अमेरिका में अब अश्वेत ज्यादा संख्या में बंदूकें खरीद रहे हैं. अश्वेत महिलाएं भी बंदूक खरीद रही हैं. शूटिंग रेंज पर अब अश्वेत महिलाएं खूब नजर आने लगी हैं. क्यों?
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वैलरी रुपर्ट ने बांह ऊपर उठाई तो वह हल्की हल्की कांप रही थी. कांपती बाजू में बंदूक थामकर निशाना लगाना मुश्किल होता है. 67 साल की रुपर्ट, जो अब दादी बन चुकी हैं, सामने निशाने पर बनाए गए डकैत को ध्यान से देख रही थीं. उन्होंने एकाग्र होकर ट्रिगर दबा दिया. उनकी गोली की आवाज गूंजी लेकिन बाकी वैसी ही आवाजों के साथ.
बाद में रुपर्ट बोलीं, "शुरू में मैं थोड़ी नर्वस थी लेकिन दो-एक बार गोली चला लेने के बाद मुझे मजा आने लगा.”
हिंसा का असर
रुपर्ट उन करीब एक हजार अश्वेत महिलाओं में हैं, जो डेट्रॉयट में मुफ्त में दी जा रही बंदूक चलाने की ट्रेनिंग का हिस्सा हैं. बंदूक के समर्थक और उद्योग जगत के जानकारों के मुताबिक अश्वेत महिलाओं में अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक उठाने की इच्छा तेजी से बढ़ रही है.
इस चलन के पीछे है अपराधों से डर, खासकर ऐसे हिंसक अपराधों में जिनमें बंदूकों का इस्तेमाल होता है. लेकिन एक नई चीज भी हुई है जो महिलाओं को उत्साहित कर रही है. एक पुलिसकर्मी द्वारा मिनेपोलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद पिछले 15 महीने में अश्वेतों पर होने वाली हिंसा के खिलाफ गुस्से का सार्वजनिक प्रदर्शन बढ़ा है.
इसके अलावा कोविड संबंधी पाबंदियों और 2020 के राष्ट्रपति चुनावों को लेकर गुस्सा भी ज्यादा सार्वजनिक तौर पर नजर आया है. इस गुस्से का असर अलग-अलग तरह से देखा भी गया. जैसे कि मिशिगन में गवर्नर का अपहरण और वॉशिंगटन में बंदूकधारियों का कैपिटोल बिल्डिंग पर चढ़ जाना.
डर की तस्वीर
श्वेत पुरुषों के खतरनाक हथियार लिए कैपिटोल पर घूमते दिखने का वह दृश्य रुपर्ट जैसी महिलाओं के जहन पर अंकित हो गया है. रुपर्ट बताती हैं, "उन बंदूकों के साथ वे लोग कैपिटोल तक पहुंच गए. आपको तैयार रहना होगा.”
नेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फाउंडेशन के मुताबिक अमेरिका में 2020 में लगभग 85 लाख लोगों ने पहली बार बंदूक खरीदी. हथियार उद्योग के इस संगठन के मुताबिक अश्वेत पुरुषों और महिलाओं द्वारा हथियार खरीदने की संख्या में बीते साल के पिछले छह महीनों में 58 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.
देखिएः अश्वेतों की बस्ती का कायाकल्प
अश्वेत बस्ती सोवेतो का कायाकल्प
40 साल पहले रंगभेदी हिंसा के खिलाफ हुए सोवेतो विद्रोह का गढ़ रहा शहर आज दक्षिण अफ्रीका का एक जिंदादिल शहर है. रंगभेद खत्म होने के दो दशक बाद पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना बन चुका जोहानेसबर्ग का सोवेतो अपना इतिहास नहीं भूला.
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फुटबॉल और आजादी
दक्षिण अफ्रीकी फुटबॉल का दिल मानी जाने वाली 'सॉकर सिटी' अब एफएनबी स्टेडियम कहलाती है. पिछले स्टेडियम की जगह इसका निर्माण 2010 विश्व कप के लिए हुआ. लेकिन यह केवल खेल के लिए ही नहीं बल्कि इसलिए भी खास है क्योंकि 1990 में इसी जगह इकट्ठे होकर हजारों लोगों ने नेल्सन मंडेला की जेल से रिहाई के बाद उनका भाषण सुना था.
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हीरो का घर
नस्लवाद के खिलाफ जंग के मसीहा और दक्षिण अफ्रीका के महान अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला का घर सोवेतो में ही है. वे यहां अश्वेत कर्मचारियों के लिए बने सरकारी आवासों में रहे. ये मैचबॉक्स घर कहलाते थे क्योंकि यह बहुत छोटे और एक जैसे डिजायन के होते थे. अपनी आत्मकथा में मंडेला ने इस घर का भी बड़े प्यार से जिक्र किया है.
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स्कूलों से सड़कों तक
सोवेतो के विद्रोह की जड़ें शहर के क्लासरूम में हैं. सन 1976 में जब सरकार ने स्कूलों में अफ्रीकान्स भाषा को लागू करने का आदेश दिया, उस समय अश्वेत समुदाय का शायद ही कोई व्यक्ति यह भाषा बोल सकता था. अश्वेत समुदाय ने इसे अत्याचारियों की भाषा माना और स्कूली छात्र इस आदेश के विरोध में सड़कों पर उतर आए. यह विरोध पूरी बंटू शिक्षा प्रणाली के खिलाफ था, जिससे स्कूलों में रंगभेद को बढ़ावा मिलता था.
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मेगा मॉल
सोवेतो का मापोन्या मॉल दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा शॉपिंग सेंटर है. इसका उद्घाटन खुद मंडेला ने 2007 में किया. इस महंगे मॉल को कमाई के एक जरिए और नई नौकरियां पैदा करने के मकसद से शुरु किया गया. लेकिन इसके कारण बंद होने की कगार पर आ पहुंचे छोटी दुकानों और व्यवसायों को लेकर काफी विवाद भी हुआ. इसे बनाने वाले रिचर्ड मापोन्या दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत करोड़पति थे. वे अभी भी सोवेतो में ही रहते हैं.
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गुस्से का सामना हिंसा से
हजारों अश्वेत छात्र जब सोवेतो की सड़कों पर मार्च करने उतरे तो उन्होंने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन की नींव रखी. प्रदर्शनकारियों को हटाने की कोशिशें नाकाम रहने पर पुलिस ने उन पर गोलियां बरसा दीं. 16 जून 1976 को हुई इस गोलीबारी में 176 युवाओं की जान चली गई और यहां से विरोध प्रदर्शनों और हिंसा की लहर पूरे देश में फैल गई.
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पावर स्टेशन का ग्लैमर
ऑरलैंडो टॉवर्स मूल रूप से एक कोयले से बिजली बनाने वाले प्लांट का हिस्सा था. रंगील म्यूरल कला से सजा कर इसे अब नया रूप दे दिया गया है. पावर स्टेशन का निर्माण 1930 के दशक में हुआ और यहां से श्वेत लोगों की बस्तियों और जोहानेसबर्ग के शहरी इलाके में बिजली जाती थी. अश्वेत दक्षिण अफ्रीकी दक्षिण-पश्चिम की बस्तियों में रहते और खनन उद्योग में लगे थे.
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संस्कृति और रंग
सोवेतो का पहला थिएटर 2012 में खुला. बेहद खास वास्तुकला वाले इस थिएटर के विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम शहर के बदलते रूप के गवाह बने. रंगबिरंगे टाइलों से सजी फर्श वाली इस इमारत में तीन सभागार हैं. इन तीनों की डिजायन शहर के निवासियों की विविधता का प्रतिबिंब दिखाती हैं. इसका आधे से अधिक निर्माण कार्य जनता के पैसों से ही हुआ है.
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छाप छोड़ने वाली तस्वीर
1976 के विद्रोह की बलि चढ़े कुछ सबसे पहले लोगों में एक 13 साल का लड़का भी था. हेक्टर पीटरसन को पुलिस की गोली लगी थी. उसकी लाश उठाए एक स्थानीय पुरुष और उसकी बहन की यह तस्वीर दुनिया भर के अखबारों में छपी. इस तस्वीर ने ना केवल रंगभेदी शासन की क्रूरता और अन्याय की ओर विश्व का ध्यान खींचा बल्कि आज भी पीटरसन की हत्या की जगह पर स्मारक बना हुआ है.
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दक्षिण अफ्रीका की सबसे मशहूर सड़क
मशहूर इसलिए कि दुनिया की एकलौती सड़क है जिस पर दो नोबेल पुरस्कार विजेता रहते थे. नेल्सन मंडेला और आर्चबिशप डेसमंड टूटू दोनों ने किसी समय सोवेतो की इस विलाकाजी सड़क पर अपना आवास बनाया. एक सरकारी प्रोजेक्ट के तहत विकसित की गई सड़क आज की तारीख में दक्षिण अफ्रीका का टॉप टूरिस्ट आकर्षण है. दक्षिण अफ्रीका आने वाले 80 फीसदी पर्यटक यानि सालाना करीब 7 लाख लोग यहां जरूर पहुंचते हैं.
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जारी है संघर्ष
तमाम निवेश प्रोजेक्टों से इस शहर का कायाकल्प हो चुका है. इसके बावजूद आज भी गरीबी और लचर शिक्षा व्यवस्था के कारण सोवेतो के सामने विकास की राह में बड़ी मुश्किलें हैं. कई लोग बताते हैं कि विद्रोह के 40 साल बीत जाने के बाद भी बराबरी के लिए संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है.
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ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रोफेसर और जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर फॉर गन वायलेंस प्रिवेंशन ऐंड पॉलिसी के निदेशक डेनियल वेबस्टर कहते हैं कि लोग ज्यादा बंदूकें तब खरीदते हैं जब सरकार और पुलिस पर उनका भरोसा कम हो जाता है.
प्रोफेसर वेबस्टर कहते हैं, "हमने श्वेत राष्ट्रवादियों की हिंसा में ऐसी ही वृद्धि देखी है. पुलिस में भरोसे की कमी और नफरत फैलाने वाले संगठनों के कारण बहुत सारे अश्वेत लोग हथियार खरीद रहे हैं.”
अब भी कम हैं अश्वेत बंदूकधारी
वैसे, अमेरिका में हथियार रखने वाले लोगों में अश्वेतों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है. कनेक्टिकट स्थित नेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फाउंडेशन के मुताबिक देश में जितने लोगों के पास बंदूकें हैं, उनमें से 56 प्रतिशत श्वेत पुरुष हैं. अश्वेत पुरुषों की संख्या 9.3 प्रतिशत है जबकि अश्वेत महिलाओं की संख्या 5.4 प्रतिशत. बंदूक रखने वालों में 16 प्रतिशत श्वेत महिलाएं हैं. फाउंडेशन की पब्लिक अफेयर्स डाइरेक्टर मार्क ओलिविया के अनुसार 2020 में अश्वेतों द्वारा बंदूकें खरीदने के चलन में बड़ा बदलाव आया है.
तस्वीरों मेंः रंगभेद का दुनियाभर में विरोध
रंगभेद के खिलाफ दुनिया भर में प्रदर्शन
अमेरिका के मिनियापोलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत से पूरी दुनिया आंदोलित है. वीकएंड में सभी महादेशों में लाखों लोगों ने नस्लवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया है. भारत में भी सेलेब्रिटी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का समर्थन कर रहे हैं.
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पेरिस: भेदभाव का विरोध
कुछ दिन पहले फ्रांस की राजधानी में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को आंसू गैस का इस्तेमाल कर तितर बितर कर दिया था. शनिवार को भी आइफेल टॉवर और अमेरिकी दूतावास के सामने प्रदर्शनों की इजाजत नहीं दी गई थी. फिर भी दसियों हजार लोगों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया. पेरिस के बाहरी इलाकों में रहने वाले काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस हिंसा आम है.
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लिएज: प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बेल्जियम का भी औपनिवेशिक शोषण और लोगों को गुलाम बनाने का इतिहास रहा है. आज का डेमोक्रैटिक रिपब्लिक कॉन्गो कभी किंग लियोपोल्ड द्वितीय की निजी संपत्ति हुआ करता था. उनके नाम पर वहां नस्लवादी शासन चलता था. ब्रसेल्स, अंटवैर्पेन और लिएज शहरों में कोरोना के प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन हुए.
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म्यूनिख: रंग बिरंगा बवेरिया
जर्मनी के बड़े प्रदर्शनों में से एक दक्षिणी प्रांत बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में हुआ. यहां करीब 30,000 लोग नस्लवाद का विरोध करने सड़कों पर उतरे. इसके अलावा कोलोन, फ्रैंकफर्ट और हैम्बर्ग में भी प्रदर्शन हुए. राजधानी बर्लिन में प्रदर्शन के लिए जाते लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने कुछ समय के लिए सिटी सेंटर में स्थित अलेक्जांडरप्लात्स का रास्ता रोक दिया था.
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वियना: 50,000 लोगों का विरोध प्रदर्शन
ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में शुक्रवार को ही 50,000 लोगों ने प्रदर्शन किया. ये देश में पिछले सालों में हुए बड़े प्रदर्शनों में एक रहा. स्थानीय पुलिसकर्मी भी प्रदर्शन के समर्थन में दिखे. रिपोर्टरों के अनुसार पुलिस की एक गाड़ी पर भी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का नारा लिखा दिखा.
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सोफिया: सैकड़ों नस्लवाद विरोधी
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बुल्गारिया में भी दस लोगों से ज्यादा के साथ प्रदर्शन की अनुमति नहीं है. फिर भी नस्लवाद का विरोध करने राजधानी सोफिया में सैकड़ों लोग पहुंचे. वे जॉर्ज फ्लयॉड के कहे कथित तौर पर अंतिम शब्द "आई कांट ब्रीद" के नारे लगा रहे थे. प्रदर्शनकारियों ने साथ बुल्गारियाई समाज में व्याप्त नस्लवाद की ओर भी ध्यान दिलाया.
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तूरीन: कोरोना काल में विरोध
इस महिला ने अपना नारा कोरोना काल में जरूरी किए गए मास्क के ऊपर लिख रखा है, "काली जिंदगियां इटली में भी कीमती हैं." रोम और मिलान में हुए प्रदर्शनों में कोरोना महामारी की वजह से हुई तालाबंदी के बाद पहली बार लोग इतनी बड़ी तादाद में एक साथ इकट्ठा हुए. यूरोपीय संघ में सबसे ज्यादा अफ्रीकी आप्रवासी इटली में रहते हैं.
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लिस्बन: बिना अनुमति के रैली
पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में निकाले गए मार्च में इस प्रदर्शनकारी ने अपनी तख्ती पर लिख रखा है, "अब कार्रवाई करो." हालांकि विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई थी, लेकिन पुलिस ने रैली को नहीं रोका. पुर्तगाल में भी काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस बर्बरता की घटना अक्सर होती रहती है. जनवरी 2019 में पुलिस ने नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियां चलाई थी.
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मेक्सिको सिटी: फ्लॉयड और लोपेस
मेक्सिको में सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का गुस्सा नहीं है बल्कि जोवानी लोपेस के साथ हुए बर्ताव पर भी है. राजमिस्त्री का काम करने वाले लोपेस को मई में पश्चिमी प्रांत खालिस्को में मास्क नहीं पहनने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था. कथित तौर पर पुलिस हिंसा के कारण उनकी मौत हो गई थी. कुछ समय एक वीडियो सामने आने के बाद मेक्सिको के लोगों में आक्रोश है.
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सिडनी: मूल निवासियों के खिलाफ नस्लवाद
सिडनी में प्रदर्शन की शुरुआत धुआं करने के परंपरागत महोत्सव के साथ हुई. यहां प्रदर्शन में शामिल होने वालों की एकजुटता सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड के साथ नहीं बल्कि देश के अबोरिजिन मूल निवासियों के साथ भी थी. वे भी पुलिस हिंसा के शिकार रहे हैं. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि उनमें से किसी की मौत पुलिस हिरासत में नहीं होनी चाहिए.
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प्रिटोरिया: मुक्का तान कर प्रदर्शन
हवा में तना हुआ मुक्का ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन का प्रतीक चिह्न है. लेकिन यह प्रतीक हाल के आंदोलन से कहीं पुराना है. जब दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी सरकार ने फरवरी 1990 में नस्लवाद विरोधी नेता नेल्सन मंडेला को 27 साल बाद जेल से रिहा किया था, तो वे हवा में मुक्का लहराते जेल से बाहर निकले थे. अभी भी दक्षिण अफ्रीका में गोरी आबादी बेहतर स्थिति में है. रिपोर्ट: डाविड एल
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और इसी का परिणाम है कि अब शूटिंग रेंज में अश्वेत महिलाएं दिखाई देने लगी हैं. लगभग दो दशक से निशानेबाजी कर रहीं श्वेत महिला बेथ अल्काजार कहती हैं कि शूटिंग रेज पर अश्वेत महिलाओं का होना एक दुर्लभ घटना है. अलाबामा में शूटिंग सिखाने वालीं अल्काजार कहती हैं, "सच कहूं तो, रेंज पर अश्वेत महिला की एक से ज्यादा तस्वीर मेरे जहन में नहीं उभरती. पिछले पांच साल में मेरी गतिविधि बढ़ी है और जब भी मैं रेंज पर जाती हूं, हर बार पहले से ज्यादा अश्वेत महिलाएं नजर आती हैं.”
डेट्रॉयट में शूटिंग इंस्ट्रक्टर लैवेट ऐडम्स कहती हैं कि अधिकतर अश्वेत महिलाओं के लिए बूंदक चलाना सीखना अपनी देखभाल करने से जुड़ा है. अश्वेत महिला ऐडम्स बताती हैं, "महिलाओं के खिलाफ अपराध कोई नई बात नहीं है. महिलाएं खुद की रक्षा कर रही हैं, यह नई बात है.”