बुल्ली बाई मामले में सभी छह अभियुक्तों को जमानत मिल गई है. जमानत के लिए दी गई दलीलों में कहा गया था कि अगर उनके खिलाफ आरोप सच्चे भी हैं तो भी अदालत को उनके प्रति "पिता तुल्य" रुख अपनाना चाहिए.
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मुंबई सेशंस कोर्ट ने बुल्ली बाई मामले में गिरफ्तार तीन अभियुक्तों - ओंकारेश्वर ठाकुर, नीरज बिश्नोई और नीरज सिंह - को जमानत दे दी. अप्रैल में मुंबई के ही एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने विशाल झा, श्वेता सिंह और मयंक रावत को जमानत दे दी थी.
इसी के साथ मामले में गिरफ्तार किए गए सभी छह अभियुक्त जमानत पर बाहर आ गए हैं. ओंकारेश्वर ठाकुर, नीरज बिश्नोई और नीरज सिंह को अतिरिक्त सेशंस जज एबी शर्मा ने 50,000 रुपयों के जमानत बांड और उतनी ही धनराशि के एक या दो साल्वेंट बांड पर जमानत देने का आदेश दिया.
अभियुक्तों को हर महीने साइबर पुलिस स्टेशन जाने का और अदालत की अनुमति के बिना विदेश यात्रा ना करने का आदेश भी दिया गया. पूरा मामला 'बुल्ली बाई' नाम के ऐप से जुड़ा है. ऐप पर 100 से ज्यादा जानी मानी मुस्लिम महिलाओं के नाम और तस्वीरें डाल कर उनकी वर्चुअल बोली लगाई गई थी.
'बुल्ली बाई' ऐप पर जिनकी तस्वीरें डाली गईं उनमें प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आजमी, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पत्नी, कई पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता शामिल हैं.
इनमें से कई महिलाओं की शिकायत करने के बाद मुंबई पुलिस के साइबर सेल ने जनवरी 2022 में एफआईआर दर्ज कर इन अभियुक्तों को गिरफ्तार किया था. इससे पहले 'सुल्ली डील्स' नाम का एक और इसी तरह का ऐप भी सामने आया था. 'सुल्ली डील्स' पर 80 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें डाली गई थीं. ऐप के खिलाफ दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मामले दर्ज किए गए लेकिन अब तक उस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है और ना ही कोई गिरफ्तारी.
ये जानकारी अभी सामने नहीं आई है कि "सुल्ली डील्स" और "बुल्ली बाई" जैसे ऐप बनाने के पीछे असली लोग कौन हैं और उनको किसका समर्थन हासिल है. लेकिन कई जानकारों का कहना है कि इस तरह के अभियानों में कट्टरपंथी विचारों में विश्वास करने वाले और फैलाने वाले पढ़े लिखे युवा शामिल हैं.
गिरफ्तार किए गए लोगों को सोशल मीडिया पर 'ट्रैड्स' के नाम से जाने जाने वाले समूहों का हिस्सा बताया जाता है. इन 'ट्रैड्स' पर लंबे समय से नजर रखने वाले पत्रकारों का कहना है कि सोशल मीडिया पर इस तरह के हजारों खाते हैं जिनमें से कुछ के तो लाखों फॉलोवर हैं. इनमें से कई खातों की ट्वीटों को कुछ सेलिब्रिटी खाते लाइक और रिट्वीट जरूर करते हैं.
पत्रकार नील माधव ने डीडब्ल्यू को बताया था कि ये साइबर बुलीइंग और उत्पीड़न बहुत संगठित तरीके से करते हैं. और मुख्य रूप से दलितों, मुस्लिमों, ईसाईयों और सिखों के खिलाफ ना सिर्फ विचारों बल्कि सक्रिय रूप से हिंसा को बढ़ावा देते हैं. ये हत्या, बलात्कार और हर तरह की हिंसा करने की खुलेआम धमकी देते हैं.
हालांकि जमानत के लिए अदालत को दी अर्जी में ओंकारेश्वर ठाकुर, नीरज बिश्नोई और नीरज सिंह ने कहा था कि उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं. उन्होंने माना था कि वो बुल्ली बाई ऐप को फॉलो करते थे लेकिन उन्होंने ऐप को बनाया नहीं था. उन्होंने यह दलील भी दी थी कि अगर आरोप सही भी हों तो अदालत को "पिता तुल्य" रुख अपनाना चाहिए क्योंकि उन्हें जेल में डाले जाने की जगह काउंसलिंग की जरूरत है.
आस पास के देशों में ऐसा है महिलाओं का हाल
एशियाई देशों में महिलाओं की स्थिति बीते सालों में सुधरी है. बावजूद इसके अब भी समाज में कई विसंगतियां और परेशानियां बनी हुई है. एक नजर भारत और आसपास के देशों पर.
तस्वीर: Ghazanfar Adeli/DW
भारत
अब तक बाजार में दुकानों पर काम करना पुरुषों का काम समझा जाता था, लेकिन अब महिलाएं गैर पारंपरिक क्षेत्रों में काम करने लगी हैं. इसके बावजूद समाज में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और अपराध बने हुए हैं. कुछ समय पहले ही भारत में #MeToo कैंपेन शुरू हुआ था. इस कैंपेन में कई प्रभावशाली महिलाओं से लेकर आम औरतों ने अपने साथ हुए यौन शोषण की कहानी बयान की थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
पाकिस्तान
इस तस्वीर में बीच में बैठी दिख रही महिला पाकिस्तान की पहली महिला कार मैकेनिक, उज्मा नवाज है. पाकिस्तान में महिलाओं को धीरे धीरे पहले से ज्यादा आजादी मिलने लगी है. देश के कराची शहर में औरतों ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2019 के मौके पर #AuratAzadiMarch नारे के साथ रैली निकाली. महिलाएं अब अपने अधिकारों को लेकर काफी जागरुक हुई हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S.S. Mirza
अफगानिस्तान
2001 में अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान में किए गए दखल से लगने लगा था कि देश में महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी. लेकिन हाल की राजनीतिक हलचलों को देखकर लगता है कि अफगानिस्तान की सरकार में एक बार फिर तालिबान का दखल हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो देश में महिलाओं की स्थिति में शायद ही कोई सुधार हो. शिक्षा से लेकर काम करने के अधिकारों को हासिल करने में उन्हें बहुत मुश्किलें आएंगी.
तस्वीर: Getty Images/R. Conway
बांग्लादेश
पिछले दो दशकों से लगातार बांग्लादेश की कमान किसी महिला नेता के पास ही रही है. देश का प्रधानमंत्री पद एक महिला ही संभाल रही है. देश में महिला अधिकारों को लेकर कुछ सुधार तो हुए हैं लेकिन अब भी कार्यस्थल पर उनकी स्थिति बहुत बेहतर नहीं हुई है. साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाएं पिछड़ी हुई हैं.
तस्वीर: DW/M. M. Rahman
श्रीलंका
श्रीलंका की महिलाएं अन्य देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं. महिलाओं की सामाजिक स्थिति कुछ हद तक परिवारों की आर्थिक स्थिति पर भी निर्भर करती है. कुछ लड़कियां जल्दी काम करना शुरू कर देती हैं तो वहीं कुछ लंबे समय तक पढ़ती हैं. दक्षिण एशिया में श्रीलंका ही एक ऐसा देश है, जहां की महिलाओं के पास स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी अच्छी सुविधाएं हैं.
तस्वीर: Imago/Photothek
ईरान
आज ईरान की महिलाओं की अपनी एक फुटबॉल टीम है. लेकिन अब भी देश की महिलाओं के लिए आजादी और सशक्तिकरण की लड़ाई खत्म नहीं हुई है. हेडस्कार्फ लगाने की प्रथा के खिलाफ खड़ी हुई लड़कियों का समर्थन कर रही एक वकील नसरीन सौतुदेह को ईरान में पांच साल कैद की सजा हुई है. ईरान में महिलाओं के लिए हेडस्कार्फ लगाना अनिवार्य है.
तस्वीर: Pana.ir
इंडोनेशिया
इंडोनेशिया की महिलाएं हमेशा से आगे रही हैं. समाज की प्रगति में इनका अहम योगदान है. लेकिन अब भी देश में लागू शरिया जैसे धार्मिक कानून उन्हें आगे बढ़ने से रोक देते हैं. देश के आचेह प्रांत में इस्लामिक शरिया कानून लागू है. इसके तहत महिलाओं के लिए हेडस्कार्फ अनिवार्य है. साथ ही वे परिवार के बाहर किसी भी पुरुष से बात भी नहीं कर सकती हैं.
तस्वीर: Imago/C. Ditsch
चीन
चीन की आर्थिक वृद्धि ने देश में महिलाओं की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार किया है. लेकिन अब भी समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव बरकरार है. इसी भेदभाव के चलते आज चीन का सेक्स अनुपात गड़बड़ा गया है. चीन में भी महिलाओं की स्थिति शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है. (मानसी गोपालकृष्णन/ एए)