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क्या मौसम की अतियों को झेल पाएंगे बांध

३ सितम्बर २०२१

हाइड्रोपावर यानी जलबिजली को लंबे समय से एक भरोसेमंद अक्षय ऊर्जा स्रोत माना जाता रहा है. लेकिन सूखे और भारी बारिश में जलबिजली संयत्र अक्सर बैठ जाते हैं. आशंका है कि जलवायु परिवर्तन इस साफ ऊर्जा विकल्प को खत्म न कर दे.

तस्वीर: Delil Souleiman/AFP

साफ उर्जा के विकल्प के रूप में कई साल तक हाइड्रोपावर के इस्तेमाल को लेकर ये धारणा रही है कि एक बार बन जाने के बाद प्लांट विश्वसनीय तरीके से बिजली पैदा करते रह सकता है. 2019 के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया की आधा से ज्यादा अक्षय ऊर्जा, हाइड्रोपावर से हासिल हुई थी.

लेकिन जलवायु में परिवर्तन के साथ साथ पानी से मिलने वाली इस ऊर्जा की सामर्थ्य में भी गिरावट आती जा रही है. इस साल, बढ़ते तापमान से सूखों की आवृत्ति और गंभीरता भी बढ़ी है और उसके चलते जलबिजली उत्पादन में दशकों की गिरावट आई है. 

दुनिया भर में बिजली उत्पादन में गिरावट

अमेरिकी शहर लास वेगास के पास कोलोराडो नदी का पानी मीड झील के जरिए हूवर बांध के काम आता है. 14 करोड़ लोगों को इसी बांध से पानी की सप्लाई जाती है. लेकिन इस वक्त बांध का विशाल जलाशय महज एक तिहाई ही भर पाया है.

झील के जलस्तर में गिरावट का मतलब बांध संयंत्र में, इस जुलाई 25 प्रतिशत कम बिजली ही बन पाई जबकि ऐसा होता नहीं था. इसके चलते अमेरिका की संघीय सरकार को जनवरी 2022 से, बांध के निचले इलाकों में बसे शहरों की वॉटर सप्लाई में कटौती का ऐलान करना पड़ा था.

दक्षिणी अमेरिका में भी ऐसे ही हालात हैं. ब्राजील, पराग्वे और अर्जेंटीना से होकर बहने वाली पराना नदी में पानी बहुत कम हो गया है. नदी का उद्गम-स्थल दक्षिणी ब्राजील, तीन साल से गंभीर सूखे की चपेट में रहा है.

स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक, मध्य और दक्षिणी ब्राजील के जलाशयों में जलस्तर पिछले 20 साल के औसत के मुकाबले आधा से भी कम गिर चुका है. ब्राजील में 60 फीसदी बिजली बांध से आती है, लेकिन सूखते जलाशयों ने ब्लैकआउट की आशंका बढ़ा दी है.

फॉसिल ईंधन की ओर वापसी

इसे रोकने के लिए ब्राजीली अधिकारियों ने प्राकृतिक गैस से चलने वाले पावर प्लांटों को फिर से सक्रिय करना शुरू कर दिया है. इससे बिजली की कीमतें बढ़ गई हैं और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ने लगा है.

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यही सूरते-हाल अमेरिका का है. सूखाग्रस्त कैलिफोर्निया मे राज्य सरकार ने उद्योंगों और जहाजों को बिजली के लिए डीजल जनरेटर चलाने की इजाजत दे दी है. प्राकृतिक गैस ऊर्जा संयंत्रों को भी बिजली पैदा करने के लिए और गैस फूंकने की अनुमति दी जा रही है.

लेकिन सिर्फ सूखा ही जलबिजली उत्पादन में गिरावट नहीं ला रहा है- भारी बारिश और बाढ़ की समस्याएं भी तीखी हुई हैं. मार्च 2019 में पश्चिमी अफ्रीका मे तबाही मचाने वाले इडाई चक्रवात के बाद आई बेतहाशा बाढ़ ने मलावी मे दो बड़े बांधों को नुकसान पहुंचाया था. कई दिनों तक देश के कई हिस्सों में बिजली गुल रही.

अफ्रीका में हाइड्रोपावर के दिन पूरे?

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के मुताबिक डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कोंगो, इथियोपिया, मलावी और मोजाम्बिक जैसे बहुत से अफ्रीकी देशों में 80 प्रतिशत से ज़्यादा बिजली उत्पादन हाइड्रोपावर से होता है. कुल मिलाकर, 2019 के अंत तक अफ्रीका महाद्वीप में 17 प्रतिशत बिजली हाइड्रोपावर से मिली थी. 2040 में इसके 23 प्रतिशत से ज्यादा होने का अनुमान है. 

लेकिन आईईए के मुताबिक अफ्रीका में हाइड्रोपावर प्लांटों के अधिकांश नये प्लान, जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों पर अव्वल तो तवज्जो नहीं देते और अगर दे भी दें तो उनका सही ढंग से मूल्यांकन नहीं करते हैं.   

हाइड्रोपावर विस्तार के खिलाफ चेतावनी

इस बीच, दुनियाभर में सक्रिय कई जलबिजली संयंत्र दूसरी समस्या से जूझ रहे हैं- वो है उनकी उम्र. संयुक्त राष्ट्र यूनिवर्सिटी स्टडी के मुताबिक बांधों की उपयोगिता 50 से 100 साल तक रहती है. वे जितने पुराने होते जाते हैं, स्टडी के मुताबिक उतने ही कमजोर और नाकाम होने की आशंका से घिर जाते हैं.

तस्वीर: Delil Souleiman/AFP

स्टडी का कहना है कि बांध के जीवन के 25-30 साल के दौरान उसकी देखरेख के उपायों में आने वाली लागत बढ़ती जाती है.

एक जर्मन एनजीओ, काउंटर करेंट से जुड़े थिलो पापाएक कहते हैं कि बढ़ती लागत के मद्देनजर, जीवाश्म ईंधनों को हटाते हुए हाइड्रोपावर प्लांटों में निवेश करना विनाशकारी हो सकता है. काउंटर करेंट, विदेशों में सक्रिय जर्मन संगठनों के बीच सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से जवाबदेही वाली विदेशी भागीदारी के लिए अभियान चलाता है.

तस्वीरेंः पर्यावरण को बांधने वाले बांध

पापाएक ने डीडब्लू को बताया कि हाइड्रोपावर प्लांट्स न सिर्फ आसपास के ईकोसिस्टम में दखलअंदाजी करते हैं, लेकिन क्योंकि वे गाद को निचले इलाको में बह जाने से रोकते हैं, तो इस लिहाज से भी वे लोगों के लिए खतरनाक बन सकते हैं. उनका कहना है, "नदी के तटों पर गाद जमा न होने की सूरत में बांध के पीछे के इलाके को नदी गहरा खोद देती है और सिकुड़ जाती है. भारी बारिशों में इससे फिर एक प्रचंड शक्ति पैदा हो सकती है खासकर अगर जलाशय से पानी छोड़ना हो.” वो कहते हैं कि इससे नजदीकी इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है.

बड़े भीमकाय बांधों का विकल्प

फ्रैंकफर्ट की गोएठे यूनिवर्सिटी में ईकोसिस्टम साइंस के प्रोफेसर और सेन्केनबर्ग सोसायटी फॉर नेचर रिसर्च के महानिदेशक क्लेमेट टौक्नर कहते हैं, "ये सही है कि भविष्य में हाइड्रोपावर के बिना हमारा गुजारा नहीं होगा.”

"लेकिन सवाल ये हैः हम बांध कहां बनाएंगे, कैसे बनाएंगे और उन्हें कैसे ऑपरेट करेंगे?”

उनका मानना है कि मौजूदा संरक्षित इलाकों में, जहां नदियां पर्याप्त रूप से निर्बाध बहती हैं, वहां बांध नहीं बनने चाहिए. वो कहते हैं कि जहां उचित हो वहां बांधों के ईकोसिस्टम पर पड़ रहे नकारात्मक असर की भरपाई और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए भी उपाय किए जाने चाहिए. जैसे अवरुद्ध जलमार्गों की बहाली और बांधों को हटाना. नये बांध इस तरह बनने चाहिए कि नदियां यथासंभव पारदर्शी और साफसुथरी बनी रहें. जिससे कि निचले इलाकों की ओर भी मछलियां तैर सकें और गाद सहजता से बहकर जा सके और बाढ़ के दौरान बड़ी मात्रा में पानी छोड़ा जा सके.    

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इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट (आईडब्लूएमआई) में हाइड्रोलॉजिस्ट स्टीफान उहलेनब्रुक कहते हैं, "इसका मतलब ये है कि पानी की फ्लो विलोसिटी यानी उसके प्रवाह के वेग पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ना चाहिए और नदी के पास पर्याप्त शेष पानी और बाढ़ प्रभावित जमीन रहनी चाहिए.” उन्होंने डीडब्लू को बताया, "जरूरी हुआ तो गाद को यांत्रिक तौर पर वापस नदी के रास्ते में डाल देना चाहिए.”

अकेले टेक्नोलॉजी ही काफी नहीं

बड़े बांधों का विकल्प भी है. जैसे, इनस्ट्रीम टरबाइनों को नदी के बीचोंबीच लगा दिया जाता है और बहते पानी के वेग से बिजली पैदा की जाती है. उन्हें बहुत बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य की जरूरत नहीं है और जलस्तर गिरने पर भी काम करती रह सकती हैं. वैसे दूरदराज के इलाकों के लिए तो ऐसी टरबाइनें मुफीद हैं लेकिन महानगरीय इलाकों में सप्लाई नहीं दे सकतीं.

दूसरा उदाहरण है, म्युनिख की टेक्निकल यूनिवर्सिटी (टीयूएम) स्थित शाफ्ट हाइड्रोपावर प्लांट. इसे बाढ़ सुरक्षा और लंबे समय तक कारगर बनाए रखने के लिहाज से डिजाइन किया गया था. जर्मनी के बावरिया प्रांत में एक पायलट प्लांट लगा है जिसके जरिए 800 घरों को बिजली सप्लाई मिल रही है.

लेकिन टेक्नोलॉजी कितनी भी नयी क्यों न हो, अकेले उनसे ही गंभीर और लंबे समय तक रहने वाले सूखों से बचाव नहीं किया जा सकता है.

ईकोसिस्टम वैज्ञानिक टौक्नर कहते हैं, "जमीन का अलग ढंग से इस्तेमाल करने से हम सूखे के असर को कम कर सकते हैं. अर्ध-प्राकृतिक जंगल और वेटलैंड बहुत सारा पानी जमा रखते हैं, जिसे वे सूखे की अवधियों के दौरान छोड़ देते हैं- हमें देखना होगा कि नेचर-फ्रेंडली उपायों के जरिए हम किस तरह सूखे और बाढ़ को कम कर सकते हैं.”

लेकिन वो ये भी जोड़ते हैं कि मौसमी अतिशयतों में वृद्धि को देखते हुए ये साफ है कि "हाइड्रोपावर, लंबे समय तक पहले की तरह ऊर्जा का भरोसेमंद स्रोत बना नहीं रह पाएगा.”

हाइड्रोलॉजिस्ट ऊलेनब्रुक के मुताबिक, ऊर्जा की बहस का एक और पहलू है जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता हैः "सबसे जरूरी ये है कि भविष्य में हमें ऊर्जा की हर मुमकिन बचत पर ध्यान देना होगा.”

रिपोर्टः जेनेट सीवींक (सीएस)

प्रकृति को वापस बुलाने की कोशिश

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