गुजरात में मतदान के बाद बीजेपी ने अब पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित किया है. वहां तीन राज्यों त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
विज्ञापन
तीनों राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले सांगठनिक ताकत का जायजा लेने के लिए अब संघ और बीजेपी के नेता इलाके के दौरे पर हैं. संघ प्रमुख मोहन भागवत जहां त्रिपुरा के पांच दिन के दौरे पर हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को मिजोरम और मेघालय का दौरा किया. मोदी ने इन दोनों राज्यों में जनसभाओं को संबोधित किया. मेघालय में तो उनकी जनसभा के जरिए ही बीजेपी के चुनाव अभियान की शुरुआत हो गई. इलाके के तीन राज्यों त्रिपुरा, नानालैंड और मेघालय में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि मिजोरम विधानसभा चुनाव नवंबर में होंगे.
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों-असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में पहले से ही बीजेपी सत्ता में है. अब वह बाकी राज्यों में भी सत्ता पर काबिज होकर विपक्षी राजनीतिक दलों का सूपड़ा साफ करना चाहती है. फिलहाल उसका सबसे ज्यादा ध्यान लेफ्ट फ्रंट के शासन वाले त्रिपुरा पर है. वहां बीते 25 साल से मानिक सरकार की अगुवाई में लेफ्ट फ्रंट सत्ता में है. बीजेपी ने वहां लेफ्ट के कथित आतंक, कानून और व्यवस्था की स्थिति और विकास को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है. शनिवार को मोदी के पूर्वोत्तर दौरे के मौके पर तमाम अखबारों में छपे पूरे पेज के विज्ञापन में सरकार ने इलाके में जारी विकास योजनाओं का ब्योरा देते हुए अपनी उपलब्धियां गिनाई हैं.
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Kumar
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
तस्वीर: Imago/Zumapress
त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
तस्वीर: Reuters/J. Dey
मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. K. Singh
बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
तस्वीर: AP
गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/M. Sharma
गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
तस्वीर: Reuters
असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa
नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
तस्वीर: IANS
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
तस्वीर: DW/Zeljka Telisman
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
तस्वीर: IANS
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.
तस्वीर: DW/A. Anil Chatterjee
18 तस्वीरें1 | 18
त्रिपुरा के बीजेपी अध्यक्ष बिप्लब कुमार देब कहते हैं, "प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत 3.33 लाख महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराए गए हैं. एक परिवार में औसतन चार सदस्यों का हिसाब रखें तो राज्य के 25 लाख में से आधे वोटरों को इसका लाभ मिला है." उनका दावा है कि राज्य के लोग बीजेपी के पक्ष में हैं और अगले चुनाव के बाद उनकी पार्टी ही राज्य में सरकार बनाएगी.
बीजेपी नेताओं का दावा है कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामलों में काफी तेजी आई है और यहां बेरोजगारी की दर देश में सबसे ज्यादा (20 फीसदी) है. देब दावा करते हैं कि राज्य की 67 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है. बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी. लेकिन बाद में तृणमूल कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों के पार्टी में शामिल होने की वजह से वह प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई है.
पार्टी अब की मघालय में भी सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है. शनिवार को प्रधानमंत्री के दौरे के मौके पर कांग्रेस के कुछ विधायक पार्टी में शामिल हो गए. हालांकि बीते दिनों बीफ बैन के मुद्दे पर बीजेपी को इस ईसाई-बहुल राज्य में भारी विरोध का सामना करना पड़ा था. राज्य के दो नेताओं ने इस मुद्दे पर इस्तीफा भी दे दिया था. लेकिन स्थानीय बीजेपी नेताओं का दावा है कि यह स्थिति विपक्ष के कुप्रचार के चलते पैदा हुई थी और अब इस विवाद को सुलझा लिया गया है.
यहां महिलाओं की चलती है
लड़कियों के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार की खबरों के बीच भारत में गिने चुने राज्य ऐसे हैं जहां पुरुष ज्यादा हक की मांग कर रहे हैं. केरल की तरह मेघालय के खासी लोगों में भी मातृसत्तात्मक परंपरा है.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
जरा हट के
बादलों के घर, मेघालय में रहने वाले खासी मातृसत्तात्मक परंपरा में रहते हैं. राज्य के सबसे बड़े खासी समुदाय में नाम और संपत्ति मां से बेटी के नाम की जाती हैं.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
मां जैसी ही
खासी परिवार में सबसे छोटी बेटी को विरासत का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलता है और उसी को माता पिता, अविवाहित भाई बहनों और संपत्ति की देखभाल की करनी पड़ती है. छोटी बेटी को खातडुह कहा जाता है, वह एक ऐसी व्यक्ति बन जाती है जिसका घर परिवार के हर सदस्य के लिए खुला है.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
धंधे पर नजर
1997 में खासी सोशल कस्टम ऑफ लिनियेज एक्ट पास किया गया था. इससे मातृसत्तात्मक संरचना का संरक्षण होता है. मेघालय में स्थानीय बाजार महिलाएं ही चलाती हैं और आर्थिक लेन देन भी वही संभालती हैं.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
युद्ध के बाद
कुछ लोग बताते हैं मातृसत्तात्मक परंपरा तब शुरू हुई जब खासी पुरुष युद्ध पर गए और पीछे महिलाओं को छोड़ गए. वहीं दूसरों का कहना है कि ये परंपरा इसलिए शुरू हुई कि खासी महिलाओं के कई जीवनसाथी होते हैं. ऐसे में सवाल पैदा होता है, बच्चे का पिता कौन...
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
पुरुषों की मुक्ति
आज खासी पुरुष खेलों में काम करते हैं और घर का कामकाज संभालते हैं. हाल के दिनों में कुछ लोग मातृसत्तात्मकता का विरोध कर रहे हैं. सिंगखोंग रिम्पेई थिमेई (एसआरटी) मेन्स लिबरेशन ग्रुप है. ये 1990 में बनाया गया. समाज से निष्कासन के डर से इस ग्रुप के सदस्य पहचान नहीं दिखाना चाहते.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
नाम में क्या रखा है?
खासी बच्चों को मां के परिवार का नाम मिलता है. इससे महिला और बच्चा दोनों को समाज में स्थान मिलता है. भले ही महिला फिर से शादी करे या फिर बिना शादी के उसका बच्चा हो.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
कन्या प्रधान!
जहां भारत में लड़कों के पीछे परिवार भागते हैं वहीं एसआरटी का कहना है कि लड़कों के पैदा होने पर यहां खुशी नहीं मनाई जाती. अक्सर पुरुष हताश हो कर आलसी हो जाते हैं या शराब और नशे के आदी हो जाते हैं.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
कौन ताकतवर
भले ही समाज और परिवार में महिलाओं की स्थिति मजबूत हो, राजनीति में अभी तक वे नहीं पहुंच पाई हैं. गांव के मुखिया अभी भी पुरुष ही होते हैं. 60 सदस्यों वाली विधानसभा में चार ही महिला विधायक हैं.
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das
8 तस्वीरें1 | 8
नेताओं के दौरे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां शनिवार को मिजोरम और मेघालय का दौरा किया. मोदी ने मिजोरम के कोलासिब जिले में 60 मेगावाट क्षमता वाली एक पनबजिली परियोजना का उद्घाटन करने के बाद एक जनसभा को भी संबोधित किया. उन्होंने इलाके में विकास के प्रति केंद्र के संकल्प को दोहराते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष जीवी लूना कहते हैं, "प्रधानमंत्री के दौरे से पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है. इससे अगले साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी का मनोबल काफी बढ़ेगा."
आइजल से शिलांग पहुंचे मोदी ने प्रदेश बीजेपी के नए मुख्यालय भवन के उद्घाटन के बाद पोलो ग्राउंड में एक रैली को संबोधित किया. उस रैली से ही राज्य में बीजेपी के चुनाव अभियान की औपचारिक शुरुआत हो गई. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष शिबुन लिंग्दोह कहते हैं, "मोदी जी के दौरे को लेकर कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है. इससे हमारी चुनावी तैयारियों को बढ़ावा मिलेगा."
दूसरी ओर, त्रिपुरा में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी और संघ के पैरों तले की जमीन मजबूत करने और जीत की रणनीति तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत पांच दिनों के त्रिपुरा दौरे पर शुक्रवार को अगरतला पहुंचे. यहां संगठन के पदाधिकारियों के साथ अलग-अलग बैठकों में संगठन के कामकाज की समीक्षा करने और जमीनी हकीकत का जायजा लेने के अलावा व रविवार को एक रैली को भी संबोधित करेंगे. हालांकि संघ ने इसे एक रूटीन दौरा बताते हुए कहा है कि इसका विधानसभा चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है.
खूबसूरत नहीं, बदसूरत दिखना चाहती हैं ये महिलाएं
पूर्वोत्तर भारत में आज भी कई कबीले रहते हैं. उनकी पहचान और संस्कृति एक दूसरे से काफी अलग है. अरुणाचल प्रदेश की अपातानी कबीले की महिलाएं तो दूर से ही पहचान में आ जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Str
सुंदरता छुपाओ
अपातानी कबीले की महिलाएं नाक में जेवर के बजाए लकड़ी की एक मोटी बाली जैसी पहनती हैं. आमतौर पर आभूषण सुंदरता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होते हैं, लेकिन अपातानी समुदाय की महिलाएं सुंदरता को छुपाने के लिए ऐसा करती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Str
अपहरण का डर
किस्से कहानियों के मुताबिक अपातानी कबीले की महिलाएं अपनी सुंदरता के लिए मशहूर थीं. पुराने समय में कई बार दूसरे समुदाय के पुरुष अपातानी महिलाओं का अपहरण भी करते थे. एक बुजुर्ग अपातानी महिला के मुताबिक अपहरण से बचने के लिए महिलाओं से नाक में लकड़ी पहनना शुरू किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Str
कुरूप दिखने की कोशिश
ऐसा कर महिलाओं ने खुद को कुरूप स्त्री के तौर पर दिखाने की कोशिश की. दोनों तरफ नाक छेदने के साथ साथ माथे पर एक लंबा काला टीका भी लगाया जाने लगा. ठुड्डी पर पांच लकीरें खीचीं जाने लगीं.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/M. Runke
पहचान
पंरपरा के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह रिवाज पहुंचा. इस रिवाज को अपनाने वाली महिलाओं को स्थानीय समाज में सम्मान मिलता था. लेकिन 1970 के दशक के बाद धीरे धीरे यह परंपरा खत्म होने लगी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Str
विश्व धरोहर
अरुणाचल प्रदेश के सबसे ऊंचे जिले में रहने वाला अपातानी कबीला कृषि के जबरदस्त तरीकों के लिए भी मशहूर है. बेहतरीन पर्यावरण संतुलन के चलते ही यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा भी दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Str
मछली पालन
ये मछली खेतों में छोड़ी जाती है. अपातानी घाटी में मछली पालन काफी प्रचलित है. यहां के लोग मछली, बांस, चीड़ और कृषि में संतुलन साध चुके हैं. जून और जुलाई में खेतों में छोड़ी जाने वाली ये मछलियां सितंबर व अक्टूबर में पकड़ी जाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Str
इतिहास बनती एक संस्कृति
आज ज्यादातर अपातानी महिलाएं नाक में बड़े छेद कर लकड़ी की बाली नहीं पहनती. ये परंपराएं अब सिर्फ कबीले के बुजुर्गों में दिखाई पड़ती हैं.
रिपोर्ट: एपी/ओएसजे
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/A. Owen
7 तस्वीरें1 | 7
संघ के प्रचारक मनोरंजन प्रधान बताते हैं, "सर-संघचालक भागवत संगठन के पदाधिकारियों के साथ बैठक में पूर्वोत्तर क्षेत्र में संगठन के कामकाज की समीक्षा करेंगे. कामकाज की सहूलियत के लिए सांगठनिक रूप से पूर्वोत्तर को चार प्रांतों में बांटा गया है. इनके नाम क्रमशः मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर असम व दक्षिण असम हैं."
कितना अहम पूर्वोत्तर
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी पूर्वोत्तर के सभी सात राज्यों में अपना परचम फहराना चाहती है. बीते साल असम चुनावों में भारी जीत और फिर मणिपुर में सरकार के गठन से उसके हौसले बुलंद हैं. अब वह दो महीने बाद होने वाले चुनावों में त्रिपुरा के अलावा मेघालय व नागालैंड में अपने बूते सरकार का गठन करना चाहती है. नागालैंड में वह साझा सरकार का हिस्सा है. अपने बूते सरकार गठन की चाह में ही वह तमाम राज्यों में अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रही है.
एक राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रंजीत देब बर्मन कहते हैं, "राजनीति की मुख्यधारा में भले इन राज्यों की कोई खास अहमियत नहीं हो. बावजूद इसके यहां जीत से बीजेपी को विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक बढ़त तो मिलेगी ही, बीजेपी-शासित राज्यों की गिनती में भी इजाफा होगा." ध्यान रहे कि तीनों राज्यों की विधानसभाओं में 60-60 सीटें ही हैं.