जर्मनी और तुर्की को आपसी नजदीकी से क्या फायदा होगा
३० अक्टूबर २०२५
जर्मनी और तुर्की के राजनीतिक संबंध कई साल से तनावपूर्ण बने हुए हैं. ऐसा लगता है कि मानो यह परंपरा ही बन गई है. ऐसे में चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स की अंकारा यात्रा से क्या हासिल हो सकता है?
इसी हफ्ते बर्लिन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मैर्क्स की तुर्की यात्रा के संदर्भ में यह सवाल पूछा गया. जवाब में सरकार के उप प्रवक्ता स्टेफेन मायर ने कहा, "हमारा मुख्य ध्यान एर्दोआन के साथ द्विपक्षीय बातचीत पर है."
29 अक्टूबर को जर्मनी के चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स दो दिवसीय यात्रा पर तुर्की पहुंचे. बतौर चांसलर उनकी यह पहली तुर्की यात्रा है. बर्लिन में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान स्टेफेन मायर ने चांसलर की इस यात्रा को तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन से उनकी "पहली औपचारिक भेंट" के तौर पर पेश किया. उन्होंने कहा कि 'इस मुलाकात के दौरान कुछ छोटे-मोटे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे'.
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पदभार ग्रहण करने के बाद से, अंतरराष्ट्रीय मंच पर मैर्त्स की एर्दोआन से थोड़ी देर के लिए मुलाकातें हुई हैं. इनमें मई में अल्बानिया के तिराना में हुई मुलाकात भी शामिल है.
द्विपक्षीय बैठकों का इतिहास
पूर्व चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने पदभार ग्रहण करने के महज तीन महीने बाद, मार्च 2022 में तुर्की की अपनी 'पहली आधिकारिक यात्रा' की थी. उन्होंने तुर्की की राजधानी का एक दिन का दौरा किया था. इसके विपरीत, शॉल्त्स से पहले की चांसलर अंगेला मैर्केल ने अपने कार्यकाल के 11 महीने बाद, 2006 में इस्तांबुल और अंकारा की यात्रा की थी.
इन तीनों चांसलरों में एक समान बात है, तुर्की पर उनकी निर्भरता. हालांकि, तीनों के समय अलग-अलग राजनीतिक परिस्थितियां रही हैं. मैर्केल के लिए, यह 2015 का शरणार्थी संकट था. शॉल्त्स के लिए फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होना. वहीं मैर्त्स के लिए यूक्रेन युद्ध और गाजा संघर्ष, दोनों में मध्यस्थ के रूप में तुर्की की संभावित भूमिका.
अतीत में देखने पर पता चलता है कि हालात कितने बदल गए हैं. हेलमुट कोल 1982 से 1998 तक चांसलर रहे थे. उन्होंने तुर्की की अपनी पहली यात्रा पदभार ग्रहण करने के करीब तीन साल बाद की थी. इसके बाद गेरहार्ड श्रोएडर देश के चांसलर बने. साल 1998 से 2005 तक उन्होंने जर्मनी का नेतृत्व किया. वे चांसलर बनने के साढ़े पांच साल बाद तुर्की की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर गए थे.
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यह समीक्षा एक स्थायी और अनसुलझे विवाद को भी दिखाती है. यह विवाद है, तुर्की का यूरोपीय संघ (ईयू) में शामिल होने का प्रयास. तुर्की एक प्रमुख नाटो सहयोगी है, फिर भी वह ईयू में शामिल होने से बहुत दूर है.
तुर्की ने साल 1999 में ईयू सदस्यता के लिए आवेदन दिया था, लेकिन जर्मनी ने हमेशा इस महत्वाकांक्षा को संदेह की दृष्टि से देखा है. यह तुर्की के लिए काफी ज्यादा निराशाजनक है. ईयू में शामिल होने की औपचारिक बातचीत 2005 में शुरू हुई, लेकिन वर्षों से यह मामला अटका पड़ा है.
राजनीतिक विज्ञानी यासर आयदिन, जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स (एसडब्ल्यूपी) के अंतर्गत सेंटर फॉर एप्लाइड टर्की स्टडीज (सीएटीएस) के शोधकर्ता हैं. उनका मानना है कि तुर्की के प्रति जर्मनी का रुख बदल गया है.
आयदिन ने डीडब्ल्यू को बताया, "हाल के वर्षों में, जर्मनी और तुर्की के बीच भू-राजनीतिक और रणनीतिक शक्ति संतुलन पर आधारित एक 'व्यावहारिक और लेन-देन वाला रिश्ता' स्थापित हुआ है. दोनों देशों के संबंधों में महत्वपूर्ण मोड़ चांसलर मैर्केल का 2016 का 'शरणार्थी समझौता' था, जिससे जर्मनी में घरेलू तनाव को कम करने में मदद मिली. बाद में अन्य भू-राजनीतिक चुनौतियां सामने आईं."
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आयदिन ने आगे कहा, "यह लेन-देन का मामला है. दोनों देशों का रिश्ता अब 'एक तरह की बराबरी' की ओर बढ़ गया है." चांसलर कोल के समय में जर्मनी की तुर्की के लिए हथियारों की नीति बहुत सख्त और प्रतिबंधात्मक थी. हालांकि, आज का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से कहीं ज्यादा खुला और लचीला है.
शक्ति और व्यावहारिकता
चांसलर मैर्त्स की यात्रा से तुर्की के राष्ट्रपति को क्या मिल सकता है? आयदिन सबसे पहले दोनों देशों के संबंधों में मौजूद शक्ति के प्रतीक पर जोर देते हैं, यानी कि कौन कितना प्रभावशाली है.
इसी सप्ताह, 27 अक्टूबर को ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर अंकारा में थे. यहां उन्होंने मुख्य विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी (तुर्की भाषा में संक्षिप्त नाम, सीएचपी) के प्रतिनिधियों से मिलने से इनकार कर दिया. स्टार्मर और एर्दोआन ने तुर्की के लिए ब्रिटेन से 20 यूरोफाइटर खरीदने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
आयदिन, जर्मनी के महत्व के बारे में भी बताते हैं, क्योंकि यह ईयू का सबसे बड़ी आबादी वाला देश है. यहां 30 लाख से ज्यादा तुर्की प्रवासी रहते हैं और यह देश तुर्की की वस्तुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण निर्यात बाजार है. एर्दोआन इस समय ईयू के साथ हुए अपने कस्टम यूनियन समझौते में बदलाव करके उसे और बेहतर बनाने की उम्मीद कर रहे हैं.
ईयू से जुड़े नीतिगत मामलों और जर्मनी में बसे तुर्की मूल के प्रवासियों पर अंकारा के बढ़ते प्रभाव को लेकर, जर्मनी की सेंटर-राइट पार्टियां (सीडीयू और उसकी सहयोगी सीएसयू) लंबे समय से तुर्की की राजनीतिक दिशा के प्रति आलोचनात्मक रुख अपनाती रही हैं.
तुर्की में लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित करने और विपक्षी आवाजों को दबाने की कार्रवाई ने जर्मन पार्टियों के इस संदेह को और मजबूत कर दिया है. ग्रीन पार्टी की नेता अनालेना बेयरबॉक मई 2025 की शुरुआत तक जर्मनी की विदेश मंत्री थी. उन्होंने बार-बार सार्वजनिक आलोचना की, जिससे अंकारा का गुस्सा बढ़ा.
अर्थव्यवस्था, प्रवासन और सुरक्षा पर ध्यान
बर्लिन में सरकारी सूत्रों के मुताबिक, मैर्त्स की यात्रा अर्थव्यवस्था, प्रवासन और सुरक्षा के क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने पर केंद्रित होगी. ये ऐसे क्षेत्र हैं, जो आज की सबसे गंभीर चुनौतियों को दिखाते हैं.
चांसलर की यात्रा से ठीक 11 दिन पहले, जर्मन विदेश मंत्री योहान वाडेफुल ने अंकारा की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा की. मैर्त्स और वाडेफुल, दोनों सीडीयू से हैं. यह पार्टी जर्मनी के सेंटर-राइट राजनीतिक गठबंधन में वरिष्ठ सहयोगी है. इसलिए, ऐसा हो सकता है कि वाडेफुल ने मैर्त्स की यात्रा की जमीन तैयार की हो.
क्या जर्मनी की धुर-दक्षिणपंथी पार्टी रूस के लिए जासूसी कर रही है?
विदेश मंत्री वाडेफुल ने एक प्रमुख साझेदार और नाटो सहयोगी के रूप में तुर्की के महत्व पर जोर दिया. उनकी बैठकों के दौरान चर्चा का मुख्य विषय गाजा की स्थिति और यूक्रेन के विरुद्ध रूस का युद्ध था. सार्वजनिक आलोचना काफी कम की गई.
जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर 'एआरडी' के मुताबिक, वाडेफुल ने कहा कि जर्मनी ईयू-तुर्की संबंधों में प्रगति चाहता है. उन्होंने कहा, "हम कस्टम यूनियन समझौते को अपडेट करना चाहते हैं. हम वीजा नियमों में ढील चाहते हैं. इन सबसे बढ़कर, हम संबंधों को बेहतर बनाने के लिए सकारात्मक एजेंडा चाहते हैं."