बलात्कारियों को सजा सुना देने से सुरक्षित हो जाएंगी औरतें
२३ जनवरी २०२५कोलकाता की एक अदालत महानगर के बहुचर्चित आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल कांड में अभियुक्त को आजीवन कैद की सजा सुना चुकी है. बीते साल नौ अगस्त को कोलकाता के मेडिकल कालेज में कार्यरत एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी. इस मामले के एकमात्र अभियुक्त संजय राय को अगले दिन ही गिरफ्तार कर लिया गया था. इसके बाद राज्य ही नहीं बल्कि देश भर के डॉक्टरों ने लंबे समय तक आंदोलन और अनशन किया था.
राज्य सरकार ने अभियुक्त को फांसी की सजा देने की मांग करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. पीड़ित परिवार भी न्याय मिलने तक लड़ाई जारी रखने की बात कह रहा है. हालांकि बड़ा सवाल यह है कि इस घटना के बाद राज्य में महिलाओं की सुरक्षा की तस्वीर कितनी बदली है? यह दुखद सच्चाई है कि महिला सुरक्षा के लिहाज से ज्यादातर लोगों को इसमें खास बदलाव नजर नहीं आता. आर.जी. कर कांड के बाद अब तक कई अस्पतालों में महिला चिकित्सकों और नर्सों के साथ यौन उत्पीड़न के मामले तो सामने आए ही हैं, राज्य के विभिन्न इलाकों से कम से कम एक दर्जन से ज्यादा बलात्कार और कुछ बलात्कार के बाद हत्या के मामले भी सामने आ चुके हैं.
हालत यह है कि जिस दिन अदालत ने संजय को सजा सुनाई, उस दिन भी दक्षिण 24-परगना जिले में 11वीं की एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी. बीते चार महीनों में ऐसे कम से कम पांच मामलों में राज्य की विभिन्न अदालतें अभियुक्तों को फांसी की सजा सुना चुकी हैं.
राज्य सरकार का दावा है कि उसने सरकारी अस्पतालों में आधारभूत ढांचा मजबूत करने और स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में ठोस पहल की है. उधर आर.जी. कर कांड के विरोध में महीनों आंदोलन करने वाले जूनियर डॉक्टरों का आरोप है कि सरकार की कथनी और करनी में भारी अंतर है. अब भी कामकाजी महिलाएं खासकर रात की ड्यूटी में खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रही हैं.
"उम्र कैद तो क्या फांसी देकर भी हालात नहीं बदलेंगे"
क्या इस घटना के बाद महिला सुरक्षा की तस्वीर में कोई बदलाव आएगा? जूनियर डॉक्टरों के संगठन वेस्ट बंगाल जूनियर डाक्टर्स फ्रंट के प्रमुख सदस्य डॉ. किंजल नंद डीडब्ल्यू से कहते हैं, "संजय को भले सजा हो गई हो, इस मामले के असली अपराधी अभी तक सामने नहीं आ सके हैं. इसके साथ ही सरकारी अस्पतालों में कामकाज की परिस्थितियां भी बहुत बेहतर नहीं हुई हैं. ऐसे में आगे भी ऐसी घटनाओं का अंदेशा बना रहेगा. निर्भया कांड के बाद कानूनों में कई बदलाव जरूर किए गए थे, लेकिन समाज और उसकी मानसिकता में कोई बदलाव नहीं नजर आया."
किंजल नंद पूछते हैं कि संजय को सजा मिलने के बाद आम लोगों के मन में कामकाजी जगहों पर सुरक्षा को लेकर जो डर पनपा था, क्या वह दूर हो सका है? वह कहते हैं, "बाद में इस पूरे मामले की लीपापोती कर दी गई. मेरी राय में संजय को फांसी होने पर भी इस डर को दूर करना संभव नहीं होता.
इसी तरह बांग्ला लेखिका साम्राज्ञी मुखर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "बड़ी बात यह नहीं है कि संजय को आजीवन कैद की सजा हो या आगे चल कर फांसी हो. मुख्य मुद्दा कामकाजी जगहों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो. इसके लिए समाज की मानसिकता में बदलाव भी जरूरी है."
पश्चिम बंगाल बाल सुरक्षा आयोग की सदस्य अनन्या चक्रवर्ती भी इसे सहमत हैं. वो डीडब्ल्यू से कहती हैं, "अभियुक्त को सजा देने के साथ ही इस घटना की मूल वजहों की पहचान कर उनको दूर करना जरूरी है. अगर उम्र कैद या फांसी से ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना संभव होता तो कानून की किताबों और अपराधों की सूची से बलात्कार और हत्या जैसे शब्द ही खत्म हो गए होते."
डॉक्टरों के संगठन वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम के सदस्य पुण्यब्रत गुन डीडब्ल्यू से कहते हैं, "इस घटना में एक से ज्यादा लोग शामिल थे. सिर्फ एक को सजा देने का मतलब है बाकी अपराधी साफ बच गए हैं. ऐसे में आगे भी ऐसी घटनाएं होती रहेंगी."
क्या थी जूनियर डॉक्टरों की मांगें?
आर.जी. कर की घटना के बाद राज्य के जूनियर डॉक्टरों ने अपने आंदोलन के दौरान सरकार के समक्ष कई मांगें रखी थीं. इनमें पीड़िता को न्याय के साथ ही अस्पताल परिसरों में सुरक्षा बढ़ाना और ज्यादा तादाद में महिला पुलिसकर्मियों की बहाली, अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के लिए सेंट्रल रेफरल सिस्टम शुरू करना, खाली बिस्तरों की निगरानी का तंत्र विकसित करने जैसी मांगें थीं. इसके अलावा डॉक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों के खाली पदों पर तत्काल नियुक्ति और सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में टास्क फोर्स के गठन की मांग भी रखी गई थी.
इनको कहां तक पूरा किया जा सका है? राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशक स्वपन सोरेन डीडब्ल्यू से बातचीत में दावा करते हैं, "राज्य के तमाम सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में आधारभूत ढांचे को मजबूत करने और सुरक्षा बढ़ाने का काम तेजी से चल रही है. कुछ जगह सीसीटीवी कैमरे लगाने का काम भी पूरा हो गया है. बाकी पहलुओं पर भी काम चल रहा है. सरकार ने इसके लिए 113 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं."
उधर जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि आर.जी. कर की घटना के बाद सरकार ने इस काम में भले तेजी दिखाई थी, अब इसकी रफ्तार सुस्त पड़ गई है. जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट के डा. अनिकेत महतो डीडब्ल्यू से कहते हैं, "अब भी हमारी कई मांगें पूरी नहीं हो सकी हैं. खाली पदों पर बहाली भी नहीं की जा सकी है. इसलिए संजय को सजा के बावजूद हमारा आंदोलन जारी रहेगा."