‘मुश्किल बातचीत के लिए’ चीन दौरे पर अमेरिकी विदेश मंत्री
२५ अप्रैल २०२४
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने अपील की है कि चीन के साथ मतभेदों को ‘जिम्मेदाराना तरीके से’ सुलझाया जाना चाहिए.
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गुरुवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने चीन के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की. ब्लिंकेन के इस दौरे को बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि दोनों देशों के बीच हाल के महीनों में तनाव इस हद तक बढ़ गया है कि दोनों एक-दूसरे पर एक के बाद एक प्रतिबंध थोप रहे हैं.
चीन और अमेरिका के नेताओं और अधिकारियों के कई समूह दोनों देशों के बीच मतभेद सुलझाने के लिए अलग-अलग मुद्दों पर बात कर रहे हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही है ब्लिंकेन की यात्रा के दौरान सेनाओं के बीच संवाद से लेकर वैश्विक व्यापार तक कई मुद्दों पर बातचीत होगी और मतभेदों को दूर करने की दिशा में कुछ प्रगति होगी.
ब्लिंकेन ने चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी की शंघाई शाखा के महासचिव चेन जिनिंग से कहा, "सीधे संवाद की अहमियत को समझना जरूरी है, जो वास्तविक हो और उसके जरिए आगे बढ़ने की कोशिश हो.”
कारोबार के लिए सबसे बेहतर देश
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट बिजनेस एनवायरनमेंट रैंकिंग के मुताबिक सिंगापुर, डेनमार्क और अमेरिका कारोबार करने के लिए दुनिया में सबसे अच्छे देश हैं.
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सिंगापुर
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने कारोबार के लिहाज से दुनिया के सबसे बेहतर देशों की सूची जारी की है. इस सूची में सिंगापुर 8.56 अंक के साथ पहले पायदान पर है.
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डेनमार्क
इस सूची में यूरोपीय देश डेनमार्क दूसरे नंबर पर है. डेनमार्क को 8.41 अंक मिले हैं.
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अमेरिका
8.40 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर अमेरिका है. इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने कहा कि अमेरिका में बाजार के अवसर अनुकूल रहेंगे.
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जर्मनी
इस सूची में चौथे स्थान पर जर्मनी है और उसके बाद स्विट्जरलैंड है.
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भारत
भारत इस सूची में 51वें नंबर पर है. रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत एकमात्र ऐसा बाजार है जो चीन की तुलना में व्यापक बाजार की पेशकश करता है." रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की युवा आबादी और इसकी श्रम शक्ति भविष्य की मांग के लिए अच्छा संकेत है.
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कैसे होती है रैंकिंग
ईआईयू की रैंकिंग 82 देशों और क्षेत्रों में व्यापार करने के आकर्षण का आकलन करती है और इसे महंगाई, जीवनयापन की लागत, आर्थिक विकास और राजकोषीय नीतियों जैसे संकेतकों के आधार पर मापा जाता है.
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अनुवादकों के जरिए बात करते हुए चेन ने ब्लिंकेन से कहा कि हाल ही में दोनों देशों के नेताओं के बीच फोन पर हुई बातचीत ने "रिश्तों को स्थिर और स्वस्थ रूप से बढ़ने में मदद की है.”
चेन ने कहा, "हम सहयोग चुनते हैं या विवाद, इसका असर दोनों देशों पर, उसके लोगों पर और मानवता के भविष्य पर होगा.”
मुश्किल बातचीत
अपने दौरे के दौरान ब्लिंकेन चीनी उद्योगपतियों और छात्रों से भी मिल रहे हैं. शुक्रवार को वह बीजिंग जाएंगे जहां वह अपने समकक्ष वांग यी से मिलेंगे. राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी उनकी मुलाकात संभावित है. हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि तनाव की तीव्रता को देखते हुए ये मुलाकातें आसान नहीं होंगी.
जिस दिन ब्लिंकेन शंघाई पहुंचे हैं, उसी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सेनेट से पारित एक बिल पर दस्तखत किए हैं, जिसमें चीनी सैन्य शक्ति का मुकाबला करने के लिए आठ अरब डॉलर के अनुदान का प्रस्ताव है. इसके अलावा ताइवान को भी रक्षा सहायता के रूप में धन देने का प्रस्ताव है.
ये हैं दुनिया के सबसे खुशहाल देश
वर्ल्ड हैपीनेस रिपोर्ट के मुताबिक फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल देश है. अमेरिका और जर्मनी की जगह अब कुवैत जैसे देश इस लिस्ट में टॉप 20 में शामिल हो गए हैं.
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लगातार सातवें साल खुशहाल
दुनिया के सबसे खुशहाल देशों के बारे में बुधवार को जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक फिनलैंड के लोग दुनिया में सबसे ज्यादा खुश हैं. इस देश को लगातार सातवीं बार ये सम्मान मिला है.
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नॉर्डिक देशों का दबदबा
स्वीडन, डेनमार्क और आइसलैंड जैसे फिनलैंड के पड़ोसी नॉर्डिक देशों ने भी सूची में टॉप 10 में अपना स्थान बरकरार रखा है. यानी यहां के लोग भी खुशी के साथ जीवन बीता रहे हैं.
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फिनलैंड इतना खुश क्यों है?
हेलसिंकी विश्वविद्यालय में खुशी शोधकर्ता जेनिफर डी पाउला कहती हैं, "फिनलैंड में लोगों की प्रकृति से निकटता, हेल्दी वर्क लाइफ बैलेंस और स्वस्थ कार्य वातावरण उनकी खुशहाली में योगदान देते हैं."
तस्वीर: Visit Finland
दूसरों से कैसे अलग फिनलैंड
रिपोर्ट में उन फैक्टर्स को परखा जाता है जिन कारणों से वहां के लोग खुशहाल हैं. जैसे-प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, सामाजिक सुरक्षा, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, स्वतंत्रता, उदारता और कम भ्रष्टाचार.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित रिपोर्ट में पश्चिमी देशों में युवाओं के बीच बढ़ती निराशा का हवाला दिया गया, जिससे पहली बार अमेरिका और जर्मनी जैसे देश सूची में टॉप 20 देशों से बाहर हो गए.
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यहां भी खुशी कम नहीं
ताजा रिपोर्ट में कोस्टा रिका को 12वां और कुवैत को 13वां स्थान मिला है. वहीं पूर्वी यूरोपीय देशों सर्बिया, बुल्गारिया और लातविया की रैंकिंग में वृद्धि देखी गई है.
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सबसे नीचे अफगानिस्तान
अफगानिस्तान पर तालिबान की वापसी के बाद यह देश इस सूची में सबसे नीचे है.
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143 देशों की लिस्ट
वर्ल्ड हैपीनेस कंट्री रिपोर्ट में 143 देश शामिल किए गए हैं. दुनिया में सबसे खुशहाल देश जहां फिनलैंड है तो वहीं एशिया में सबसे खुशहाल देश सिंगापुर है.
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क्या है भारत की रैंकिंग
143 देशों की लिस्ट में भारत की रैंकिंग 126 है. पिछले साल भी भारत की यही रैंकिंग थी.
तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP/picture alliance
भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति
भारत के पड़ोसी देश इस रैंकिंग में कुछ इस तरह से हैं. चीन 60वें, नेपाल 93वें, पाकिस्तान 108वें, म्यांमार 118वें, श्रीलंका 128वें और बांग्लादेश 129वें स्थान पर है.
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साथ ही, इस बिल में टिकटॉक पर अमेरिका में प्रतिबंध का प्रस्ताव भी है. अमेरिका ने चेतावनी दी है कि अगर टिकटॉक की मालिक कंपनी चीन की बाइटडांस अगले नौ महीने के अंदर निवेश को अमेरिकी हाथों में नहीं सौंपती है तो उस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है.
रूस भी एक मुद्दा
अमेरिका इस कोशिश में है कि यूक्रेन के मुद्दे पर चीन रूस पर दबाव बनाए और उसकी सहायता तो बिल्कुल ना करे. ऐसी खबरें हैं कि ब्लिंकेन चीन पर दबाव बना सकते हैं कि उसकी कंपनियों रूस के रक्षा उद्योगों को सप्लाई ना दे.
रूस के यूक्रेन पर हमले से ठीक पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चीन का दौरा किया था और तब दोनों देशों ने कहा था कि उनकी दोस्ती की "कोई सीमा नहीं है.”
चीन ने रूस को हथियार सप्लाई नहीं किए हैं लेकिन अमेरिका का कहना है कि चीनी कंपनियां ऐसी तकनीक रूस को बेच रही हैं, जो युद्ध में उसकी मदद कर रही हैं. एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि चीनी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है क्योंकि ये कंपनियां अमेरिका और यूरोप की सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं.
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बहुत नाराजगी है
चीन के सरकारी अखबार चाइना डेली ने एक संपादकीय में कहा कि ब्लिंकेन और चीनी नेताओं के बीच क्या चर्चा होगी, इस पर एक बड़ा सवालिया निशान है और हाल के समय में दोनों पक्ष "आमतौर पर एक दूसरे से परोक्ष संवाद ही करते रहे हैं.”
अखबार ने लिखा, "पूरी दुनिया देख पा रही है कि यूक्रेन का मुद्दा चीन और अमेरिका के बीच का मुद्दा नहीं है और अमेरिका को उसे ऐसा बना देने से बचना चाहिए.”
चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक टिप्पणी में लिखा है, "बहुत सारी नाराजगी बची हुई जो वॉशिंगटन की बदले की मानसिकता और चीन को एक खतरा बताने के कारण पैदा हुई है.”