प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच बातचीत के दौरान भारत तटस्थ रहना चाहता है और रूस के साथ व्यापार बढ़ाना चाहता है.
विज्ञापन
यूक्रेन पर मॉस्को द्वारा हमले के मद्देनजर रूसी कच्चे तेल के आयात में वृद्धि के लिए भारत को पश्चिम में बहुत आलोचना झेलनी पड़ी. दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक ने सस्ते कच्चे तेल के कारण 2022 में रूस से डिलीवरी में दस गुना वृद्धि देखी और पिछले साल फिर से इसमें दोगुनी वृद्धि देखने को मिली. इसी दो साल की अवधि में रूस से भारत का कोयला आयात तीन गुना बढ़ गया.
पुतिन की युद्ध मशीन को फंडिंग करने के आरोपों के बावजूद, नई दिल्ली ने मॉस्को के साथ भारत के पारंपरिक "स्थिर और दोस्ताना" संबंधों और आयातित तेल पर भारत की भारी निर्भरता का हवाला देकर इस बढ़ोतरी को उचित ठहराया.
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को 22वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मॉस्को पहुंचे. रूस दौरे के दौरान मोदी की मुलाकात राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होगी. तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद यह मोदी का पहला रूस दौरा और पहला द्विपक्षीय दौरा भी है.
मोदी के दौरे के दौरान क्रेमलिन रूस की कमोडिटी-निर्भर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और यूक्रेन युद्ध पर पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव को कम करने के लिए दक्षिण एशियाई शक्ति के साथ व्यापार को और बढ़ाने की कोशिश करेगा.
कौन से देश विदेशियों को करते हैं अपनी सेना में शामिल
क्या कोई देश किसी दूसरे देश के नागरिकों को अपनी सेना में भर्ती कर सकता है? जर्मनी इस बारे में विचार कर रहा है, लेकिन वास्तव में अमेरिका और रूस समेत कई देश सेना में विदेशी लोगों को भर्ती करते हैं.
तस्वीर: Ryan Remiorz/Canadian Press/Zuma/picture alliance
कनाडा
2022 के नवंबर की शुरुआत में कनाडा के सशस्त्र बलों (सीएएफ) ने घोषणा की कि स्थायी निवासियों को अब सेवाओं में भर्ती दी जाएगी, क्योंकि सेना में इन दिनों सैनिकों की कमी है. सीएएफ के इस कदम से कनाडा निवासी भारतीयों को फायदा मिलेगा. 2021 में करीब एक लाख भारतीय कनाडा के स्थायी निवासी बने थे.
तस्वीर: Ryan Remiorz/Canadian Press/Zuma/picture alliance
अमेरिका
अमेरिका की सेना में स्थाई निवासी और ग्रीन कार्ड रखने वाले ही शामिल हो सकते हैं. हालांकि उन्हें सेना में कमीशन नहीं मिलता. 2002 में तब के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने गैर-अमेरिकी सैनिकों की नागरिकता को आसान और तेज बनाने के आदेश दिए. हर साल यहां सेना में 8,000 विदेशी नागरिक भर्ती होते हैं. इनमें ज्यादातर मेक्सिको और फ्रांस के लोग हैं. माइक्रोनेशिया और पलाउ के लोग भी सेना में आ सकते हैं.
तस्वीर: Patrick T. Fallon/AFP
रूस
सेना में शामिल होने के नियमों को 2010 में रूस ने आसान किया. इसे पुराने सोवियत संघ के देशों में रह रहे रूसी लोगों को बुलाने का जरिया माना गया. हालांकि रूस ने विदेशियों के लिए कई दूसरे कदम भी उठाए हैं. रूसी भाषा बोलने वाले गैर-रूसी लोग 5 साल के करार पर सेना में जा सकते हैं. 3 साल बाद नागरिकता के भी कई विकल्प मिलते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Tass/V. Savitskii
ब्रिटेन
ब्रिटेन ने 2018 में कॉमनवेल्थ देशों के नागरिकों के सेना में भर्ती होने के लिए चली आ रही 5 साल ब्रिटेन में रहने की शर्त को खत्म कर दिया है. अन्य देशों के नागरिक यहां की सेना में नहीं जा सकते यहां तक कि यूरोपीय संघ के भी नहीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Kirk
फ्रांस
फ्रांस का फॉरेन लीजन अनोखा है. यह सबसे पुरानी सिर्फ विदेशी सैनिकों की शाखा है जो अब भी सक्रिय है. यह 1831 में बनी और इसे अब भी फ्रेंच सेना के अधिकारियों से आदेश मिलता है. इसमें शामिल लोग 3 साल की नौकरी के बाद ही फ्रांस की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/G. Fuentes
स्पेन
स्पेन ने 2002 से विदेशियों की सेना में भर्ती शुरू की. पहले स्पेन के पुराने उपनिवेशों के नागरिकों को मौका दिया गया. बाद में इसमें मोरक्को भी शामिल हुआ. मोरक्को का उत्तरी हिस्सा कभी स्पेन का उपनिवेश रहा था. सेना में कई ऐसे लोग भी हैं जो स्पेनवासी नहीं हैं. विदेशियों का कोटा 2 फीसदी से बढ़ कर अब 9 फीसदी हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/Legan P. Mace
बेल्जियम
2004 से बेल्जियम की सेना में 18-34 साल के यूरोपीय नागरिकों की सैनिक के रूप में भर्ती शुरू की गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Lefour
आयरलैंड
आयरलैंड यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र यानी यूरोपीय संघ समेत आइसलैंड, लिश्टेनश्टाइन और नॉर्वे के लोगों को सेना में शामिल करता है. दूसरे देश के नागरिक अगर 3 साल से ज्यादा समय से आयरलैंड में रह रहे हों, तो वे भी सेना में भर्ती हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/A. Widak
लग्जमबर्ग
लग्जमबर्ग भी यूरोपीय नागरिकों को अपनी सेना में जगह देता है. बशर्ते वो देश में 3 साल से ज्यादा वक्त से रह रहे हों और उनकी उम्र 18 से 24 साल के बीच हो.
तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Marin
डेनमार्क
डेनमार्क की सेना में भर्ती होने के लिए डेनमार्क में रहने वाले विदेशी लोग आवेदन दे सकते हैं. डेनमार्क में रहने के अलावा उम्मीदवार का डैनिश भाषा बोलना भी जरूरी है.
तस्वीर: imago/ZUMA Press
10 तस्वीरें1 | 10
रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने वार्ता की घोषणा करते हुए एक बयान में कहा था कि पुतिन और मोदी अपनी बैठक के दौरान क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के अलावा व्यापार जैसे एजेंडे पर बात करेंगे.
भारत-रूस संबंध कितने मजबूत
रूस के मामले में भारत को एक नाजुक रास्ते पर चलना होगा क्योंकि उसका लक्ष्य पश्चिम के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना, मॉस्को के साथ नए व्यापारिक संबंध बनाना और यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ रुख बनाए रखना है.
डीडब्ल्यू ने भारत-रूस व्यापार संबंधों की मौजूदा स्थिति पर नजर डाली है और यह भी जानने की कोशिश की कि दोनों नेता किन मुद्दों पर सहमत हो सकते हैं.
शीत युद्ध के दौर से सोवियत संघ भारत का करीबी रहा है. सोवियत संघ और भारत ने रक्षा और व्यापार के लिए एक रणनीतिक साझेदारी बनाई जो साम्यवाद के अंत के बाद भी जारी रही. 2000 में तत्कालीन रूसी प्रधानमंत्री पुतिन ने नई दिल्ली के साथ सहयोग की एक नई घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे.
भारत रूसी रक्षा उद्योग के लिए एक प्रमुख बाजार है. हाल ही तक यह इसका सबसे बड़ा बाज़ार था. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (सिपरी) के मुताबिक पिछले दो दशकों के दौरान मॉस्को ने भारत की 65 फीसदी हथियार खरीद की सप्लाई की, जिसकी कुल कीमत 60 अरब डॉलर से अधिक थी.
व्यापार बढ़ने की कितनी संभावना
रूसी सेना द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद मॉस्को ने पश्चिम के प्रतिकार के रूप में भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को गहरा करने की कोशिश की. क्रेमलिन ने युद्ध लड़ने के लिए देश के वित्त को बढ़ाने के लिए नई दिल्ली को तेल, कोयला और फर्टिलाइजर की सप्लाई पर भारी डिस्काउंट की पेशकश की. नतीजतन पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनजर नए बाजार की तलाश में भारत रूसी कच्चे तेल के लिए एक प्रमुख निर्यात बाजार के रूप में उभरा.
उदाहरण के लिए वित्तीय विश्लेषक कंपनी एसएंडपी ग्लोबल के मुताबिक अप्रैल में भारत को रूसी कच्चे तेल की सप्लाई 21 लाख बैरल प्रतिदिन के नए रिकॉर्ड पर पहुंच गई.
2023-2024 में भारत और रूस के द्विपक्षीय व्यापार में इजाफा देखने को मिला है. दोनों देशों के बीच करीब 65 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. इस व्यापार की अहम वजह ऊर्जा है. भारत के वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 65.7 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था. हालांकि, व्यापार में रूस का पलड़ा भारी है, क्योंकि भारत ने तेल, उर्वरक, कीमती पत्थरों और धातुओं समेत 61.4 अरब डॉलर का सामान आयात किया है.
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसी साल मई में एक उद्योग सम्मेलन में कहा, "हम लंबे समय से रूस को राजनीतिक या सुरक्षा के नजरिए से देखते आए हैं. जैसे-जैसे वह देश पूर्व की ओर मुड़ रहा है, नए आर्थिक अवसर सामने आ रहे हैं... हमारे व्यापार में वृद्धि और सहयोग के नए क्षेत्रों को अस्थायी घटना नहीं माना जाना चाहिए."
विज्ञापन
भारत की चिंताएं क्या हैं?
जबकि पश्चिम ने रूस के साथ सस्ते तेल सौदे को लेकर भारत की आलोचना को सीमित रखा है, हथियारों के लिए मॉस्को पर नई दिल्ली की ऐतिहासिक निर्भरता अमेरिका और यूरोप के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है.
फ्रेंच इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस (आईएफआरआई) में भारतीय विदेश नीति पर शोधकर्ता अलेक्सेई जखारोव ने पिछले महीने एक शोध रिपोर्ट में लिखा था, "नई दिल्ली ने रूस-यूक्रेन युद्ध से निपटने के लिए एक बारीक दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया है और मॉस्को और पश्चिम के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं."
शोध पत्र में जखारोव ने "संरचनात्मक चुनौतियों" के बारे में लिखा, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि "ये चुनौतियां अभी भी दोनों पक्षों को आर्थिक संबंधों को पुनर्जीवित करने से रोकती दिखती हैं." साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रूस और भारत के बीच रक्षा सहयोग वर्तमान में "अनिश्चितता की स्थिति में है." उनके मुताबिक यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस का हथियार क्षेत्र आंशिक रूप से प्रभावित हुआ है.
रूस के हथियार उद्योग के साथ पहले के सौदों में भारत को कई नकारात्मक अनुभव हुए हैं. 2004 में रूस द्वारा अपग्रेड और मोडिफिकेशन किए गए सोवियत युग के विमानवाहक पोत को खरीदने के सौदे की लंबी देरी और लागत दोगुनी होने के कारण आलोचना की गई थी.
2013 में रूस की बनी एक पनडुब्बी में विस्फोट होने और उसके डूबने की घटना में चालक दल के 18 सदस्यों की मौत हो गई थी, जिसके बाद भारत के नेताओं पर मॉस्को के साथ रक्षा सहयोग को लेकर और अधिक दबाव बढ़ गया था.
भारतीय मीडिया ने अप्रैल में बताया कि भारतीय सेना वर्तमान में पांच एस-400 वायु रक्षा प्रणालियों और रूसी निर्मित फ्रिगेट्स में से दो का इंतजार कर रही है, जिन्हें रूस ने 2018 के सौदों के तहत सप्लाई करने पर सहमति जताई थी.
सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाले देश
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं और वह दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाला देश है. लेकिन और बहुत से देश हैं, जिन पर बड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं.
रूस पर इस वक्त 18,772 प्रतिबंध हैं. हालांकि 2022 में यूक्रेन पर उसके हमले की तुलना में यह छह गुना बढ़ चुके हैं. फरवरी 2022 के बाद से ही उस पर या उसके नागरिकों पर 16,000 से ज्यादा प्रतिबंध लगाए गए हैं. इनमें से 11,462 तो व्यक्तियों पर हैं.
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के पहले ईरान दुनिया का सबसे अधिक प्रतिबंधों वाला देश था. यूएन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत व इस्राएल जैसे देशों ने उस पर 3,616 प्रतिबंध लगाए हुए थे जो अब बढ़कर 4,953 हो चुके हैं.
तस्वीर: Rouzbeh Fouladi/ZUMA/picture alliance
सीरिया, तीसरे नंबर पर
सीरिया पर 2,811 प्रतिबंध हैं. हालांकि इनमें से अधिकतर 2011 के गृह युद्ध के बाद लगाए गए. अब वह प्रतिबंधों की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है.
तस्वीर: Louai Beshara/AFP/Getty Images
उत्तर कोरिया
प्रतिबंधों के मामले में उत्तर कोरिया दशकों से अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पश्चिमी देशों की सूची में ऊपर रहा है. फिलहाल उसके ऊपर 2,171 प्रतिबंध लगे हैं.
तस्वीर: Lee Jin-man/AP Photo/picture alliance
बेलारूस
रूस का बेहद करीबी और पड़ोसी बेलारूस प्रतिबंधों की सूची में पांचवें नंबर पर है. उस पर कुल 1,454 प्रतिबंध हैं. इनमें से एक तिहाई से ज्यादा फरवरी 2022 के बाद लगाए गए हैं.
तस्वीर: Sergei Supinsky/Getty Images/AFP
म्यांमार
2021 में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किए जाने से पहले भी म्यांमार बड़ी संख्या में प्रतिबंध झेल रहा था. लेकिन अब उसके प्रतिबंधों की संख्या 988 हो चुकी है.
सिपरी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2017 और 2022 के बीच भारत मॉस्को से हथियारों के ट्रांसफर का प्रमुख गंतव्य बना रहा, लेकिन इसी अवधि के दौरान दक्षिण एशियाई देश को रक्षा निर्यात में रूस की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से घटकर 36 प्रतिशत हो गई.
फ्रांस और जर्मन हथियार सप्लायरों को नई दिल्ली की रणनीति में बदलाव से फायदा मिला है, जबकि भारतीय नीति-निर्माता क्रेमलिन के साथ नए समझौतों पर हस्ताक्षर करके मॉस्को पर पश्चिमी प्रतिबंधों को तोड़ने में संकोच कर रहे हैं.
भारत ने कभी भी यूक्रेन का दृढ़ समर्थन नहीं किया है. विशेष रूप से पिछले महीने स्विट्जरलैंड में एक शांति सम्मेलन में एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से भारत ने इनकार कर दिया था जिसमें किसी भी शांति समझौते में यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की बात कही गई थी. नरेंद्र मोदी कई बार अपील कर चुके हैं कि युद्ध समाप्त होना चाहिए और दोनों पक्षों को बातचीत से अपने विवाद सुलझाने चाहिए.
जखारोव ने अपने हालिया शोधपत्र में कहा, "सतह पर देखने पर ऐसा लग सकता है कि (यूक्रेन युद्ध में) भारत की तटस्थता ने मॉस्को के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में मदद की है. हालांकि, करीब से देखने पर पता चलता है कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों में ज्यादा सतर्क हो गया है... इसलिए दोनों पक्षों के लिए नए सौदे करने की तुलना में संवाद बनाए रखना और दांव लगाना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा."
भले ही रूसी हथियार खरीदने के लिए नए समझौते सीमित हो सकते हैं, लेकिन मोदी की "मेक इन इंडिया" पहल, जिसका उद्देश्य देश को मैन्युफैक्चरिंग केंद्र के रूप में बढ़ावा देना है, उसके तहत रूस, भारतीय घरेलू हथियार उत्पादन के लिए अधिक कच्चा माल और पुर्जे उपलब्ध करा सकता है. हाल ही में रूसी कंपनी रोस्टोक ने भारत में अपने टैंकों के लिए गोले बनाने का एलान किया.
इसके अलावा रूस अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) का विस्तार करने का भी इच्छुक है, यह एक सड़क, समुद्र और रेल परियोजना है जो ईरान के जरिए रूस को भारत से जोड़ती है. रूस ने पिछले महीने आईएनएसटीसी के माध्यम से कोयले की पहली खेप भेजी थी.
रूस में पांचवीं बार पुतिन
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पांचवीं बार राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है. जोसेफ स्टालिन के बाद वो सबसे लंबे समय तक देश का नेतृत्व करने वाले सोवियत या रूसी नेता हैं.
तस्वीर: ALEXEY DRUZHININ/RIA-NOVOSTI/AFP via Getty Images
सबसे लंबे समय तक रूस का नेतृत्व
2000 से शुरू हुआ यह सफर अगले छह साल के लिए एक बार फिर पक्का हो गया है. इस कार्यकाल को पूरा कर वह 29 साल तक देश का नेतृत्व करने वाले जोसेफ स्टालिन से आगे निकल जाएंगे. मुमकिन है कि छह साल बाद रूस की जनता उन्हें एक बार और मौका दे कर ऐसा रिकॉर्ड बनवा दे जिसे तोड़ने का सपना देखना भी मुश्किल लगे.
तस्वीर: Kremlin.ru via REUTERS
पांच बार राष्ट्रपति दो बार प्रधानमंत्री
व्लादिमीर पुतिन पहली बार 1999 में प्रधानमंत्री बने. 2000 में वह राष्ट्रपति बन गए और 2008 तक इस पद पर रहे. तब राष्ट्रपति के लिए लगातार दो कार्यकाल का ही नियम था, जो 4 साल का होता था. 2008 में दमित्री मेदवेदेव राष्ट्रपति और पुतिन प्रधानमंत्री बन गए. 2012 में उन्होंने फिर राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली. पहले संशोधन में कार्यकाल 6 साल का हुआ और दूसरे संशोधन में दो बार की सीमा खत्म हुई.
तस्वीर: ALEXEY DRUZHININ/RIA-NOVOSTI/AFP via Getty Images
पांच अमेरिकी राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन ने रूस का नेतृत्व करते हुए अमेरिका के पांच राष्ट्रपतियों का सामना किया है. पहली बार जब देश की कमान उनकी मुट्ठी में आई तब बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उसके बाद जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा के दो कार्यकाल और ट्रंप और बाइडेन के एक एक कार्यकाल में रूस उनके हाथ में ही रहा. हालांकि संबंधों की दशा और दिशा इस पूरे दौर में खराब ही होती गई है.
तस्वीर: Sergey Chirikov/EPA/picture alliance
चीन के तीन राष्ट्रपति
पुतिन के कार्यकाल में चीन ने तीन राष्ट्रपति देख लिए और मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अगर कानून में बदलाव नहीं किया होता तो इसमें एक नाम और जुड़ जाता. जियांग जेमिन के साथ शुरू हुआ यह सफर हू जिंताओ से होता हुआ शी जिनपिंग तक आ पहुंचा है. इस पूरे सफर में चीन-रूस की दोस्ती और गहरी हुई है.
तस्वीर: Sputnik/Mikhail Tereshchenko/Pool via REUTERS
जर्मनी के तीन चांसलर
अंगेला मैर्केल का 16 साल लंबा कार्यकाल होने के बावजूद पुतिन ने जर्मनी के तीन चांसलरों के साथ काम किया है. जब वह पहली बार देश के राष्ट्रपति बने तब गेरहार्ड श्रोएडर जर्मनी के चांसलर थे. उसके बाद अंगेला मैर्केल ने कमान संभाली और फिर ओलाफ शॉल्त्स ने. श्रोएडर और मैर्केल के जमाने में जो रिश्ता परवान चढ़ा था वह शॉल्त्स के दौर में बिखर गया है.
भारत के साथ रूस की दोस्ती पुरानी है. पुतिन के राष्ट्रपति बनते वक्त भारत की कमान अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ में थी, उसके बाद मनमोहन सिंह आए और फिर नरेंद्र मोदी. इस पूरे दौर में दोनों देशों का रिश्ता मजबूत ही हुआ है. प्रतिबंधों की अनदेखी करके भी दोनों देश एक दूसरे का साथ निभा रहे हैं.
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
ब्रिटेन के सात प्रधानमंत्री
व्लादिमीर पुतिन ने ब्रिटेन के सात प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है. टोनी ब्लेयर के साथ शुरू हुआ सफर अब ऋषि सुनक तक आ पहुंचा है. सिर्फ इतना ही नहीं ब्रिटेन के शाही परिवार का नेतृत्व भी उनके राष्ट्रपति रहते बदल चुका है. ब्रिटेन यूरोपीय साझीदारों के साथ ही रूस के साथ अपने रिश्तों का निभाता है.
तस्वीर: SAUL LOEB/AFP/Getty Images
उत्तर कोरिया के दो नेता
माना जाता है कि उत्तर कोरिया को रूस से काफी मदद मिलती है. गिने चुने मौकों पर जब उत्तर कोरियाई नेता आधिकारिक दौरे पर देश के बाहर गए तो उनकी मंजिल रूस ही था. वहां बीते कई दशकों से देश का नेता आजीवन इस पद पर रहता है. पुतिन को वहां भी दो नेताओं यानी किम जोंग उन और उनके पिता के किम जोंग इल के साथ काम करने का मौका मिला. दोनों देशों की दोस्ती और मजबूत हुई.
रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के अधिकारी रहे पुतिन ने चेचेन विद्रोहियों को ताकत के दम पर नियंत्रित करके रूसी जनता को अपनी शक्ति का अहसास दिलाया. दूसरी तरफ यूरोप और दूसरे कई देशों के साथ तेल और गैस का कारोबार करके देश को आर्थिक मुश्किलों से बाहर निकाला. इसने उनके लिए राजनीति में कई बड़ी सफलताओं का रास्ता बना दिया.
तस्वीर: ALEXEY DRUZHININ/AFP via Getty Images
प्रतिबंधों पर भारी दोस्ती
सोवियत संघ के विघटन के साथ रूस के सामने जहां विशाल आर्थिक चुनौतियां थी वहीं अंतरराष्ट्रीय पटल पर सिमटती भूमिका उसे हतोत्साहित कर रही थी. ऐसे समय में पुतिन ने रूस की कमान संभाली और उसे एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय राजनीति का बड़ा खिलाड़ी बना दिया. सीरिया से लेकर, ईरान, तुर्की, उत्तर कोरिया, चीन और भारत समेत तमाम देशों के साथ रूस की गहरी दोस्ती है, जो प्रतिबंधों के दौर में भी उसका साथ दे रहे हैं.
तस्वीर: epa Alexander Zemlianichenko/dpa/dpaweb/picture-alliance
10 तस्वीरें1 | 10
यह परियोजना दो दशकों से अधिक समय से चल रही है और पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस को जिन बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, उसके कारण आईएनएसटीसी अब क्रेमलिन के लिए एक प्रमुख व्यापार प्राथमिकता है.
एक और परियोजना के पूरा होने की जरूरत है, जो नई अहमियत रखती है. वह है चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग. रूस के पूर्वी क्षेत्र से 10,300 किलोमीटर तक फैला समुद्री मार्ग भारत में रूसी ऊर्जा और अन्य कच्चे माल के सुरक्षित प्रवाह में मदद कर सकता है. प्रस्तावित परियोजना से स्वेज नहर के मौजूदा मार्ग की तुलना में शिपिंग समय 40 दिनों से घटकर 24 दिन रह जाने की उम्मीद है.