बोतल से दूध: शिशु निगल रहे 'लाखों' माइक्रोप्लास्टिक
२० अक्टूबर २०२०
बोतल से दूध पीने वाले शिशु हर दिन लाखों से अधिक माइक्रोप्लास्टिक्स निगल सकते हैं. एक नए शोध में हमारे खाद्य उत्पादों में प्लास्टिक की बहुतायत को उजागर किया गया है.
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इस बात के बढ़ते सबूत हैं कि इंसान बड़ी संख्या में प्लास्टिक के छोटे कणों का अनजाने में उपभोग करता है, लेकिन बहुत कम लोगों को इसके स्वास्थ्य पर होने वाले असर के बारे में पता है. ये छोटे कण तब बनते हैं जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूट जाते हैं. आयरलैंड में शोधकर्ताओं ने शिशुओं के 10 तरह की बोतलों या पॉलीप्रोपाइलीन से बने एक्सेसरीज के टूटने की दर पर शोध किया. यह खाद्य कंटेनरों के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक है.
शोधकर्ताओं ने दूध को बनाने और बोतल को स्टेरलाइज करने के बताए विश्व स्वास्थ्य संगठन के आधिकारिक दिशा-निर्देशों का पालन किया.
21 दिनों की परीक्षण अवधि में टीम ने पाया कि बोतलों ने 13 लाख से लेकर 1.62 करोड़ प्लास्टिक के माइक्रोपार्टिकल्स प्रति लीटर के बीच छोड़े. इसके बाद शोधकर्ताओं ने इस डाटा का इस्तेमाल स्तनपान की राष्ट्रीय औसत दरों के आधार पर बोतल से शिशुओं को दूध पिलाने के दौरान संभावित माइक्रोप्लास्टिक्स के वैश्विक जोखिम मॉडल तैयार करने के लिए किया.
उन्होंने अनुमान लगाया कि बोतल से दूध पीने वाले शिशु औसत हर रोज 10.60 लाख माइक्रो पार्टिकल अपने जीवन के पहले 12 महीनों के दौरान निगल लेते हैं. यह शोध नेचर फूड जर्नल में छपा है और शोधकर्ताओं का कहना है कि स्टेरलाइजेशन और पानी के उच्च तापमान माइक्रोप्लास्टिक के टूटने का मुख्य कारण है.
पानी में जहर घोलता प्लास्टिक
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शोध के लेखकों ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि शोध का लक्ष्य बोतल से निकले वाले माइक्रोप्लास्टिक के संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में "माता पिता को चिंता में डालना नहीं" है.
टीम के सदस्यों का कहना है, "हमने बहुत जोर देकर बताया है कि शिशुओं के माइक्रोप्लास्टिक के कण निगल लेने के संभावित जोखिमों के बारे में हमें नहीं पता है. यह ऐसा विषय है जिस पर और अधिक गहराई से शोध की जरूरत है और हम इस पर लगातार आगे बढ़ रहे हैं."
लेखकों ने उल्लेख किया कि विकसित देशों में शिशु सबसे अधिक माइक्रोप्लास्टिक के कण निगल रहे हैं. बीस लाख से अधिक कण उत्तरी अमेरिका में और उसके बाद यूरोप में सबसे अधिक 26 लाख कण प्रति दिन. शोध में इन अमीर देशों में शिशुओं के कण निगलने का कारण स्तनपान की दर में कमी बताया गया.
बच्चे के जन्म के बाद पहला साल बहुत अहम होता है. इस दौरान बच्चे की नींद और पोषण दोनों पर ध्यान देना जरूरी है. जानिए, शिशु की सेहत के लिए कुछ जरूरी टिप्स.
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वजन पर दें ध्यान
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन चार किलोग्राम या उससे ज्यादा होता है, वह बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं. इसीलिए इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि गर्भवती महिलाएं अत्यधिक खानपान से दूर रहें, कसरत करती रहें और उन्हें डायबिटीज न हो.
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मां से जुड़ाव
बच्चे मां का स्पर्श, उसकी खुशबू को पहचानते हैं. अक्सर कहा जाता हैं कि मां बच्चे की रुलाई पिता से बेहतर पहचानती है. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं, मां और बाप दोनों अपने बच्चे की रोने की आवाज यकीन के साथ और समान रूप से पहचान सकते हैं.
हर बच्चे की नींद का पैटर्न अलग होता है, लेकिन कुल मिला कर नवजात शिशुओं को करीब 16 घंटे की नींद की जरूरत होती है. जैसे जैसे उम्र बढ़ती है यह कम होती जाती है.
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मां का दूध
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जन्म के बाद छह महीने तक तो बच्चे को केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए. थाईलैंड में सिर्फ पांच फीसदी महिलाएं बच्चों को अपना दूध पिलाती हैं. भारत अभी भी इससे बचा है. यूनिसेफ ने कहा कि इस मामले में दुनिया को भारत से सीख लेनी चाहिए.
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हाई टेक बच्चे
इन दिनों बहुत कम उम्र के बच्चों के लिए भी कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर ऐप उपलब्ध हैं, जो बच्चों के विकास में मददगार हैं. पहले दो सालों में दिमाग का आकार तीन गुना बढ़ जाता है, जो कि चीजों को छूने, फेंकने, पकड़ने, काटने, सूंघने, देखने और सुनने जैसी गतिविधियों से मुमकिन होता है.
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मां का तनाव
गर्भावस्था के समय कई बातों का सीधा असर पैदा होने वाले बच्चे और उसके आगे के जीवन पर पड़ता है. यदि गर्भवती महिला तनाव में है तो बच्चे तक पोषक तत्व नहीं पहुंचते. इसी तरह जन्म के बाद भी मां का अपनी सेहत पर ध्यान देना जरूरी है.
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दवाओं से दूर
छोटे बच्चों को अक्सर दवाओं से दूर रखने की कोशिश की जाती है. खास तौर से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बच्चों के लिए हानिकारक होता है. इनसे शरीर के फायदेमंद जीवाणु मर जाते हैं. मोटापा, दमा और पेट की बीमारियां बढ़ती हैं.
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स्वस्थ जीवन
बच्चों के लिए दुनिया बेहतर बन रही है. पिछले एक दशक में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है.