स्वच्छ गंगा मिशन के प्रमुख राजीव रंजन मिश्रा ने माना है कि देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान वाकई गंगा में लाशें डाली गई थीं. मिश्रा नमामि गंगे कार्यक्रम के प्रमुख भी हैं.
विज्ञापन
गंगा में लाशें डाले जाने की बात मिश्रा ने अपनी नई किताब "गंगा: रीइमैजिनिंग, रीजूवनेटिंग, रीकनेक्टिंग" में मानी है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक किताब का एक पूरा हिस्सा इसी घटना पर केंद्रित है.
इस हिस्से में मिश्रा ने लिखा है, "जैसे जैसे कोविड-19 महामारी की वजह से लाशों की संख्या बढ़ने लगी, जिला प्रशासन विह्वल हो गए, उत्तर प्रदेश और बिहार के शवदाहगृहों और श्मशान घाटों की क्षमता से ज्यादा लाशें आने लगी, ऐसे में गंगा में लाशों को डालना आसान हो गया."
मिश्रा ने यह भी बताया है कि सभी मामले उत्तर प्रदेश के ही थे और नदी के बिहार वाले हिस्सों में जो लाशें मिली थीं वो उत्तर प्रदेश से ही बहकर वहां पहुंची थीं. सभी लाशें उत्तर प्रदेश के ही कन्नौज और बलिया के बीच गंगा में डाली गई थीं.
मिश्रा तेलांगना कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उनकी किताब का विमोचन प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देब्रॉय ने किया.
आखिर मानना ही पड़ा
मई 2021 में दूसरी लहर के दौरान मिश्रा को खुद कोविड हो गया था और गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका इलाज किया गया था. उन्होंने किताब में लिखा है कि अस्पताल में अपने इलाज के दौरान ही उन्हें इन घटनाओं के बारे में पता चला.
विज्ञापन
उसके बाद उन्होंने सभी 59 जिला गंगा समितियों को इस स्थिति से निपटने का आदेश दिया. फिर उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार को भी इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया.
मिश्रा कहते हैं कि केंद्रीय अधिकारियों की एक बैठक में उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि राज्य के केंद्रीय और पूर्वी हिस्सों में ऐसा वाकई हो रहा है. हालांकि मिश्रा ने किताब में यह भी लिखा है कि गंगा में डाली गई लाशों की कुल संख्या हजारों में नहीं थी बल्कि 300 से ज्यादा नहीं रही होगी.
मई में बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में गंगा ही नहीं दूसरी नदियों में भी बहती हुई लाशें मिली थीं. पश्चिम बंगाल में भी अलर्ट जारी कर दिया गया था. अकेले बिहार के बक्सर में कुल 81 शव मिले थे.
हजारों शव मिले थे नदी के किनारे
अटकलें लग रही थीं कि हो सकता है गरीब परिवारों ने दाह संस्कार का खर्च उठाने में असमर्थता की वजह से शवों को नदी में प्रवाहित कर दिया होगा, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई.
उस दौरान नदी में सीधे बहा देने के अलावा कई लोगों ने शवों को नदी के किनारे रेत में दफना भी दिया था. उत्तर प्रदेश के स्थानीय मीडिया में आई कई खबरों के मुताबिक अकेले प्रयागराज में एक बड़े घाट पर रेत में दफनाए हुए करीब 5,000 शव मिले थे.
दैनिक भास्कर अखबार ने उत्तर प्रदेश के हर जिले में रिपोर्टर भेज कर गंगा नदी में तैर रही और गंगा के किनारे दफनाई गई लाशों का सच निकालने की कोशिश की थी. बाद में अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स ने दैनिक भास्कर के मुख्य संपादक ओम गौड़ का लिखा संपादकीय छापा. संपादकीय का शीर्षक था, "मृतकों को लौटा रही है गंगा. वो झूठ नहीं बोलती."
कहीं मदद, कहीं मुनाफाखोरी: त्रासदी के दो चेहरे
भारत में कोरोना की ताजा लहर ने भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है. सरकारी तंत्र नाकाम हो चुका है और आम लोग सरकार की जगह मददगार नागरिकों के भरोसे हैं. ऐसे में त्रासदी में मुनाफाखोरी के अवसर ढूंढने वालों की भी कमी नहीं है.
तस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS
हाहाकार
कोरोना की ताजा लहर ने पूरे देश पर कहर बरपा दिया है. रोजाना संक्रमण के 3,00,000 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और रोज 3,000 से ज्यादा कोविड मरीजों की मौत हो जा रही है. दवाओं, अस्पतालों में बिस्तर और यहां तक कि ऑक्सीजन की भी भारी कमी हो गई है. अस्पतालों में भर्ती मरीज कोविड-19 से तो मर ही रहे थे, अब वो ऑक्सीजन की कमी से भी मर रहे हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
नाकाम तंत्र
चारों ओर फैले इस हाहाकार ने देश में सरकारी तंत्र के खोखलेपन और महामारी से लड़ने की तैयारों में कमी को उजागर कर दिया है. हालत ऐसे हो चले हैं कि आम लोगों के अलावा अस्पतालों को ऑक्सीजन हासिल करने के लिए सोशल मीडिया पर एसओएस संदेश डालने पड़ रहे हैं.
तस्वीर: Raj K Raj/Hindustan Times/imago images
सोशल मीडिया बना हेल्पलाइन
सरकारी तंत्र की विफलता को देखते हुए कुछ लोग आगे बढ़ कर जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. लोग सोशल मीडिया पर अपनी जरूरत डाल रहे हैं और मदद करने वाले किसी तक दवा पहुंचा रहे हैं, किसी तक ऑक्सीजन और किसी तक प्लाज्मा. इनके व्यक्तिगत नेटवर्क से अस्पतालों में रिक्त बिस्तरों की जानकारी भी मिल रही है. इनमें कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, कुछ सामाजिक कार्यकर्ता, कुछ फिल्मी सितारे तो कुछ धर्मार्थ संगठन.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
ऑक्सीजन लंगर
सबसे भयावह कमी है ऑक्सीजन की. ऐसे में कुछ लोगों और कुछ धर्मार्थ संगठनों ने ऑक्सीजन मुहैया करवाने का बीड़ा उठाया है. कुछ लोग घरों तक भी ऑक्सीजन सिलिंडर और ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर पहुंचा दे रहे हैं, तो कुछ ने सार्वजनिक स्थलों पर ऑक्सीजन देने का इंतजाम किया है. यह महामारी के लिहाज से खतरनाक भी है, लेकिन लोग इस तरह की सेवाएं लेने को लाचार हैं.
लेकिन इस विकट परिस्थिति में भी मानव स्वभाव के दो चेहरे सामने आए हैं. एक तरफ अपनी जान जोखिम में डाल कर दूसरों की मदद करने वाले लोग हैं, तो दूसरी तरफ ऐसे भी हैं जिन्हें इस त्रासदी में भी जमाखोरी और मुनाफाखोरी सूझ रही है. आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी हो रही है और उन्हें 10 गुना दाम पर बेचा जा रहा है. कई मामले ऐसे ही सामने आए हैं जहां लोगों ने दवा का 10 गुना दाम भी वसूल लिया और दवा भी नकली दे दी.
मानवीय त्रासदी में भी लोग अमानवीय व्यवहार से बाज नहीं आ रहे हैं. एम्बुलेंस सेवाओं में भी ठगी के कई मामले सामने आए हैं, जहां मरीजों या उनके परिवार वालों से चंद किलोमीटर के कई हजार रुपए वसूले गए हैं.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance
ऑक्सीजन "डकैती"
ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां ठगों ने ऑक्सीजन के लिए दर दर भटकते लोगों को ऑक्सीजन सिलिंडर बता कर आग बुझाने वाले यंत्र बेच दिए. पुलिस इन मामलों में सख्ती से पेश आ रही है और ऐसे लोगों के अवैध धंधों का भंडाफोड़ कर उन्हें हिरासत में ले रही है.