कनाडा इंटरनेट पर पोस्ट की जाने वालीं नफरत भरी बातों यानी कि हेट स्पीच को एक अपराध बनाने की योजना पर काम कर रहा है. कानून में संशोधन का प्रस्ताव तैयार है.
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कनाडा की लिबरल सरकार ने आपराधिक और मानवाधिकार से जुड़े कानूनों में बदलाव का प्रस्ताव पेश किया है. यह प्रस्ताव तब आया है जब एक मुस्लिम परिवार को ट्रक से कुचल दिए जाने की घटना के जख्म अब भी ताजा हैं.
इसी महीने हुई एक घटना में एक 20 वर्षीय युवक ने अपने ट्रक से एक मुस्लिम परिवार को कुचल दिया था. 6 जून को हुई इस घटना को सरकार ने नफरत के कारण किया गया अपराधा बताया था. आरोपी युवक पर हत्या और आतंकवाद की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है.
न्याय मंत्री डेविड लामेटी ने एक बयान में कहा, "आज हम जो कदम उठा रहे हैं, वे कमजोरों की मदद करेंगे, पीड़ितों को सशक्त करेंगे और इंटरनेट पर नफरत फैलाने वालों को सजा दिलाएंगे.”
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कौन होगा प्रभावित?
जिन बदलावों का प्रस्ताव किया गया है, उनके तहत अपनी निजी वेबसाइटों, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म या ब्लॉग पर नफरत भरी टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ शिकायत करना आसान होगा. ऐसी वेबसाइट चलाने वालों के खिलाफ भी मुकदमा किया जा सकेगा. किसी व्यक्ति विशेष को निशाना बनाकर इंटरनेट पर नफरत भरी टिप्पणी करने का दोषी पाए जाने पर 20 हजार कनाडाई डॉलर यानी लगभग 12 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.
इस कानून में फिलहाल सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म चलाने वाली कंपनियों को पक्षकार नहीं बनाया गया है. यानी उन पर मुकदमा नहीं किया जा सकेगा. लेकिन सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया चलाने वाली कंपनियों को जिम्मेदार बनाने के बारे में जल्द ही जनता से सुझाव मांगे जाएंगे. इनके तहत ‘नफरत भरी टिप्पणियों जैसी खतरनाक सामग्री, आतंकवाद से जुड़ी सामग्री और हिंसा भड़काने वाली सामग्री' को लेकर कंपनियों को जिम्मेदार बनाने पर सुझाव मांगे जाएंगे.
भारत: क्या हैं डिजिटल मीडिया के नए नियम
सरकार ने समाचार वेबसाइटों, सोशल मीडिया और ओटीटी सेवाओं के लिए नए दिशा निर्देश बनाए हैं. इनसे इन तीनों क्षेत्रों में बड़े बदलाव होने की संभावना है, लेकिन जानकार सवाल उठा रहे हैं कि नए नियमों के दुरूपयोग को कैसे रोका जाएगा.
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बड़े बदलाव
यह पहली बार है जब भारत में समाचार वेबसाइटों, सोशल मीडिया और ओटीटी सेवाओं के लिए दिशा-निर्देश बनाए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन नियमों के पीछे मंशा इंटरनेट पर आम लोगों को और सशक्त बनाने की है.
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सोशल मीडिया पर जो चीजें नहीं जानी चाहिए
10 तरह के कॉन्टेंट को सोशल मीडिया के लिए वर्जित बना दिया गया है. इसमें शामिल है वो सामग्री जिस से भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को खतरा होता हो, जिससे मित्र देशों से भारत के संबंधों पर खतरा होता हो, जिस से पब्लिक ऑर्डर को खतरा होता हो, जो किसी जुर्म को करने के लिए भड़काती हो या जो किसी अपराध की जांच में बाधा डालती हो.
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मानहानि, अश्लीलता पर प्रतिबंध
इस तरह की सामग्री को भी वर्जित कर दिया गया है जिससे किसी की मानहानि होती हो, जिसमें अश्लीलता हो, जिससे दूसरों की निजता का हनन होता हो, लिंग के आधार पर अपमान होता हो, जो नस्ल के आधार पर आपत्तिजनक हो और जिससे हवाला या जुए को प्रोत्साहन मिलता हो.
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शिकायत पर कार्रवाई
सोशल मीडिया कंपनियों को आम लोगों से शिकायत मिलने पर 24 घंटों में उसे दर्ज करना होगा और 15 दिनों के अंदर उस पर कार्रवाई करनी होगी. इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत निवारण अधिकारी और एक अनुपालन अधिकारी भारत में ही नियुक्त करना होगा.
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वर्जित सामग्री को हटाना होगा
किसी अदालत या किसी सरकारी संस्था से वर्जित सामग्री को हटाने का आदेश जारी होने के 36 घंटों के अंदर सोशल मीडिया कंपनी को उस सामग्री को हटाना होगा.
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मासिक रिपोर्ट
सोशल मीडिया कंपनियों को हर महीने एक रिपोर्ट भी छापनी होगी जिसमें उन्हें बताना होगा कि उन्हें कितनी और कौन सी शिकायतें मिलीं, उन पर क्या कार्रवाई की गई और कंपनी ने खुद भी किसी वर्जित सामग्री को हटाया या नहीं.
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संदेश भेजने वाले की पहचान
सोशल मीडिया पर फैले रहे उपद्रवी संदेश या पोस्ट को सबसे पहले किसने भेजा या डाला इसकी पहचान सोशल मीडिया कंपनी को करनी होगी और उसके बारे में जांच एजेंसियों को बताना होगा.
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जुर्माना और जेल
सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा नियमों का पालन ना करने पर तीन साल से सात साल तक की जेल और दो लाख से 10 लाख रुपयों तक के जुर्माने का प्रावधान है.
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ओटीटी सेवाओं के लिए नियम
नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम जैसे ओटीटी सेवाओं को अपने कार्यक्रमों को उम्र के आधार पर पांच श्रेणियों में डालने के लिए, अपने यूजरों की उम्र मालूम करने के लिए और एडल्ट कार्यक्रमों को बच्चों की पहुंच से परे कर देने के लिए कहा गया है.
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समाचार वेबसाइटों के लिए नियम
समाचार वेबसाइटों को प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए पहले से बने हुए नियमों का पालन करना होगा. इसे सुनिश्चित करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक समिति भी बनाएगा.
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वैसे, इस प्रस्ताव के निकट भविष्य में पास होने की संभावनाएं कम ही हैं क्योंकि बुधवार को कनाडा की संसद के मौजूदा सत्र का आखरी दिन था. और प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आने वाले महीनों में चुनाव कराने का ऐलान कर सकते हैं.
घृणा रोकने की कोशिशें
हेट स्पीच को फैलाने में सोशल मीडिया और इंटरनेट की भी बड़ी भूमिका है. कई देशों की सरकारें दुनिया की बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों पर हेट स्पीच को रोकने के लिए कानूनी बंदिशें भी लगाने के प्रयास कर रही हैं.
पिछले साल जर्मनी की एक अदालत ने कहा था कि देश के हेट स्पीच कानून में महिलाओं को बदनाम करने की कोशिशें भी शामिल हैं. मामला एक ऐसे पुरुष का था जो अपनी वेबसाइट पर महिलाओं को "दोयम दर्जे" वाली और "कमतर” बताया करता था.
अपील कोर्ट के जज ने अपने आदेश में कहा कि विश्व-युद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी में घृणा भाषण या भड़काने वाले भाषण के खिलाफ बने कानूनों के अंतर्गत महिलाओं कों भी सुरक्षा मिलती है, जिन्हें महिला होने के कारण अपमान का सामना करना पड़े. जज ने कानून की व्याख्या करते हुए कहा कि इसका सबसे बड़ा मकसद मानव गरिमा की रक्षा करना है.
संयुक्त राष्ट्र ने 2019 में जातीय संहार रोकथाम विभाग के नेतृत्व में हेट स्पीच के खिलाफ वैश्विक अभियान चलाया था. यूएन चाहता है कि घृणा भरे माहौल को काबू में करने के लिए सभी देश साथ आएं. संस्था के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने तब कहा था कि इंसान के एक जगह से दूसरी जगह जाने पर होने वाली बहस, रिफ्यूजी और माइग्रेशन से जुड़ते हुए आतंकवाद तक पहुंच गई. उन्होंने कहा, "समाज में मौजूद कई खामियों के लिए इसे ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है."
वीके/एए (रॉयटर्स, डीपीए, एएफपी)
सोशल मीडिया कंपनियां नेताओं के साथ कैसे पेश आती हैं
फेसबुक और ट्विट्टर द्वारा डॉनल्ड ट्रंप के खातों को बंद कर देने के बाद सोशल मीडिया कंपनियों के व्यवहार को लेकर काफी चर्चा हुई थी. कैसे तय करती हैं कंपनियां कि उनके मंचों पर किस नेता को क्या-क्या बोलने दिया जाए.
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किसके साथ होता है विशेष व्यवहार?
फेसबुक और ट्विटर दोनों के ही मौजूदा नियम आम यूजर के मुकाबले चुने हुए नुमाइंदों और राजनीतिक प्रत्याशियों को ज्यादा अभिव्यक्ति की आजादी देते हैं. ट्विटर के जनहित नियमों के तहत तो सत्यापित सरकारी अधिकारी भी आते हैं.
तस्वीर: Ozan Kose/AFP/Getty Images
तो क्या हैं मौजूदा नियम?
ट्विटर कहती है कि सामग्री अगर जनहित में हो तो वो उसे हटाती नहीं है, क्योंकि ऐसी सामग्री का रिकॉर्ड रहेगा तभी नेताओं को जवाबदेह बनाया जा सकेगा. फेसबुक राजनेताओं की पोस्ट और भुगतान किए हुए विज्ञापनों को अपने बाहरी फैक्ट-चेक कार्यक्रम से छूट देती है. फेसबुक राजनेताओं द्वारा किए गए कंपनी के नियम तोड़ने वाले पोस्ट को भी नहीं हटाती है अगर उनका जनहित उनके नुकसान से ज्यादा बड़ा है.
तस्वीर: Diptendu Dutta/AFP
आतंकवाद गंभीर मामला
ट्विटर का कहना है कि दुनिया में कहीं भी अगर कोई नेता आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला ट्वीट करता है तो उसे कंपनी हटा देती है. किसी दूसरे की निजी जानकारी जाहिर करने वाले ट्वीटों को भी हटा दिया जाता है. फेसबुक के तो कर्मचारियों ने ही भड़काऊ पोस्ट ना हटाने पर कंपनी की आलोचना की है. यूट्यूब कहता है कि उसने नेताओं के लिए कोई अलग नियम नहीं बनाए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/S. Babbar
ट्रंप के साथ क्या हुआ?
छह जनवरी 2021 को वॉशिंगटन में हुए कैपिटल दंगों के बाद ट्विट्टर, फेसबुक, स्नैपचैट और ट्विच ने ट्रंप पर हिंसा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. यूट्यूब ने भी ट्रंप के चैनल पर रोक लगा दी थी.
तस्वीर: Christoph Hardt/Geisler-Fotopress/picture alliance
दूसरे नेताओं का क्या?
मानवाधिकार समूहों ने मांग की है कि इन कंपनियों को दूसरे नेताओं के खिलाफ भी इसी तरह के कदम उठाने चाहिए. कई नेता हैं जिनकी सार्वजनिक रूप से काफी आलोचना होती है लेकिन वो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. इनमें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई, ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोल्सोनारो और वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो शामिल हैं. म्यांमार में तख्तापलट के बाद फेसबुक ने सेना पर प्रतिबंध लगा दिया था.
तस्वीर: Office of the Iranian Supreme Leader/AP/picture alliance
अब क्या हो रहा है?
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों और कैपिटल दंगों के दौरान फेसबुक और ट्विटर की भूमिका को लेकर सवाल उठने के बाद दोनों कंपनियों ने अपनी नियमों पर राय मांगी है. फेसबुक ने अपने ओवरसाइट बोर्ड से सुझाव मांगे हैं और ट्विट्टर ने जनता से. (रॉयटर्स)