बिना बोले मरीज के दिमाग से वैज्ञानिकों ने पढ़े हजारों शब्द
११ नवम्बर २०२२
लकवे का शिकार आदमी जो ना तो बोल सकता है ना टाइप कर सकता है उसने 1100 से ज्यादा शब्दों को हिज्जे के साथ बताया है. यह संभव हुआ है एक न्यूरोप्रोस्थेटिक डिवाइस की मदद से जो उसके दिमाग की तरंगों को वाक्यों में बदल देती हैं.
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अमेरिकी रिसर्चरों ने यह जानकारी दी है. सैन फ्रांसिस्को की कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी, यूसीएसफ के रिसर्चर और इस रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक शॉन मेत्सगर ने बताया कि इस आदमी का पसंदीदा फ्रेज था "एनिथिंग इज पॉसिबल (कुछ भी संभव है)."
पिछले साल यूसीएसएफ के रिसर्चरों की एक टीम ने दिखाया था कि ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस नाम का ब्रेन इम्प्लांट किस तरह 50 बहुत आम शब्दों को जब कोई इंसान पूरी तरह से बोलने की कोशिश करे तो उनका पता लगा सकता है.
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एक मिनट में 29 कैरेक्टर या 7 शब्द
नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित नई स्टडी बताती है कि वे अब अंग्रेजी वर्णमाला के 26 अक्षरों को पकड़ पाने में सफल हुए हैं जबकि वह उन्हें मन ही मन बोल रहा हो. मेत्सगर ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "तो अगर वो कैट बोलने की कोशिश कर रहा हो तो वह कहेगा चार्ली अल्फा टैंगो." स्पेलिंग इंटरफेस लैंग्वेज मॉडलिंग का इस्तेमाल कर रियल टाइम में डाटा जुटाती है और संभावित शब्द या फिर गलतियों का पता लगाती है.
रिसर्चर 1,150 से ज्यादा शब्दों को डिकोड करन पाने में सफल हुए हैं अंग्रेजी के वाक्यों में इस्तेमाल होने वाले 85 फीसदी शब्द हैं. उनका अंदाजा है कि इस शब्दकोष को 9,000 से ज्यादा शब्दों तक ले जाया जा सकता है. मेत्सगर ने कहा, "यह वास्तव में शब्दों की वही संख्या है जो आमतौर पर इस्तेमाल की जाती है."
इस उपकरण ने हर मिनट में 29 कैरेक्टर डिकोड किये, इनमें गलतियों की दर 6 फीसदी थी. कुल मिला कर देखा जाए तो प्रति मिनट 7 शब्दों को बनाने में सफलता मिली.
अंतरिक्ष में दिमाग पढ़ने वाला हेल्मेट
इस्राएल की एक कंपनी इस खास तरह के हेल्मेट को अंतरिक्ष भेज रही है, जहां अंतरिक्ष यात्रियों के मस्तिष्क का डेटा जमा किया जाएगा. क्यों खास है यह हेल्मेट...
तस्वीर: Nir Elias/REUTERS
खास मिशन पर स्पेस जाएगी हेल्मेट
यह मस्तिष्क की निगरानी करने वाली एक खास तरह की हेल्मेट है जिसे अंतरिक्ष में काम करने के लिए बनाया गया है.
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दस दिन का मिशन
यह हेल्मेट 3 अप्रैल को अंतरिक्ष की यात्रा पर जा रही है, जहां दस दिन तक इसका इस्तेमाल किया जाएगा.
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इस्राएली कंपनी का प्रयोग
इस हेल्मेट को बनाया है इस्राएल की कंपनी ब्रेन डॉट स्पेस ने. इसमें खास तरह की तकनीक इस्तेमाल की गई है जो अंतरिक्ष यात्रियों की मस्तिष्क गतिविधियों का आंकलन करेगी.
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दिमागी गहराइयों में उतरने की कोशिश
ब्रेन डॉट स्पेस के सीईओ और सह संस्थापक याइर लेवी ने रॉयटर्स को बताया, “हमारा मकसद है इंसानी दिमाग की गहराइयों तक पहुंचना. हम मस्तिष्क की भाषा तैयार करना चाहते हैं जिसके जरिए डॉक्टर, शोधकर्ता और यहां तक कि ऐप डिवेलपर्स बेहतर उत्पाद और सेवाएं दे सकें.”
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460 ब्रश
इस हेल्मेट में ईसीजी की सुविधा है और साथ ही खोपड़ी के संपर्क में रहने वाले 460 ब्रश हैं. यही ब्रश मस्तिष्क से डेटा जमा करेंगे.
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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में होगा प्रयोग
यह प्रयोग स्पेस एक्स की फ्लाइट का हिस्सा है जो 3 अप्रैल को दस दिन के मिशन पर रवाना हो सकती है.
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पहला प्रयोग ब्रावो-1 पर
इस आदमी को ब्रावो-1 कहा गया है क्योंकि वह इस उकरण पर प्रयोग का वह पहला प्रतिभागी है. अब 30 साल का हो चुका यह शख्स 20 साल की उम्र में स्ट्रोक का शिकार बना जिसके बाद से उसकी बोलने की क्षमता पूरी तरह चली गई. हालांकि संज्ञानात्मक क्षमताओं को नुकसान नहीं पहुंचा. आमतौर पर वह एक पॉइंटर की मदद से संवाद करता है जो एक बेसबॉल के कैप से जुड़ी है और इसकी मदद से वह स्क्रीन पर लगे अक्षरों की ओर संकेत करता है.
2019 में एक रिसर्चर ने सर्जरी के जरिए हाइ डेंसिटी का एक इलेक्ट्रोड उसके दिमाग की सतह पर कॉर्टेक्स में लगाया था. उसके बाद कोई अक्षर या शब्द बोलने की कोशिश के दौरान उसके सिर में एक लगे पोर्ट की मदद से उस समय पैदा हुए विद्युतीय पैटर्न पर निगरानी रखने में रिसर्चर सफल हुए हैं.
मेत्सगर का कहना है कि ब्रावो 1, "इस उपकरण का इस्तेमाल मजे से करता है क्योंकि वह हमारे साथ आसानी और तेजी से संवाद में सफल हो रहा है." रिसर्च के दौरान एक बढ़िया पल तब आया जब ब्रावो 1 को बोलने के लिए कहा गया व्हाटएवर ही वॉन्ट्स (जो कुछ वह चाहता है)." मेत्सगर ने कहा, "मैंने उसके बारे में बहुत कुछ जान लिया है. वह जहां रहता है वहां का खाना उसे बिल्कुल पसंद नहीं है."
लकवे का मरीज बच्चा जब चलने लगा
8 साल के डेविड जबाला ने रोबोटिक एक्सोस्केलेटन पहन कर मेक्सिको सिटी के थेरेपी रूम में जब चहलकदमी की तो उसके चेहरे पर विजेता की मुस्कान थी. सेरेब्रल पालसी के शिकार इस बच्चे के लिए यह कदम चांद छूने जैसा था.
तस्वीर: Claudio Cruz/AFP
सेरेब्रल पालसी ने किया बेबस
सेरेब्रल पालसी यानी मस्तिष्क के लकवे के कारण जबाला की जिंदगी व्हीलचेयर तक सिमट गयी थी. इसकी वजह से उसे सुनाई भी नहीं देता और उसे इशारों की भाषा से काम चलाना पड़ता है.
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एक्सोस्केलेटन से बदली जिंदगी
एटलस 2030 एक्सोस्केलेटन की मदद से अब वह चल सकता है और आइने के सामने खड़े हो कर मुस्कुराते हुए खुद को निहार सकता है. जबाला की मां गुआडलुपे कारडोसो ने कहा, "वह अपना पहला कदम उठा रहा है, उसके लिए यह मजेदार है. पहले उसे डर लगा और उसके हाथ बहुत तनाव में थे और अब मैं देख रही हूं कि उसने मार्कर पेन उठाया है या फिर गेंद से खेल रहा है."
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आत्मगौरव का अनुभव
बैटरी से चलने वाली टिटेनियम सूट हर बच्चे की गति के हिसाब से आसानी और बड़ी चतुराई से ढल जाता है. यह काम मसल रिहैबिलेटेशन थेरेपी के जरिये किया जाता है. इसके फायदों में मांसपेशियों की मजबूती, पाचन और श्वसन प्रक्रिया में बेहतरी और सबसे ऊपर है मरीजों में आत्मगौरव की अनुभूति.
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धड़ से लेकर पैर तक सपोर्ट
एटलस 2030 एक्सोस्केल्टन धड़ से लेकर पैर तक को सपोर्ट देता है और इसमें सीने के हिस्से को शामिल करने की जरूरत नहीं पड़ती. अगर जरूरी हो तो सिर को संभालने के लिए अलग व्यवस्था की जा सकती है. इस एक्सोस्केलेटन में 8 जोड़ हैं जो हर दिशा में अंगों का मूवमेंट करा सकते हैं.
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सुरक्षित और बदलाव में सक्षम (63503472)
बच्चे के विकास के साथ एक्सोस्केलेटन के डायमेंशन बदले जा सकते हैं. महज पांच मिनट में यह फिट हो जाता है. इसके साथ एक बाहरी फ्रेम भी है जो बच्चे को सुरक्षित रखने के साथ ही ऐसा महसूस कराता है कि वो खुद से चल रहा हो. इसकी वजह से थेरेपिस्ट को पीछे खड़े हो कर सपोर्ट देने की जरूरत नहीं पड़ती
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स्मार्ट एक्सोस्केलेटन
मरीज किस तरफ जाना चाहता है एक्सोस्केलेटन उसे तुरंत समझ लेता है और फिर उसमें बिना दखल दिये हर कदम पर मदद करता है. इसकी इस खूबी को जरूरत के हिसाब से बदला भी जा सकता है और हर मरीज के लिए खास तौर से चलने के पैटर्न भी तैयार किये जा सकते हैं.
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महंगा लेकिन फायदेमंद
मेक्सिको एसोसिएशन फॉर पीपल विद सेरेब्रल पॉलसी ने यह एक्सोस्केलेटन मेक्सिको में मंगाया है. करीब 2,50,000 डॉलर की कीमत का दूसरा एक्सोस्केलेटन भी जल्दी ही यहां पहुंच रहा है. संस्था का कहना है कि इस एक्सोस्केल्टेन के बहुत फायदे हैं. संस्था इसकी मदद से शुरुआत में 200 बच्चों की मदद करना चाहती है.
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एटलस 2030
एक्सोस्केलेटन को स्पैनिश प्रोफेसर एलेना गार्सिया अरमादा ने तैयार किया है जो व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वाले बच्चों को चलने में मदद करता है. एटलस 2030 एक्सोस्केलेटन के लिए इस साल का यूरोपीय इनवेंटर अवॉर्ड दिया है. स्पेन और फ्रांस के बाद मेक्सिको तीसरा देश है जहां एटलस 2030 को बच्चों के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है.
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लिखावट से ज्यादा कारगर बोली
पिछले साल स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में विकसित ब्रेन इंटरफेस कंप्यूटर प्रति मिनट 18 शब्दों को डिकोड करने में सफल हुआ था जब एक प्रतिभागी ने हाथ की लिखावट की कल्पना की. हालांकि मेत्सगर का कहना है कि बोली पर आधारित उनका तरीके के "अनोखे फायदे" हैं. आमतौर पर बोलने जाने वाले 50 शब्द भागीदार खामोशी से पूरा बोल लेता है और इनका इस्तेमाल कई बातचीतों में हो सकता है जबकि जो कम इस्तेमाल होने वाले शब्द हैं उनके हिज्जे किये जा सकते हैं इस तरह ज्यादा बढ़िया बातचीत हो सकती है.
इस रिसर्च को अभी कई और प्रतिभागियों पर परखने की जरूरत होगी. दुनिया में हजारों लोगों को इनकी जरूरत है और वो इसका सामान्य रूप से इस्तेमाल कर सकें, इसमें अभी थोड़ा और वक्त लगेगा. स्ट्रोक, दुर्घटनाएं और बीमारियां हर साल बहुत से लोगों से उनके बोलने की क्षमता छीन लेती है.
कई और वैज्ञानिकों ने भी इस प्रयोग के नतीजों को "शानदार" बताया है. हालांकि इसका इस्तेमाल कम ही लोग कर सकेगें क्योंकि न्यूरोप्रोसेथेटिक सर्जरी अत्यधिक जटिल और बहुत से जोखिमों से भरी है.