जर्मनी में कब और कैसे होते हैं मध्यावधि चुनाव
७ नवम्बर २०२४क्रिस्टियान लिंडनर, गठबंधन सरकार के तीन घटक दलों में से एक 'फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी' (एफडीपी) के नेता हैं. उनके सरकार से बाहर जाने से केंद्र की गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गई है. शॉल्त्स ने कहा है कि वह जनवरी 2025 में विश्वास मत हासिल करने की कोशिश करेंगे. अगर सरकार को बहुमत नहीं मिलता है, तो मार्च के अंत तक मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं.
जर्मनी में अगला आम चुनाव सितंबर 2025 में होना था. देश में हर चार साल पर नियमित चुनाव होते हैं. हालांकि, राजनीतिक संकट की स्थिति में तय समय से पहले भी चुनाव करवाए जा सकते हैं. यह ऐसी स्थिति होती है जब सरकार के प्रमुख, यानी चांसलर संसद में अपना बहुमत खो दें.
जर्मनी में मध्यावधि चुनावों को काफी दुर्लभ, लेकिन महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक साधन की तरह देखा जाता है. यह जर्मन संविधान के प्रावधानों से नियंत्रित होता है. इसके लिए केवल राष्ट्राध्यक्ष, यानी राष्ट्रपति की ही नहीं बल्कि कई संवैधानिक संस्थाओं की भी मंजूरी चाहिए होती है.
किन स्थितियों में हो सकते हैं मध्यावधि चुनाव
जर्मनी के संविधान के अनुसार, तय समय से पहले संघीय चुनाव कराने का फैसला बुंडेस्टाग, यानी जर्मन संसद के निचले सदन के सदस्य नहीं ले सकते हैं. ना ही, यह निर्णय चांसलर ले सकते हैं. केवल दो तरह की स्थितियों में ही समय से पहले संसद भंग की जा सकती है.
पहली स्थिति यह है कि अगर चांसलर पद का उम्मीदवार संसदीय बहुमत हासिल ना कर पाए, तो जर्मन राष्ट्रपति संसद भंग कर सकते हैं. बुंडेस्टाग में 733 सीटें हैं और बहुमत सिद्ध करने के लिए कम-से-कम 367 मत चाहिए. 1949 से अब तक, फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ.
दूसरी सूरत यह है कि चांसलर बुंडेस्टाग में विश्वास मत हासिल करने का विकल्प चुन सकता है, यह साबित करने के लिए उसके पास पर्याप्त संसदीय समर्थन है या नहीं. इस स्थिति में अगर चांसलर को बहुमत नहीं मिला, तो उसकी ओर से राष्ट्रपति से आधिकारिक अपील की जा सकती है कि वे 21 दिनों के भीतर बुंडेस्टाग भंग कर दें.
भीतरी खींचतान से परेशान जर्मन सरकार
संसद भंग करने के 60 दिन के भीतर नए चुनाव हो जाने चाहिए. मध्यावधि चुनाव भी सामान्य आम चुनाव की ही तरह करवाया जाता है. चुनाव करवाने की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय और केंद्रीय रिटर्निंग ऑफिसर की होती है.
ऐसी स्थिति में अब तक तीन मध्यावधि चुनाव हुए हैं: 1972, 1983 और 2005 में. जानिए कि इन तीनों चुनावों का घटनाक्रम क्या था.
विली ब्रांट
विली ब्रांट 'सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी' (एसपीडी) के पहले चांसलर थे. साल 1969 में उन्होंने फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई थी. उनकी "ओस्टपोलिटिक," यानी पूरब पर केंद्रित राजनीति के कारण 1972 में विश्वास मत की स्थिति बनी. शीत युद्ध के दौर में ब्रांट, भूतपूर्व पूर्वी जर्मनी के साथ मेल-जोल बढ़ाने की नीति पर चल रहे थे.
उस दौर के पश्चिमी जर्मनी में यह काफी विवादास्पद था. सरकार के भीतर ही गहरी दरार पड़ गई. एसपीडी और एफडीपी के कई सांसदों ने इस्तीफा दे दिया. सरकार का बहुमत नाटकीय रूप से घट गया. इतना ही नहीं, विपक्षी दल 'क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन' (सीडीयू) और उसकी सहयोगी क्षेत्रीय पार्टी 'क्रिश्चियन सोशलिस्ट यूनियन' (सीएसयू) के पास भी बुंडेस्टाग में एक बराबर 248 सांसद थे.
यह स्थिति कामकाज में अवरोधक बन गई, तो ब्रांट ने समाधान की राह बनाई. 24 जून 1972 को उन्होंने कहा कि "नागरिकों का अधिकार है यह सुनिश्चित करना कि सरकार के काम पर विराम ना लगे." उन्होंने यह भी कहा कि यह आशंका बढ़ती जा रही है कि "विपक्ष सकारात्मक तरीके से सहयोग करने से इनकार कर देगा. इसीलिए मैं घोषणा करता हूं कि हम चुनाव करवाना चाहते हैं."
इसके बाद बुंडेस्टाग में अपना बहुमत खोने के इरादे से ब्रांट विश्वास मत का प्रस्ताव लाए, ताकि ताजा चुनाव के रास्ते मतदाता उनकी चांसलरी पर दोबारा अपनी मुहर लगाएं. इस कदम की सख्त आलोचना हुई. संवैधानिक वकीलों ने भी कहा कि जानबूझकर विश्वास मत हारना जर्मनी के संविधान "बेसिक लॉ" की मूलभावना से मेल नहीं खाता है.
ब्रांट अपनी योजना पर कायम रहे. 20 सितंबर 1972 को उन्होंने विश्वास मत का सामना किया और हार गए, जैसा कि उन्होंने सोचा था. इसके बाद बुंडेस्टाग भंग किया गया और चुनाव हुए. ब्रांट दोबारा निर्वाचित होकर चांसलर बने. एसपीडी को 45.8 फीसदी वोट मिले, जो कि उसका अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. इस चुनाव में मतदान 91.1 प्रतिशत रहा, जो कि बुंडेस्टाग के लिए होने वाले चुनावों में अब तक का सबसे अधिक आंकड़ा है.
हेलमुट कोल
हेलमुट कोल सीडीयू के नेता थे. साल 1983 में उनके कारण दूसरी बार बुंडेस्टाग के चुनाव समय से पहले हुए. कोल से पहले एसपीडी के हेलमुट श्मिट चांसलर थे. श्मिट की आर्थिक और सुरक्षा नीतियों पर जारी मतभेदों के कारण बड़ी संख्या में सांसदों ने उनसे अपना समर्थन वापस ले लिया था. गठबंधन के साथी एफडीपी ने उनका साथ छोड़कर सीडीयू का साथ देने का फैसला किया था. ऐसे में विश्वास प्रस्ताव आया. श्मिट संसद में विश्वास मत हार कर पद गंवा बैठे और कोल चांसलर बने.
चूंकि कोल की सीडीयू-सीएसयू और एफडीपी गठबंधन की सरकार चुनाव जीतकर नहीं, बल्कि अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान के रास्ते सत्ता में आई थी तो कोल चुनाव में जीतकर अपनी लोकप्रियता साबित करना चाहते थे और फिर से सत्ता में आना चाहते थे. उन्होंने भी विश्वास मत पर मतदान बुलाया और 17 दिसंबर 1982 को हुई वोटिंग में जानबूझकर हार गए. इसके कारण बुंडेस्टाग भंग हो गई. कोल ने तब कहा था, "मैंने सरकार को स्थिरता देने और संसद में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के लिए नए चुनाव के लिए राह खोली."
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बुंडेस्टाग के कई सदस्यों को यह अस्वीकार्य लगा और उन्होंने जर्मनी की संवैधानिक अदालत में शिकायत दायर की. 41 दिनों की सुनवाई के बाद जजों ने कोल के जानबूझकर विश्वास मत हारकर फिर से चुनाव करवाने के रास्ते को मंजूरी दी. हालांकि, जजों ने इस बात पर भी जोर दिया कि विश्वास मत हासिल करने की अनुमति केवल "वास्तविक संकट" की स्थिति में ही है. 6 मार्च 1983 को फिर से चुनाव हुए और कोल की चांसलरी पर जनता ने मुहर लगाई. स्पष्ट बहुमत पाकर उनकी सरकार आगे बढ़ पाई.
गेरहार्ड श्रोएडर
एसपीडी के नेता गेरहार्ड श्रोएडर तीसरे चांसलर थे, जिन्होंने साल 2005 में समय से पहले चुनाव की राह बनाई. श्रोएडर ग्रीन पार्टी के साथ गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे. कई विधानसभा चुनावों में हार के कारण एसपीडी संघर्ष कर रही थी और पार्टी में और बुंडेस्टाग में उसका समर्थन घट रहा था. इस घटते समर्थन का मुख्य कारण श्रोएडर का विवादित आर्थिक सुधार एजेंडा था.
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साल 2010 में लागू होने वाले इन सुधारों के कारण सामाजिक व्यवस्था और श्रम बाजार में तेजी से बदलाव हुए. श्रोएडर ने संसद में विश्वास का प्रस्ताव पेश किया और 1 जुलाई 2005 को वह जानबूझकर विश्वास मत हार गए. इसके बाद फिर से चुनाव हुए.
श्रोएडर ने तब सुधारों के बारे में कहा था, "मैं मजबूती से मानता हूं कि अधिकतर जर्मन चाहते हैं कि मैं इस राह पर आगे बढूं, लेकिन मैं केवल नए चुनावों के माध्यम से ही जरूरी स्पष्टता हासिल कर सकता हूं." हालांकि, श्रोएडर की गणना सटीक नहीं बैठी. 18 सितंबर 2005 को हुए चुनाव में अंगेला मैर्केल की सीडीयू-सीएसयू को मामूली बढ़त मिल गई. एसपीडी के समर्थन से वह गठबंधन सरकार में चांसलर बन गईं. यह उनके 16 साल लंबे करियर की शुरुआत थी.