मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल में कई नये चेहरों को सरकार में जगह मिली है, लेकिन कुलदीप कुमार कहते हैं कि कुछ सवाल अब भी अनुत्तरित हैं.
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मोदी मंत्रिपरिषद में ताजा फेरबदल के साथ ही हवा में यह सवाल तैरने लगा कि क्या जल्दी ही एक और फेरबदल होने वाला है, यानी क्या यह एक आधा-अधूरा फेरबदल ही है? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि अपेक्षा के अनुरूप जनता दल (यू) को सरकार में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है जबकि लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल और महागठबंधन से रिश्ता तोड़ने और भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाने के बाद स्वयं पार्टी अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक केबिनेट मंत्री और एक राज्यमंत्री मिलने की बात कही थी.
उधर तमिलनाडु की एआईएडीएमके भी भाजपा के साथ आने की कीमत वसूलना चाहती है और केंद्र सरकार में अपना प्रतिनिधि देखने की इच्छुक है. क्या नरेंद्र मोदी इन सहयोगियों की अपेक्षाओं को नजरंदाज कर पाएंगे या फिर कुछ समय बाद इन्हें पूरा करने के लिए मंत्रिपरिषद में एक और परिवर्तन करेंगे?
यूं भी रविवार को हुए फेरबदल को समझना काफी मुश्किल है और वह अभी तक एक अनसुलझी गुत्थी बना हुआ है. यदि मंत्रियों के कामकाज के आकलन के आधार पर यह फेरबदल किया गया है तो रेलमंत्री के रूप में पूरी तरह से विफल सुरेश प्रभु को मंत्रिमंडल से हटाने के बजाय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपने का औचित्य समझ में नहीं आता, विशेष रूप से एक ऐसे समय में जब नोटबंदी और अन्य अनेक कारणों से देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर काफी कम हो गयी है और वाणिज्य एवं उद्योग जगत के सामने बहुत बड़ी चुनौतियां आकर खड़ी हो गयी हैं. इसी तरह मानव संसाधन विकास मंत्री और कपड़ा मंत्री के रूप में अत्यंत निराशाजनक प्रदर्शन के कारण सुर्खियों में रही स्मृति ईरानी को भी कपड़ा मंत्रालय के साथ-साथ स्थायी रूप से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में जमा देना भी आश्चर्यजनक लग रहा है.
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
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उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
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बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
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गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
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हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
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कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
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हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
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गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
तस्वीर: Reuters
असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa
नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
तस्वीर: IANS
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
तस्वीर: DW/Zeljka Telisman
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
तस्वीर: IANS
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.
तस्वीर: DW/A. Anil Chatterjee
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निर्मला सीतारामन को रक्षा मंत्रालय सौंपे जाने की चारों तरफ तारीफ हो रही है और विपक्षी नेताओं ने भी उनकी पदोन्नति का स्वागत किया है क्योंकि इन्दिरा गांधी के बाद इस मंत्रालय को संभालने वाली वे दूसरी महिला होंगी. लेकिन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में उनका कामकाज काफी अच्छा माना जा रहा था और इस समय अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए इस मंत्रालय को एक सक्षम मंत्री की बेहद जरूरत है. ऐसे में सीतारामन की जगह रेल मंत्रालय में विफल रहे प्रभु को लाना आश्चर्यचकित करता है.
भाजपा में प्रतिभाओं की कमी है, यह बात तो जगजाहिर है. लेकिन साथ ही यह भी जगजाहिर है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में जो कार्यशैली विकसित की थी, उसमें नौकरशाहों पर निर्भरता एक प्रमुख तत्व थी. प्रधानमंत्री के रूप में भी उनकी कार्यशैली कमोबेश यही रही है क्योंकि स्पष्ट रूप से विदेश नीति का संचालन प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठे नौकरशाह और गुप्तचर ब्यूरो के प्रमुख रह चुके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल कर रहे हैं.
रविवार को मंत्रिपरिषद में जिन नौ नये चेहरों को शामिल किया गया है उनमें से चार अवकाशप्राप्त नौकरशाह और राजनयिक हैं. भाजपा के साथ इनके जुड़ाव का इतिहास भी कोई बहुत पुराना नहीं है. इनमें से दो हरदीप पुरी और के अल्फोंस तो सांसद भी नहीं हैं और उन्हें अगले छह माह के भीतर संसद के किसी एक सदन का सदस्य बनना होगा. ये सब राज्यमंत्री बनाये गये हैं और इनमें से तीन के पास अपने-अपने मंत्रालयों का स्वतंत्र प्रभार है.
नए इंडिया के लिए मोदी ने उठाए ये नए कदम
भारत के प्रधानमंत्री मोदी के जितने आलोचक हैं, उससे कहीं ज्यादा समर्थक हैं. उन्हें टेक्नोसेवी और नए जमाने के साथ चलने वाला माना जाता है. सरकार में आते ही उन्होंने कई नई पहलें शुरू कीं. आइए डालते हैं इन्हीं पर एक नजर.
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डिजिटल इंडिया
इस पहल का मकसद लोगों तक सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक तरीके से पहुंचाना है. साथ ही इंटरनेट कनेक्टिविटी बेहतर कर ऑनलाइन इंफ्रास्ट्रक्चर को भी सुधारना है. सरकार इसके जरिए सरकारी व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाना और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना चाहती है.
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स्किल इंडिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 जुलाई 2015 को इस पहल को शुरू किया. इसके तहत 2022 तक देश के 40 करोड़ लोगों को अलग अलग तरह की ट्रेनिंग देकर दक्ष बनाना है. सरकार जोर शोर से इसका प्रचार करती है, लेकिन आलोचक इसमें मिलने वाली ट्रेनिंग की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हैं.
तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images
मेक इन इंडिया
मोदी सरकार भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहती है, ताकि बहुराष्ट्रीय और भारतीय कंपनियां अपने उत्पाद भारत में ही बनायें. इसलिए मेक इंडिया पहल की शुरुआत की गई. इसके तहत विदेशी निवेश और कंपनियों के लिए भारत में काम का बेहतर माहौल बनाया जाएगा.
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स्टार्टअप इंडिया
स्टार्टअप इंडिया का उद्देश्य युवाओं में उद्यमशीलता को बढ़ावा देना और नौकरियों के नये अवसर पैदा करना है. इसके तहत छोटे कारोबारों के लिए बैंक लोन आसान बनाने और लालफीताशाही घटाने की बात भी शामिल है. सरकार स्टार्टअप इंडिया के तहत पिछड़े वर्गों और महिलाओं को भी उद्यम शुरू करने के लिए प्रेरित करना चाहती है.
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स्मार्ट विलेज इंडिया
गांवों के विकास के लिए इस पहल को शुरू किया गया है. इसे महात्मा गांधी के "आदर्श ग्राम" विजन से प्रेरित बताया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही सांसद आदर्श ग्राम योजना भी शुरू की थी, जिसमें हर सांसद से एक गांव को गोद लेकर उसका पूरी तरह विकास करने का आग्रह किया गया था.
तस्वीर: Reuters/Danish Siddiqui
स्मार्ट सिटी मिशन
इस योजना के तहत देश भर के 100 से ज्यादा शहरों को अत्याधुनिक बनाने का लक्ष्य तय किया है. संबंधित राज्य सरकारों के साथ मिल कर केंद्र सरकार इस योजना को लागू करेगी. इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर सरकार ने पांच साल के दौरान एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है.
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कैशलेस अर्थव्यवस्था
मोदी सरकार का कैशलेस लेन देन पर बहुत जोर है. आम जनता को भुगतान के डिटिजल विकल्पों से जोड़ने के लिये सरकार ने कई इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम लॉन्च किये हैं. इनमें यूपीआई, इंटरनेट बैंकिंग, आधार कार्ड से भुगतना और भीम ऐप जैसे विकल्प शामिल हैं.
तस्वीर: PIUS UTOMI EKPEI/AFP/Getty Images
स्वच्छ भारत अभियान
मोदी सरकार की जिन पहलों का सबसे ज्यादा प्रचार प्रसार हुआ है, उनसें से एक है स्वच्छ भारत अभियान. साफ सफाई पर जोर देने वाली इस मुहिम के साथ बहुत सी जानी-मानी हस्तियां भी जुड़ीं. हालांकि इसे कितनी गंभीरता से लागू किया जा रहा है, आलोचक इस पर सवाल उठाते हैं.
तस्वीर: UNI
गर्व ऐप
भारत के छह लाख गांवों में बिजली पहुंचाने का काम कहां किस रफ्तार से चल रहा है, इसकी जानकारी आप गर्व ऐप पर पा सकते हैं. इस ऐप का मकसद रियल टाइम डाटा मुहैया करा कर पारदर्शिता को बढ़ावा देना है. इसे गगूल प्ले और एप्पल ऐप स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है.
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बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को की. इसका उद्देश्य एक तरफ लड़कियों को शिक्षित, योग्य और समर्थ बनाना है, तो वही बिगड़ते लैंगिक अनुपात को सुधारना भी है. 2016 के ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक इसकी ब्रैंड एम्बैसडर हैं.
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देश के शासन और विकास में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए सरकार ने माईगव यानी मेरी सरकार पहल शुरू की. प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक इसका मकसद मतदाताओं और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के बीच अंतर को पाटना है. कई बार मोदी ने इस मंच के जरिए आने वाले विचारों, सवालों और सुझावों को अपने रेडियो कार्यक्रम "मन की बात" में शामिल किया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
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प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का यह चौथा साल चल रहा है. 2019 की शुरुआत से ही देश में चुनावी माहौल गरम हो जाएगा. यानी केंद्र सरकार के पास अब केवल सवा-डेढ़ साल ही बचा है जिसमें वह कुछ करके दिखा सकती है. भाजपा भले ही स्वीकार न करे, लेकिन अब लगभग सभी अर्थशास्त्री यह मानने लगे हैं कि पहले नोटबंदी और फिर उसके तुरंत बाद जीएसटी प्रणाली लागू करने से अर्थव्यवस्था को जितना बड़ा धक्का लगा है, उससे अनेक क्षेत्र अस्तव्यस्त हो गये हैं और नये रोजगार पैदा होना तो दूर की बात, बेरोजगारों की संख्या में भारी बढ़ोतरी को रोकना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में, मंत्रिपरिषद में सिर्फ विभाग बदल कर विफल मंत्रियों को बनाये रखना और नौकरशाहों को शामिल करना कितना कारगर सिद्ध होगा, कहना कठिन है.