अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन मंगलवार से भारत के अपने पहले आधिकारिक दौरे पर होंगे. उन्होंने कहा है कि चीन के अलावा भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर भी चर्चा करेंगे.
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एंटनी ब्लिंकेन मंगलवार को भारत पहुंच रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की उनकी बतौर विदेश मंत्री यह पहली यात्रा होगी. बुधवार को वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से मिलेंगे
इसी यात्रा के दौरान ब्लिंकेन कुवैत भी जाने वाले हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्री की यह यात्रा अहम मानी जा रही है क्योंकि बाइडेन सरकार ने चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है और चीन की बढ़ती ताकत के खिलाफ भारत उसका बड़ा सहयोगी हो सकता है. इसीलिए ब्लिंकेन की यात्रा के फौरन बाद उनकी डिप्टी यानी उप विदेश मंत्री वेंडी शरमन चीन जाएंगी और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन दक्षिणपूर्व एशिया में होंगे.
ब्लिंकेन का एजेंडा
ब्लिंकेन के एजेंडे में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीति के अलावा साझा सुरक्षा हित, लोकतांत्रिक मूल्य और जलवायु संकट भी होगा. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह कोरोना वायरस महामारी पर भी चर्चा करने वाले हैं.
जिन मुद्दों पर सीधी बात हो सकती है उनमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान और भारत के समूह क्वॉड की बैठक भी शामिल है. इस संगठन को चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए बनाया गया माना जाता है. संभव है कि यह बैठक सितंबर में हो जब संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक होगी. ये चारों देश मिलकर क्षेत्र में ऐसा आधारभूत ढांचा तैयार करना चाहते हैं जिससे चीन का मुकाबला किया जा सके.
अमेरिका ने मार्च में क्वॉड की एक वर्चुअल बैठक आयोजित की थी जहां इस बात पर सहमति बनी थी कि भारतीय दवा निर्माता कंपनी बायोलॉजिकल ई लिमिटेड 2022 तक कोविड वैक्सीन की एक अरब खुराकें तैयार करेगी जिन्हें मुख्यत दक्षिणपूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों को दिया जेगा. इसका मकसद चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी को जवाब देना होगा.
वैक्सीन कूटनीति
वैसे, फिलहाल भारत वैक्सीन को लेकर अपनी ही जरूरतों को पूरी करने में संघर्ष कर रहा है. घातक दूसरी लहर से गुजरने के बाद वहां टीकाकरण में तेजी लाने की जरूरत है लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. अमेरिका ने भारत को वैक्सीन बनाने के लिए कच्चा माल दिया है. भारत अमेरिका से अगस्त तक 30-40 लाख खुराकें मिलने की भी उम्मीद कर रहा है.
तस्वीरों मेंः चीन के विवाद
एक साथ कई कूटनीतिक विवादों में फंसा है चीन
भारत के साथ सीमा-विवाद हो, हॉन्ग कॉन्ग को लेकर आलोचना हो या महामारी के फैलने के पीछे उसकी भूमिका को लेकर जांच की मांग, चीन इन दिनों कई मोर्चों पर कूटनीतिक विवादों में फंसा हुआ है. आइए एक नजर डालते हैं इन विवादों पर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. Peng
कोरोनावायरस
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने मांग की है कि चीन जिस तरह से कोरोनावायरस को रोकने में असफल रहा उसके लिए उसकी जवाबदेही सिद्ध की जानी चाहिए. कोरोनावायरस चीन के शहर वुहान से ही निकला था. चीन पर कुछ देशों ने तानाशाह जैसी "वायरस डिप्लोमैसी" का भी आरोप लगाया है.
तस्वीर: Ng Han Guan/AP Photo/picture alliance
अमेरिका
विश्व की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आपसी रिश्ते पिछले कई दशकों में इतना नीचे नहीं गिरे जितने आज गिर गए हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार और तकनीक को लेकर विवाद तो चल ही रहे हैं, साथ ही अमेरिका के बार बार कोरोनावायरस के फैलने के लिए चीन को ही जिम्मेदार ठहराने से भी दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. चीन भी अमेरिका पर हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनों को समर्थन देने का आरोप लगाता आया है.
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हॉन्ग कॉन्ग
हॉन्ग कॉन्ग अपने आप में चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक समस्या है. चीन ने वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करना चाहा लेकिन अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने इसका विरोध किया. हॉन्ग कॉन्ग कभी ब्रिटेन की कॉलोनी था और चीन के नए कदमों के बाद ब्रिटेन ने कहा है कि हॉन्ग कॉन्ग के ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज पासपोर्ट धारकों को विस्तृत वीजा अधिकार देगा.
चीन ने लोकतांत्रिक-शासन वाले देश ताइवान पर हमेशा से अपने आधिपत्य का दावा किया है. अब चीन ने ताइवान पर उसका स्वामित्व स्वीकार कर लेने के लिए कूटनीतिक और सैन्य दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. लेकिन भारी मतों से दोबारा चुनी गई ताइवान की राष्ट्रपति ने चीन के दावों को ठुकराते हुए कह दिया है कि सिर्फ ताइवान के लोग उसके भविष्य का फैसला कर सकते हैं.
तस्वीर: Office of President | Taiwan
भारत
भारत और चीन के बीच उनकी विवादित सीमा पर गंभीर गतिरोध चल रहा है. सुदूर लद्दाख में दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे पर अतिक्रमण का आरोप लगा रहे हैं. दोनों में हाथापाई भी हुई थी.
तस्वीर: Reuters/Handout
शिंकियांग
चीन की उसके अपने पश्चिमी प्रांत में उइगुर मुसलमानों के प्रति बर्ताव पर अमेरिका और कई देशों ने आलोचना की है. मई में ही अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने उइगुरों के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने वाले एक विधेयक को बहुमत से पारित किया.
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हुआवेई
अमेरिका ने चीन की बड़ी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त की थीं. उसने अपने मित्र देशों को चेतावनी दी थी कि अगर वो अपने मोबाइल नेटवर्क में उसका इस्तेमाल करेंगे तो उनके इंटेलिजेंस प्राप्त की जाने वाली संपर्क प्रणालियों से कट जाने का जोखिम रहेगा. हुआवेई ने इन आरोपों से इंकार किया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/J. Porzycki
कनाडा
चीन और कनाडा के रिश्ते तब से खराब हो गए हैं जब 2018 में कनाडा ने हुआवेई के संस्थापक की बेटी मेंग वानझाऊ को हिरासत में ले लिया था. उसके तुरंत बाद चीन ने कनाडा के दो नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था और केनोला बीज के आयात को ब्लॉक कर दिया था. मई 2020 में मेंग अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ दायर किया गया एक केस हार गईं.
तस्वीर: Reuters/J. Gauthier
यूरोपीय संघ
पिछले साल यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों ने आपस में तय किया कि वो चीन के प्रति अपनी रण-नीति और मजबूत करेंगे. संघ हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर चीन की दबाव वाली कूटनीति को ले कर चिंतित है. संघ उसकी कंपनियों के चीन के बाजार तक पहुंचने में पेश आने वाली मुश्किलों को लेकर भी परेशान रहा है. बताया जा रहा है कि संघ की एक रिपोर्ट में चीन पर आरोप थे कि वो कोरोनावायरस के बारे में गलत जानकारी फैला रहा था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Messinger
ऑस्ट्रेलिया
मई 2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया से जौ (बार्ली) के आयत पर शुल्क लगा दिया था. दोनों देशों के बीच लंबे समय से झगड़ा चल रहा है. दोनों देशों के रिश्तों में खटास 2018 में आई थी जब ऑस्ट्रेलिया ने अपने 5जी ब्रॉडबैंड नेटवर्क से हुआवेई को बैन कर दिया था. चीन ऑस्ट्रेलिया की कोरोनावायरस की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर भी नाराज है.
तस्वीर: Imago-Images/VCGI
दक्षिण चीन सागर
दक्षिण चीन सागर ऊर्जा के स्त्रोतों से समृद्ध इलाका है और चीन के इस इलाके में कई विवादित दावे हैं जो फिलीपींस, ब्रूनेई, विएतनाम, मलेशिया और ताइवान के दावों से टकराते हैं. ये इलाका एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग भी है. अमेरिका ने आरोप लगाया है कि चीन इस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कोरोनावायरस के डिस्ट्रैक्शन का फाय उठा रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Aljibe
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ब्लिंकेन ने अमेरिकी समाचार चैनल एमएसएनबीसी को पिछले हफ्ते बताया, "कोविड-19 से लड़ाई में भारत एक बहुत अहम देश है. समझा जा सकता है कि फिलहाल वे अपनी अंदरूनी जरूरतों पर ध्यान दे रहे हैं लेकिन जब उत्पादन का इंजन पूरी रफ्तार से दौड़ेगा तो वे बाकी दुनिया को भी सप्लाई कर सकेंगे. उससे बहुत फर्क पड़ेगा.”
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मानवाधिकारों का मुद्दा
अमेरिकी विदेश मंत्री अपनी यात्रा पर भारत में मानवाधिकारो का मुद्दा भी उठाएंगे. विदेश मंत्रालय में दक्षिण और मध्य एशिया मामलों के प्रभारी कार्यवाहक सह सचिव डीन थॉम्पसन से पत्रकारों ने पूछा कि मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी ने नागरिकता कानून लागू किया है जिसे आलोचक मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला बताते हैं, तो ऐसे में मानवाधिकारों का मुद्दा कितना जरूरी होगा. इसके जवाब में थॉम्पसन ने कहा, "इसे उठाया जाएगा.”
उन्होंने कहा, "हम यह बातचीत जारी रखेंगे क्योंकि हम इस बात में पूरा यकीन रखते हैं कि मतभेदों से ज्याद हमारे मूल्यों समानताएं हैं.”
देखिएः
पेगासस जासूसी कांड पर सिद्धार्थ वरदराजन से बातचीत
06:07
वॉशिंगटन सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनैशनल स्टडीज में भारतीय मामलों के विशेषज्ञ रिक रॉसो कहते हैं कि अफगानिस्तान को लेकर भारत की चिंताओं पर भी बातचीत हो सकती है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स से उन्होंने कहा, "वैक्सीन को लेकर सहयोग उतना आसान नहीं है जितना कूटनीतिज्ञों ने सोचा था. भारत और अमेरिका दोनों की राजनीतिक मजबूरी घरेलू जरूरतों को प्राथमिकता देना है. लेकिन आज अमेरिका के पास वैक्सीन का भंडार है जबकि अमेरिका को वैक्सीन की जरूरत. और दूसरे देश भी इसका फायदा उठाना चाहेंगे.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
तस्वीरों मेंः मीडिया पर हमलावर नेता
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.