आज भी विपक्ष में सिर्फ कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसके पास दो मुख्यमंत्री, तीन और राज्य सरकारों में प्रतिनिधित्व, 88 सांसद, 688 विधायक और 46 पार्षद हैं. विपक्ष के लिए यह स्थिति अच्छी भी है और बुरी भी.
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बीजेपी के विस्तार के सामने कांग्रेस आज बौनी नजर आती है. बल्कि चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का कद और घटता ही जा रहा है. ऐसे में वो विपक्ष के आखिर किस काम आ रही है, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह सवाल उठाना लाजमी है.
विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को विपक्ष का इंजन होना चाहिए था. लेकिन स्थित कुछ ऐसी हो गई है कि वो विपक्ष को आगे खींचने की जगह आगे बढ़ने से रोक रही है. एक तरह से वो एक ऐसे जमीन मालिक की तरह हो गई है जो न खुद उस जमीन का इस्तेमाल कर रहा और न किसी और को करने दे रहा है.
विपक्ष भी महाराष्ट्र को छोड़ कर और कहीं एकजुट होता नजर नहीं आ रहा और इसका सीधा फायदा बीजेपी निकाल ले रही है.
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राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर संशय हो या पुराने नेता बनाम नए नेताओं का आतंरिक झगड़ा, कई कारण हैं जो कांग्रेस को डुबा रहे हैं. लेकिन इस समय की बीजेपी की राजनीतिक मशीनरी से राष्ट्रीय स्तर पर टक्कर लेना न अकेले कांग्रेस के बस की बात है न कांग्रेस-रहित विपक्ष के.
विपक्ष का नेतृत्व करने में कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा करने वाली तृणमूल कांग्रेस अभी कांग्रेस की परछाई के बराबर भी नहीं है. आम आदमी पार्टी भले ही दो राज्यों में सत्ता में आ चुकी है, लेकिन उसका कुल चुनावी बल अभी तृणमूल से भी कम है.
हमें और आपको ये आंकड़े बार बार देखने पड़ते हैं लेकिन पार्टियां इन्हें नींद में भी नहीं भूलतीं. इसलिए पार्टियां अपनी अपनी हैसियत नहीं समझती हैं, यह मानना खुद को भ्रमित रखने के बराबर होगा.
विचारों का सवाल
इसके बावजूद वो आपस में प्रतिस्पर्धा करती हैं क्योंकि सबको 'सबसे बड़ी पार्टी' का तमगा चाहिए. सत्ता में नहीं तो विपक्ष में सही. लेकिन इस तमगे की ललक तब तक ही बरकरार रहेगी जब तक विपक्ष के लिए जमीन रहेगी.
और अपनी जमीन बचाए रखने के लिए विपक्ष को इस तमगे के आगे सोचना पड़ेगा. विपक्ष के कई नेता काफी समय से कहते आ रहे हैं कि बीजेपी को टक्कर देने के लिए सभी पार्टियों की मिली जुली ताकत लगेगी.
इस फॉर्मूले के मुताबिक एक इंद्रधनुषीय गठबंधन बनाना होगा और जो पार्टी जिस राज्य में, जिस सीट पर बीजेपी को टक्कर देने में सबसे मजबूत स्थिति में हो उस सीट को उस पार्टी के लिए छोड़ना होगा.
हालांकि अभी इस फॉर्मूले तो क्या इस सवाल पर भी विपक्ष में सहमति नहीं हो पाई है कि आखिर जनता के बीच क्या लेकर जाएंगे. क्या है जो उन्हें बीजेपी से अलग बनाता है? किस आधार पर वे वो खुद को मतदाता के लिए बीजेपी से बेहतर विकल्प बता पाएंगे?
बीजेपी का मूल मंत्र आज भी 'हिंदुत्व' ही है, जबकि विपक्ष आज भी इस उलझन में है कि उसे 'हिंदुत्व' को अपनाना है या उसका विरोध करना है. जब तक विपक्षी पार्टियां अपनी उलझनों के परे साफ देखने की क्षमता हासिल नहीं कर लेतीं, तब तक शायद वो बीजेपी से कम और एक दूसरे से ज्यादा लड़ती रहेंगी.
भारत में सत्ता और संवैधानिक संकट
राजस्थान में कांग्रेस विधायकों के विद्रोह के कारण एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है, जिसमें स्पीकर को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. हाल में और किन राज्यों में हुआ है सत्ता को लेकर संवैधानिक संकट?
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
मध्य प्रदेश
नवंबर 2018 में हुए विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर कांग्रेस ने सरकार बनाई गई थी और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और उनके साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कमल नाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट का सामना करने का आदेश दिया. इसके कमल नाथ ने इस्तीफा दे दिया और शिवराज नए मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: imago images/Hindustan Times
कर्नाटक
2018 में हुए विधान सभा चुनावों के बाद राज्यपाल ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए निमंत्रण दे दिया. कांग्रेस इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई और आधी रात को अदालत में सुनवाई हुई. बाद में अदालत ने राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराते हुए फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया. येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जेडी (एस) के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: IANS
कर्नाटक (दोबारा)
जुलाई 2019 में जेडी (एस) और कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे से मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की सरकार अल्पमत में आ गई. विधायक जब मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए तब अदालत ने स्पीकर को विधायकों का इस्तीफा मंजूर करने का आदेश दिया और बाद में उन्हें अयोग्य घोषित किए जाने से सुरक्षा भी प्रदान की. विधान सभा में फ्लोर टेस्ट हुआ और कुमारस्वामी की सरकार गिर गई. बीजेपी के येदियुरप्पा फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/S. Forster
महाराष्ट्र
नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों के नतीजे आ जाने के दो सप्ताह तक रही अनिश्चितता के बीच एक दिन अचानक राज्यपाल ने बीजपी नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. कांग्रेस और एनसीपी ने राज्यपाल के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. अदालत के फ्लोर टेस्ट के आदेश देने पर फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना ने मिलकर सरकार बनाई.
तस्वीर: P. Paranjpe/AFP/Getty Images
जम्मू और कश्मीर
जून 2018 में जम्मू और कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार से बीजेपी के अचानक समर्थन वापस ले लेने से राजनीतिक और संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस्तीफा देना पड़ा. राज्य में राज्यपाल का शासन लगा दिया गया. छह महीने बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और अगस्त 2019 में केंद्र ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा ही खत्म कर दिया और उसकी जगह दो केंद्र-शासित प्रदेश बना दिए.
तस्वीर: Getty Images/S. Hussain
बिहार
जुलाई 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली अपनी ही सरकार गिरा दी. कुमार को बीजेपी के विधायकों का समर्थन मिल गया और राज्यपाल ने उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का निमंत्रण दे दिया. आरजेडी ने पटना हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर कर दी जो खारिज कर दी गई और कुमार फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित कर फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: IANS
गोवा
मार्च 2017 में गोवा विधान सभा चुनावों के बाद जब राज्यपाल ने बीजेपी नेता मनोहर परिकर को सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया, तब सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी कांग्रेस ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, जिसमें मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण करने के बाद परिकर ने बहुमत साबित कर दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
अरुणाचल प्रदेश
दिसंबर 2015 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के कुछ विधायकों और डिप्टी स्पीकर ने विद्रोह के बाद स्पीकर पर महाभियोग लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. स्पीकर ने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. जनवरी 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. फरवरी में कलिखो पुल ने सरकार बना ली. जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को गैर-कानूनी करार दिया और कांग्रेस की सरकार को बहाल किया.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Yadav
उत्तराखंड
मार्च 2016 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के विद्रोही विधायकों ने विपक्ष के साथ मिलकर बजट पर वोटिंग की मांग की, लेकिन स्पीकर ने ध्वनि मत से बजट पारित करा दिया. विद्रोही विधायक राज्यपाल के पास चले गए और उनकी अनुशंसा पर केंद्र ने मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार बर्खास्त कर दी. राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. रावत की याचिका पर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटा दिया और रावत सरकार को बहाल किया.