ब्राजील में पेटेंट को तोड़ने की इजाजत देने वाला कानून
३ सितम्बर २०२१
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारो ने एक ऐसे कानून पर दस्तखत किए हैं जिसके आधार पर देश को आपातकाल में पेटेंट नियमों का उल्लंघन करने की इजाजत मिल सकती है.
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इस कानून के तहत कोविड-19 जैसे स्वास्थ्य संबंधी आपातकाल में पेटेंट के नियमों का उल्लंघन किया जा सकता है. हालांकि बोल्सनारो ने कानूनों के उन प्रावधानों पर वीटो कर दिया जिनमें पेटेंटधारकों को वैक्सीन और दवाएं बनाने के लिए जरूरी जानकारी और सामग्री की सप्लाई करने के लिए कहा गया था.
राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि उन प्रावधानों को इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्हें लागू करवाना मुश्किल होता और वे नई तकनीकों में शोध के लिए होने वाले निवेश को हतोत्साहित करते.
देखिए, कोरोना का टीका लगवाने पर दावत
कोरोना का टीका लगाने पर "दावत"
लंबे समय के बाद लॉकडाउन खत्म हुआ है, इसलिए सर्बिया में रेस्तरां खुल गए हैं. हालांकि, पूरे देश में अभी भी टीकाकरण गतिविधियां जारी हैं. ऐसे में शहर के एक रेस्तरां ने एक खास पेशकश की है.
तस्वीर: MARKO DJURICA/REUTERS
टीका लगवाओ और भुना गोश्त पाओ
वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने के लिए सर्बिया के क्रागुएवात्स शहर में रेस्तरां मालिक स्ताव्रो रासकोविच ने उन लोगों को मुफ्त में स्थानीय व्यंजन खाने का मौका दिया जिन लोगों ने कोरोना की वैक्सीन लगवा ली. इसके जरिए रासकोविच ने लोगों को धन्यवाद करने की कोशिश की.
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वैक्सीन और खाना
लॉकडाउन की वजह से देश के रेस्तरां, कैफे और बार बुरी तरह प्रभावित हुए. इस साल भी कोरोना को लेकर पाबंदियां लगाई गई थीं, अब पाबंदियां हटा ली गईं हैं और ऐसे में स्ताव्रो रासकोविच ने इस मौके पर लोगों को रेस्तरां के बाहर खाना पेश किया, रेस्तरां के भीतर लोगों को वैक्सीन दी जा रही.
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रेस्तरां में दो टीके
स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने रेस्तरां के मुख्य हॉल को एक टीकाकरण केंद्र में बदल डाला है. यहां पर लोगों को फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन और चीन की सिनोफार्म वैक्सीन दी जा रही है. टीका लगवाने के बाद लोग भुने गोश्त का आनंद ले सकते हैं.
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टीकाकरण पर जोर
सर्बिया ने पिछले साल दिसंबर में ही पूरे देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत की थी. उसने जनता को फाइजर-बायोएनटेक, एस्ट्राजेनेका, स्पुतनिक वी या फिर सिनोफार्म की वैक्सीन लेने का विकल्प दिया.
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इतिहास का हिस्सा
बीयर के साथ रोस्टेड मीट का आनंद लेते 63 साल के बेन यायिक रासकोविच की पहल की सराहना करते हैं और कहते हैं, "एक दिन कोई कहेगा कि बेन अंकल ने यहीं टीका लगवाया था." 70 लाख की आबादी वाले देश में करीब एक तिहाई लोगों को कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है.
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डिस्काउंट वाउचर
सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में तो एक शॉपिंग मॉल ने वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने के लिए डिस्काउंट वाउचर देने का ऐलान किया. मॉल में वैक्सीन लगवाने वालों की भीड़ लग गई और पहले 100 लोगों को करीब 30 डॉलर का वाउचर भी मिला.
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कोरोना टेस्ट पर बीयर
डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में एक बार ऐसे लोगों को बीयर पिलाता है जो उनके बार में कोरोना के लिए एंटीजेन टेस्ट करवाने के लिए आते हैं. बार का मानना है कि इस तरह से उसका कारोबार चल पड़ेगा.
तस्वीर: TIM BARSOE/REUTERS
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बोल्सोनारो इस कानून के समर्थन में नहीं थे और उन्होंने इसे ब्राजील के व्यवसायिक हितों को नुकसान पहुंचाने वाला बताया था. इस कानून के तहत राष्ट्रपति ही फैसला कर सकता है कि आपातकाल के वक्त कब किसी पेटेंट नियम का उल्लंघन किया जाए.
पेटेंट पर विवाद
कोविड-19 महामारी के आने के बाद दुनियाभर में पेटेंट नियमों को लेकर विवाद बढ़ा है. दुनिया के कई देश चाहते हैं कि कोविड-19 की वैक्सीन बनाने के लिए पेटेंट के नियमों में ढील दी जाए ताकि विकासशील और गरीब देश अपनी अपनी जरूरत की हिसाब से वैक्सीन बना सकें.
इस संबंध में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल सितंबर में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन में एक प्रस्ताव पेश किया था जिसे लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है. हालांकि 100 से ज्यादा देश इस प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं, जिसके तहत कोविड वैक्सीन बनाने के लिए पेटेंट के नियमों को अस्थायी तौर पर स्थगित कर देने की बात कही गई है.
प्रस्ताव पर अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन में विमर्श जारी है.
यूरोपीय देश साथ नहीं
इस प्रस्ताव के समर्थक देशों का कहना है कि पेटेंट मुक्त होने से विकासशील देशों में उत्पादन बढ़ेगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगाई जा सकेगी जो कोरोनोवायरस को रोकने के लिए जरूरी है.
दुनिया की बड़ी दवा कंपनियां और उनके देश इस प्रस्ताव का तीखा विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क है कि उत्पादन बढ़ाने में पेटेंट अधिकार कोई बाधा नहीं हैं. इन कंपनियों का विचार है कि पेटेंट अधिकार से मुक्ति का नई खोजें करने की कोशिशों पर बुरा असर पड़ेगा.
तस्वीरेंः कहां कहां पहुंची वैक्सीन
कहां कहां पहुंची वैक्सीन
कोविड-19 वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने के लिए दुनियाभर के सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी दूभर यात्राएं कर रहे हैं. उनका काम है वैक्सीन को उन जगहों पर ले जाना जहां आना-जाना आसान नहीं है. मिलिए, ऐसे ही लोगों से.
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
पहाड़ की चढ़ाई
दक्षिणी तुर्की में दूर-दराज पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने के लिए सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी होना काफी नहीं है. उन्हें शारीरिक रूप से तंदुरुस्त और मजबूत भी होना पड़ता है क्योंकि पहाड़ चढ़ने पड़ते हैं. डॉ. जैनब इरेल्प कहती हैं कि लोग अस्पताल जाना पसंद नहीं करते तो हमें उनके पास जाना पड़ता है.
तस्वीर: Bulent Kilic/AFP
बर्फीली यात्राएं
पश्चिमी इटली के ऐल्पस पहाड़ी के मारिया घाटी में कई बुजुर्ग रहते हैं जो वैक्सिनेशन सेंटर तक नहीं पहुंच सकते. 80 साल से ऊपर के लोगों को घर-घर जाकर वैक्सीन लगाई जा रही है.
तस्वीर: Marco Bertorello/AFP
हवाओं के उस पार
अमेरिका के अलास्का में यह नर्स युकोन नदी के किनारे बसे कस्बे ईगल जा रही है. उसके बैग में कुछ ही वैक्सीन हैं क्योंकि ईगल सौ लोगों का कस्बा है जहां आदिवासी लोग रहते हैं. उन्हें प्राथमिकता दी जा रही है.
तस्वीर: Nathan Howard/REUTERS
मनाना भी पड़ता है
दक्षिणी-पश्चिमी कोलंबिया के पहाड़ी इलाकों में 49 साल के ऐनसेल्मो टूनूबाला का काम सिर्फ वैक्सीन ले जाना नहीं है. उन्हें वैक्सीन की अहमियत भी समझानी पड़ती है क्योंकि कुछ आदिवासी समूह दवाओं से ज्यादा जड़ी-बूटियों पर भरोसा करते हैं.
तस्वीर: Luis Robayo/AFP
कई-कई घंटे चलना
मध्य मेक्सिको नोवा कोलोन्या इलाके में ये लोग चार घंटे पैदल चलकर टीकाकरण केंद्र पहुंचे. ये हुइशोल आदिवासी समूह के लोग हैं.
तस्वीर: Ulises Ruiz/AFP/Getty Images
नाव में सेंटर
ब्राजील के रियो नेग्रो में नोसा सेन्योरा डो लिवरामेंटो समुदाय के लोगों तक वैक्सीन नाव पर बने एक टीकाकरण केंद्र के जरिए पहुंची है.
तस्वीर: Michael Dantas/AFP
अंधेरे में उजाला
ब्राजील के इस आदिवासी इलाके में बिजली नहीं पहुंची है लेकिन वैक्सीन पहुंच गई है. 70 साल की रैमुंडा नोनाटा को वैक्सीन की पहली खुराक मोमबत्ती की रोशनी में मिली.
तस्वीर: Tarso Sarraf/AFP
झील के उस पार
यूगांडा की सबसे बड़ी झील बनयोन्यनी के ब्वामा द्वीप पर रहने वालों को वैक्सीन लगवाने के लिए नाव से आना पड़ता है.
तस्वीर: Patrick Onen/AP Photo/picture alliance
सब जल-थल
जिम्बाब्वे के जारी गांव में पहुंचने के लिए बनी सड़क टूट गई है. नदी पार करने का यही तरीका है लेकिन वैक्सीन तो पहुंचेगी.
तस्वीर: Tafadzwa Ufumeli/Getty Images
जापान के गांव
जापान में शहर भले चकाचौंध वाले हों, आज भी बहुत से लोग दूर-दराज इलाकों में रहते हैं. जैसे किटाएकी में इस बुजुर्ग के लिए स्वास्थ्यकर्मी घर आए हैं टीका लगाने.
तस्वीर: Kazuhiro Nogi/AFP
बेशकीमती टीके
इंडोनेशिया में टीकाकरण जनवरी में शुरू हो गया था. बांडा आचेह से मेडिकल टीम नाव के रास्ते छोटे छोटे द्वीपों पर पहुंची. टीके इतने कीमती हैं कि सेना मेडिकल टीम के साथ गई.
तस्वीर: Chaideer Mahyuddin/AFP
दूसरी लहर के बीच
भारत में जब कोरोना वायरस चरम पर था, तब वैक्सीनेशन जारी था. लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित बहाकजरी गांव में मेडिकल टीम के पास पहुंचे लोग मास्क आदि से बेपरवाह दिखाई दिए. (ऊटा श्टाइनवेयर)
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
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भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव को अमेरिका और चीन समेत कई दर्जन देशों का समर्थन मिला है. लेकिन यूरोपीय देश और जापान व कोरिया इस प्रस्ताव के तगड़े विरोधी हैं. रॉकवेल ने कहा कि देशों का एक समूह ऐसा भी है जो इस समस्या का व्यवहारिक हल चाहता है.
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वैक्सीन में ऊंच नीच
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि वे अमीर और गरीब के बीच की खाई को न बढ़ाएं. डब्ल्यूएचओ ने अमीर देशों के अपने नागरिकों को वैक्सीन की तीसरी खुराक देने की योजना की आलोचना की है.
कुछ विकसित और अमीर देशों ने अपने नागरिकों को कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक देने का फैसला किया है. इस्राएल में वैक्सीन की तीसरी खुराक पहले से ही दी जा रही है. कुछ ऐसा ही फैसला अमेरिका ने भी किया है. यूरोपीय देशों में भी कुछ ऐसा ही करने का विचार किया जा रहा है.
इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य आपातकाल प्रमुख माइकल रायन ने इस विचार का मजाक उड़ाते हुए कहा, "हम उन लोगों को अतिरिक्त लाइफ जैकेट देने की योजना बना रहे हैं जिनके पास पहले से लाइफ जैकेट हैं, जबकि हम अन्य लोगों को डूबने के लिए छोड़ रहे हैं."
वैक्सीन बनाने में कितना वक्त लगता है?
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डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने भी पहली खुराक देने के बजाय पहले से सुरक्षित लोगों को तीसरा टीका देने के लिए दुनिया के ऐसे देशों की आलोचना की है. गेब्रयेसुस का कहना है कि इस प्रक्रिया से अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी होगी.
गेब्रयेसुस ने वैक्सीन निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की भी आलोचना की है. गेब्रयेसुस ने अमेरिकी वैक्सीन निर्माता कंपनी के बारे में उन रिपोर्टों का जिक्र किया जिनमें कहा जा रहा है कि कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका में बने लाखों टीके को समृद्ध यूरोपीय संघ के देशों में बूस्टर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भेज दिया है.
महानिदेशक ने दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन को प्राथमिकता के आधार पर अफ्रीकी देशों को अपने टीके उपलब्ध कराने के लिए कहा है. उनका कहना है कि अमीर देशों के पास पहले से ही अन्य टीकों की आसान पहुंच है.
कोविड वैक्सीन के उत्पादन को पेटेंट की पाबंदियों से मुक्त करने के मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन में कोई सहमित नहीं बन पाई है. इसका अर्थ है कि विकासशील देशों का खुद ही वैक्सीन बनाने को कोशिश कामयाब नहीं हो पाएगी.