पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन की परियोजनाओं का लंबे समय से विरोध हो रहा है. इमरान खान ने हाल ही में कहा कि वह उन बलोच अलगाववादियों से बातचीत करना चाहते हैं जो इन परियोजनाओं का पुरजोर विरोध करते हैं.
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प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह बलूचिस्तान प्रांत में "अलगाववादियों से बात करने" पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "देश के इस पश्चिमी प्रांत का विकास तभी हो सकता है जब इलाके में शांति हो. अगर इस इलाके में विकास का काम होता, तो हमें कभी भी अलगाववादियों को लेकर चिंता नहीं करनी पड़ती." खान ने यह बयान बलूचिस्तान के ग्वादर शहर की अपनी यात्रा के दौरान दिया है. यह शहर चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का केंद्र है. सीपीईसी चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ी अरबों डॉलर की परियोजना है.
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में विकास की कई परियोजनाएं शुरू की थीं. इनके बावजूद, यह देश का सबसे गरीब और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है. पिछले कई दशकों से यहां अलगाववादी समूह सक्रिय हैं. ये समूह इस इलाके को पाकिस्तान से अलग करने की मांग कर रहे हैं. इनका आरोप है कि देश की सरकार उनके संसाधनों का गलत तरीके से इस्तेमाल कर रही है और उनके लोगों का शोषण किया जा रहा है. पाकिस्तान की सरकार ने इन विद्रोहियों और अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए 2005 में सैन्य अभियान शुरू किया था. फिर भी, इस इलाके के हालात पहले की तरह ही हैं.
तस्वीरों मेंः पर्दा, फैशन या मजबूरी
पर्दा: फैशन या मजबूरी
घूंघट, बुर्का, नकाब या हिजाब - इनके कई अलग नाम और अंदाज हैं. ऐसे पर्दों से अपने व्यक्तित्व को ढकने को दासता का प्रतीक मानें या केवल एक फैशन एक्सेसरी, यहां देखिए दुनिया भर के चलन.
तस्वीर: Getty Images/C.Alvarez
ईरान में प्रचलित हिजाब
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मलेशिया का हिजाब 'टुडोंग'
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इराक में पूरा ढकने वाला पर्दा
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तुर्की में प्रचलित इस्लामी हेडस्कार्फ
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फलस्तीन के सुरक्षा दस्ते में शामिल महिलाएं
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भारतीय महिलाओं का दुपट्टा
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लेबनान की मारोनीट ईसाई महिलाओं का सिर ढकने का अंदाज
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ईसाई महिलाओं का शादी में पहना जाने वाला घूंघट
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अफगानी औरतों का पूरे शरीर ढकने वाला पर्दा
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नेपाल और भारत के ग्रामीण इलाकों का घूंघट
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फलीस्तीनी महिलाओं का पूरा चेहरा ढकने वाला नकाब
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चेहरे पर जाली वाली डिजायनर हैट
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चीन के एक समुद्री बीच पर फेसकिनी पहले चीनी महिला
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पश्चिम अफ्रीका के सेनेगल में हिजाब फैशन
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वर्ष 2015 में चीन ने पाकिस्तान में 50 बिलियन डॉलर से अधिक की एक आर्थिक परियोजना की घोषणा की थी. बलूचिस्तान इस परियोजना का अभिन्न हिस्सा है. सीपीईसी के ज़रिए, चीन का लक्ष्य पाकिस्तान और एशिया के अन्य देशों में अपना दबदबा बढ़ाना है. साथ ही, भारत और अमेरिका का मुकाबला करना है. सीपीईसी, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में अरब सागर के किनारे स्थित ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ेगा. इसमें चीन और मध्य पूर्व के बीच संपर्क में सुधार के लिए सड़क, रेल और तेल पाइपलाइन लिंक बनाने की योजना भी शामिल है. हालांकि, बलूचिस्तान के अलगाववादी और कुछ स्थानीय नेता चीन के इस निवेश का विरोध कर रहे हैं.
‘अच्छी पहल'
कराची में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ डॉ. तलत ए विजारत ने बलोच अलगाववादियों के प्रति इमरान खाने के नजरिए में हुए बदलाव का स्वागत किया है. वह कहते हैं, "इस प्रस्ताव से बलूचिस्तान में विकास के एक नए युग की शुरुआत हो सकती है. यह एक अच्छी पहल है. बलूचिस्तान में शांति स्थापित होने से चीन यहां और ज्यादा निवेश कर सकता है." इस्लामाबाद में रहने वाली विश्लेषक डॉ. सलमा मलिक का मानना है कि प्रधानमंत्री को काफी पहले ही अलगाववादियों से संपर्क करना चाहिए था. वह कहती हैं, "अब थोड़ी देर हो चुकी है. हालांकि, अभी भी इस पहल का स्वागत होना चाहिए."
बलूचिस्तान के अलगाववादियों में चरमपंथी और राजनीतिक समूह दोनों शामिल हैं. दोनों इस इलाके में चीन की बढ़ती गतिविधियों का विरोध कर रहे हैं. उनका यह भी मानना है कि बातचीत को लेकर खान का इरादा सही नहीं है. उनका इरादा अशांत प्रांत में चीन की परियोजनाओं को स्थापित कराना है.
देखिएः कहां कहां हैं सीमा विवाद
इन देशों के बीच छिड़ा हुआ है सीमा विवाद
एक तरफ पाकिस्तान तो दूसरी ओर चीन - दशकों से भारत सीमा विवाद में उलझा हुआ है. भारत की ही तरह दुनिया में और भी कई देश सीमा विवाद का सामना कर रहे हैं.
अर्मेनिया और अजरबाइजान
इन दोनों देशों के बीच नागोर्नो काराबाख नाम के इलाके को ले कर विवाद है. यह इलाका यूं तो अजरबाइजान की सीमा में आता है और अंतरराष्ट्रीय तौर पर इसे अजरबाइजान का हिस्सा माना जाता है. लेकिन अर्मेनियाई बहुमत वाले इस इलाके में 1988 से स्वतंत्र शासन है लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है.
तुर्की और ग्रीस
इन दोनों देशों के बीच तनाव की वजह जमीन नहीं, बल्कि पानी है. ग्रीस और तुर्की के बीच भूमध्यसागर है. माना जाता है कि इस सागर के पूर्वी हिस्से में दो अरब बैरल तेल और चार हजार अरब क्यूबिक मीटर गैस के भंडार हैं. दोनों देश इन पर अपना अधिकार चाहते हैं.
इस्राएल और सीरिया
1948 में इस्राएल के गठन के बाद से ही इन दोनों देशों में तनाव बना हुआ है. सीमा विवाद के चलते ये दोनों देश तीन बार एक दूसरे के साथ युद्ध लड़ चुके हैं. सीरिया ने आज तक इस्राएल को देश के रूप में स्वीकारा ही नहीं है.
चीन और जापान
इन दोनों देशों के बीच भी सागर है जहां कुछ ऐसे द्वीप हैं जिन पर कोई आबादी नहीं रहती है. पूर्वी चीन सागर में मौजूद सेनकाकू द्वीप समूह, दियाऊ द्वीप समूह और तियायुताई द्वीप समूह दोनों देशों के बीच विवाद की वजह हैं. दोनों देश इन पर अपना अधिकार जताते हैं.
तस्वीर: DW
रूस और यूक्रेन
वैसे तो इन दोनों देशों का विवाद सौ साल से भी पुराना है लेकिन 2014 से यह सीमा विवाद काफी बढ़ गया है. यूक्रेन सीमा पर दीवार बना रहा है ताकि रूस के साथ आवाजाही पूरी तरह नियंत्रित की जा सके. इस दीवार के 2025 में पूरा होने की उम्मीद है.
चीन और भूटान
भूटान की सीमा तिब्बत से लगती थी लेकिन 1950 के दशक के अंत में जब चीन ने इसे अपना हिस्सा घोषित कर लिया, तब से चीन भूटान का पड़ोसी देश बन गया. चीन भूटान के 764 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर अपना अधिकार बताता है.
चीन और भारत
भारत और चीन के बीच 3,440 किलोमीटर लंबी सीमा है जिस पर कई झीलें और पहाड़ हैं. इस वजह से नियंत्रण रेखा को ठीक से परिभाषित करना भी मुश्किल है. हाल में गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच जो झड़प हुई वह पिछले कई दशकों में इस सीमा विवाद का सबसे बुरा रूप रहा.
पाकिस्तान और भारत
1947 में आजादी के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद की वजह बना हुआ है. इतने साल बीत जाते के बाद भी दोनों देश इस मसले को सुलझा नहीं पाए हैं. भारत इसे द्विपक्षीय मामला बताता है और वह किसी भी तरह का अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं चाहता है.
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पूर्व सांसद यास्मीन लहरी का कहना है कि चीन बलूचिस्तान में सुरक्षा स्थिति को लेकर चिंतित है. वह कहती हैं, "चीन दुनिया के कई इलाकों में विकास की परियोजनाएं चला रहा है, लेकिन उसे किसी भी जगह उतने खतरों का सामना नहीं करना पड़ रहा है जितना पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में करना पड़ रहा है." विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की चिंताओं की वजह से पाकिस्तान की सरकार का बलोच अलगाववादियों के प्रति नजरिया बदला है.
कराची में रहने वाले विश्लेषक डॉ. तौसीफ अहमद खान लहरी की बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "चीन चाहता है कि वह बलूचिस्तान में जो निवेश कर रहा है वह सुरक्षित रहे. इसलिए, इन स्थितियों से निपटने के लिए चीन इमरान खान की सरकार पर दबाव बना रहा है और पाक सरकार दबाव में है."
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चीन के खिलाफ गुस्सा
बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकार के पूर्व प्रवक्ता जान मुहम्मद बुलेदी का कहना है कि बलूचिस्तान में कई चीनी परियोजनाओं को सुरक्षा से जुड़े खतरों का सामना करना पड़ रहा है. बुलेदी का कहना है कि बलूचिस्तान में चीन के खिलाफ बहुत गुस्सा है. स्थानीय लोगों का मानना है कि ग्वादर बंदरगाह और सीपीईसी से संबंधित अन्य परियोजनाएं उनके लिए फायदेमंद नहीं रही हैं.
पाकिस्तान के एक प्रमुख अर्थशास्त्री कैसर बंगाली भी इस बात पर सहमत हैं. वह कहते हैं, "बलोच लोगों का मानना सही है कि इन समझौतों और चीनी परियोजनाओं से उन्हें कुछ नहीं मिला है. चीन ग्वादर बंदरगाह से होने वाली आमदनी का 91 प्रतिशत हिस्सा खुद लेता है और बाकी पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार को जाता है.
ग्वादर में स्थानीय लोगों के पास पीने का साफ पानी तक नहीं है." बंगाली कहते हैं कि ग्वादर में सिर्फ चीनी लोगों के लिए आवासीय परिसर बनाए गए हैं. बलूचिस्तान विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को भी इन परिसरों में जाने की अनुमति नहीं है.
सशस्त्र विद्रोह का सामना
स्थानीय लोगों के पास अपना गुस्सा निकालने के लिए कुछ राजनीतिक रास्ते हैं. वहीं दूसरी ओर, सशस्त्र विद्रोहियों ने न केवल प्रांत में, बल्कि पूरे देश में चीनी परियोजनाओं और ठिकानों को नुकसान पहुंचाने की प्रतिज्ञा ली है. अगस्त 2018 में, एक आत्मघाती हमलावर ने बलूचिस्तान के दलबादीन में चीनी इंजीनियरों को ले जा रही एक बस को निशाना बनाया था. इस हमले में तीन चीनी नागरिकों सहित पांच लोग घायल हो गए थे.
देखिएः पाकिस्तान में हिंदू मंदिर
पाकिस्तान में हिंदुओं का ऐतिहासिक भव्य मंदिर
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में कोहिस्तान नामक पर्वत श्रृंखला में कटासराज नाम का एक गांव है. यह गांव हिंदुओं के लिए बहुत ऐतिहासिक और पवित्र है. इसका जिक्र महाभारत में भी मिलता है. आइए जानें इसकी विशेषता.
तस्वीर: Ismat Jabeen
कई मंदिर
कटासराज मंदिर परिसर में एक नहीं, बल्कि कम से कम सात मंदिर है. इसके अलावा यहां सिख और बौद्ध धर्म के भी पवित्र स्थल हैं. इसकी व्यवस्था अभी एक वक्फ बोर्ड और पंजाब की प्रांतीय सरकार का पुरातत्व विभाग देखता है.
तस्वीर: Ismat Jabeen
पहाड़ी इलाके में मंदिर
कोहिस्तान नमक का इलाका छोटी-बड़ी पहाड़ियों से घिरा है. ऊंची पहाड़ियों पर बनाए गए इन मंदिरों तक जाने के लिए पहाड़ियों में होकर बल खाते पथरीले रास्ते हैं. इस तस्वीर में कटासराज का मुख्य मंदिर और उसके पास दूसरे भवन दिख रहे हैं.
तस्वीर: Ismat Jabeen
सबसे ऊंचे मंदिर से नजारा
कटासराज की ये तस्वीर वहां के सबसे ऊंचे मंदिर से ली गई है जिसमें मुख्य तालाब, उसके आसपास के मंदिर, हवेली, बारादरी और पृष्ठभूमि में मंदिर के गुम्बद भी देखे जा सकते हैं. बाएं कोने में ऊपर की तरफ स्थानीय मुसलमानों की एक मस्जिद भी है.
तस्वीर: Ismat Jabeen
नहीं रही हिंदू आबादी
कटासराज मंदिर के ये अवशेष चकवाल शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में हैं. बंटवारे से पहले यहां हिंदुओं की अच्छी खासी आबादी रहती थी लेकिन 1947 में बहुत से हिंदू भारत चले गए. इस मंदिर परिसर में राम मंदिर, हनुमान मंदिर और शिव मंदिर खास तौर से देखे जा सकते हैं.
तस्वीर: Ismat Jabeen
शिव और सती का निवास
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव ने सती से शादी के बाद कई साल कटासराज में ही गुजारे. मान्यता है कि कटासराज के तालाब में स्नान से सारे पाप दूर हो जाते हैं. 2005 में जब भारत के उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी पाकिस्तान आए तो उन्होंने कटासराज की खास तौर से यात्रा की थी.
तस्वीर: Ismat Jabeen
शिव के आंसू
हिंदू मान्यताओं के अनुसार जब शिव की पत्नी सती का निधन हुआ तो शिव इतना रोए कि उनके आंसू रुके ही नहीं और उन्हीं आंसुओं के कारण दो तालाब बन गए. इनमें से एक पुष्कर (राजस्थान) में है और दूसरा यहां कटाशा है. संस्कृत में कटाशा का मतलब आंसू की लड़ी है जो बाद में कटास हो गया.
तस्वीर: Ismat Jabeen
गणेश
हरी सिंह नलवे की हवेली की एक दीवार पर गणेश की तस्वीर, जिसमें वो अन्य जानवरों को खाने के लिए चीजें दे रहे हैं. ऐसे चित्रों में कोई न कोई हिंदू पौराणिक कहानी है. कटासराज के निर्माण में ज्यादातर चूना इस्तेमाल किया गया है.
तस्वीर: Ismat Jabeen
धार्मिक महत्व
पुरातत्वविद् कहते हैं कि इस तस्वीर में नजर आने वाले मंदिर भी नौ सौ साल पुराने हैं. लेकिन पहाड़ी पर बनी किलेनुमा इमारत इससे काफी पहले ही बनाई गई थी. तस्वीर में दाईं तरफ एक बौद्ध स्तूप भी है.
तस्वीर: Ismat Jabeen
प्राकृतिक चश्मे
कटासराज की शोहरत की एक वजह वो प्राकृतिक चश्मे हैं जिनके पानी से गुनियानाला वजूद में आया. कटासराज के तालाब की गहराई तीस फुट है और ये तालाब धीरे धीरे सूख रहा है. इसी तालाब के आसपास मंदिर बनाए गए हैं.
तस्वीर: Ismat Jabeen
खास निर्माण शैली
कटासराज की विशिष्ट निर्माण शैली और गुंबद वाली ये बारादरी अन्य मंदिरों के मुकाबले कई सदियों बाद बनाई गई थी. इसलिए इसकी हालत अन्य मंदिरों के मुकाबले में अच्छी है. पुरातत्वविदों के अनुसार कटासराज का सबसे पुराना मंदिर छठी सदी का है.
तस्वीर: Ismat Jabeen
दीवारों पर सदियों पुराने निशान
ये खूबसूरत कलाकारी एक हवेली की दीवारों पर की गई है जो यहां सदियों पहले सिख जनरल हरी सिंह नलवे ने बनवाई थी. इस हवेली के अवशेष आज भी इस हालत में मौजूद हैं कि उस जमाने की एक झलक बखूबी मिलती है.
तस्वीर: Ismat Jabeen
नलवे की हवेली के झरोखे
सिख जनरल नलवे ने कटासराज में जो हवेली बनवाई, उसके चंद झरोखे आज भी असली हालत में मौजूद हैं. इस तस्वीर में एक अंदरूनी दीवार पर झरोखे के पास खूबसूरत चित्रकारी नजर आ रही है. कहा जाता है कि कटासराज का सबसे प्राचीन स्तूप सम्राट अशोक ने बनवाया था.
तस्वीर: Ismat Jabeen
बीती सदियों के प्रभाव
इस तस्वीर में कटासराज की कई इमारतें देखी जा सकती हैं, जिनमें मंदिर भी हैं, हवेलियां भी हैं और कई दरवाजों वाले आश्रम भी हैं. इस तस्वीर में दिख रही इमारतों पर बीती सदियों के असर साफ दिखते हैं.
तस्वीर: Ismat Jabeen
सदियों का सफर
इस स्तूपनुमा मंदिर में शिवलिंग है. भारतीय पुरातत्व सर्वे की 19वीं सदी के आखिर में तैयार दस्तावेज बताते हैं कि कटासराज छठी सदी से लेकर बाद में कई दसियों तक हिंदुओं का बेहद पवित्र स्थल रहा है.
तस्वीर: Ismat Jabeen
मूंगे की चट्टानें
कटासराज के मंदिरों और कई अन्य इमारतों में हिस्सों में मूंगे की चट्टानों, जानवरों की हड्डियों और कई पुरानी चीजों के अवशेष भी देखे जा सकते हैं.
तस्वीर: Ismat Jabeen
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नवंबर 2018 में, एक बलोच विद्रोही समूह ने कराची शहर में चीनी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी ली थी. इस हमले में चार लोग मारे गए थे. मई 2019 में, अलगाववादियों ने ग्वादर में पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल पर हमला किया था. इसमें पांच लोग मारे गए थे और छह लोग घायल हो गए थे. जून 2020 में, सशस्त्र अलगाववादियों ने पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला किया था. इस स्टॉक एक्सचेंज में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी तीन चीनी कंपनियों के पास है.
चीनी ठिकानों पर हमला करने के अलावा, बलोच विद्रोही नियमित रूप से पाकिस्तान के सुरक्षा बलों, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, और उदारवादी बलोच राजनेताओं को भी निशाना बनाते हैं. साथ ही, उन गैर-बलोच मजदूरों को भी निशाना बनाते हैं जो चीन या पाकिस्तान की तरफ से संचालित विकास परियोजनाओं पर काम करते हैं.
क्यों जरूरी है चीनी निवेश?
चीन के आर्थिक निवेश के समर्थकों का तर्क है कि पाकिस्तान को विदेशी निवेश की जरूरत है. चीन अब तक पाकिस्तान का एक विश्वसनीय भागीदार साबित हुआ है. प्रधानमंत्री इमरान खान के आर्थिक परिषद के सदस्य अशफाक हसन ने डॉयचे वेले को बताया, "पाकिस्तान विरोधी तत्व चीन पर झूठे आरोप लगा रहे हैं. हम उनके साथ इसलिए अनुबंध करते हैं क्योंकि वे हमारे देश में निवेश करते हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है. चीनी निवेश से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी. साथ ही, बलूचिस्तान को भी फायदा होगा."
पाकिस्तान के कई प्रमुख व्यवसायियों का कहना है कि चीनी निवेश से देश में हजारों नौकरियां पैदा हुई हैं और सहायक परियोजनाओं से हजारों लोगों को लाभ हुआ है.