असम इस वक्त दोहरी मार झेल रहा है. पहले बाढ़ और अब कोरोना महामरी के बीच उससे लड़ने के लिए अहम दवाओं की सप्लाई में कमी. बाढ़ से भी तीस लाख लोग प्रभावित हुए हैं. और कोरोना के कारण अब तक 79 लोग मर चुके हैं.
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असम में जब बाढ़ के बीच इसी महीने डॉक्टरों को एक खास ब्लड ग्रुप के लिए प्लाज्मा की जरूरत पड़ी तो स्वास्थ्य अधिकारियों को ऐसे शख्स के पास नाव भेजनी पड़ी जो कि बाढ़ में फंसा हुआ था. यह डोनर एक हफ्ते पहले ही कोरोना वायरस से ठीक हुआ था. असम में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और गंभीर दवाओं की आपूर्ति कम पड़ती जा रही है. ऐसे में स्थानीय अधिकारी कोरोना वायरस से ठीक हुए लोगों की आवभगत कर रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा का इस्तेमाल किया जा सकता है.
प्लाज्मा थेरेपी के तहत बीमारी से ठीक हो चुके व्यक्ति के खून से प्लाज्मा को अलग कर मरीज के खून में मिलाया जाता है और ऐसा माना जाता है कि इस प्लाज्मा में शामिल एंटी बॉडीज मरीज को वायरस से लड़ने में मदद करते हैं. हालांकि इसके असर पर शोध के निष्कर्ष अभी नहीं निकले हैं.
असम सरकार का कहना है कि सिम्टमैटिक मरीज जो ठीक हो चुके हैं और अगर चार हफ्ते तक वे प्लाज्मा दान करते हैं तो उनको सरकारी नौकरी के साथ-साथ हाउसिंग स्कीम में प्राथमिकता मिलेगी. उदाहरण के लिए दानकर्ता अगर सरकारी नौकरी के लिए इंटरव्यू देता है तो उसे अतिरिक्त अंक मिलेंगे.
असम के लिए सभी कोशिशें अहम है क्योंकि वहां मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली रेमडेसिवीर और टोसिलीजुमाब की कमी है, इन दोनों का इस्तेमाल कोविड-19 के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए होता है. दिल्ली और ओडिशा में भी प्लाज्मा डोनर्स को आगे बढ़ कर प्लाज्मा देने के लिए कहा जा रहा है. सोमवार 27 जुलाई तक भारत में कोविड-19 के कुल मामले 14 लाख 35 हजार को पार कर गए हैं और मृतकों की संख्या 32,700 के ऊपर जा पहुंची है.
असम के स्वास्थ्य मंत्री हेमंता बिस्वा शर्मा ने रॉयटर्स के साथ इंटरव्यू में कहा था, "हाल ही में हमें ओ ग्रुप प्लाज्मा एक मरीज के लिए चाहिए था. जब हमें पता चला कि एक शख्स दान देने के लिए तैयार है तो लोग उसके घर नाव से गए और उसे लेकर अस्पताल आए. उस शख्स ने अस्पताल में प्लाज्मा दान किया." शर्मा कहते हैं कि जो कोरोना से संक्रमित हो चुका है उसके प्लाज्मा का इस्तेमाल बीमार मरीज के लिए जा सकता है.
बाढ़ और कोरोना वायरस
असम में पिछले कुछ हफ्तों से बाढ़ के कारण तबाही मची हुई है. राज्य में एक सौ से अधिक लोग बाढ़ के कारण मारे जा चुके हैं और 30 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि सितंबर के मध्य तक कोरोना वायरस संक्रमण चरम पर होगा. असम में कोरोना वायरस के 32,000 मामले दर्ज किए जा चुके हैं और 79 लोगों की मौत हो चुकी है.
भारत दुनिया भर में जेनेरिक दवाइयों का सबसे बड़ा सप्लायर है, देश में रेमडेसिवीर और टोसिलीजुमाब जैसी दवाइयों की कमी हो गई है और ऐसे में प्लाज्मा डोनर की मांग बढ़ी है. हालांकि अमेरिकी दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने भारत में काम करने वाली छह कंपनियों को रेमडेसिवीर दवा के जेनेरिक वर्जन को बनाने और बेचने की इजाजत दी है, लेकिन तीन ही कंपनियां सप्लाई शुरू कर पाई है.
कोरोना महामारी की शुरुआत हुए आधा साल बीत चुका है. पिछले छह महीनों से वैज्ञानिक इस नए वायरस को समझने में लगे हुए हैं. जानिए कहां तक पहुंची है रिसर्च.
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कहां से हुई शुरुआत?
सोशल मीडिया पर वायरस के फैलाव को ले कर कई किस्से कहानी फैले लेकिन आज तक ठीक तरह से इस बात का पता नहीं चल सका है कि शुरुआत कहां से हुई. चीन के एक मीट बाजार की बात हुई. लेकिन जानवर से इंसान में संक्रमण का पहला मामला कौन सा था, यह आज भी रहस्य ही बना हुआ है.
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कैसा दिखता है वायरस?
चीनी वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड समय में इस नए कोरोना वायरस के जेनेटिक ढांचे का पता लगा लिया था. 21 जनवरी को उन्होंने इसे प्रकाशित किया और तीन दिन बाद विस्तृत जानकारी भी दी. इसी के आधार पर दुनिया भर में वायरस को मारने के लिए टीके बनाने की मुहिम शुरू हुई.
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क्या होगा वैक्सीन में?
सार्स कोव-2 वायरस की सतह पर एस-2 नाम के प्रोटीन होते हैं. यही इंसानी कोशिकाओं से जुड़ जाते हैं और संक्रमित व्यक्ति को बीमार करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. वैक्सीन का काम इस प्रोटीन को निष्क्रिय करना या किसी तरह ब्लॉक करना होगा.
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एयर कंडीशनर से संक्रमण
शुरुआत में कहा गया था कि संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से या फिर संक्रमित सतह को छूने से ही यह वायरस फैलता है. लेकिन अब पता चला है कि फ्लू के वायरस की तरह यह भी हवा से फैल सकता है, खास कर वहां, जहां एसी का इस्तेमाल हो रहा हो.
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भीड़ का खतरा
किसी बंद जगह में बड़ी संख्या में लोगों की उपस्तिथि खतरे की घंटी है. इसीलिए दुनिया के लगभग हर देश ने लॉकडाउन का सहारा लिया. अभी भी ज्यादातर देशों में सिनेमा हॉल, ट्रेड फेयर और बड़े इवेंट बंद हैं.
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मास्क का इस्तेमाल
विश्व स्वास्थ्य संगठन शुरू में संक्रमण पर काबू पाने के लिए मास्क के इस्तेमाल से इनकार करता रहा. लेकिन देशों ने उसके खिलाफ जा कर सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना अनिवार्य किया. हालांकि अधिकतर मामलों में देखा जा रहा है कि लोग मास्क का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.
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बचने का यही तरीका
दो अहम बातें जो शुरू से कही जा रही हैं और जिन पर अब भी कोई दो राय नहीं हैं, वे हैं - साबुन से अच्छी तरह हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग. हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद से सोशल डिस्टेंसिंग को ले कर संजीदगी भी कम हुई है.
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जानवरों से खतरा नहीं
हो सकता है कि आपका पालतू जानवर किसी तरह संक्रमित हो गया हो लेकिन अब तक हुए शोध दिखाते हैं कि इंसानों को उनसे कोई खतरा नहीं है. हालांकि इस दिशा में अभी और शोध चल रहे हैं.
महिलाओं की तुलना में पुरुषों को खतरा ज्यादा है. ए ब्लड ग्रुप के लोगों पर इसका ज्यादा असर होता है. पहले से बीमार लोगों का शरीर वायरस का ठीक से सामना नहीं कर पाता. मधुमेह, कैंसर और हृदय रोगियों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.
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इम्यूनिटी बढ़ाएं
अब तक हुए सभी शोध इसी ओर इशारा करते हैं कि अगर आपका इम्यून सिस्टम मजबूत है, तो आप वायरस के असर से बच सकते हैं. यही वजह है कि बाजार में तरह तरह के इम्यूनिटी बूस्टर बिकने लगे हैं.
संक्रमण के बाद फिट हो जाने वाले व्यक्ति के खून में वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी बनी रहती हैं. कुछ देशों में डॉक्टर इन एंटीबॉडी का इस्तेमाल मरीजों को ठीक करने के लिए कर रहे हैं. लेकिन कोरोना काल में लोग खून डोनेट करने से भी डर रहे हैं.
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आईसीयू में क्या होता है?
यूरोप में जब यह वायरस फैला तो डॉक्टर जल्द से जल्द मरीजों पर वेंटिलेटर इस्तेमाल करने लगे. लेकिन अब बताया जा रहा है कि वेंटिलेटर का इस्तेमाल फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे में अब आईसीयू केवल ऑक्सीजन लगाने पर जोर दे रहे हैं.
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आईसीयू से निकलने के बाद
जहां पहले सिर्फ फेफड़ों पर ध्यान दिया जा रहा था, वहां अब मरीज के आईसीयू से निकलने के बाद बाकी के अंगों की भी जांच की जा रही है क्योंकि कई मामलों में इस वायरस को अंगों के नाकाम होने के लिए जिम्मेदार पाया गया है.
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डायलिसिस की जरूरत
यदि किडनी पर असर हुआ हो, तो डायलिसिस की जरूरत बन जाती है. कोलकाता में एक डॉक्टर मात्र 50 रुपये में लोगों का डायलिसिस कर रहा है. आम तौर पर इसके लिए बड़ा खर्च आता है.
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कौनसी दवा करती है असर?
अब तक इस वायरस से निपटने का कोई रामबाण इलाज नहीं मिला है. डॉक्टर कुछ दवाओं का इस्तेमाल जरूर कर रहे हैं लेकिन ये सभी दवाएं लक्षणों पर असर करती हैं, बीमारी पर नहीं. रेमदेसिविर इस मामले में काफी चर्चित दवा है.
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कब आएगी वैक्सीन?
कुछ लोगों का कहना है कि इस साल के अंत तक टीका बाजार में आ जाएगा, तो कुछ अगले साल की शुरुआत की बात कर रहे हैं. लेकिन टीके आम तौर पर इतनी जल्दी तैयार नहीं होते. और अगर बन भी जाए, तो पूरी आबादी तक उन्हें पहुंचाने में भी वक्त लग जाएगा.
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कैसी है तैयारी?
फिलहाल अलग अलग देशों में 160 वैक्सीन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. टीबी की वैक्सीन को बेहतर बना कर इस्तेमाल लायक बनाने की कोशिश भी चल रही है. भारत के सीरम इंस्टीइट्यूट ने प्रोडक्शन की तैयारी कर ली है. इंतजार है तो सही फॉर्मूला मिल जाने का.
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इंसानों पर टेस्ट का मतलब?
जून 2020 के अंत तक पांच टीकों का ह्यूमन ट्रायल हो चुका है. इंसानों पर टेस्ट का मकसद होता है यह पता करना कि इस तरह के टीके का इंसानों पर कोई बुरा असर तो नहीं होगा. हालांकि यह असर दिखने में भी काफी लंबा समय लग सकता है.
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हर्ड इम्यूनिटी कब मिलेगी?
जब आबादी के एक बड़े हिस्से को किसी बीमारी से इम्यूनिटी मिल जाती है, तो उसके फैलने का खतरा बहुत कम हो जाता है. जून के अंत तक दुनिया के एक करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके थे. लेकिन 7.8 अरब की आबादी में एक करोड़ हर्ड इम्यूनिटी बनाने के लिए काफी नहीं है. रिपोर्ट: फाबियान श्मिट/आईबी