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समाजभारत

क्या लद्दाख के लोगों का भरोसा फिर जीत पाएगी भारत सरकार?

आदिल भट | रिचर्ड कुजूर
२४ अक्टूबर २०२५

अधूरे वादों की शिकायत और बढ़ते गुस्से के बाद लद्दाख में हिंसक विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे. स्थानीय लोगों का कहना है कि उनकी बातें सुनी ही नहीं जा रही हैं. क्या भारत सरकार फिर से इन लोगों का भरोसा जीत पाएगी?

लद्दाख की राजधानी लेह की एक तस्वीर
साल 2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य को मिला विशेष दर्जा खत्म दिया थातस्वीर: Adil Bhat/DW

भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी लेह में एक ठंडी दोपहर को भी जिला अदालत में सामान्य से कहीं ज्यादा लोग मौजूद थे. लगभग 39 पुरुष खुले में खड़े थे. वे धीमी आवाज में बात कर रहे थे. इस क्षेत्र में अपराध दर देश में सबसे कम है. इसलिए, हिमालय के इस बौद्ध और मुस्लिम आबादी बहुल इलाके में इस तरह का दृश्य शायद ही कभी देखने को मिलता है.

इन लोगों को पिछले महीने बड़े पैमाने पर हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इन प्रदर्शनों में लद्दाख को अधिक स्वायत्तता और पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की जा रही थी.

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प्रदर्शनकारियों की मांगों में स्थानीय निवासियों के लिए नौकरियों में आरक्षण भी शामिल है. इसके अलावा, वे लद्दाख के लिए विशेष दर्जा चाहते हैं, जिससे निर्वाचित स्थानीय निकायों का गठन हो सके. साथ ही, इस क्षेत्र के आदिवासी और जनजातीय क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

इन लोगों ने बताया कि जमानत पर छूटने के बाद भी उनमें डर और असुरक्षा की भावना हैतस्वीर: Richard Kujur/DW

हालांकि, इन लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया गया है, लेकिन वे सभी अपने भविष्य को लेकर गहरी अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना महसूस कर रहे हैं.

"जब हमें राष्ट्र-विरोधी कहा जाता है, तो बहुत दुख होता है"

थिनलेस दोरजे, इनमें से ही एक हैं. उनके चेहरे पर निडरता का भाव था, जबकि बाकी लोग बोलने से पहले हिचकिचा रहे थे. दोरजे आगे बढ़े और ऊंची आवाज में बोले, "अब चुप्पी तोड़ने का वक्त आ गया है." दोरजे ने बताया कि उन्हें काम से घर लौटते समय गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्होंने हिंसा में शामिल होने से इनकार किया, लेकिन यह स्वीकार किया कि कई साल से लद्दाख में गुस्सा पनप रहा है.

लद्दाख में क्यों हो रहे हैं विरोध प्रदर्शन

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "पिछले कुछ वर्षों से हमारी मांगें कोई नहीं सुन रहा था. केंद्र सरकार के साथ बातचीत में देरी होती रही. हमने जो देखा वो कई बरस का गुस्सा और हताशा थी, जो विरोध-प्रदर्शन के दौरान फूट पड़ी."

थिनलेस दोरजे के बगल में पूर्व सैनिक टुंडुप नामग्याल खड़े थे. उन्होंने आरोप लगाया कि लद्दाख पुलिस ने पूछताछ के दौरान उनसे 'चीनी और पाकिस्तानी फंडिंग' के बारे में पूछा. यहां तक कि अधिकारियों ने उन्हें 'राष्ट्र-विरोधी' तक कह डाला. इस आरोप से क्षेत्र के कई लोग नाराज और आहत हैं.

कई स्थानीय लोगों का आरोप है कि नई दिल्ली की 'लापरवाही' और 'अधूरे वादों' ने अविश्वास को और बढ़ा दिया हैतस्वीर: DW

दोरजे और अन्य लोगों ने विदेशी तत्वों के साथ मिलीभगत के आरोप पर निराशा जताई. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "जब हमें राष्ट्र-विरोधी कहा जाता है, तो बहुत दुख होता है. हमारे लोगों ने इस देश के लिए अपनी जान कुर्बान की है. अब हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है."

उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि किस तरह उनके परिवार और पड़ोसियों ने अपनी इच्छा से भारतीय सेना की सेवा की थी. खासतौर पर, साल 1999 में पाकिस्तान के साथ तथाकथित कारगिल संघर्ष के दौरान. उस समय भारत और पाकिस्तान, दोनों परमाणु संपन्न देश आपस में भिड़ गए थे.

स्थानीय लोगों ने डीडब्ल्यू को बताया कि लगभग हर परिवार ने भारतीय सेना का साथ दिया. किसी ने रसद पहुंचाई, तो किसी ने खुफिया जानकारी दी.

कई विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि केंद्र सरकार के रवैये से लद्दाख की आबादी के अलग-थलग पड़ने और दूर होने का खतरा है.तस्वीर: DW

लद्दाख में लोग विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?

मौजूदा असंतोष की जड़ें 2019 से जुड़ी हैं. उस समय नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य को प्राप्त विशेष स्वायत्त दर्जा समाप्त कर दिया था. इस कदम ने लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया. 

बौद्ध-बहुल लेह के स्थानीय लोगों ने इस कदम का स्वागत किया था और जश्न मनाया था. उन्हें उम्मीद थी कि इससे उन्हें स्वायत्तता मिलेगी और इलाके का विकास होगा. हालांकि, कुछ साल बाद वादे पूरे न होने के कारण उनका उत्साह कम हो गया. क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या बढ़ने लगी. विशेषज्ञों के अनुसार, इन अधूरे वादों ने आखिरकार 24 सितंबर को विरोध-प्रदर्शनों को हवा दे दी.

हिंसा, आगजनी और गुस्सा: लद्दाख के लोगों की क्या है मांग

लद्दाख की स्वायत्तता के लिए अभियान चलाने वाले मुख्य समूहों में 'लेह एपेक्स बॉडी' शामिल है. इसके कार्यालय में मौजूद समूह के सदस्यों का आरोप है कि नई दिल्ली की 'लापरवाही' और 'अधूरे वादों' ने अविश्वास को और बढ़ा दिया है.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "राज्य का दर्जा और अधिक स्वायत्तता की हमारी मांग जारी रहेगी." उन्होंने आगे कहा कि स्थानीय जातीय आबादी की सुरक्षा के लिए ये मांगें बेहद जरूरी हैं.

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वे कहते हैं, "स्वायत्तता की विशेष मांग हमें अपनी जमीन को बचाने और स्थानीय रीति-रिवाजों को बनाए रखने में मदद करेगी. साथ ही, पारिस्थितिक रूप से नाजुक इस क्षेत्र को शोषण और बाहरी लोगों से बचाए रखेगी."

सोनम वांगचुक, एनएसए के तहत हिंसा भड़काने के आरोप में जेल में हैं. वह खुद पर लगाए गए आरोपों का खंडन करते हैंतस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance

जानलेवा हो गया विरोध-प्रदर्शन

भारत के गृह मंत्रालय ने कहा कि 24 सितंबर के प्रदर्शन जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के 'भड़काऊ' भाषणों के कारण भड़के थे. वांगचुक 10 सितंबर से भूख हड़ताल पर थे. आयोजकों ने स्थानीय स्तर पर बंद की अपील की और प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए.

प्रदर्शनकारियों ने सरकार के "उदासीन रवैये" को देखते हुए गहरा रोष जताया. प्रदर्शन हिंसक हो गया. भीड़ ने लेह स्थित भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के स्थानीय कार्यालय सहित कई अन्य सरकारी इमारतों में आग लगा दी.

अधिकारियों ने बताया कि एक पुलिस वाहन को भी आग लगा दी गई. 30 से ज्यादा पुलिसकर्मी और अन्य कर्मी घायल हो गए. वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि सुरक्षा बलों ने गोलीबारी की, जिसमें चार लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए.

लेह निवासी डेस्किट अंगमो ने कहा, "इस मामले में पुलिस के रवैये से मैं गुस्से में हूं. लोग निहत्थे थे. हमारे ऊपर गलत तरीके से बल का प्रयोग किया गया था."

सोनम वांगचुक, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत हिंसा भड़काने के आरोप में जेल में हैं. हालांकि, वह इस आरोप का पुरजोर खंडन करते हैं. हिंसा के तुरंत बाद, कर्फ्यू लगने और इंटरनेट सेवा बंद होने से लेह में सन्नाटा छा गया. दर्जनों लोगों को दंगा और आगजनी के आरोप में हिरासत में लिया गया.

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लेह की जिला जेल के गेट पर एक बुजुर्ग व्यक्ति दिखे. वह सुरक्षाकर्मियों से बात कर रहे थे. उन्होंने अपना नाम त्सेरिंग दोरजे बताया. उनके बेटे को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया है. त्सेरिंग दोरजे, इस हफ्ते तीसरी बार अपने बेटे से मिलने आए हैं. हिरासत में लिए जाने के बाद से उन्हें सिर्फ एक बार ही बेटे से मिलने की इजाजत मिली है.

त्सेरिंग दोरजे ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा, "हम बहुत चिंतित हैं. मेरी पत्नी और बेटी उसे बहुत याद करती हैं. मेरे बेटे ने कुछ भी गलत नहीं किया है, लेकिन उसे गिरफ्तार कर लिया गया है."

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स्थानीय लोगों के अलग-थलग पड़ने का डर

लद्दाख भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है. यह इलाका चीन और पाकिस्तान की सीमा से जुड़ा है. कई विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि नई दिल्ली के इस रवैये से उस आबादी के अलग-थलग पड़ने और दूर होने का खतरा है, जो वास्तव में देश की रक्षा (खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में) की पहली और सबसे महत्वपूर्ण पंक्ति के रूप में काम करती है.

इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्दीक वाहिद ने कहा, "अलगाव की किसी भी भावना को तुरंत दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि आपसी विश्वास ही मजबूत संबंधों का मूल आधार होता है. लद्दाख ने 75 वर्षों से नई दिल्ली पर विश्वास दिखाया है. अगर यह विश्वास कम होता है, तो यह चिंताजनक होगा."

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कई स्थानीय लोगों का कहना है कि यह क्षेत्र भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसके लोग राजनीतिक रूप से बेजबान हैं. यह एक ऐसा विरोधाभास है, जो गुस्से और निराशा दोनों को बढ़ाता है.

साल 2020 में, गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच आमने-सामने की झड़प हुई थी. दोनों पक्षों के सैनिक हताहत हुए थे. यह घटना पिछले चार दशकों में दोनों पड़ोसियों के बीच सबसे घातक टकरावों में से एक थी. इस प्रकरण ने रणनीतिक दृष्टि से  लद्दाख की संवेदनशील स्थिति को साफ तौर पर उजागर किया.

थिनलेस दोरजे घर लौटकर अपनी पत्नी और बेटी से बात कर रहे हैं. पीछे टीवी की स्क्रीन पर एक खबर चल रही है, जिसमें सोनम वांगचुक का चेहरा नजर आ रहा है.तस्वीर: Richard Kujur/DW

लद्दाख पुलिस मुख्यालय में सरकारी अधिकारियों और स्थानीय प्रतिनिधियों के बीच एक बैठक चल रही थी. डीडब्ल्यू ने इस मामले पर सुरक्षा महानिदेशक से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. डीडब्ल्यू ने लद्दाख क्षेत्र में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले उप-राज्यपाल से भी बातचीत का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने समय नहीं दिया.

ताशी ग्यालसन, लद्दाख में बीजेपी के एक प्रतिनिधि और एक स्थानीय स्वायत्त निकाय के मुख्य कार्यकारी पार्षद हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि इलाके की जनता निराश है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हां, गुस्सा था. लेकिन ऐसी हिंसा, ऐसा गुस्सा, हमने कभी सोचा भी नहीं था. हर किसी को कुछ जिम्मेदारी लेनी होगी. गलतियां हुईं, चाहे जानबूझकर की गईं या अनजाने में."

घर वापस आकर, थिनलेस दोरजे अपनी पत्नी और बेटी को कोर्ट से जुड़ी बातें बता रहे हैं. वह कहते हैं कि वे चिंतित तो हैं, लेकिन अपने इरादे पर अटल हैं.

दोरजे ने अपनी बेटी की ओर देखते हुए कहा, "हमारी सारी मांगें भविष्य के लिए हैं. मेरे बच्चों और उनके बाद आने वाली पीढ़ियों के लिए हैं. यह संघर्ष जारी रहेगा."

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