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चीन का मुकाबला करने को एक और कदमः पीबीपी

२० सितम्बर २०२२

हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए जो बाइडेन कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. उन्होंने कई संगठन और समूह खड़े कर दिए हैं जिनमें से पीबीपी एक है.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेनतस्वीर: Jim LoScalzo/ZUMA Wire/IMAGO

प्रशांत क्षेत्र में चीन और अमेरिका की प्रतिद्वन्द्विता लगातार बढ़ रही है. दोनों ही देश इस क्षेत्र के देशों को प्रभावित करने की कोशिश में जुटे हैं. इसी कोशिश के रूप में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन गुरुवार को ‘पार्टनर्स इन द ब्लू पैसिफिक' के नाम से एक आयोजन कर रहे हैं. व्हाइट हाउस के मुताबिक इस आयोजन का मकसद क्षेत्र के देशों को सहयोग में बेहतर सामंजस्य स्थापित करना है.

पार्टनर्स इन द ब्लू पैसिफिक (PBP) समूह की स्थापना इसी साल जून में हुई थी. इसमें अमेरिका के अलावा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और युनाइटेड किंग्डम आदि देश शामिल हैं. भारत इस समूह में पर्यवेक्षक के तौर पर हिस्सेदार है. अमेरिका के हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संयोजक कर्ट कैंबल ने कहा कि कुछ और देश इस समूह का हिस्सा बन सकते हैं.

कैंबल ने कहा कि प्रशांत क्षेत्र के हालात पहले से कहीं ज्यादा खराब हो चुके हैं. कोविड-19 महामारी और जलवायु परिवर्तन के खतरों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा, "उनकी रोजी रोटी खतरे में है. प्रशांत क्षेत्र में मदद जितनी समायोजित हो सकती है, उतनी है नहीं. हमने सबसे अच्छे तरीके नहीं सीखे हैं. आगे बढ़ने के साथ-साथ हम यह सीखना चाहते हैं. मौजूदा संस्थानों के साथ संवाद और संपर्क के जरिए.”

केंद्र में कूटनीति

कैंबल ने इस बात से इनकार नहीं किया कि प्रशांत क्षेत्र में बढ़ी सक्रियता का कूटनीतिक पहलू भी है. उन्होंने कहा, "बीते कुछ सालों में हमने देखा है कि महत्वाकांक्षी चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किस तरह सैन्य और अन्य क्षेत्रों में पांव पसार रहा है. इससे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे हमारे सहयोगियों में और अन्य कई देशों में भी चिंता बढ़ रही है.”

पीबीपी आयोजन संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से ठीक पहले न्यूयॉर्क में हो रहा है. महासभा की बैठक 28-29 सितंबर को होगी जिससे पहले प्रशांत क्षेत्र के नेता अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलेंगे. कैंबल ने कहा कि यह मुलाकात दिखाती है कि "प्रशांत क्षेत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता लगातार बढ़ रही है.”

उन्होंने कहा कि अमेरिका इलाके में किसी तरह की "इधर या उधर” की स्थिति पैदा नहीं करना चाहता. उन्होंने खासतौर पर सोलोमन आइलैंड्स के प्रधानमंत्री मनासे सोगावारे से बातचीत की भी बात कही. कैंबल ने कहा, "हम मदद के रूप में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं और यह पूरे प्रशांत क्षेत्र के लिए होगा जिसका फायदा सोलोमन आईलैंड्स को भी होगा.”

सोलोमन आईलैंड्स पर चीन का प्रभाव

सोलोमन आईलैंड्स के मौजूदा प्रधानमंत्री सोगावारे का चीन की ओर काफी झुकाव है. उनके प्रतिद्वन्द्वी उन पर ‘बीजिंग की जेब में रहने' का आरोप लगाते रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ऐसी आशंकाएं जता चुके हैं कि चीन सोलोमन आइलैंड्स में सैन्य अड्डा बना रहा है. हालांकि सोगावारे इन रिपोर्टों को खारिज करते हैं. पिछले साल लीक हुए एक दस्तावेज के मुताबिक दोनों देशों के बीच सुरक्षा समझौता हुआ था जिसके तहत चीनी नौसेनिक जहाजों को सोलोमन आईलैंड्स के बंदरगाहों में रुकने की अनुमति मिली है.

पिछले महीने से ही ऐसी आशंकाएं हैं कि चीन सोलोमन आइलैंड्स में मिलिट्री बेस बना रहा है. हालांकि दोनों देशों ने इन रिपोर्टों को खारिज किया है. लीक हुए एक दस्तावेज के मुताबिक दोनों देशों के बीच सुरक्षा समझौता हुआ है. इसके तहत सोलोमन आइलैंड्स चीनी नौसेना के जहाजों को अपने बंदरगाहों में रुकने की अनुमति दे चुका है. उन्हें डर है कि यह समझौता चीन का प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया के तट से सिर्फ 2,000 किलोमीटर दूर एक थल सैनिक अड्डा बनाने का रास्ता साफ कर सकता है.

उधर पिछले महीने अमेरिकी कोस्ट गार्ड के एक जहाज को ईंधन की जरूरत पड़ी तो अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक द्वीपीय देश की सरकार ने उनके द्वारा संपर्क किए जाने पर जवाब नहीं दिया.पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक अमेरिकी कोस्ट गार्ड के जहाज ऑलिवर हैनरी को रूटीन के तहत सोलोमन आइलैंड्स जाना था

यूएस कोस्ट गार्ड की जनसंपर्क अधिकारी क्रिस्टीन कैम के मुताबिक, "सोलोमन आइलैंड्स की सरकार ने होनिआरा में जहाज की रिफ्यूलिंग और दूसरे प्रावधानों को लेकर अमेरिकी सरकार की डिप्लोमैटिक क्लीयरेंस की दरख्वास्त का कोई जवाब नहीं दिया."

कहां तक जाएंगे चीन और अमेरिका

पिछले महीने ही सोगावारे ने देश में होने वाले संसदीय चुनावों को टालने का प्रस्ताव रखा था. विपक्षी दल इस बात का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि सोगावारे संविधान में बदलाव कर अपने आपको ज्यादा शक्तियां देना चाहते हैं.

सोगावारे चाहते हैं कि संसदीय चुनावों को नवंबर 2023 में होने वाले पैसिफिक गेम्स के बाद तक के लिए टाल दिया जाए. उनका तर्क है कि द्विपीय देश दो बड़े आयोजनों का खर्चा एक साथ नहीं उठा सकता. पिछले महीने जब ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि वह चुनाव के लिए खर्च देने को तैयार है तो सोगावारे ने इसे देश की संप्रभुता पर हमला बताया था.

बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि सोगावारे चीन के प्रभाव में इस तरह के कदम उठा रहे हैं. कैंबल ने भी ऐसी ही चिंताएं जाहिर कीं. उन्होंने कहा, "हम अपनी चिंताओं को लेकर स्पष्ट रहे हैं और हम नहीं चाहेंगे कि वहां शक्ति प्रदर्शन की गुंजाइश बने.”

अमेरिका से पहले चीन लगातार इस इलाके में अपना प्रभाव बढ़ाने में लगा हुआ है. अप्रैल-मई में चीन ने पैसिफिक फोरम के देशों से एक रणनीतिक समझौता करने की भी कोशिश की थी. हालांकि, यह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई, क्योंकि फोरम के देशों ने कहा कि वे इसके बारे में आपस में विचार-विमर्श करना चाहते हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि चीन क्षेत्र में लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और उसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका काफी सक्रियता दिखा रहा है.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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