञानिक बताते हैं कि जमीन पर आने के बाद ये झींगुर बच्चे भी पैदा करते हैं. लेकिन इनका जीवन बहुत लंबा नहीं होता क्योंकि अक्सर वे पक्षियों, चींटियों, बिल्लियों या कुत्तों का शिकार बन जाते हैं.
तस्वीर: AP
डरना जरूरी नहीं है
लेकिन इनकी मौजूदगी डरावनी भी है. अमेरिका में तो इस डर से परेशान लोगों ने मनोवैज्ञानिकों तक के दरवाजे खटखटा दिए हैं.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images/AFP
अच्छी खबर है
लेकिन वैज्ञानिक इस घटना से खुश हैं. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और बड़ी संख्या में जीव प्रजातियों के खत्म होने के बावजूद इन झींगुरों का जमीन से निकल आना दिखाता है कि कुदरत में कुछ तो ठीक चल रहा है.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images/AFP
सिर्फ अमेरिका में
दुनिया में अमेरिका ही ऐसी जगह है जहां ये झींगुर 13 से 17 साल तक जमीन के नीचे रहकर फिर बाहर निकल आते हैं. 1950 से पहले ये मई के आखिरी हफ्ते से निकलना शुरू करते थे. इस साल ये मई के पहले हफ्ते में ही नजर आ गए थे.
तस्वीर: Carlos Barria/REUTERS
बुरे नहीं हैं झींगुर
ये जीव फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते और अक्सर युवा पेड़ों के पत्तों को खाते हैं. कुछ वैज्ञानिकों कहते हैं कि जिस साल झींगुर निकलते हैं, उसके अगले साल पेड़ों पर ज्यादा फल आते हैं.
तस्वीर: Chip Somodevilla/Getty Images/AFP
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मोन्स्मा कहते हैं, "पहला मामला हमें अप्रैल में दिखा था. जून की शुरुआत में, हमने पक्षियों को एक पशु केंद्र में भेजना शुरू किया, जहां हमारी बतायी संख्या सुनकर सबके कान खड़े हो गए. अब, हमारे पास 200 से कम संक्रमित पक्षी हैं.”
नहीं हो पाई बीमारी की पहचान
पशु केंद्रों में पक्षियों की मौत या बीमारी के संभावित कारणों की छानबीन जारी है. लेकिन अभी तक हुए टेस्ट बेनतीजा रहे हैं. वाइल्डलाइफ की क्लिनिक डायरेक्टर चेरिल चूलजियान के परीक्षणों का हवाला देते हुए मोन्स्मा कहते हैं, "ये वेस्ट नाइल की बीमारी नहीं है. बाकी ज्ञात बीमारियों में से भी ये कोई नहीं है. आज की तारीख में हमें कुछ नहीं पता है.”
अमेरिका का भूगर्भीय सर्वे संस्थान (यूएसजीएस) भी अज्ञात महामारी को लेकर चकरा गया है. विभाग की प्रवक्ता मारिसा लुबेक कहती हैं, "इस मोड़ पर यूएसजीएस के पास, इंटरएजेंसी बयान के अलावा कोई अपडेट नहीं है.”
बीमारी को लेकर हैं कई सिद्धांत
विशेषज्ञों के पास अपनी अपनी थ्योरियां हैं. उनमें से एक थ्योरी बीमारी को ब्रूड-एक्स सिकाडा यानी झींगुर की मौजूदगी से जोड़ती है. ये झींगुर अप्रैल के आखिर से मई के शुरू में प्रकट होते हैं- ये वही समय था जब लोगों ने मरे हुए पक्षी देखने शुरू किए थे. पक्षी विशेषज्ञों के मुताबिक यह भले ही एक थ्योरी है, लेकिन इस पर काम किया जा सकता है. निरंतर रिसर्च जरूरी है क्योंकि दूसरा बर्ड फ्लू, लोगों के लिए भी बहुत खतरनाक साबित हो सकता है.
तस्वीरों मेंः इन्सानों से छह गुना ज्यादा हैं परिंदे
इंसानों से छह गुना ज्यादा पक्षी रहते हैं पृथ्वी पर
ऑस्ट्रेलिया के कुछ वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए ताजा अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर करीब 50 अरब पक्षी रहते हैं. यह इंसानी आबादी से छह गुना ज्यादा बड़ी संख्या है. क्या पृथ्वी पर इंसानों से ज्यादा पशु-पक्षियों का हक नहीं बनता?
तस्वीर: R. Mueller/blickwinkel/McPHOTO/picture alliance
50 अरब पक्षी
प्रोसीडिंग्स ऑफ द यूएस नैशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में छपे एक अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर करीब 50 अरब पक्षी रहते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि पूरी दुनिया में चिड़ियों की 9,700 प्रजातियों के होने के बारे में जानकारी है. ये सभी मौजूदा प्रजातियों का 92 प्रतिशत है.
तस्वीर: Jeff J Mitchell/Getty Images
ऑनलाइन डेटाबेस में एक अरब पक्षी
ईबर्ड नाम के पक्षियों के ऑनलाइन डेटाबेस में लगभग एक अरब चिड़ियों के बारे में जानकारी है. वैज्ञानिक इनके साथ अलग अलग प्रजातियों पर हुए वैज्ञानिक सर्वेक्षणों को मिला कर 50 अरब की संख्या पर पहुंचे. यह पृथ्वी पर इंसानों की कुल आबादी से छह गुना ज्यादा है.
तस्वीर: picture-alliance
आम प्रजातियां कम, दुर्लभ ज्यादा
अध्ययन करने वाली टीम का नेतृत्व न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के विलियम कॉर्नवेल ने किया था. पूरे अध्ययन के बाद टीम इस नतीजे पर पहुंची कि दुनिया में तुलनात्मक रूप से पक्षियों की आम प्रजातियां कम हैं और दुर्लभ ज्यादा.
तस्वीर: Pandeli Pani/DW
किन पंछियों की है सबसे ज्यादा आबादी
सबसे ज्यादा संख्या में पाए जाने वाले पंछियों में शामिल है गौरैया (1.6 अरब), यूरोपीय मैना (1.3 अरब), रिंग-बिल्ड गल (1.2 अरब) और बार्न स्वालो (1.1 अरब).
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AFP/A. Estrella
कौन से हैं सबसे दुर्लभ पक्षी
सबसे कम पाए जाने वाले पक्षियों में शामिल हैं न्यू जीलैंड की कीवी (3,000) और मैडागास्कर में पाई जाने वाली चिड़िया मेसाइट (1,54,000).
तस्वीर: Imago/Nature Picture Library
और अध्ययन जरूरी
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सभी पक्षी आबादी के इस आकार तक क्यों और कैसे पहुंचे यह पता लगाना भविष्य में प्रजातियों के विकास, पर्यावरण और संरक्षण अध्ययन के लिए बेहद जरूरी है. (डीपीए)
तस्वीर: R. Mueller/blickwinkel/McPHOTO/picture alliance
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मोन्स्मा कहते हैं कि "हम अपनी पक्षी आबादी खतरनाक तेजी से गंवाते जा रहे हैं.” गायब होती चिड़ियों में फ्लेजलिंग यूरोपियन स्टारलिंग, ब्लूजे और दूसरी चिड़ियां शामिल हैं. वह कहते हैं, "अमेरिका में हर तीसरी चिड़िया प्रजाति तेजी से घट रही है. बीमारी दूसरी प्रजातियों में फैल रही है. और इसके इंसानों में फैलने की आशंका से भी हम इंकार नहीं कर सकते हैं.” उनके मुताबिक ऐतिहासिक रूप से और मौजूदा समय में "जब आप पशुओं में बीमारी को भड़कता देखते हैं, तो ये चिंता की बात है. इसे आप कतई खारिज नहीं करना चाहेंगे.”
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चिड़िया को दाना मत दो
इन परिंदों के स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ उम्मीद भी है- सिटी वाइल्डलाइफ के पास आने वाले बीमार पक्षियों की संख्या पिछले दो सप्ताह में नीचे आई है. मोन्स्मा कहते हैं कि विभिन्न प्रजातियों में बीमारी का फैलाव खत्म करने के लिए, सिटी वाइल्डलाइफ ने वॉशिंगटन प्रशासन, मैरीलैंड और वर्जीनिया को सावधानी बरतने और बर्ड फीडर या बर्ड बाथ हटाने को कहा है. कुछ निवासियों ने तो चिड़िया को खाना खिलाने वाले फीडर पहले ही हटा लिए हैं. कुछ लोगों ने अलग रास्ता लिया है और नियमित आने वाले पक्षियों को डराने के लिए फीडर में चिड़िया के कंकाल लटका दिए हैं.
जियोलॉजिकल सर्वे की सलाह है कि महामारी खत्म होने तक चिड़िया को खाना न खिलाएं. अगर कोई फीडर या बर्ड बाथ रखता भी है तो उन्हें 10 प्रतिशत ब्लीच सॉल्युशन से साफ करने की जरूरत है. पालतु जानवरों को बीमारा या मरी हुई चिड़िया से अलग रखना चाहिए. संक्रमण की दर भले ही कम हो रही है, लेकिन बीमारी से फिलहाल निजात नहीं मिलती दिखती. जानकारों के मुताबिक, इससे पहले कि देर हो जाए, बीमारी पर काबू पाने के लिए जनता को भी अपने एहतियाती उपाय जारी रखने होंगे.
रिपोर्टः नेट स्वैनसन
देखेंः कौन से पक्षी निभाते हैं जीवनभर साथ
कौन कौन से पक्षी जीवन-साथी के साथ रिश्ता निभाते हैं?
पक्षियों के बीच अपने जीवन-साथी को लेकर अलग अलग आचरण देखे जाते हैं. कुछ पक्षी जीवन भर एक ही पार्टनर का साथ निभाते हैं तो कुछ आसानी से नए रिश्ते बना लेते हैं.
करीब 90 फीसदी पक्षियों को मोनोगैमस यानी एक पार्टनर के प्रति वफादार माना जाता है. लेकिन ब्लूटिट पक्षियों का मामला थोड़ा पेंचीदा है. मादा भोर में ही अपने नर पार्टनर को घोंसले में छोड़ कर निकल जाती है और पड़ोस के किसी ऐसे नर के साथ संबंध बनाती है जो सुबह जल्दी उठ चुका हो.
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सभी एक से नहीं होते
इस बारे में जानकारी नहीं है कि गालापागोस पेंग्विन अपने साथी के प्रति कितने वफादार होते हैं, लेकिन रॉकहॉपर पेंग्विन को मोनोगैमस माना जाता है. अपने पार्टनर से हजारों मील दूर हो कर भी वे अपने पार्टनर से ही मिलने का इंतजार करते हैं.
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मरते दम तक साथ?
स्वान या हंस अपने साथी का जीवन भर साथ निभाते हैं. दोनों मिलकर अपना घोंसला बनाते हैं. नर घोंसले की बहादुरी से रक्षा करता है और मादा सावधानी से अंडों की देखभाल. लेकिन प्रेम और वफादारी का प्रतीक माने जाने वाले हंस अक्सर इस एक रिश्ते के बाहर भी कई संबंध रखते हैं.
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झुंड में बेवफाई
ज्यादातर तोते सुरक्षित रहने के लिए बड़े झुंडों में रहते हैं. झुंड के अंदर ही तोते जीवनपर्यंत चलने वाले मोनोगैमस संबंध स्थापित करते हैं. लेकिन इसी झुंड के भीतर किसी के साथ एक अफेयर चल जाना भी आम बात है.
तस्वीर: Fotolia/H.Lange
सारस करते हैं इंतजार
नर सारस कई सालों तक नियमित रूप से अपनी पारंपरिक नेस्टिंग की जगह पर पहुंच जाते हैं. वहां मादाओं से कई दिन पहले पहुंचने के कारण वे ही घोंसले को तैयार करने का काम करते हैं. इधर घोंसला तैयार हुआ कि उधर मादा पहुंची. चूंकि सारस बड़े झुंड में नहीं रहते इसलिए अफेयर की संभावना भी काफी कम होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Rössler
ब्रीडिंग है साझा जिम्मेदारी
हंस बत्तख कुल का पक्षी है और सभी बत्तखों को आमतौर पर मोनोगैमस माना जाता है. लेकिन इस कुल के कई ऐसे पक्षी हैं जो हंस की तरह मिलकर घोंसला नहीं बनाते, यह केवल मादा का काम होता है. जब मादा बच्चे देती है तो नर भी उनकी देखभाल करता है, भले ही वे उसके बच्चे ना हों.