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समाज

महामारी के समय में इंटरनेट बना "सच्चा साथी"

३१ जुलाई २०२०

कोरोना वायरस महामारी से जब दुनिया सिमट गई तो इंटरनेट की दुनिया ने हमारे लिए अवसर के नए-नए दरवाजे खोल दिए. हम इंटरनेट के साथ प्रयोग करते गए और हमारा समय पार होता गया, लेकिन आज भी कई लोगों के लिए इंटरनेट दूर की कौड़ी है.

तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Adhikary

इस बात में कोई दो राय नहीं कि आज की इस सदी में इंटरनेट सबसे अहम चीजों में से एक है. इंटरनेट के बिना ऐसा लगता है कि जीवन में कुछ कमी सी है. जब पहली बार न्यूज एजेंसियों ने चीन के वुहान में संदिग्ध बीमारी की रिपोर्ट की, तो वह इंटरनेट ही था जिसके माध्यम से पूरी दुनिया में इस रहस्यमय बीमारी की चर्चा हुई. समय बीतने के साथ चीन से छन छन कर इस बीमारी के बारे में खबरें भी आने लगी. अखबार, टीवी और मैगजीन के बाद इससे जुड़ी जानकारी हमारे व्हाट्सऐप पर भी आने लगी. कुछ भ्रामक और कुछ गलत लेकिन कुछ खबरें असली भी थी.

इंटरनेट का सही इस्तेमाल करते हुए इस विषय पर दिलचस्पी रखने वालों ने और गहराई में जानना चाहा और इसके बारे में पढ़ा. समय गुजरता गया और इस रहस्यमय बीमारी का नाम पता चला, कोविड-19. इंटरनेट की मदद से ही दुनिया भर के अरबों लोग कंप्यूटर और अन्य डिवाइस के जरिए एक दूसरे से जुड़ते हैं. अमेरिका में रहने वाला कोई छात्र चेन्नई में अपने परिवार को वहां के हालात के बारे में बताता, तो मुंबई में टेक्सटाइल मिल में काम करने वाला प्रवासी श्रमिक अपने गांव में वहां के हालात के बारे में वीडियो कॉल कर जानकारी देता.

कोरोना वायरस महामारी के समय में इंटरनेट पर जानकारी की बाढ़ आ गई है. कुछ जानकारी तो प्रमाणित थी लेकिन कुछ तथ्य गलत भी थे. खासकर इम्युनिटी बढ़ाने को लेकर तरह तरह के पोस्ट सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप ग्रुप पर शेयर किए जाने लगे. गुड मॉर्निंग और प्रेरणादायक संदेश की जगह इम्युनिटी मजबूत करने के नुस्खे बताए जाने लगे.

जब लॉकडाउन हुआ तो सबकुछ ठप हो गया. लोग घर में रहते हुए अपने मां-बाप, भाई-बहन और रिश्तेदारों से वीडियो कॉल और चैटिंग के जरिए संपर्क बनाने लगे. स्मार्टफोन और इंटरनेट के कॉकटेल ने ऐसे लोगों की जिंदगी आसान की जो संकट के समय में परिवार से दूर थे और उन्हें भावनात्मक जुड़ाव की जरूरत थी. ऐसे में वीडियो कॉल कर माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों से बात कर उनका मन हल्का हो जाता और वे अजनबी शहर में अकेला महसूस नहीं करते.

दफ्तर का काम जो पहले दफ्तर से ही किया जाता था वह भी घर से करना मुमकिन हो पाया और छुट्टी या फिर दफ्तर का काम खत्म कर लोग घर पर ही मनोरंजन के लिए ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म पर मनचाहा शो, फिल्म या फिर अन्य मनोरंजन की सामग्री देखने लगे. मोबाइल पर तो इंटरनेट जैसे किसी खजाने से कम नहीं. घर के किसी कोने या फिर बालकनी में बैठकर अपनी मनचाही फिल्म या वेब सीरीज देख सकते हैं.

सिर्फ मनोरंजन ही क्यों, अन्य जरूरी सेवाओं के लिए इंटरनेट हमारे साथ एक सच्चे दोस्त की तरह खड़ा है. फिर चाहे डॉक्टर से ऑनलाइन सलाह लेनी हो या अपनी मेडिकल रिपोर्ट देखनी हो. पिछले दिनों बाढ़ ग्रस्त असम के मोरीगांव जिले के 45 वर्षीय शख्स, जो कि लीवर की बीमारी से पीड़ित है, उसकी तकलीफ दूर करने के लिए दिल्ली में बैठे डॉक्टर ने वीडियो कॉल के जरिए उसकी मदद की. हालांकि यह उतना आसान नहीं था. मरीज जिस गांव में रहता था, वहां इंटरनेट नहीं था, मरीज का दोस्त अपने स्मार्टफोन के साथ उसे नाव पर लादकर कनेक्टिविटी ढूंढने निकल गया और फिर तेज स्पीड इंटरनेट मिलने तक दोनों नाव पर भटकते रहे. कनेक्टिविटी मिलने पर दोस्त ने डॉक्टर से वीडियो कॉल पर मरीज की बात करवाई.

स्कूल की शिक्षा भी अब इंटरनेट के माध्यम से दी जा रही है और इसके लिए परिवार पर घर में लैपटॉप या फिर स्मार्टफोन खरीदने का दबाव है. कई लोग स्मार्टफोन तो खरीद लेते हैं लेकिन हर महीने इंटरनेट डाटा खरीदन पड़ता है. कोरोना काल से पहले अभिभावक इस खर्च से बच जाते थे. गांव और सुदूर इलाकों में इंटरनेट से जुड़ना अभी भी बड़ी चुनौती है. कश्मीर में कोरोना काल के दौरान भी वहां के लोग तेज रफ्तार इंटरनेट से महरूम हैं और उन्हें नहीं पता कि आगे कब उन्हें फुल स्पीड वेब ब्राउजिंग की सुविधा मिल पाएगी.

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