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छात्रों के ट्रैकपैंट्स पहनने पर क्यों हो रहा विवाद?

३१ मार्च २०२३

जर्मनी का एक स्कूल ट्रैकपैंट्स पहनकर आने पर पाबंदी लगाना चाहता है, जबकि अब हर जगह लोग आरामदायक पैंट पहनकर जाते हैं, चाहे वह दफ्तर ही क्यों न हो.सवाल यह है कि क्या वाकई में ट्रैकपैंट्स पहनने पर पाबंदी लगाई जा सकती है.

ट्रैकपैंट्स पहने युवा
ट्रैकपैंट्स पहने युवातस्वीर: Jan-Philipp Strobel/picture alliance / dpa

ट्रैकपैंट्स लंबे समय से रोजमर्रा के फैशनेबल कपड़ों की सूची में शामिल हो चुका है. इसे पहनना काफी आसान है. यह काफी आरामदायक और किफायती भी होता है. लड़के हों या लड़कियां, पुरुष हों या महिलाएं, सभी इसे पहन सकते हैं. यहां तक कि कई दफ्तरों में भी इसे पहनने पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है.

हालांकि, जर्मनी के नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य के वेर्मल्सकिर्षन शहर स्थित एक हाई स्कूल में इस तरह के कपड़े पहनने की अनुमति नहीं है. ट्रैकपैंट्स पहनकर कक्षा में आने की वजह से यहां के छात्रों को वापस घर भेज दिया गया था. दरअसल, स्कूल में 2019 में पेश किया गया ड्रेस कोड लागू किया जा रहा था.

जब यह बात मीडिया में पहुंची और इसकी आलोचना की गई, तो अपनी प्रतिक्रिया में स्कूल प्रबंधन ने कहा, "हम अपने छात्रों को ऐसे कपड़े पहनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं जो उन्हें ‘चिल' करने वाली स्थिति में न ले जाए.”

स्कूल के शैक्षिक निदेशक मोरित्ज लोमान ने स्थानीय अखबार रेमशाइड गेनेरालअनत्साइगर से कहा, "युवाओं को यह सीखना चाहिए कि अलग-अलग सामाजिक जगहों पर अलग-अलग तरीके से पेश आना चाहिए. जो कपड़े घर के सोफे पर बैठने के लिए अच्छे हैं वे स्कूल के हिसाब से सही नहीं हो सकते हैं.” उन्होंने छात्रों के माता-पिता को लिखे पत्र में कहा है कि वे शिक्षा से जुड़े इस कदम का समर्थन करें.

स्कूल जाना भी कार्यालय जाने जैसा है

वेर्मल्सकिर्षन हाई स्कूल के निदेशक का मानना है कि ट्रैकपैंट्स का इस्तेमाल सिर्फ खेल के उद्देश्य के लिए होना चाहिए. डॉयचे क्निग्गे गेजेलशाफ्ट जर्मन एसोसिएशन फॉर एटिकेट ने भी इस प्रतिबंध का समर्थन किया है. सोसाइटी ने जर्मन प्रेस एजेंसी डीपीए को दिए बयान में कहा, "स्कूल जाना भी कार्यालय जाने जैसा है. इसलिए यहां ट्रैकपैंट्स नहीं पहनना चाहिए.”

द क्निग्गे सोसाइटी को उचित शिष्टाचार के मुद्दे पर जर्मन विशेषज्ञ के तौर पर माना जाता है. इसका नाम समाज शास्त्र की किताब ‘लोगों से किस तरह व्यवहार करें' के लेखक अडोल्फ फ्रायहेयर क्निग्गे (1752-1796) के नाम पर रखा गया है.

विभिन्न एथलीट भी इस ड्रेस कोड का पालन करते हैं. 2019 में फुटबॉल कोच योर्गन क्लिंसमान ने अपनी टीम हर्था बीएससी पर यात्रा के दौरान ट्रैकसूट पहनने पर पाबंदी लगा दी थी. उनका ड्रेस कोड अभी भी उतना सख्त नहीं है जितना 2005 में यूएस बास्केटबॉल लीग ने अपनाया था. उस समय कहा गया था कि एनबीए के सभी खिलाड़ियों को खेलने जाने से पहले, खेल कर आने के बाद, और यहां तक कि अगर वे घायल होकर बेंच पर बैठे हुए हैं उस दौरान भी प्रोफेशनल या पारंपरिक कपड़ा पहनना होगा.

पुराने कपड़ों के बदले बर्तन का बदलता कारोबार

जिंदगी से हार या विद्रोही बयान?

फैशन की दुनिया के चर्चित डिजाइनर कार्ल लागरफेल्ड (1933 - 2019) ने खुले आम कहा था, "जो कोई भी ट्रैकपैंट्स पहनता है उसने अपने जीवन पर नियंत्रण खो दिया है. ट्रैकपैंट्स हार की निशानी है. जिंदगी आपके हाथ से निकल गई है, इसलिए आप ट्रैकपैंट्स खरीद लाए.” हालांकि, इस बीच वैलेंटिनो, गुची, प्राडा जैसे कई डिजाइनर ब्रैंड ने आरामदायक कपड़ों में लग्जरी वाली चीजें जोड़ी हैं, चाहे वे महीन रेशम में मॉडल बना रहे हों या स्वारोवस्की क्रिस्टल के साथ पैंट को सजा रहे हों.

सांस्कृतिक और फैशन समाजशास्त्री लुत्ज हेबर के मुताबिक, ट्रैकपैंट्स पहनना जिंदगी से हारने की निशानी नहीं है, बल्कि विद्रोही बयान देने जैसा है. हनोवर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हेबर ने समाचार एजेंसी ईपीडी को बताया, "ट्रैकपैंट्स आरामदायक जीवनशैली को दिखाता है. यह दिखाता है कि आपको परंपराओं की ज्यादा परवाह नहीं है.” इसलिए, शायद नई कहावत यह होनी चाहिए कि जो कोई भी ट्रैकपैंट्स पहनता है वास्तव में उसका जीवन उसके नियंत्रण में होता है.

ट्रैकपैंट्स के उतार-चढ़ाव

फ्रांसीसी स्पोर्ट्स ब्रांड ‘ले कॉक स्पोर्टिफ' ने 1920 के दशक में पहला जॉगिंग पैंट लॉन्च किया था. हालांकि, स्पोर्ट्स से जुड़े कपड़े वास्तव में 1970 के दशक में लोकप्रिय हुए, क्योंकि इस समय तक लोगों के बीच खुद को स्वस्थ रखने को लेकर जागरूकता फैलनी शुरू हो गई थी.

दूसरी ओर, 1980 के दशक तक पैंट की लोकप्रियता भी खराब होने लगी थी. माना जाने लगा था कि समाज के वंचित तबके के लोग पैंट पहनते हैं. लोग इन्हें पहनकर खेलने नहीं जाते, बल्कि किराने की दुकान से खरीदारी करने जाते हैं.

1990 के दशक में रैपर्स और हिप-हॉपर्स ने ट्रैकपैंट्स को नए फैशन के तौर पर स्थापित कर दिया. 2009 के बाद से रबड़ वाले कमरबंद के साथ आने वाले आरामदायक ट्रैकपैंट्स के लिए 21 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय ट्रैकपैंट्स दिवस मनाया जाता है. उस दिन जर्मन सार्वजनिक प्रसारक एआरडी के एक एंकर ने ‘टागेसशाउ' समाचार शो प्रस्तुत करने के लिए ट्रैकपैंट्स पहना था. स्कूल में पढ़ाने वाले कुछ शिक्षक भी ट्रैकपैंट्स पहनते हैं, लेकिन वेर्मल्सकिर्षन में नहीं.

कपड़ा निजी पसंद का मसला है

आखिर यह तय करने का अधिकार किसे है कि छात्रों को क्या पहनना चाहिए. जर्मनी में स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए कोई तय ड्रेस कोड नहीं है. स्कूलों को यह अनुमति दी गई है कि वे स्कूल के नियम के तौर पर कोई ड्रेस कोड तय कर सकते हैं. हालांकि, कानूनी तौर पर, यह सिर्फ एक सुझाव है. इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता.

म्युंस्टर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और कानून विशेषज्ञ हिनार्क विस्मान ने डीपीए को बताया, "किसी व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने का कोई आधार नहीं है. कानूनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट है.”

ब्रिटेन के कुछ टॉप यूनिवर्सिटी में परीक्षाओं और अन्य समारोह के लिए ड्रेस कोड का सख्ती से पालन किया जाता है. जबकि जर्मनी के विश्वविद्यालयों में ऐसा नहीं है.

जर्मनी में एक बार कानून की छात्रा को मौखिक परीक्षा के दौरान स्मार्ट पैंट की जगह जींस पहनने की वजह से कम अंक दिया गया था. छात्रा ने इस बाबत अपने विश्वविद्यालय के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया और वह कोर्ट में जीत गई. दूसरे शब्दों में कहें, तो जर्मनी किसी व्यक्ति को यह अधिकार देता है कि वह अपनी पसंद के मुताबिक कपड़े पहन सकता है और अपनी वेशभूषा तय कर सकता है.

‘ट्रैकपैंट्स के प्रशंसक' और ‘जर्मनी के अगले टॉप मॉडल' के जूरी सदस्य प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर थॉमस रथ ने डीपीए को बताया कि महामारी के दौरान कैजुअल कपड़ों का इस्तेमाल काफी ज्यादा बढ़ गया था, क्योंकि उस समय कई लोग घर से काम करते थे. इसके अलावा, हमारे रोजमर्रा के जीवन में भी इस तरह के कपड़ों का इस्तेमाल बढ़ा है. ये कपड़े हमें युवा रखते हैं.”

थॉमस रथ स्कूल में लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा, "पहनावे को तय करने वाले फैसलों का दौर खत्म हो चुका है. हम अपने हिसाब से कपड़े पहन सकते हैं. ट्रैकपैंट्स अब सिर्फ घर में पहनने वाला कपड़ा नहीं है, बल्कि अब यह फैशन में शामिल हो चुका है. हमने कई प्रसिद्ध महिलाओं को रेड कार्पेट पर स्टाइलिश तरीके से स्पोर्ट्सवियर पहने हुए देखा है.”

ऐसे में साफ तौर पर यह कहा जा सकता है कि वेर्मल्सकिर्षन स्कूल के बोर्ड को आज के फैशन के हिसाब से अपने विचार को बदलने की जरूरत है.

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