भारत के साथ कूटनीतिक कोहराम के बीच कनाडा नाजी विवाद में घिर गया है. हिटलर के पूर्व सैनिक को सम्मानित करने पर कनाडा के स्पीकर को इस्तीफा देना पड़ा है.
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कनाडा की संसद, हाउस ऑफ कॉमंस के निचले सदन के स्पीकर एंथनी रोटा ने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की पिछले हफ्ते कनाडा में थे. शुक्रवार को उन्होंने कनाडा की संसद में भाषण दिया. इस सत्र के लिए 98 साल के यारोस्लाव हुंका को भी न्योता दिया गया.
रोटा ने हुंका का परिचय देते हुए "यूक्रेनी हीरो" और "कनाडाई हीरो" जैसे शब्द कहे. इस दौरान सदन में मौजूद सदस्यों ने खड़े होकर हुंका के सम्मान में तालियां बजाई. बाद में पता चला कि हुंका दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर की कुख्यात नाजी सेना एसएस के सैनिक रह चुके हैं. एसएस यूनिटयहूदियों को यातना शिविरों में लाने और फिर बर्बर तरीके से मारने के लिए बदनाम है.
हुंका का बैकग्राउंड ऐसे वक्त में सामने आया जब हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के कारण कनाडा और भारत गंभीर विवाद में फंसे हुए हैं. रूस ने हुंका को सम्मानित किए जाने के लिए फैसले को "अपमानजनक घटना" करार दिया. वहीं दुनिया भर के यहूदी समुदायों ने भी कनाडाई स्पीकर की कड़ी आलोचना की.
बढ़ती आलोचना के बीच कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो की पार्टी के सदस्य रोटा ने कहा, "उस सार्वजनिक सम्मान ने लोगों और समुदायों को पीड़ा पहुंचाई है, इनमें कनाडा और विश्वभर का यहूदी समुदाय भी शामिल है....मैं अपने कदमों की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं."
कनाडा की राजनीति में बवाल
रोटा ने बताया कि इस्तीफा बुधवार से अमल में आएगा. किसी और सांसद को पदासीन करने तक, उप सभापति स्पीकर की भूमिका निभाएंगे. रोटा ने अपनी गलती पर "पूरी शिद्दत से खेद" भी जताया. हुंका, रोटा के ही संसदीय क्षेत्र में रहते हैं. इस कारण भी स्पीकर लोगों को निशाने पर आए.हुंका को कनाडा की संसद में फर्स्ट यूक्रेनी डिविजन का सदस्य बताया गया. लेकिन असल में वह हिटलर की नाजी सेना की 14वीं वाफन ग्रेनेडियर डिविजन थी.
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यहूदी संगठन, फ्रेंड्स ऑफ जिमोन विसेनथाल सेंटर के मुताबिक, यह स्वंयसेवी लड़ाके "नाजी सेना की उस यूनिट का हिस्सा थे, जिसके होलोकास्ट के दौरान मानवता के विरुद्ध अपराध, बहुत अच्छे से दर्ज हैं."
ये बातें पता चलने के बाद कनाडा के कई नेताओं ने हुंका से इस्तीफे की मांग की. मंगलवार को विदेश मंत्री मेलानी जोली ने भी यह मांग कर रोटा पर दबाव बढ़ा दिया. जोली ने संसद में कहा, "शुक्रवार को जो हुआ, वो पूरी तरह अस्वीकार्य है. यह संसद और कनाडा के लोगों के लिए एक शर्मिंदगी है, और मुझे लगता है कि स्पीकर को सदन के सदस्यों की आवाज सुननी चाहिए और पद छोड़ देना चाहिए."
रूस को मिला मौका
यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिम के निशाने पर रहने वाले रूस ने हुंका मामले पर कनाडा और यूक्रेन पर निशाना साधा. जिनेवा स्थित रूसी दूतावास ने हुंका के सम्मान वाला वीडियो ट्वीट कर लिखा, "बुजुर्ग यूक्रेनी नाजी को कनाडा की संसद में खड़े होकर सम्मान देना, ओटावा के लिए फौरी शर्मिंदगी बना और दुनिया भर में लोग इससे बुरी तरह नाराज हुए. इस हैरानी नहीं हैं कि कनाडा नाजियों के महिमामंडन पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करता है."
मॉस्को ने पिछले साल दावा किया कि वह यूक्रेन को नाजियों से मुक्त करने के लिए खास सैन्य अभियान चला रहा है. हुंका के सम्मान से रूस को एक बार फिर यह दोहराने का मौका मिला है.
फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की पहली बार कनाडा गए थे. लेकिन उनका दौरान हुंका विवाद की भेंट चढ़ गया.
कनाडा की विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी ने हुंका को न्योता देने के लिए ट्रुडो सरकार की आलोचना की है. ट्रुडो सरकार का कहना है कि उसे इस बारे में कोई पूर्व चेतावनी नहीं मिली थी.
ओएसजे/एनआर (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
आउशवित्स की यातना से आजादी की याद
आज आउशवित्स-बिर्केनाउ यातना शिविर से लोगों की आजादी की 76वीं वर्षगांठ है. 25 साल पहले इसे होलोकॉस्ट स्मृति दिवस के रूप में मनाना शुरू किया गया. कोरोना वायरस की महामारी के चलते इस बार स्मृति दिवस ऑनलाइन मन रहा है.
तस्वीर: Markus Schreiber/AP Photo/picture alliance
क्या है आउशवित्स बिर्केनाउ
पोलैंड की राजधानी वारसॉ से करीब 68 किलोमीटर दूर आउत्शविस एक यातना शिविर था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजी सेना ने यहां करीब 13 लाख लोगों को कैद रखा जिनमें से 11 लाख लोग यहीं मर खप गए. कुछ लोगों को गैस चेंबरों में मार डाला गया तो कुछ यहां की कठोर जिंदगी का सामना नहीं कर पाने की वजह से मारे गए.
तस्वीर: AP
दूसरे शहरों में भी यातना शिविर
आउशवित्स का यातना शिविर अकेला नहीं था, ऐसे कई यातना शिविर जर्मनी और पोलैंड के अलग अलग शहरों में बनाए गए थे. तस्वीर में दिख रहा शिविर जर्मनी के दशाउ का है. ये शिविर दरअसल हिटलर की नस्ली शुद्धता को लागू करने की सनक का नतीजा थे. इस सनक ने ना सिर्फ जर्मनी बल्कि यूरोप के करोड़ों लोगों का जीवन तहस नहस कर दिया और पूरी दुनिया को एक भयानक युद्ध की आग में झोंक दिया.
तस्वीर: imago stock&people
कैंप की कठोर जिंदगी
यातना शिविर में शारीरिक रूप से कमजोर लोगों, और बुजुर्गों को तुरंत ही गैंस चैंबर में ठूंस कर मार दिया जाता. जवान लोगों से जीतोड़ मेहनत कराई जाती और बहुत थोड़ा और बेकार खाना दिया जाता. आउशवित्स की भूख सहने वाले लोग आज भी उन दिनों की याद से सिहर जाते हैं. जब वो कमजोर और बीमार हो जाते तो उनका भी यही अंजाम होता.
तस्वीर: Staatliches Museum Auschwitz-Birkenau
यातना से आजादी
1945 में दूसरे विश्वयुद्ध में जब नाजी जर्मनी के पांव उखड़ने लगे तब रूसी सेना आउशवित्स पहुंची लेकिन तब यहां महज कुछ हजार लोग ही जीवित मिले. इसी दिन को 1996 से जर्मनी ने होलोकॉस्ट स्मृति दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की. इस मौके पर जर्मन संसद में विशेष कार्यक्रम के साथ ही आउशवित्स में भी श्रद्धांजलि दी जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/akg-images
बच्चों की कुर्बानी
आउशवित्स यातना शिविर में करीब 232,000 बच्चे भी थे. कुछ को यहां भेजा गया तो कुछ यहीं पैदा हुए. इनमें से करीब 2 लाख बच्चों ने अपनी जान गंवाई. रूसी सेना को केवल 700 बच्चे ही जीवित मिले. 2021 के स्मृति दिवस कार्यक्रम में बच्चों को ही केंद्र में रखा गया है. बच्चों पर हुए इस यातना के असर के बारे में एक विशेष चर्चा भी हो रही है जिसमें कैंप में जिंदा बचे दो लोग भी शामिल होंगे.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
मानवता के खिलाफ अपराध
1939 से 1945 के बीच करीब 60 लाख यहूदियों को योजना बना कर मारा गया. इस्राएल में इस घटना को शोआह कहा जाता है जिसका मतलब है भयानक आपदा. इस्राएल के बाहर इसे मानवता के खिलाफ अपराध होलोकॉस्ट कहा जाता है. यह शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका मतलब है बलि के लिए जला देना.
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कैम्प बना म्यूजियम
कैदियों की रिहाई के बाद आउशवित्स के शिविर को म्यूजियम बना दिया गया. यहां उन लोगों के कपड़े, जूते, बेल्ट, बैग, बाल और कई दूसरी चीजें आज भी मौजूद हैं जिन्हें यहां मारा गया. हर साल बड़ी संख्या में सैलानी इस जगह पहुंचते हैं. श्रद्धांजलि के कार्यक्रम में शिविर से जिंदा बचे लोग भी शामिल होते हैं और अपने अनुभव बांटते हैं.
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दूसरी निशानियां
जर्मनी नाजी दौर की हुई उन गलतियों को बार बार याद कर दुनिया और अपने देश के लोगों को अहसास दिलाता है कि इस तरह की सनक के कैसे भयानक नतीजे हो सकते हैं और मानवता को इनसे दूर रहने की कितनी जरूरत है. जर्मन संसद के पास बना यह स्मारक दुनिया को यही संदेश देने के लिए बनाया गया.
तस्वीर: Markus Schreiber/AP Photo/picture alliance