ब्रिटेन के वित्त मंत्री जॉर्ज ऑस्बोर्न ने घोषणा की है कि देश में लागू होने वाले कॉर्पोरेट टैक्स में भारी कटौती की जाएगी. इसे ईयू से अलग होने के बाद आर्थिक व्यवस्था को लगने वाले बड़े झटके के डर के रूप में देखा जा रहा है.
विज्ञापन
ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला तो कर लिया लेकिन इसके परिणाम क्या होंगे, इस पर अब चिंता बढ़ती जा रही है. ब्रिटेन को अब इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं बड़े व्यवसाय देश छोड़ कर ही ना जाने लगें. इसे रोकने के लिए वित्त मंत्री जॉर्ज ऑस्बोर्न ने कॉर्पोरेट टैक्स में भारी कटौती की घोषणा की है.
अंग्रेजी अखबार 'फाइनैंशियल टाइम्स' से बात करते हुए उन्होंने बताया कि वे मौजूदा 20 प्रतिशत के कॉर्पोरेट कर को 15 प्रतिशत से भी कम करने पर विचार कर रहे हैं ताकि निवेशकों को ब्रेक्जिट का ज्यादा बड़ा झटका ना लगे. हालांकि ऐसा कब से लागू होगा, इस पर उन्होंने कोई समय सीमा नहीं बताई है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी के अधिकतर देशों में यह कर औसतन 25 फीसदी है. ऐसे में ब्रिटेन उम्मीद कर रहा है कि 15 फीसदी की दर निवेशकों को लुभाएगी.
ऑस्बोर्न ने अपने इंटरव्यू में कहा कि वे "एक बेहद प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था" बनाना चाहते हैं, जहां टैक्स कम हो और जो अंतरराष्ट्रीय बाजार पर केंद्रित हो. वहीं ओईसीडी ब्रिटेन के इस फैसले से खासा नाराज नजर आ रहा है. संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि ब्रिटेन ऐसा करता है, तो उसकी अर्थव्यवस्था "टैक्स हेवन" में तब्दील होने लगेगी. आम भाषा में टैक्स हेवन उन जगहों को कहा जाता है जहां करों की दर बहुत ही कम होती है. कम दरों के चलते यहां मनी लॉन्डरिंग होती है और ये कर चोरी के स्वर्ग बन जाते हैं. कुछ वक्त पहले लीक हुई पनामा फाइल्स में ऐसे देशों की पोल खुली है. स्विट्जरलैंड और हांगकांग पहले ही मनी लॉन्डरिंग के लिहाज से खासे बदनाम हैं.
ब्रिटेन का यह कदम यूरोपीय संघ के देशों को नाराज करने के लिए भी काफी है. लेकिन ऑस्बोर्न ने अपनी योजना का बचाव करते हुए कहा है, "हमें क्षितिज पर ध्यान केंद्रित करना होगा और अपनी यात्रा को आगे बढ़ाना होगा." अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वित्त मंत्री अब ईयू के बाहर के देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की भी योजना बना रहे हैं. खास कर चीन के बाजार पर ब्रिटेन का ध्यान बना हुआ है.
इन तरीकों से होती है मनी लॉन्डरिंग
पनामा फाइल लीक्स के बाद से दुनिया भर के रईसों की पोल एक एक कर खुल रही है. लेकिन आखिर ये लोग अरबों की धनराशि को सरकार से छिपा कर गायब करते कैसे हैं? जानिए, मनी लॉन्डरिंग के कुछ तरीकों के बारे में.
तस्वीर: Colourbox
काले धन का निवेश
जिस धन को वैध रूप से दिखाया नहीं जा सकता, आखिर उसका क्या किया जाए? दुनियाभर के अधिकतर धनी लोग इसे या तो स्टॉक एक्सचेंज में लगा देते हैं या फिर किसी तरह के जुए में. अक्सर किसी दूसरे के नाम पर नाइटक्लब या फिर बार भी खरीद लिए जाते हैं. और कहीं दूर बड़ा सा घर खरीदने का विकल्प तो सब जानते ही हैं.
तस्वीर: picture alliance/AFP Creative/K. Bleier
पैसे की मारी दुनिया
सिर्फ माफिया या ड्रग डीलरों को ही काले धन से निपटने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि भ्रष्ट नेता और कई अभिनेता भी ऐसा करते हैं. चीन में पाया गया है कि 2002 से 2011 के बीच करीब 1,800 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर धनराशि अवैध रूप से देश के बाहर गयी. इसी दौरान रूस को 880 अरब डॉलर का चपत लगी. पूरी दुनिया की बात करें तो 5,400 अरब डॉलर काला धन है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Büttner
कर चोरी के स्वर्ग
इन्हें आम भाषा में टैक्स हेवन कहा जाता है क्योंकि यहां करों की दर बहुत ही कम होती है. पनामा के अलावा हॉन्ग कॉन्ग भी इसके लिए मशहूर है. किसी के भी नाम पर एक नई कंपनी खोल दी जाती है और काला धन उसमें ट्रांसफर कर दिया जाता है. कंपनी का सक्रिय होना जरूरी नहीं है, बस एक नाम चाहिए, एक पता और बैंक अकाउंट.
तस्वीर: DW/M. Soric
चीन के जंकेट
मकाऊ के कसीनो में मनी लॉन्डरिंग के लिए एक ट्रिक है. दरअसल चीन में एक बार में 20,000 युआन से अधिक देश से बाहर नहीं ले जाया जा सकता. ऐसे में लोग जुआ खेलने के मकसद से जंकेट को पैसा ट्रांसफर करते हैं. जंकेट इसे कसीनो के सिक्कों में तब्दील कर देता है. जुए में जीती गयी राशि भी इन सिक्कों के रूप में ही मिलती है, जिसे आसानी से हॉन्ग कॉन्ग ले जा कर डॉलर में कन्वर्ट कराया जा सकता है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
स्मर्फ की मदद से
जी नहीं, यहां नीले रंग के कार्टून किरदार की बात नहीं हो रही है, बल्कि स्मर्फ मनी लॉन्डरिंग में बड़ी भूमिका निभाते हैं. इनका काम होता है अपने क्लाइंट की धनराशि को छोटे छोटे टुकड़ों में बांट कर अलग अलग अकाउंटों में जमा कराना. एक व्यक्ति के लिए एक साथ कई स्मर्फ काम कर सकते हैं और क्योंकि राशि धीरे धीरे अलग अलग सूत्रों के जरिये डिपॉजिट होती है, इसलिए कोई शक भी पैदा नहीं होता.
तस्वीर: lassedesignen
हीरे की चमक
धन काला हो या सफेद, भारत में भी सोने चांदी और हीरे के आभूषण निवेश के मकसद से खरीदे जाते रहे हैं. 2008 की एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे स्विस बैंक अक्सर अपने कस्टमर को हीरों में निवेश करने की सलाह देते हैं क्योंकि इन्हें पैसे की तुलना में आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है. हवाई अड्डों पर कई बार टूथपेस्ट की ट्यूब में हीरे छिपा कर तस्करी की जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg
6 तस्वीरें1 | 6
ब्रिटेन ने 23 जून को हुए जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला लिया. अब ब्रिटेन को 50 से अधिक देशों के साथ कारोबार की शर्तों पर फिर से ध्यान देना होगा. ईयू के सदस्य देशों के लिए यह काम यूरोपीय आयोग करता है. इसका मतलब यह हुआ कि 1973 में ईयू में शामिल होने के बाद से ब्रिटेन ने कभी खुद अकेले यह काम नहीं संभाला है. सरकार व्यापार के विशेषज्ञों के साथ बातचीत कर रही है और कुछ सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को फिर से नौकरी पर रखने पर विचार कर रही है.
ब्रिटिश विदेश मंत्री फिलिप हेलमंड ने तो यहां तक कहा है कि अंतरराष्ट्रीय कारोबार की चुनौतियों का सामना करने के लिए ब्रिटेन विदेशी वार्ताकारों की नियुक्ति करेगा. ब्रिटेन के अधिकारियों को व्यापारिक सौदेबाजी का अनुभव नहीं रह गया है. इस समय सिर्फ 55 ब्रिटिश अधिकारी यूरोपीय आयोग के वाणिज्य विभाग में व्यापारिक समझौतों पर काम करते हैं.
आईबी/एमजे (रॉयटर्स, एएफपी)
यूके, जीबी, ब्रिटेन और इंग्लैंड में फर्क
कभी यूके, कभी ग्रेट ब्रिटेन तो कभी इंग्लैंड, आखिर ये चक्कर क्या है. चलिए इस समझते हैं ताकि आगे ये कंफ्यूजन न रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R.Peters
यूनाइटेड किंगडम (यूके)
असल में इसका पूरा नाम यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉदर्न आयरलैंड है. यूके में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स आते हैं. इन चारों के समूह को ही यूके कहा जाता है.
तस्वीर: Getty Images/JJ.Mitchell
ग्रेट ब्रिटेन
इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स के संघ को ग्रेट ब्रिटेन कहा जाता है. तीनों अलग अलग प्रांत हैं. तीनों प्रांतों की अपनी संसद है लेकिन विदेश नीति और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर फैसला ग्रेट ब्रिटेन की संघीय संसद करती है. तस्वीर में बायीं तरफ इंग्लैंड का झंडा है, दायीं तरफ स्कॉटलैंड का. बीच में ग्रेट ब्रिटेन का झंडा है.
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ब्रिटेन
यह नाम रोमन काल में इस्तेमाल हुए शब्द ब्रिटानिया से आया है. ब्रिटेन इंग्लैंड और वेल्स को मिलाकर बनता है. हालांकि अब सिर्फ ब्रिटेन शब्द का इस्तेमाल कम होता है. यूरो 2016 में इंग्लैंड बनाम वेल्स का मैच.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Rain
इंग्लैंड
इंग्लैंड एक देश है. जिसकी राजधानी लंदन है. स्काटलैंड और वेल्स की तरह इंग्लैंड की अपनी फुटबॉल और क्रिकेट टीम हैं. इन टीमों में दूसरे प्रांतों के खिलाड़ी शामिल नहीं होते हैं.
तस्वीर: Reuters/J.-P. Pelissier
राजधानियां
उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफास्ट है. स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा है और वेल्स की राजधानी कार्डिफ है.
भाषा
अंग्रेजी भाषा होने के बावजूद इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स में लहजे का फर्क है. आम तौर पर मजाक में लोग एक दूसरे इलाके के लहजे का मजाक भी उड़ाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa
खासियत
स्कॉटलैंड के लोगों को अपनी विश्वप्रसिद्ध स्कॉच पर गर्व है. बैगपाइपर का संगीत स्कॉटलैंड की पहचान है. वहीं आयरलैंड के लोग आयरिश व्हिस्की और बियर का गुणगान करते हैं. इंग्लैंड मछली और चिप्स के लिए मशहूर है.
तस्वीर: Getty Images
मतभेद
राजस्व के आवंटन के अलावा ग्रेट ब्रिटेन (इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड) के प्रांतों के बीच विदेश नीति को लेकर भी मतभेद रहते हैं. यूरोपीय संघ की सदस्यता को लेकर मतभेद सामने भी आ चुके हैं. अगर ग्रेट ब्रिटेन यूरोपीय संघ से निकला तो स्कॉटलैंड स्वतंत्र देश बनने का एलान कर चुका है.
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ईयू से मतभेद
यूरोपीय संघ के आलोचकों का कहना है कि ईयू की सदस्यता से ब्रिटेन को आर्थिक और सामाजिक क्षति पहुंची है. तटीय इलाकों में रहने वाले मछुआरे करीब करीब बर्बाद हो चुके हैं. बड़ी संख्या में पोलैंड से आए प्रवासियों का मुद्दा भी समय समय पर उठता रहा है.
तस्वीर: Reuters/T. Melville
राजनैतिक खींचतान
यूरोपीय संघ की नीतियां सदस्य देशों को लागू करनी पड़ती हैं. चाहे वह बजट का वित्तीय घाटा हो, शरणार्थियों का मुद्दा हो या फिर मार्केट रेग्युलेशन. ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन इसे राजनीतिक हस्तक्षेप करार दे चुके हैं.