मनभावन संगीत पर झूमना सिर्फ इंसानों का स्वभाव नहीं है. जापानी वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि लेडी गागा जैसे सितारों का संगीत सुनने पर चूहों के भी पांव थिरकने लगते हैं.
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जापानी वैज्ञानिकों का कहना है कि चूहे भी संगीत की धमक पर थिरकते हैं. टोक्यो यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने चूहों पर एक प्रयोग के बाद पाया कि संगीत का उन पर सीधा असर होता हौ. इन चूहों ने मोत्सार्ट, क्वीन और लेडी गागा जैसे सितारों का संगीत सुनवाया और तब चूहों पर सेंसर लगा दिए ताकि उनकी छोटी से छोटी गतिविधि को भी दर्ज किया जा सके.
वैज्ञानिकों ने पाया कि चूहों ने एकदम फौरन ही बीट के हिसाब से अपनी गति को लयबद्ध कर लिया. अब तक माना जाता रहा है कि बीट पर थिरकना इंसानों के लिए ही संभव है. लेकिन इस अध्ययन का हिस्सा रहे एसोसिएट प्रोफेसर हीरोकाजू ताकाहाशी कहते हैं कि हालांकि चूहों का शरीर बहुत कम हिल रहा था लेकिन उनका मस्तिष्क संगीत पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता रखता है.
जादूई है संगीत
प्रोफेसर ताकाहाशी ने कहा, "हम सभी मानते हैं कि संगीत में जादूई शक्तियां होती हैं लेकिन यह कैसे काम करता है, इसके बारे में हमें कुछ भी नहीं पता. इसलिए हम जानना चाहते थे कि किस तरह का ध्वनि-संपर्क बिना भावनाओं या याददाश्त को प्रभावित किए हमारे मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है.”
बम पर भारी संगीत, डीजे के साथ युवा कर रहे कायापलट
यूक्रेन युद्ध में बम और रॉकेट से गांव के गांव तबाह हो गए. लेकिन संगीत के जरिए युवाओं का एक दल गांव के खंडहरों को हटाकर दोबारा निर्माण कर रहा है.
तस्वीर: VIACHESLAV RATYNSKYI/REUTERS
युद्ध के बीच टेक्नो पार्टी
यूक्रेन के उत्तरी शहर चेर्निहीव के याहिदने गांव में एक महिला डीजे संगीत बजाकर ऐसे वॉलंटियरों का उत्साह बढ़ा रही है जो बमबारी में नष्ट हुए गांव को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.
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200 युवाओं का दल
चेर्निहीव में रूसी हमले से भारी क्षति हुई थी, याहिदने गांव में कलाकार संगीत बजाते हैं और वॉलंटियर धुन पर डांस कर मलबे को हटाते हैं.
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कभी काम, कभी डांस
मार्च के महीने में इस गांव के सांस्कृतिक केंद्र पर रूसी रॉकेट से हमला हुआ था. अब वॉलंटियर इसे दोबारा से खड़ा कर रहे हैं.
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हार नहीं मानेंगे
कलाकारों का कहना है कि संगीत की धुन बम की आवाज को भुला देगी. इस तस्वीर में डीजे संगीत बजा रहा है तो वहीं एक वॉलंटियर मलबे को साफ कर रहा है.
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युद्ध में भी संगीत का साथ
युद्ध के पहले तक युवा बेधड़क संगीत का आनंद लेते थे फिर रूस ने देश पर हमला कर दिया. अब इसी संगीत की मदद से युवा कंधे से कंधा मिलाकर गांव से मलबा हटा रहे हैं.
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संगीत ही सहारा
टेक्नो संगीत से प्यार और पार्टी प्रेमी युवा इस पहल के साथ आगे आए हैं. उदाहरण के लिए दस्ताने पहने यह लड़की जली हुईं ईंटों को हटा रही हैं. एक युवा ने कहा, "हम युद्ध के दौरान मदद करना चाहते हैं. हम इसे संगीत के माध्यम से कर रहे हैं."
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महसूस होती है पार्टी की कमी
मलबा हटाने का काम कर रही 26 साल की बुरियानोवा कहती हैं कि उन्हें पार्टी की याद आती है और वह सामान्य जीवन में वापस आना चाहती है.
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हफ्तों तक तहखानों में छिपे रहे
जब रूसी सैनिकों ने याहिदने गांव पर कब्जा कर लिया तो गांव के लगभग 300 लोगों में से करीब सभी तहखाने में हफ्तों तक छिपे रहे.
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चूहों के लिए 120 से 140 बीट प्रति मिनट की रेंज में ‘थपकी' का प्रभाव सबसे अधिक प्रभावशाली रहा. करीबन यही दर मनुष्यों पर भी लागू होती है. इससे वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि हो सकता है कि सभी प्रजातियों के जीव इस बीट्स की इस रेंज से प्रभावित होते हों.
ताकाहाशी कहते हैं, "संगीत से शरीर हिलता है. यह असर सिर्फ श्रवण क्षमता या मोटर सिस्टम पर नहीं होता. आवाज की ताकत अद्भुत है.”
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चूहों को नजरअंदाज क्यों किया?
वैज्ञानिकों का ध्यान मुख्यतया मोत्सार्ट के ‘सोनाटा फॉर टू पियानोज' पर रहा, जिसे डी मेजर, के.448 में बजाया गया. साथ ही उन्होंने लेडी गागा के गीत ‘बॉर्न दिस वे' और क्वीन के गीत ‘'अनदर वन बाइट्स द डस्ट' को भी बजाया था, जिन्हें ताकाहाशी के छात्रों ने चुना था.
संगीत और अन्य ध्वनियों की नकल करने के लिए मशहूर तोतों जैसे अन्य पालतू जानवरों के उलट चूहों पर संगीत को लेकर अपनी तरह का यह पहला अध्ययन था. ताकाहाशी के मुताबिक इस क्षेत्र में चूहों को अब तक शायद इसलिए नजरअंदाज किया जाता रहा क्योंकि विभिन्न शोध वीडियो आधारित थे और गति आंकने के लिए सेंसर का प्रयोग नहीं किया गया, जिनसे जानवरों की छोटी से छोटी गति को भी दर्ज किया जा सकता है. वीडियो के जरिए इतनी छोटी गति को पकड़ना मुश्किल था.
80 करोड़ का वायलिन!
इस वायलिन की अनुमानित कीमत है एक करोड़ यूरो यानी करीब 80 करोड़ रुपये. इसे पेरिस में नीलामी के लिए रखा गया है. इतना खास क्यों है यह वायलिन, जानिए...
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सबसे खास वायलिन
यह वायलिन शायद दुनिया का सबसे महंगा वायलिन है. पेरिस में इसकी नीलामी हो रही है और उम्मीद की जा रही है यह एक करोड़ यूरो तक में बिक सकता है.
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क्यों खास है यह वायलिन?
यह वायलिन 286 साल पुराना है. 1736 में इसे इटली के जिसेपी ग्वार्नेरी ने अपने हाथ से बनाया था.
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किसका है यह वायलिन?
इस वायलिन के मालिक हैं फ्रांसीसी वायलिनवादक रेजिस पास्केर, जो मशहूर पास्केर परिवार से आते हैं. पास्केर परिवार वायलिनवादकों का ही परिवार है. नीलामी का काम देख रहीं सोफी पेरीने बताती हैं कि यह 'वायलिन्स का दा विंची' है.
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दुनियाभर में शो
इस वायलिन से पास्केर न्यूयॉर्क के कार्नेज हॉल से लेकर पेरिस के ओपेरा गार्नियर तक दुनियाभर में शो कर चुके हैं.
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ऐसे बस 150 थे
ग्वार्नेरी ने लगभग 150 वायलिन बनाए थे. पिछली बार यह 20 साल पहले बिका था और इसकी क्वॉलिटी ऐसी है कि आज भी यह कॉन्सर्ट में बजता है तो लोग वाह और आह कर उठते हैं. तस्वीर में आप उन्हीं 150 में से एक वायलिन देख रहे हैं जो 1728 में बना था और रूस के दमित्री कोगन के पास है.
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टोक्यो यूनिवर्सिटी का यह अध्ययन पिछले हफ्ते ही ‘साइंस अडवांसेज' नामक पत्रिका में प्रकाशित हा है. भविष्य में ताकाहाशी और उनकी टीम रिदम से एक कदम और आगे जाकर यह समझना चाहेगी कि सुर और ताल का जानवरों पर क्या प्रभाव पड़ता है.