तिल बराबर हड्डी ने की इंसान को दो पैरों पर खड़ा होने में मदद
११ सितम्बर २०२४
गठिये के मरीजों में पाई जाने वाली तिल बराबर हड्डी के बारे में वैज्ञानिकों को अहम जानकारियां मिली हैं. उनका अनुमान है कि इसने इंसान के चार से दो पांवों पर खड़ा होने में मदद की होगी.
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वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इंसान के घुटने की उस छोटी सी हड्डी की मानव विकास में अहम भूमिका रही होगी, जिसके कारण आज बहुत से लोग खड़े होने और चलने से भी अक्सर नाकाम हो जाते हैं. आमतौर पर गठिया से पीड़ित लोगों में पाई जाने वाली इस हड्डी के बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि इसने इंसान को चार पैरों से सीधा खड़े होकर चलने में मदद की.
इस हड्डी का नाम लैटरल फैबेला है, जो आकार में तिल के बराबर होती है और लगभग 39 प्रतिशत लोगों में पाई जाती है. अन्य लोगों में यह होती भी नहीं है. इस हड्डी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन इसे ‘ऑस्टियोआर्थराइटिस‘ जैसी बीमारियों से जोड़ा गया है, जो गठिये का एक प्रकार है. इसमें जोड़ों के ऊतक धीरे-धीरे खराब हो जाते हैं और चलना-फिरना बेहद दर्दनाक हो जाता है.
कैसे पता चला हमारे पूर्वजों के बारे में
इस्राएल में हाल ही में पाए गए मानव अवशेषों से मानव विकास की कहानी में नई परतें जुड़ गई हैं. एक नजर इस तरह की और भी अहम खोजों पर जो हमारे पूर्वजों और उनकी जीवन शैली पर रोशनी डालती हैं.
तस्वीर: Avi Levin/AP/picture alliance
वंश वृक्ष की एक नई शाखा
इस्राएल में खुदाई के दौरान कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं जो एक ऐसी मानव प्रजाति के हैं जिसके बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं थी. अभी तक यह पता चल पाया है कि यह आदिमानव 1,00,000 सालों से भी ज्यादा पहले हमारी प्रजाति यानी होमो सेपिएंस के साथ साथ ही रहता होगा.
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'नेशर रामला होमो'
ये अवशेष इस्राएल के नेशर रामाल्लाह नाम की जगह पर मिले. माना जा रहा है कि ये प्राचीन मानवों के "आखिरी उत्तरजीवियों" में से एक मानव के हैं, जिसका यूरोपीय नियान्डेरथल से करीबी संबंध हो सकता है. यह भी माना जा रहा है कि इनमें से कुछ मानव पूर्व में भारत और चीन की तरफ भी गए होंगे. पूर्वी एशिया में मिले कुछ अवशेषों में इन नए अवशेषों से मिलती जुलती विशेषताएं पाई गई हैं.
नियान्डेरथलों को लोकप्रिय रूप से अक्सर गलत छवि दिखाई गई है. उन्हें अक्सर पीठ पर कूबड़ वाले और हाथों में मुगदर लिए आदिमानवों के रूप में दिखाया जाता है. यह छवि 1908 में मिले एक कंकाल के पुराने और छिछले अध्ययनों पर आधारित है. इस कंकाल की रीढ़ विकृत थी और घुटने मुड़े हुए थे.
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जितना हम सोचते हैं उससे ज्यादा करीबी
लेकिन 21वीं सदी में पता चला कि नियान्डेरथल आधुनिक मानव के काफी करीब थे. वो उपकरण बनाने के लिए काफी विकसित तरीके इस्तेमाल करते थे, अपने आस पास की चीजों का इस्तेमाल कर आग और ज्यादा तेजी से लगा लिए करते थे, बड़े जानवरों का शिकार करते थे और आधुनिक मानवों के साथ प्रजनन भी करते थे.
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जिस पूर्वज का नाम बीटल्स की वजह से पड़ा
'लूसी' एक महिला का कंकाल है जिसे पूरी दुनिया में पाए गए सबसे पुरानी मानव पूर्वज प्रजातियों में से माना जाता है. इसकी खोज अफ्रीका के इथियोपिया के हदर में 1974 में जीवाश्मिकी वैज्ञानिक डॉनल्ड सी जोहानसन ने की थी. जिस दिन इसकी खोज हुई उस दिन खोज के जश्न में आयोजित की गई एक पार्टी में बार बार बीटल्स का एक गाना बज रहा था - "लूसी इन द स्काई विद डायमंड्स" और उसी के नाम पर कंकाल का नाम लूसी रख दिया गया.
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फ्लो, उर्फ 'द हॉब्बिट'
'फ्लो' की खोज इंडोनेशिया के द्वीप फ्लोरेस में 2004 में हुई थी. होमो फ्लोरेसिएन्सिस प्रजाति की एक आदिम मानव के इन अवशेषों को 12,000 साल पुराना माना जाता है. फ्लो सिर्फ 3.7 फिट लंबी थी, जिसकी वजह से उसका नाम 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' फिल्मों के एक किरदार के नाम पर 'द हॉब्बिट' रख दिया गया.
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दो पैरों पर चलने का सबूत
1924 में दक्षिण अफ्रीका के ताउन्ग में शरीर रचना विशेषज्ञ रेमंड डार्ट ने एक खदान में पाई गई एक विचित्र सी खोपड़ी का निरीक्षण करने पर पाया कि वो एक तीन साल के आदिमानव की थी, जिसका उन्होंने नाम रखा ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रिकानस. ये करीब 28 लाख साल पहले जीवित रहा होगा और इसे मानवों के दो पैरों पर चलने का प्रारंभिक सबूत भी माना जाता है. इससे मानवों के अफ्रीका में विकास होने की अवधारणा को भी बल मिला.
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डीएनए से मदद
2008 में पुरातत्वविद माइकल शून्कोव को रूस और कजाकिस्तान की सीमा पर अल्ताई पर्वत श्रृंखला के काफी अंदर एक गुफा में एक अज्ञात आदिमानव के अवशेष मिले. आनुवांशिकी विज्ञानियों ने पाया कि इन अवशेषों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का संबंध एक अज्ञात पूर्वज से था. इन्हें उस गुफा के नाम पर डेनिसोवियन्स कहा गया. ये भी अफ्रीका से ही निकले थे, लेकिन शुरुआती नियान्डेरथल और होमो सेपिएंस से अलग.
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होमो सेपिएंस के नए रिश्तेदार
2015 में दक्षिण अफ्रीका की राइजिंग स्टार गुफाओं में कम से कम 15 लोगों के 1,500 से भी ज्यादा अवशेष मिले थे, जिनमें होमो नलेडी समूह के शिशुओं से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे. हालांकि विशेषज्ञों के बीच इनकी पहचान को लेकर सहमति नहीं थी: क्या ये प्राचीन मानव थे या प्रारम्भिक होमो इरेक्टस?
प्राचीन मानवों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में भी हमारे अतीत के सुराग होते हैं. कोलंबिया के चिरिबिकेट राष्ट्रीय उद्यान में पाए गए ये गुफा चित्र 22,000 साल से भी ज्यादा पुराने हैं. कुछ दूसरे पुरातत्व-संबंधी सबूतों के साथ ये चित्र इस अवधारणा के ओर इशारा करते हैं कि आज उत्तर और दक्षिणी अमेरिका कहे जाने वाले इलाके में मानवों का 20,000 से 30,000 साल पहले कब्जा था.
तस्वीर: Jorge Mario Álvarez Arango
अभी तक के सबसे प्राचीन गुफा चित्र
2021 में ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के पुरातत्वविदों को इंडोनेशिया के सुलावेसी में और भी पुराने गुफा चित्र मिले. ये लिखित इतिहास के पहले के इंडोनेशियाई सूअरों की तस्वीरें थीं जो ओकर नाम के एक अकार्बनिक पदार्थ से बनाई गई थीं जिसकी कार्बन-डेटिंग नहीं हो पाती है. तो शोधकर्ताओं ने चित्रों के इर्द-गिर्द चूने के स्तंभों की डेटिंग की और पाया कि सबसे पुराने चित्र को कम से कम 45,500 साल पहले बनाया गया होगा.
तस्वीर: Maxime Aubert/Griffith University/AFP
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लैटरल फैबेला घुटने के पीछे की पेशी में छिपी होती है. किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने पाया है कि यह हड्डी इंसानों में एक अनोखे तरीके से विकसित हुई है, खासकर वानर जाति जैसे कि लीमर्स, लोर्सिस, टार्सियर्स और बंदरों की तुलना में.
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चौपाये से दोपाये होने में मदद
किंग्स कॉलेज लंदन में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. माइकल बर्थाउम का मानना है कि मानव विकास के दौर में लैटरल फैबेला में हुए बदलावों ने इंसान को चार पैरों से दो पैरों पर खड़े होने में मदद की होगी. उन्होंने कहा, "हमारे अध्ययन से पता चलता है कि यह हड्डी वान प्रजाति में अलग-अलग तरीकों से विकसित हो सकती है, और इंसानों में इसका विकास खास तरह से हुआ है, जो सभी होमोनॉएड्स (एक समूह जिसमें चिंपांजी, ओरंगुटान, बोनोबो और इंसान शामिल हैं) के शुरुआती दौर से शुरू हुआ होगा."
डॉ. बर्थाउम ने बताया, "विकास के शुरुआती दौर में इस हड्डी का नया इस्तेमाल ऑस्ट्रेलोपिथेकस जैसे मानवों को चार पैरों से सीधे खड़े होकर चलने में मदद कर सकता था."
हालांकि कई दशकों से इस पर शोध किया जा रहा है लेकिन वैज्ञानिक अब तक यह नहीं समझ पाए हैं कि कुछ लोगों में यह हड्डी क्यों होती है और दूसरों में नहीं.
आज के समय में यह हड्डी तीन गुना अधिक आम है. लगभग एक सदी पहले यह हड्डी केवल 11 फीसदी लोगों में पाई जाती थी, जबकि अब 39 फीसदी लोगों में देखी जाती है. इससे संकेत मिलता है कि यह हड्डी इंसानों में फिर से उभर रही है.
बर्फ में 5,300 सालों से दबा पाषाण युग का मानव "ओट्जी"
हजारों सालों से एक ग्लेशियर में दबे "ओट्जी" की खोज सितंबर 1991 में हुई थी, लेकिन वह आज भी लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है.
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सनसनीखेज खोज
जर्मन कपल एरिका और हेल्मुट साइमन को नौ सितंबर को ओट्ज्टाल ऐल्प्स पहाड़ों में बर्फ में जमा हुआ एक मानव मिला. यह जगह ऑस्ट्रिया और इटली की सीमा पर कहीं स्थित थी. शुरू में समझा गया कि यह शायद किसी हाइकर का शव है जिसकी किसी वजह से अचानक मौत हो गई होगी लेकिन बाद में पता चला कि यह पाषाण युग के एक आदमी का शरीर है, जो 5,300 सालों से बर्फ में पड़ा हुआ है. फिर इसे "ओट्जी" का उपनाम दिया गया.
तस्वीर: Picture-alliance/dpa/M. Rattini/Port au Prince Pictures
आकर्षण का केंद्र
कई सालों की सौदेबाजी के बाद एरिका को दक्षिणी टायरॉल राज्य की सरकार से 2,04,899 डॉलर का इनाम मिला. तब तक उनके पति का देहांत हो चुका था. वो पहाड़ों में हाइक करते हुए एक हादसे में मारे गए थे, जिसकी वजह से "ओट्जी के श्राप" जैसी बातें भी चल निकलीं. इसके बावजूद कोविड से पहले बोल्जानो स्थित पुरातत्व संग्रहालय में "ओट्जी" को हर साल देखने आने वालों की संख्या 3,00,000 के आस पास हो गई थी.
तस्वीर: Robert Parigger/APA/dpa/picture alliance
कैसा दिखता होगा
"ओट्जी" के शरीर को संग्रहालय में 99 प्रतिशत आर्द्रता वाले एक बर्फीले कमरे में रखा जाता है. उस पर नियमित रूप से रोगाणु-हीन पानी का छिड़काव किया जाता है. अगर शरीर में कुछ बदलाव हुए तो उनका पता लगाने के लिए एक तोलन यंत्र भी लगा हुआ है. इसे निरीक्षण के लिए सामान्य तापमान के माहौल में कम ही लाया जाता है और वो भी बहुत ही कम समय के लिए. इस तस्वीर के जरिए कल्पना की गई है कि "ओट्जी" कैसा दिखता होगा.
तस्वीर: dapd
किसका "ओट्जी"?
"ओट्जी" की खोज की अहमियत जैसे ही स्पष्ट हुई ऑस्ट्रिया और इटली के बीच इस बात पर झगड़ा शुरू हो गया कि उसे कौन रखेगा. अंत में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उसे दोनों देशों के बीच की सीमा से 92.56 मीटर दूर, इटली की सीमा के अंदर पाया गया था.
तस्वीर: AP
शरीर पर टैटू
"ओट्जी" के शरीर पर 61 टैटू पाए गए. क्रॉस और रेखाएं वाले इन टैटूओं को बनाने वाले ने "ओट्जी" की त्वचा को काट दिया था और बाद में घावों को सख्त कोयले से भर दिया था. यह काफी दर्द भरा तरीका रहा होगा. "ओट्जी" की मौत उसके कंधे में एक तीर के लग जाने से हुई थी. जब उसके शरीर की खोज हुई, वह तीर तब भी उसके शरीर में गड़ा हुआ था.
"ओट्जी" के पेट में जो भी था उसका भी गहन अध्ययन किया गया और पता चला कि उसे अपनी मौत से ठीक पहले काफी गरिष्ठ और चर्बीयुक्त खाना खाया था. इस भोजन में अनाज की एक काफी पुराना किस्म "आइनकॉर्न गेहूं" और बकरे का मांस मिला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Samadelli
आधुनिक तकलीफें
"ओट्जी" को ऐसी कई स्वास्थ्य समस्याएं थीं जो आज भी पाई जाती हैं. उसे दांतों का खराब होना, लाइम बीमारी और शरीर में पिस्सू होना जैसी समस्याएं थीं. उसे लैक्टोज असहनशीलता भी थी और आग के आस पास काफी ज्यादा वक्त बिताने से उसके फेंफड़े किसी सिगरेट पीने वाले के फेंफड़ों जैसे हो गए थे. उसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी नाम की पेट की समस्या भी थी और हृदय रोग भी थे.
तस्वीर: dpa
"ओट्जी" 2.0"
"ओट्जी" के बारे में और लोग जान सकें इस उद्देश्य से अप्रैल 2016 में उसकी एक प्रति बनाई गई. इटली के युरैक रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने एक थ्रीडी प्रिंटर की मदद से राल का इस्तेमाल कर उसकी एक प्रति बनाई. उसके बाद अमेरिकी पैलियो आर्टिस्ट गैरी स्ताब ने उसकी बारीकियों को उभारा. वो अब न्यू यॉर्क के कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी के डीएनए लर्निंग सेंटर में है. (टॉर्स्टन लैंड्सबर्ग)
डॉ. बर्थाउम का कहना है, "पिछले 100 सालों में लोग बेहतर पोषित हुए हैं, और इसलिए वे अधिक लंबे और भारी होते हैं. इससे इस हड्डी के बनने की संभावना बढ़ जाती है."
वानरों से अलग विकास
इस अध्ययन को 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी' नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है. डॉ. बर्थाउम और लंदन की साउथबैंक यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग विभाग में पढ़ाने वाले उनके सहयोगी नेली ए फ्रागोसो वर्गास ने 93 वानर प्रजातियों के घुटनों पर हुए शोध का विश्लेषण किया.
उन्होंने पाया कि जिन वानरों में ये हड्डियां पाई जाती हैं, उनके पूर्वजों में भी इनके होने की संभावना 50 गुना अधिक होती है. इसके अलावा उन्होंने यह भी खोजा कि दो गिब्बन प्रजातियों के अलावा लैटरल फैबेला लगभग सभी विशाल वानरों में मौजूद नहीं होती. वहीं इंसानों में केवल लैटरल फैबेला पाई जाती है, जबकि अन्य प्राइमेट्स में यह जोड़ी में विकसित होती है.
बाएं हाथ का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले लोग कम क्यों हैं
02:23
डॉ. बर्थाउम ने कहा कि यह खोज "एक्साप्टेशन" नामक एक विकास प्रक्रिया की ओर इशारा करती है, जिसमें एक अंग या हड्डी किसी विशेष संदर्भ में विकसित होती है लेकिन समय के साथ उसका उपयोग बदल जाता है. मसलन, पहले किसी अंग का विकास किसी अन्य उद्देश्य के लिए हुआ हो सकता है, लेकिन समय के साथ उसे किसी अन्य काम में सहायक पाया गया और इस तरह वह अंग नए कार्य के लिए अनुकूलित हो गया.
हालांकि, ऑस्टियोआर्थराइटिस वाले लोगों में इस हड्डी के होने की संभावना दोगुनी होती है, लेकिन विशेषज्ञ अभी तक इसका कारण नहीं समझ पाए हैं. डॉ. बर्थाउम ने कहा कि इस संबंध में और शोध करना जरूरी है और "प्रारंभिक परिणाम उत्साहजनक हैं."