ब्रेक्जिट के समर्थकों और विरोधियों में बढ़ती तनातनी
१४ जनवरी २०१९दुनिया में इस समय 195 स्वतंत्र देश हैं और ज्यादातर की कमान पुरुषों के हाथ में है. कुछ ही देश ऐसे हैं जहां सत्ता की बागडोर महिलाओं के हाथों में है. एक नजर ऐसी ही ताकतवर महिला राजनेताओं पर.
इन देशों में महिलाओं की सत्ता है
दुनिया में इस समय 195 स्वतंत्र देश हैं और ज्यादातर की कमान पुरुषों के हाथ में है. कुछ ही देश ऐसे हैं जहां सत्ता की बागडोर महिलाओं के हाथों में है. एक नजर ऐसी ही ताकतवर महिला राजनेताओं पर.
अंगेला मैर्केल
62 वर्षीय अंगेला मैर्केल पहली बार 2005 में जर्मनी की चांसलर बनीं. इस पद तक पहुंचने वाली वह पहली महिला हैं. सितंबर 2017 के आम चुनाव में वह चौथी बार चांसलर पद की उम्मीदवार हैं. फिजिकल कैमिस्ट्री में डॉक्ट्रेट करने वाली मैर्केल को 2015 में टाइम्स पत्रिका ने "पर्सन ऑफ द ईयर" चुना था. दुनिया भर में बढ़ते दक्षिणपंथ के बीच मीडिया में उन्हें अकसर मुक्त दुनिया की नेता कहा जाता है.
टेरीजा मे
टेरीजा मे ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री हैं. 1980 के दशक में मारग्रेट थैचर इस पद तक पहुंचने वाली पहली महिला थीं. 60 वर्षीय मे ने जुलाई 2016 में ब्रेक्जिट के तुरंत बाद प्रधानमंत्री पद संभाला. इससे पहले वह ब्रिटेन की गृह मंत्री थीं. वह कितने समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहेंगी, इसका फैसला 8 जून को होने वाले आम चुनाव में होगा.
साई इंग वेन
साई इंग वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला हैं. मई 2016 में उन्होंने पद संभाला, जिसके बाद चीन के साथ ताइवान के रिश्तों में तनाव दिखने लगा. ताइवान खुद को अलग देश मानता है जबकि चीन उसे अपना एक अलग हुआ हिस्सा कहता है, जिसे एक दिन चीन में मिलना है. साई ने कहा है कि वह संप्रभुता के मुद्दे पर समझौता नहीं करेंगी.
एलन जॉनसन सरलीफ
78 वर्षीय सरलीफ 2006 से लाइबेरिया की राष्ट्रपति हैं. अफ्रीकी महाद्वीप में राष्ट्रपति बनने वाली वह पहली महिला हैं. 2011 में उन्हें लाइबेरिया और यमन की दो महिला कार्यकर्ताओं के साथ संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. उन्हें यह सम्मान महिलाओं और उनके अधिकारों के लिए अहिंसक संघर्ष में योगदान के लिए दिया गया.
दालिया ग्रिबोस्काइते
ग्रिबोस्काइते बाल्टिक देश लिथुआनिया की पहली महिला राष्ट्रपति हैं. उन्हें अकसर "लौह महिला" कहा जाता है. वह कराटे में ब्लैक बेल्ट हैं और कभी अनापशनाप नहीं बोलती हैं. 2009 में राष्ट्रपति बनने से पहले वह सरकार में कई अहम पदों पर रह चुकी हैं. 2014 में उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुना गया.
एरना सोलबर्ग
नॉर्वे में भी एक महिला का ही शासन है. एरना सोलबर्ग 2013 से ही नॉर्वे की प्रधानमंत्री हैं. ग्रो हारलेम के बाद वह नॉर्वे की प्रधानमंत्री बनने वाली दूसरी महिला हैं. उनकी सख्त शरणार्थी नीति के कारण उन्हें "आयरन एरना" का नाम मिला है. वह नॉर्वे की कंजरवेटिव पार्टी की प्रमुख भी हैं.
बेएता सिदवो
बेएता सिदवो पोलैंड की तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं और वह नवंबर 2015 से इस पद पर हैं. संसद में अपने पहले संबोधन में उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार की प्राथमिकता पोलिश लोगों की सुरक्षा और यूरोपीय संघ की सुरक्षा में योगदान देना है. वह लंबे समय से राजनीति में है. प्रधानमंत्री बनने से पहले वह मेयर और सांसद रही हैं.
सारा कुगोंगेल्वा-अमादिला
49 साल की कुगोंगेल्वा-अमादिला नामीबिया की चौथी प्रधानमंत्री हैं. वह 2015 से इस पद पर हैं. कुगोंगेल्वा-अमादिला जब किशोरी थीं तो उन्हें सिएरा लियोन में निर्वासित जीवन जीना पड़ा. उन्होंने अमेरिका से पढ़ाई की और 1994 में स्वदेश लौटने से पहले उन्होंने अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की. वह नामीबिया में सरकार का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं और महिला अधिकारों की हितैषी हैं.
मिशेल बेशलेट
मिशेल बेशलेट 2014 से लातिन अमेरिकी देश चिली की राष्ट्रपति हैं. राष्ट्रपति के रूप में यह उनका दूसरा कार्यकाल है. इससे पहले वह 2006 से 2010 तक भी इस पद पर थीं. चिली में युवा अवस्था में कैद और उत्पीड़न का शिकार बनीं बेशलेट ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी जर्मनी में निर्वासन में रहीं, जहां उन्होंने मेडिसिन की पढ़ाई की. 1979 में स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने चिली में लोकतंत्र कायम करने में योगदान दिया.
शेख हसीना वाजेद
फोर्ब्स पत्रिका ने 2016 के लिए दुनिया की सबसे ताकतवर 100 महिलाओं में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी शामिल किया था. वह दशकों से बांग्लादेश की राजनीति में सक्रिय हैं. बांग्लादेश दुनिया का आठवां सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है जहां 16.2 करोड़ लोग रहते हैं. वह 2009 से सत्ता में हैं. इससे पहले वह 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री रहीं.
कोलिना ग्राबर-कितारोविच
ग्राबर-कितारोविच क्रोएशिया की पहली महिला और सबसे युवा राष्ट्रपति हैं. उन्हें 2015 में इस पद पर चुना गया था. इससे पहले वह सरकार में कई अहम पदों पर रहने के अलावा अमेरिका में क्रोएशिया की राजदूत भी रही हैं. वह 2011 से 2014 तक नाटो में सार्वजनिक कूटनीति के मुद्दे पर सहायक महासचिव भी रही हैं. नाटो की प्रशासनिक टीम में किसी महिला को मिला यह सबसे अहम पद था.