यहां ब्रेकअप के दर्द से उबरने में युवाओं की मदद करेगी सरकार
२२ मार्च २०२३
न्यूजीलैंड में युवाओं को ब्रेकअप के दर्द से उबरने में मदद करने के लिए "लव बेटर" नाम के अभियान की शुरुआत की गई है. सभी विकसित देशों के बीच न्यूजीलैंड में युवाओं द्वारा आत्महत्या की दर सबसे ऊंची दरों में से है.
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"ब्रेकअप बहुत बुरे होते हैं...लेकिन आप अपनी मदद कर सकते हैं. इस अहसास को स्वीकार कीजिए." एक शांतिदायक आवाज में यह संदेश दिल टूटने के दर्द से गुजर रहे न्यूजीलैंड के युवाओं के लिए सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा है.
इसके तहत ब्रेकअप होने पर क्या करें इसे लेकर सलाह और मदद उपलब्ध कराई जा रही है. "लव बेटर" अभियान को पॉडकास्टों में और इंस्टाग्राम जैसे युवाओं के बीच लोकप्रिय सोशल मीडिया मंचों तक पहुंचाया जाएगा.
ताकि ब्रेकअप के दर्द को कम किया जा सके
डाटा एनालिसिस कंपनी 'कान्तार' के मुताबिक न्यूजीलैंड में हर 10 में से छह 16 से 24 साल की उम्र के युवा ब्रेकअप से गुजर चुके हैं और इनमें ऐसे युवाओं की बड़ी संख्या है जिन्होंने इसकी वजह से या तो "नुकसानदेह असर का अनुभव" किया है या उन्होंने खुद कुछ नुकसानदेह किया है.
भविष्य को संवारते युवा
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यूनिसेफ के मुताबिक देश में विकसित देशों के युवाओं द्वारा आत्महत्या की दर सबसे ऊंची दरों में से है. ये नया अभियान खुद को "ताजा ब्रेकअप से गुजरे लोगों का एक समुदाय" बता रहा है जो "ताजा ब्रेकअप से गुजरे लोगों के थोड़े से दर्द को बहुत बड़ा दर्द बना जाने से रोकने में मदद कर रहा है."
इसके वीडियो में ऐसे युवाओं को दर्शाया गया है जो खुद ब्रेकअप से गुजरे हैं. वो वीडियो में बताते हैं कि उन्होंने ब्रेकअप का कैसे सामना किया. एक बेचैन युवा कहता है, "मुझे ये करना पड़ेगा, सच में. यह बेतुका होता जा रहा है. मुझे रात को सोना है. मुझे उससे उबरना है."
दूसरे युवाओं का सहारा
यह कह कर वो युवा सोशल मीडिया पर अपनी पूर्व क्रश को ब्लॉक कर देता है. न्यूजीलैंड की सरकार में सामाजिक विकास की एसोसिएट मंत्री प्रियंका राधाकृष्णन ने बताया कि सरकार इस अभियान पर तीन सालों में 39 लाख रुपये खर्च करेगी.
राधाकृष्णन कहती हैं, "हमें मालूम है कि ब्रेकअप दर्द देते हैं. हम अपने युवाओं को सहारा देना चाहते हैं...और उन्हें बताना चाहते हैं कि बिना खुद का या दूसरों का नुकसान किए भी इससे निकलने का एक तरीका है."
उन्होंने यह भी बताया कि "लव बेटर" एक "प्राथमिक निवारण कार्यक्रम" है ताकि युवा "उन्हीं के जैसे अनुभवों से गुजर रहे उनके साथियों की मदद करने के लिए उनके साथ असली कहानियां" साझा कर पाएं.
सीके/एए (एएफपी)
93,000 युवाओं ने की आत्महत्या
बॉलीवुड के सितारे सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के मामले की हर तरफ चर्चा हो रही है. लेकिन देश में हर साल लाखों लोगों की मौत आत्महत्या की वजह से होती है. जानिए क्या कहते हैं ताजा आंकड़े.
तस्वीर: vkara - Fotolia.com
बढ़ रही है समस्या
2019 में भारत में 1.39 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई. इसमें 2018 के मुकाबले 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Jaiswal
मरने वालों में ज्यादा पुरुष
2019 में आत्महत्या से मरने वालों में पुरुषो और महिलाओं का अनुपात 70.2 के मुकाबले 29.8 रहा. मरने वालों में 97,613 पुरुष थे, और उनमें सबसे ज्यादा संख्या (29,092) दिहाड़ी पर काम करने वालों की थी. 14,319 पुरुष स्व-रोजगार में थे और 11,599 बेरोजगार थे.
तस्वीर: AFP/A. Singh
विवाह या दहेज बड़ा कारण
मरने वालों में कुल 41,493 महिलाएं थीं, जिनमें 21,359 गृहणी थीं, 4,772 विद्यार्थी थीं और 3,467 दिहाड़ी पर काम करने वाली थीं. महिलाओं में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण दहेज और विवाह में उत्पन्न हुई अन्य समस्याओं को पाया गया. इनमें नपुंसकता और इनफर्टिलिटी भी शामिल हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Fadnavis
पारिवारिक कलह सबसे ज्यादा जिम्मेदार
पारिवारिक कलह को आत्महत्या के सबसे ज्यादा (32.4 प्रतिशत) मामलों के लिए जिम्मेदार पाया गया है. 17.1 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या का कारण बीमारी थी. इसके अलावा 5.6 प्रतिशत मामलों के पीछे ड्रग्स की लत, 5.5 प्रतिशत मामलों के पीछे विवाह संबंधी कारण, 4.5 प्रतिशत मामलों के पीछे विफल प्रेम-प्रसंग और 4.2 प्रतिशत मामलों के पीछे दिवालियापन को कारण पाया गया.
तस्वीर: Reuters/A. Fadnavis
बेरोजगारी बड़ा कारण
कम से कम 2,851 आत्महत्या के लिए बेरोजगारी को जिम्मेदार पाया गया. बेरोजगारी और भी बड़ा कारण हो सकती है क्योंकि आत्महत्या से मरने वालों में कम से कम 14,019 लोग बेरोजगार थे. ऐसे सबसे ज्यादा मामले कर्नाटक में सामने आए, उसके बाद महाराष्ट्र में, फिर तमिलनाडु, झारखंड और गुजरात में.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
मर रहे हैं किसान और दिहाड़ी कमाई वाले
आत्महत्या से मरने वालों में कम से कम 42,480 किसान और दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग थे. इनमें 10,281 किसान थे और 32,559 दिहाड़ी कमाई वाले. किसानों में 5,563 पुरुष थे और 394 महिलाएं. कृषि श्रमिकों में 3,749 पुरुष थे और 575 महिलाएं. दिहाड़ी कमाई वालों में 29,092 पुरुष थे और 3,467 महिलाएं.
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युवा ले रहे हैं अपनी जान
इनमें से 67 प्रतिशत, यानी 93,061, लोगों की उम्र 18-45 साल के बीच थी. युवाओं में भी आत्महत्या के मामले 2018 के मुकाबले बढ़े हैं. इनमें चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Str
फांसी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल
आत्महत्या के तरीकों में फांसी के मामले सबसे ज्यादा है. 53.6 प्रतिशत (लगभग 74,629) लोगों ने खुद को फांसी लगा ली.
तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press/W. Sabawoon
महाराष्ट्र में स्थिति सबसे खराब
आंकड़ों को राज्यवार देखें तो सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र में सामने आए. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में ही पूरे देश के कुल मामलों में से 50 प्रतिशत मामले पाए गए. लेकिन आत्महत्या की दर चार दक्षिणी राज्य केरल, कर्नाटक, तेलांगना और तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पाई गई. बिहार में दर सबसे काम पाई गई, लेकिन वहां 2018 के मुकाबले मामले 44.7% प्रतिशत बढ़ गए.
तस्वीर: Reuters
आय और शिक्षा
मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या में लोग (23.3 प्रतिशत) मैट्रिक तक ही पढ़े लिखे थे. सिर्फ 3.7 प्रतिशत ने स्नातक या उससे ऊपर की पढ़ाई की थी. 66.2 प्रतिशत लोगों की सालाना आय एक लाख रुपए से भी कम थी, जब कि 29.6 प्रतिशत लोगों की आय एक लाख से पांच लाख के बीच थी.