लोकतंत्र एक बार फिर हाशिये पर है, सेना देश पर अपना दबदबा बनाने की कोशिश में लगी है, और देश में गृह युद्ध की स्थिति है. त्रासदी यह कि यह सब कोविड महामारी के दौरान हो रहा है.
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म्यांमार में अब तक 300 से अधिक बड़े नेताओं को जेल भेजा गया है और कुछ को तो फांसी की सजा भी सुनाई जा चुकी है. फरवरी के तख्तापलट से बाद से अब तक 1,300 आम नागरिक मारे जा चुके हैं. देश में गृह युद्ध का माहौल है और दर्जनों अलगाववादी जनजातीय गुटों ने तात्मादाव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. कोविड की मार झेल रहे आम म्यांमार नागरिक के लिए यह कठिन दिन हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को भी कोविड से निपटने के प्रयासों में मदद से रोका जा रहा है.
इसी सिलसिले में सोमवार को नोबेल पुरस्कार विजेता और देश में लोकतंत्र की मूर्ति मानी जाने वालीं आंग सान सू ची को अदालत ने चार साल की सजा सुनाई. हालांकि बाद में सेनाध्यक्ष मिन आंग लाई ने उनकी सजा को घटाकर 2 साल कर दिया. महीनों से हिरासत में रह रहीं आंग सान सू ची पर म्यांमार की सैन्य सरकार ने एक दर्जन अभियोग दायर किये हैं. यह संभवतः पहला केस था जिस पर अदालती कार्यवाही के बाद उन्हें दोषी पाया गया है.
सधे कदम रख रही है सेना
सू ची को देश में हिंसा भड़काने और कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल के उल्लंघन का दोषी पाया गया है. सू ची पर लगाए गए आरोपों में शायद यह सबसे कमजोर था. उन पर लगाए अन्य आरोपों में स्टेट सीक्रेट एक्ट का उल्लंघन, भ्रष्टाचार और सत्ता का दुरुपयोग जैसे गंभीर आरोप हैं जिनमें कुल मिलाकर 100 साल तक की सजा हो सकती है. यांगून के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और सू ची के सहयोगी फ्यो मेन थिएन की इसी तरह के मामलों में 20 साल की सजा सुनाई गई है.
म्यांमार में दमन का कुचक्र
एक फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना द्वारा तख्ता पलट देने और सत्ता हथिया लेने के बाद वहां लगातार नागरिकों के अधिकारों का दमन हो रहा है. तीन मार्च को एक ही दिन में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 प्रदर्शनकारी मारे गए.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
हिंसा का दौर
तख्तापलट के बाद से ही लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं और देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं. सेना और पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आ रहे हैं, जिसकी वजह से देश में हिंसा का दौर थम ही नहीं रहा है. तीन मार्च को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 लोग मारे गए.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
बढ़ते जनाजे
इन 38 लोगों को मिला कर अभी तक कम से कम 50 प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी है. यह तस्वीर 19 साल की क्याल सिन के शव की अंतिम यात्रा की है. वो तीन मार्च को मैंडले में सेना के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं जब सुरक्षाबलों ने गोलियां चला दीं. उन्हें सिर में गोली लगी और उनकी मौत हो गई.
तस्वीर: REUTERS
बल का प्रयोग
प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने पहले आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. सुरक्षाबल लगातार आंसू गैस, रबड़ की गोलियां, ध्वनि बम जैसे हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है. प्रदर्शन शांत ना होने पर गोली चला दी जा रही है.
तस्वीर: Aung Kyaw Htet/ZumaWire/Imago Images
बचने के तरीके
प्रदर्शनकारियों को अपनी सुरक्षा का इंतजाम भी करना पड़ रहा है. आंखों को ढकने के लिए बड़े बड़े चश्मे, हेलमेट और ढालों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
नाकामयाब कोशिशें
प्रदर्शनकारी भी खुद को बचाने के लिए धुंआ छोड़ रहे हैं लेकिन धुंआ और किसी तरह से बनाए हुए बैरिकेड भी उन्हें पुलिस की गोलियों से बचा नहीं पा रहे हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
मीडिया पर हमले
गिरफ्तारियों का सिलसिला भी लगातार चल रहा है और प्रदर्शनकारियों के अलावा पुलिस पत्रकारों को भी गिरफ्तार कर रही है. प्रदर्शनों पर खबर कर रहे एसोसिएटेड प्रेस के थेइन जौ और पांच और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
तस्वीर: Thein Zaw family/AP/picture alliance
सू ची की छाया
प्रदर्शनकारियों में से कई म्यांमार की नेता आंग सान सू ची के समर्थक हैं, जिन्हें सेना ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. प्रदर्शनों में सू ची की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली की मांग उठ रही है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
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सू ची की तर्ज पर म्यांमार के भूतपूर्व राष्ट्रपति विन म्यिंन को भी म्यांमार की अदालत ने चार साल की सजा सुनाई थी लेकिन बाद में उसे घटाकर 2 साल कर दिया गया. राजधानी नेपीदाव में चली इस सुनवाई से मीडिया को दूर रखा गया. सू ची के वकील को भी आम जनता या मीडिया से बातचीत करने की अनुमति नहीं दी गयी.
म्यांमार की सेना को पता है कि सू ची को जेल भेजने से देश की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में और गहरा असंतोष भड़क सकता है. शायद इसीलिए सेना ने घोषणा की है कि सू ची और विन म्यिंन समेत नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी के तमाम बड़े नेताओं को वहीं सजा काटनी होगी जहां उन्हें फिलहाल हिरासत में रखा गया है. गौरतलब है कि सेना यह बताने से कतरा रही है कि इन नेताओं को कहां रखा गया है. संयुक्त राष्ट्र समेत मानवाधिकार संरक्षण संबंधी कई संस्थाओं ने सू ची के साथ हो रहीं ज्यादतियों और म्यांमार में सैन्य तानाशाही पर चिंता जताई है और वहां की सरकार पर दबाव बनाने की वकालत की है.
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फंसी चुकी हैं सू ची
वैसे तो सू ची ने इन तमाम आरोपों से इंकार किया है लेकिन उन्हें भी मालूम है कि वह सेना के कानूनी चक्रव्यूह में फंस चुकी हैं. अब कोई चमत्कार ही उन्हें इन तमाम आरोपों से बरी करवा सकता है. यहां सवाल कानून और न्याय व्यवस्था से ज्यादा राजनीतिक दांवपेंच का है. सेना का मानना है कि सत्ता में बने रहने के लिए सू ची का हिरासत में रहना जरूरी है. कानूनी दांवपेंच के पीछे कहीं न कहीं सेना यह भी कोशिश कर रही है कि उसके इन कदमों को चीन जैसे देशों का समर्थन भी मिल जाए. आखिरकार दक्षिणपूर्व के लगभग हर देश में कोई न कोई मानवाधिकार उल्लंघन का मामला उभरता ही रहा है.
21वीं सदी के तख्तापलट
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
तस्वीर: AP
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
तस्वीर: Getty Images/P. Walter
हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
तस्वीर: Erika SatelicesAFP/Getty Images
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
तस्वीर: Camille Laffont/AFP/Getty Images
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
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जहां तक सू ची का सवाल है, तो उनके लिए इस परिस्थिति से निकलने के दो ही रास्ते हैं - या तो सैन्य सरकार उन्हें खुद माफ कर दे (जो वह कुछ वर्षों बाद ही करेगी) या फिर राजनीतिक परिस्थितियों में किसी बाहरी दखल से आमूलचूल परिवर्तन आये. फिलहाल इन दोनों में से कोई भी संभावना निकट भविष्य में मूर्त रूप लेती नहीं दिखती है. दस दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान से सम्बद्ध आसियान पार्लियामेंटेरियंस फॉर ह्यूमन राइट्स) ने इस घटना को न्यायव्यवस्था के उपहास की संज्ञा दी है. आसियान ने फरवरी में म्यांमार में तख्तापलट के बाद से ही अपनी चिंताएं जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
आसियान शिखर वार्ता के पहले भी जनरल लाई को भाग लेने से मना करने के पीछे भी म्यांमार पर दबाव बनाने की मंशा थी लेकिन आसियान का यह कदम कारगर नहीं हुआ. अभी तक आसियान के विशिष्ट दूत को म्यांमार के सभी राजनीतिक घटकों खास तौर पर सू ची से मिलने तक की अनुमति नहीं दी गई है. अगले साल कंबोडिया से आसियान की अध्यक्षता संभालने के बाद तो स्थिति और भी खराब होने की संभावना है जिसके आसार अभी से दिख रहे हैं.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)